Endocrine glands in Insects in hindi कीटों की अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ क्या है , अन्तः:स्त्रावी तंत्र (Endocrine system)

जानिये कि Endocrine glands in Insects in hindi कीटों की अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ क्या है , अन्तः:स्त्रावी तंत्र (Endocrine system) ?

कीटों में अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine glands in Insects)

अकशेरुकी जन्तुओं में क्रस्टेशिया तथा कीट वर्ग के जन्तुओं में अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों का विस्तृत अध्ययन सूक्ष्म शल्य तकनीक द्वारा विशिष्ट अंगों का अपक्षरण ( ablation), प्रतिरोपण (transplantation), पृथक्करण (isolation ) एवं संयुक्त प्रभाव प्रकट कर किया गया है। इन जन्तुओं में परिवर्धन development) क्रिया हार्मोनों के नियन्त्रण में सम्पन्न होती है। अत: लारवस्था में अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों के प्रभाव के अध्ययन हेतु संकिरण, ऊत्तक संवर्धन (tissue culture) एवं एक से अधिक लारवा को केशिका नलियों द्वारा संलयन (fusion) कर अथवा इनके विशिष्ट अंगों करने जैसी तकनीकों का उपयोग किया गया है। पृथक्करण

कशेरूकी जन्तुओं की भाँति इन जन्तुओं में वृद्धि, विभेदन (defferentiation), कायान्तरण (metamorphosis), उपरति ( diapause), निर्मोचन (moulting); जनन, रंग परिवर्तन (colour change) एवं उपापचय सम्बन्धी अनेक जैविक क्रियाओं का संचालन अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के नियन्त्रण में होता है।

कीट वर्ग के अन्तर्गत 30 से अधिक गणों ( orders) का समावेश किया गया है। इन गणों में जनन तथा परिवर्धन की क्रिया में अत्यधिक भिन्नता पायी गयी है। कीटों में होने वाली परिवर्धन क्रिया को मुख्यत: तीन प्रकार एमेटाबोलस, होलोमेटाबोलस एवं हेमीमेटोबोलस (ametabolous, holometabolous and hemimetabolous) में विभक्त किया गया है।

अन्त:स्त्रावी तन्त्र (Endocrine system)

प्रारूपिक कीट का अन्तःस्त्रावी तन्त्र तन्त्रिका स्त्रावी नाभिकों (neuro secretory nuclei) एवं अतन्त्रिकीय अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों द्वारा रचित होता है। तन्त्रिका स्त्रावी नाभिक तन्त्रिका तन्त्र के

चित्र 11.1 : विच्छेदित कीट कॉर्पस ऐलेटा, कार्पस कार्डिएका व मस्तिष्क सहित

विभिन्न क्षेत्रों में फैले एवं अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ देह के विभिन्न भागों में वितरित अवस्था में पायी जाती है। कीटों की अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों को मुख्यतः चार भागों में विभक्त किया गया है :

(i) मस्तिष्क की तन्त्रिका स्त्रावी नाभिकाएँ : प्रमस्तिष्क गुच्छक

‘ (neuro-secretory nuclei : Cerebral ganglion)

(ii) कॉर्पोरा कार्डिएका (Corpora cardiaca) (iii) कॉर्पोरा एलेटा (Corpora allata)

(iv) निर्मोकी ग्रन्थि (Ecdysial gland)

(i) तन्त्रिका स्त्रावी नाभिकाऍ (Neuro-secretory nuclei ) : प्रारूपिक कीट के प्रमस्तिष्क गुच्छक (cerebral ganglion) तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाओं के प्रमुख केन्द्र होते हैं। तन्त्रिका स्त्रावी नाभिकों में (i) मध्यवर्ती कोशिकाएँ (medial cells) एवं (ii) पार्श्वत: कोशिकाएँ (lateral cells)

(iii) .तृतीय प्रमस्तिष्क कोशिकाएँ (tritocerebral cells)

(iv) अधोग्रसिका कोशिकाएँ (suboesophageal cells)

(v) अधर तन्त्रिका रज्जु के अन्य गुच्छकों की कोशिकाएँ (Neuro-secretory cells of the other ganglia of ventral nerve cord) कुछ समूहों में पायी जाती है।

उपरोक्त समूहों में मध्यवर्ती कोशिकाएँ तथा पार्श्वत: कोशिकाएँ संयुक्त रूप से प्रमस्तिकीय (protecerebral) कोशिकाएँ भी कहलाती है।

चित्र 11.2 : कीट के शीर्ष के तन्त्रिका अंतःस्रावी तन्त्र का आरेख

मध्यवर्ती कोशिकाएँ मध्य रेखा के दोनों ओर एक-एक समूह में स्थित होती है। इनसे तन्त्रिकाक्ष उग्दमित होते हैं। ये एक युग्म तन्त्रिकाओं को बनाते हैं जो क्रॉस करते हुए कॉर्पोरा कार्डिएका में प्रवेश करते हैं। इन तन्त्रिका तन्तुओं को नर्विकॉपोरिस कार्डिकाइ – I (NCC – I) कहते हैं। प्रमस्तिष्क भाग में मध्यवर्ती कोशिकाओ के पार्श्वतः समूह में पार्श्वतः कोशिकाएँ उपस्थित होती है। ये कोशिकाएँ मध्यवर्ती कोशिकाओं से छोटे आमाप की तथा संख्या में कम होती है। इनसे भी तन्त्रिकाक्ष निकल कर तन्त्रिका तन्तु बनाते हैं जिन्हें नर्विकॉर्पोरिस कार्डिकॉइ-II (NCC-II) कहते हैं। ये तन्तु भी NCC- प्रमतिष्क कोशिकाओं से उग्दमित तन्त्रिका तन्तु पृथक् से तृतीय तन्त्रिकीय अक्ष NCC-III द्वारा 1 के साथ मिलकर कॉर्पोरा कार्डिएका में प्रवेश करते हैं। तृतीय प्रमस्तिष्क भाग में स्थित तृतीय

कॉर्पोरा कार्डिएका में प्रवेश करते है।

चित्र 11.3 : कॉर्पस कार्डिएका एवं कॉर्पस एलेटा का प्रमस्तिष्क से तन्त्रिकीय सम्बन्ध मस्तिष्क की तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाएँ निश्चित समूहों में पायी जाती हैं जैसे मस्तिष्क के पास इन्टरसेरिब्रेलिस भाग में। पंखहीन कीटों में ये अनिश्चित समूह में ललाटीय अंग में व्यवस्थित रहती है। । कुछ तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाएँ मस्तिष्क के अतिरिक्त अन्य गुच्छकों में भी पायी जाती है जैसे अधर तन्त्रिका रज्जु के गुच्छक अधोग्रसिका गुच्छक, परिधीय तन्त्रिका तन्त्र के गुच्छकों की कोशिकाएँ आदि।

उपरोक्त वर्णन सामान्य कीट के मस्तिष्क भाग की तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाओं को निरूपित करता है। इनकी उपस्थिति, संख्या एवं वितरण कीटों के भिन्न-भिन्न गणों में कुछ भिन्नता रखता है। अधोग्रसिका तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाएँ (suboesophageal neurosecretory cells) एवं अधर तन्त्रिका रज्जु के गुच्छकों में स्थित तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाएँ भी लगभग कीटों के सभी गणों जीवों में पायी जाती है। कॉर्पोरा कार्डिएका न्यूरोहीमल (neurohaemal) अंग के रूप में कार्य करता है। उपरोक्त नाभिकों को कोशिकाओं के द्वारा मुख्यत: ट्रोपिक हार्मोनों (tropic hormones) का संश्लेषण एवं स्त्रवण किया जाता है तो कॉर्पोरा कार्डिएका नामक न्यूरोहीमल अंग में संग्रहित किया

जाता है। इन हार्मोनों का मोचन (release) आवश्यकतानुसार विशिष्ट उद्दीपनों के फलस्वरूप किया जाता है। पंखहीन कीटों (apterygotes) में तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाएँ एक सम्पुट में उपस्थित होती है जिसे ललाटीय अंग (frontal organ) कहते हैं। यह कार्पस कार्डिएकम में उपस्थित होता है। (ii) कॉर्पोरा कार्डिएका (Corpora cardiaca) : कीट मस्तिष्क के अग्रपृष्ठीय भाग जिसे अन्तरा मस्तिष्क (intercerebralis) कहते हैं, में न्यूरोहीमल अंग उपस्थित होते हैं। कॉर्पोरा कार्डिएक एक जोड़ी छोटे हल्के नीले (bluish) रंग के आशय ( vesicles) होते हैं। ये धमनी के साथ जुड़े रहते हैं एवं इसकी भित्ति का निर्माण करते हैं। प्रमस्तिकीय तन्त्रिका स्त्रावी नाभिकों के तन्त्रिकाओं से उग्दमित तन्त्रिका तन्तु (NCC-I, NCC-II and NCC-III) अन्तत: आशयों में समाये रहते हैं। प्रत्येक आशय कॉर्पस कार्डिएकम (corpus cardiacum) कहलाता है। इसमें तन्त्रिका स्त्रावी पदार्थ . संग्रहित रहते हैं। कॉर्पस कार्डिएकम वैज्ञानिकों के अनुसार स्वयं भी तन्त्रिका स्त्रावी कोशिकाओं एवं ग्लीयल कोशिकाओं से रचित होता है तथा इन कोशिकाओं के द्वारा भी स्थानीय स्त्रावी पदार्थों का संश्लेषण किया जाता है। इसकी कोशिकाएँ कणिकीय कोशिकाद्रव्य युक्त होती है।

कॉर्पस कार्डिएकम का अधिकतर भाग मस्तिष्क की तन्त्रिकाओं के सिरों से निर्मित होता है। इसके द्वारा स्त्रवित एवं संग्रहित न्यूरोहार्मोनों का मोचन कर सीधे हीमोलिम्फ ( haemolymph) में छोड़ा जाता है। कॉर्पोरा कार्डिएका कीट के अग्र आन्त्र भाग से अर्थात् एक्टोडर्म से एवं हाइपोसेरेब्रल गुच्छक (hypocerebral ganglia) से विकसित होते हैं। इसकी रचना तन्त्रिका कोशिकाएँ (neurons) संयोजी ऊत्तक आदि भी उपस्थित होते हैं।

प्रत्येक कार्पस कार्डिएकम अपने पश्य सिरे से एक तन्त्रिका द्वारा कॉर्पोरिस एलेटा (corporis allata) से जुड़ा रहता है। क्रिया की दृष्टि से कॉर्पस कार्डिएका कशेरूकी जन्तुओं के न्यूरोहीमल अंग न्यूरोहाइपोफाइसिस से मिलते हैं। डैवी एवं केमेरॉन (Davey, 1961; Cameron, 1963) के अनुसार इससे आर्थोडायाफीनोल (ortho diaphenol) प्रकार के हार्मोन का स्त्रवण होता है जो हृदयावर्णी कोशिकाओं (pericardial cells) को उत्तेजित कर हृदय गति बढ़ाने वाले पदार्थों के स्रवण हेतु प्रेरित करता है। कार्पस कार्डिएका से प्रोथेरेसिक ट्रापिक हार्मोन PTTH का स्रवण होता है जो प्रोथोरसिक ग्रन्थि को उद्दीप्त करता है ।

यह निम्नलिखित कार्यों का सम्पादित करता है :

(i) मस्तिष्क के तन्त्रिका स्रावी हार्मोन्स का संग्रह एवं निर्मोचन ।

(ii) इससे स्रावित हार्मोन्स हृदय की गति का नियमन करते हैं।

(iii) इस ग्रन्थि का एक भाग हार्मोन्स का संग्रह करता है तथा द्वितीय भाग स्रवण से सम्बन्धित होता है।

(iv) यह ग्रन्थि हाइपरग्लाइसेमिक हार्मोन एवं एडिपोकाइनेटिक हार्मोन का स्रावण करती है। (ii) कॉर्पोरा एलेटा (Corpora allata) : कॉर्पोरा एलेटा एक जोड़ी अन्तन्त्रिकीय अन्तःस्त्रावी ग्रन्थिल (non-neural endocrine glands) भाग है जो कॉर्पोरा कार्डिएकम के ठीक नीचे ग्रसिका (oesophagus) के दोनों ओर स्थित होते हैं। जेनट (Jenet, 1929) के अनुसार ये मेन्डीबुलर (mandibular) भाग के एक्टोडर्म से विकसित ग्रन्थिल भाग है। यह ठोस अण्डाकार आकृति की संरचना होती है। थाइसेन्यूरा एवं फेस्मिडा में ये खोखले ग्रन्थिल, भाग होते हैं। कॉर्पोरा ऐलटा को कॉर्पोरा कार्डिएका से एक जोड़ी तन्त्रिकाएँ प्राप्त होती है। ये तन्त्रिकाएँ प्राथमिक तौर पर नवीं कॉर्पोरिस कार्डिकाई-I के आवर्धित भाग होती है। इस प्रकार से रचित कॉर्पोरा एलेटा प्रमस्तिष्क भाग से निकला तन्त्रिका स्रावी मार्ग है जो कॉर्पोरा कार्डिएका से होकर कॉर्पोरा एलेटा तक आवर्धित होता कॉर्पोरा एलेटा भाग से बाल हार्मोन या जुवेनाइल हार्मोन (Juvenile Hormone) JH स्रावित है। यह हार्मोन निओटेनिन (Neotenin) भी कहलाता है। यह हार्मोन लार्वा अवस्था में बनाये- है। लार्वा अवस्था में इसकी मात्रा सर्वाधिक रहती है। प्यूपावस्था में इसकी सान्द्रता में कमी हो जाती है। प्यूपा से वयस्क में कायान्तरण इस हार्मोन की अनुपस्थिति में होता है। वयस्क अवस्था रखता

हार्मोन की मात्रा में पुनः वृद्धि होती है। यह निर्मोचन की क्रिया का अवमंदन करता है। इसके एवं एक्डायसीन से संयुक्त प्रभाव से कीट की लारवा अवस्था में निर्मोचन (moulting) की क्रिया होती है। इसका रासायनिक सूत्र C18H3603 है। इस हार्मोन के द्वारा जनन एवं अन्य दैहिक क्रियाएँ भी प्रभावित होती है। इस हार्मोन के दो कार्य होते हैं

(i) नर कीटों में सहायक लैंगिक अंगों के विकास को प्रेरित करना ।

(ii) मादा में पीतकजनन एवं अण्डों के परिपक्वन को प्रेरित करना।

कॉर्पस कार्डिएका तथा कार्पस एलेटा के संयुक्त प्रभाव से मस्तिष्क के पश्य भाग में रेट्रोसेरेब्रल जटिलांग (retrocerebral complex) बनाने में क्रियाशील होते हैं। कीट के अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र कं हाइपोसेरेब्रल गुच्छक (hypocerebral ganglia) से भी ये जुड़े रहते हैं। जन्तु की विभिन्न अवस्थाओं में कार्पस कार्डिएका, कॉर्पस एलेटा व हाइपोसेरेबल गुच्छक युग्मित अवस्था या पृथक् अवस्था में उपस्थित होते हैं।

चित्र 11.4 : फेस्मिड के कॉर्पोरा एलेटा का अनुप्रस्थ काट

प्रमस्तिष्क से प्राप्त तन्त्रिका स्रावी तन्त्रिकाएँ कॉर्पस एलेटा से प्रवेशित होती है। यह भाग तन्त्रिका नाव पदार्थों से युक्त होता है। इस प्रकार प्रमस्तिष्क कॉर्पस एलेटा के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को प्रभावित करता है। पेरीप्लेनेटा (periplaneta) को वयस्कावस्था में यह संदमनकारी प्रभाव उत्पन्न करता है। मस्का (musca) अर्थात् घरेलू मक्खी में वीजमेन के वलय (Wisemann’s ring) नामक संरचना द्वारा पृष्ठ महाधमनी (dorsal aorta) घिरी रहती है। महाधमनी के पृष्ठीय सतह पर कॉर्पस एलेटम स्थित होता है। महाधमनी के अधर तल पर उपस्थित अर्ध-सिनसियमी क्षेत्र (semi syncytial region) कॉर्पस कार्डिएका तथा हाइपोसेरेबल गुच्छक की संयुक्त क्रिया से बना रहता है। मस्तिष्क के तन्त्रिका स्रावी तन्तुओं द्वारा यह भेदित रहता है।

चित्र 11.5 पेरीप्लेनेटा के अन्तःस्रावी अंग एवं नियंत्रण क्रियाविधि

(iv) निर्मोकी ग्रन्थि (Eedysial gland) : यह प्रोथेरेसिक ग्रन्थि (prothoracic gland), अधर ग्रन्थि (ventral gland) तथा ट्रेकियल ग्रन्थि (tracheal gland) के नामों के द्वारा भी जानी जाती है। यह भी अन्तन्त्रिकीय प्रकार की अन्तःस्रावी ग्रन्थि है जो एक्टोडर्म से ही विकसित होती है। सामान्यत: यह ग्रन्थि एक जोड़ी संरचनाओं के रूप में पायी जाती है । यह सामान्यतः विसरित प्रकार की ग्रन्थि होती है जो शीर्ष भाग के पीछे या वक्ष भाग में उपस्थित रहती है। प्रत्येक ग्रन्थि में ट्रेकियल तन्त्र की आपूर्ति अधिकतम रहती है। यह ग्रन्थि स्रवण के साथ-साथ परिवर्धन चक्र भी प्रदर्शित करती है। विश्रामावस्था में केन्द्रक छोटे एवं अण्डाकार होते हैं किन्तु सक्रिय अवस्था में केन्द्रक बड़े व पिण्डकीय होते हैं तथा कोशिकाओं का कोशिकाद्रव्य गहरा अभिरंजन ग्रहण करता है। माइटोकॉन्ड्रिया व अन्तः प्रद्रव्यी जालिका की संख्या में वृद्धि हो जाती है। केन्द्रक में RNA का संश्लेषण होता है जो कोशिकाद्रव्य में प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया को सम्पन्न कराता है। कीटों की देह में इसकी उपस्थिति विभिन्न गणों में कुछ भिन्न प्रकार से होती है। पेरीप्लेनेटा की लारवा अवस्था में यह अग्रवक्ष में स्थित होती है। वयस्क जन्तु में यह अनुपस्थित होती है । यह निर्मोचन (moulting) या एक्डायसिस (ecdysis) क्रिया का नियंत्रण करती है। इस ग्रन्थि पर कॉर्पोरा कार्डिएका द्वारा स्त्रवित ट्रोपिक हार्मोन का नियंत्रण होता है।

इस ग्रन्थि द्वारा एक्डायसॉन (Ecdysone) या प्रोथोरसिक ग्रन्थि हार्मोन (Prothoracic gland Hormone) नामक हार्मोन का स्रवण किया जाता है। इस हार्मोन की खोज क्रस्टेशिया व कीटों में कार्लसन एवं बुटेनान्डट (Karlson and Butenandt, 1954) नामक जर्मन वैज्ञानिकों द्वारा की गयी । यह स्टीरॉइड प्रकृति का हार्मोन है तथा दो विभिनन प्रकार के एक्डायसॉन, B एक्डायसॉन स्टिराइड द्वारा रचित होता है। इसका रासायनिक सूत्र C27H4406 है तथा यह दो बेन्जीन वलयों से बना होता है।

यह हार्मोन वृद्धि एवं परिवर्धन को प्रभावित करता है। अतः इसे वृद्धि एवं परिवर्धनकारी हार्मोन (growth and development hormone) G. D. भी कहते हैं। यह उपरति (diapause) उपापचय, वर्णक परिवर्तनकारी अनुकूलताओं एवं जनन क्रिया पर भी प्रभाव उत्पन्न करता है। इसका मुख्य कार्य लावा अवस्था को समाप्त कर वयस्क में परिवर्धन की क्रिया को प्रभावित करना है। प्यूपा अवस्था से वयस्क संरचनाओं के विभेदन ( differentiation) हेतु एवं प्यूपा के निर्मोचन हेतु यह आवश्यक होता है। वयस्क बनने के बाद कीट में यह ग्रन्थि अदृश्य हो जाती है।

वलय ग्रन्थि ( Ring gland) : इस ग्रन्थि का निर्माण कॉर्पोरा कार्डिएका, कॉर्पोरा एलेटा एवं पोथोरेसिक ग्रन्थि के संगलन से होता है। यह ग्रन्थि मस्तिष्क से एक जोड़ी तन्त्रिकाओं द्वारा जुड़ी रहती है यह पुनरावर्ती तन्त्रिका (recurrent nerve) के द्वारा भी जुड़ी रहती है।