एनसेफेलिटिस क्या है | तैगा एनसेफालिटिस तैगा एनसेफालिटिस | Encephalitis in hindi meaning

Encephalitis in hindi एनसेफेलिटिस क्या है | तैगा एनसेफालिटिस तैगा एनसेफालिटिस ? 

तेगा चिचड़ी – एनसेफालिटिस के वाहक
तैगा एनसेफालिटिस तैगा एनसेफालिटिस मनुष्य के मस्तिष्क पर कुप्रभाव डालनेवाला एक भयानक रोग है। यह अधिकतर तैगा के बस्तियों से खाली प्रदेशों में फैला हुआ है। निद्रालुता , शिथिलता , दुर्बलता इस रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं और अन्त में इस रोग के कारण पक्षाघात या मृत्यु भी हो सकती है।
काफी अरसे तक इस खतरनाक रोग के कारण अज्ञात रहे थे। पर इस बात को बराबर सहते रहना संभव न था। चालू शताब्दी के चैथे दशक में सोवियत सरकार ने एनसेफालिटिस के अध्ययनार्थ अभियान-दल संगठित कराने के लिए जरूरी रकम मंजूर की।
एनसेफालिटिस के कारण ढूंढ निकालने का बहुत-सा श्रेय विख्यात सोवियत वैज्ञानिक अकादमीशियन ये ० न ० पावलोव्स्की को है। युवावस्था से ही उन्हें प्रकृति के रहस्यों का उद्घाटन करके उन्हें मानव सेवा में लगा देने की लगन थी। उनके जीवन के बहुत-से वर्ष तरह तरह के जहरीले प्राणियों , परजीवियों और विभिन्न संक्रामक रोगों के वाहकों के अध्ययन में लगे।
एनसेफालिटिस के वाहक की खोज ये ० न ० पावलोव्स्की ने सोवियत सुदूर पूर्व में एक अभियान-दल आयोजित किया और यह सिद्ध कर दिया कि एनसेफालिटिस की महामारियों का प्रादुर्भाव वसन्त के प्रारंभ में होता है। इस समय वहां वे रक्त शोषकः कीट नहीं होते जो अनुमानतः उक्त रोग प्रसारकों के वाहक माने जाते थे।
दूसरी ओर यह देखा गया कि वसन्त के बिल्कुल शुरू शुरू के दिनों में, बर्फ के पिघलने से पहले, मकड़ी की जाति की तैगा चिचड़ी अपने शीतकालीन आश्रयस्थानों से रेंगकर बाहर आती है। जैसे ही सूरज वस्तुतः वासन्तिक प्रकाश से जगमगाने लगता है वैसे ही ये चिचड़ियां पगडंडियों के किनारों की पिछले वर्ष की घास की नोक पर चढ़कर वहां अपने अगले पैर ऊपर उठाये बैठी रहती हैं। ( आकृति ४०)। यहां से वे गुजरनेवाले प्राणियों और मनुष्यों पर हमला करनी है। मनुष्य पर हमला करके वे उसके कपड़ों के अंदर घुस जाती हैं और शरीर को काटने लगती हैं।
अभियान-दल के सदस्यों का अनुमान हुआ कि ये चिचड़ियां एनसेफालिटिस की वाहिकाएं हैं। उन्होंने तैगा मे लायी गयी भूखी चिचड़ियां चूहों पर डाल दीं। इन प्रयोगों का परिणाम पक्षाघात हुआ जो एनसेफालिटिस का एक लक्षण है।
यह देखा गया कि चिचड़ियां अपनी लार के साथ एनसेफालिटिस के प्रसारकों को संबंधित प्राणियों के घावों में डाल देती हैं। खुद चिचड़ियां इन्हें तैगा के पशु-पंछियों से प्राप्त करती हैं जिनका रक्त पीकर ही वे जीवित रहती हैं। लोगों में भी इसी प्रकार से रोग का संक्रमण होता है।
एनसेफालिटिस विरोधी उपाय जब एनसेफालिटिस का कारण मालूम हो गया तो लोग चिचड़ियों से बचकर रहने लगे। तैगा में काम करनेवाले मजदूर अपने कपड़ों पर तेज गंधवाले द्रवों का लेप लगाने लगे जिससे चिचड़ियां दूर रहने लगीं। एनसेफालिटिस की मात्रा काफी घट गयी।
इसके बाद एनसेफालिटिस के वैक्सीन ईजाद हुए। चेचक की रोक-थाम करनेवाले टीकों की तरह ही इन वैक्सीनों ने उक्त रोग पर काबू कर लिया।
उपरोक्त सभी उपायों के फलस्वरूप एनसेफालिटिस के मामलों की और इस रोग से होनेवाली मृत्युओं की संख्या घट गयी।
भारत के अरैकनिडा
भारत में भिन्न भिन्न प्रकार के कई अरैकनिडा रहते हैं। इनमें में कुछ का रंग तो बहुत ही चमकदार होता है। नेफीला इसका एक उदाहरण है। यह एक बड़ी और चमकीली मकड़ी है। इसके जाले काफी बड़े आकार के और बहुत ही मजबूत होते हैं। वे अपेक्षतया काफी बड़ा वजन सह सकते हैं। उदाहरणार्थ, कार्क का एक टोप उनपर आसानी से रह सकता है। नेफीला के जाले के तंतु रेशम से भी मजबूत होते हैं। सुंदर कपड़ों के उत्पादन में उनका उपयोग किया गया है। इस मकड़ी को साधकर घरेलू प्राणी बनाने की कोशिशें की गयी थीं पर वे सब बेकार रहीं। ये शिकारभक्षी मकड़ियां इतनी भूखी थीं कि लोग उनके लिए काफी भोजन का बंदोबस्त न कर पाये।
दूसरी मकड़ियां अपने बड़े आकार के लिए मशहूर हैं। उदाहरणार्थ, पंछीभक्षी मकड़ी (आकृति ४१) इतनी बड़ी होती है कि वह बड़े से बड़े कीड़ों- . मकोड़ों , मेंढ़कों , छिपकलियों और छोटे पंछियों तक का बड़ी आसानी से मुकाविला करती है। इसका डंक आदमी के लिए दर्दनाक होता है।
भारत में पाये जानेवाले अरैकनिडा की कई ऐसी जातियां हैं जो जहरीली और आदमी के लिए खतरनाक होती हैं। बिच्छू (आकृति ४२) इनमें से एक है। भारत में इसकी लगभग ८० जातियां हैं।
विच्छू का शरीर भी शिरोवक्ष और उदर इन दो हिस्सों से बना हुआ होता है। पर उदर उसका मकड़ी के जैसा नहीं होता। यह वृत्तखंडों सहित और दो भागों में बंटा हुआ होता है। यह भाग हैं- अगला चैड़ा उदर-भाग और पिछला संकरा उदर-भाग। उदर के अंत में तेज अंकुड़ीदार डंक होता है। डंक की बुनियाद फूली हुई होती है और उसमें होती है विष-ग्रंथि।
बिच्छू रात में घूमने निकलते हैं। वे वृत्तखंडधारी चार जोड़े पैरों पर दौड़ते हैं। चलते समय उदर का अंतिम हिस्सा खूब ऊपर उठाये और आगे को झुकाये होते हैं। वे अपने मुंह के पंजानुमा उपांगों से शिकार पकड़ लेते हैं और डंक की एक फटकार से उसे मार डालते हैं। यह करते समय वे अपने उदर को मोड़ लेते हैं और उसका पिछला सिरा आगे शिरोवक्ष के ऊपर ढकेलते हैं।
बिच्छू का डंक आदमी के लिए बहुत ही खतरनाक होता है। उसके विष से तीव्र वेदना होती है और कभी कभी मृत्यु भी।
अरकनिडा वर्ग मकड़ी, बिच्छू और चिचड़ी जैसे आरथ्योपोडा अरैकनिडा वर्ग में पड़ते हैं। इस वर्ग के प्राणियों के वृत्तखंडधारी चार जोड़े पैर होते हैं। इनके शृंगिका और संयुक्त आंखें नहीं होती।
प्रश्न – १. लोग किस तरह एनसेफालिटिस के शिकार हो जाते हैं? २. एनसेफालिटिस विरोधी उपाय कौनसे हैं ? ३. अरैकनिडा वर्ग किन बातों में ऋस्टेशिया वर्ग से भिन्न है ? ४. नेफीला मकड़ी की विशेषताएं क्या हैं ? ५. पंछीभक्षी मकड़ी को यह नाम क्यों दिया गया? ६. मकड़ी से बिच्छू किस माने में भिन्न है ? ७. बिच्छू अपने शिकार को किस प्रकार मार डालता है?
 काकचेफर के बाह्य लक्षण और जीवन-प्रणाली
बाह्य लक्षण वसंत में मई महीने के आसपास प्रसिद्ध काकचेफर (रंगीन चित्र ६) दिखाई पड़ने लगते हैं। इनके बीटल पेड़ों की और विशेषकर बर्च की चोटियों पर दिन बिताते हैं और उनकी पत्तियां खाकर ही जीते हैं। झुटपुटे में ये बीटल हल्की-सी गुनगुनाहट के साथ एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक उड़ते रहते हैं । यह उनका उड़ना सुबह-सवेरे तक जारी रहता है। यदि हम किसी ऐसे पेड़ को झंझोड़ दें जिसपर शीत के कारण चेतनाशून्य बीटल बैठे हैं तो वे फौरन लुढ़कते हुए नीचे गिरने लगते हैं।
के-मछली या मकड़ी के विपरीत काकचेफर के शरीर में तीन हिस्से होते हैंसिर, सीना और उदर। सीने में तीन वृत्तखंड होते हैं। इनमें से हर वृत्तखंड में वृत्तखंडधारी एक जोड़ा पैर होते हैं जबकि पिछले दो वृत्तखंडों में से हरेक में पैरों के अलावा एक जोड़ा पंख होते हैं। उदर भी वृत्तखंडधारी होता है। उदर के अंत में गुदा होती है। खुर्दबीन की मदद से हमें पहले पांच उदरीय वृत्तखंडों के किनारों पर छोटे छोटे सूराख दिखाई देंगे। ये हैं कुंडल-श्वसनिकाएं जिनके द्वारा श्वसनेंद्रियों में हवा प्रवेश करती है।
काकचेफर का आवरण काइटिनीय होता है। इससे न केवल जख्मों से बल्कि वाष्पीकरण से भी शरीर का बचाव होता है। सीने, उदर और पैरों के बीच का काइटिनीय आवरण नरम और लचीला होता है जिससे उनकी गति सुनिश्चित होती है।
वातावरण से संपर्क काकचेफर के सिर में ज्ञानेंद्रियां होती हैं। सिर की बगलों में संयुक्त आंखें होती हैं। आंखें बहुत बड़ी नहीं होती। यह मुख्यतः निशाचर प्राणी है और इसी लिए काकचेफर अधिकतर आंखों के वजाय ब्राणेंद्रिय ही के सहारे वातावरण से संपर्क रखता है। इसके एक जोड़ा सुपरिवर्दि्धत शृंगिकाएं होती हैं जो छोटे-से पंखे की तरह दिखाई देती हैं। इन शृंगिकाओं का उपयोग करके वीटल को काफी दूर से भोजन का पता लगता है। कभी कभी वे एक किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर से उड़कर किसी इक्के-दुक्के पेड़ पर आकर बैठने हैं।
बीटल की मुखेंद्रियों में वृत्तखंडधारी उपांग होते हैं जिनसे यह कीट अपना भोजन टटोलता है।
गति और पोषण बीटल तीन जोड़े पैरों और दो जोड़े पंखों के सहारे चलता और उड़ता है। पैरों में कई वृत्तखंड होते हैं और उनके अंत में नखर होते हैं जिनके सहारे वीटल पेड़ की पत्तियों या टहनियों को पकड़कर बैठा रहता है।
बीटल के पंख सभी एक से नहीं होते। अगला जोड़ा सख्त होता है और इन्हें पंख-संपुट कहते हैं। इनके नीचे पंखों का दूसरा जोड़ा होता है- ये हैं पिछले पंख जो पतले और पारदर्शी होते हैं। उड़ने की तैयारी करते समय बीटल अपने पंख-संपुट ऊपर उठा लेता है, पंख खोल देता है और गुनगुन करता हुआ भोजन की खोज में चक्कर लगाने लगता है।
वयस्क काकचेफर मुख्यतया बर्च की पत्तियां खाता है। पत्ती पर बैठकर वह पहले उसका स्पर्श करता है और फिर उसे कुतरने लग जाता है।
काकचेफर के दो जोड़े जबड़े होते हैं – निचले जबड़े और ऊपरवाले जबड़े । ये मुंह के दोनों ओर स्थित होते हैं और शक्ल उनकी काइटिनीय प्लेटों जैसी होती है। ऊपरवाले जबड़े अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। बीटल उन्हें फैला देता है और फिर समेट लेता है। इस प्रकार वह पत्ती का किनारा अपने मुंह में लाकर उसके टुकड़े काटने लगता है। निचले जबड़े भोजन को मुंह में खींच लेने में मदद देते हैं। जबड़ों पर लटकनेवाली एक काइटिनीय परत – ऊपरवाला ओंठ और नीचेवाला ओंठ भी भोजन को निगलते समय पकड़े रहते हैं। चर्वण-क्रिया में नहीं होती और भोजन पेट में अपेक्षाकृत बड़े-से टुकड़ों के रूप में ही प्रवेश करता है।
कीट वर्ग काकचेफर का समावेश कीट वर्ग में होता है। कीट का शरीर अन्य सभी आरथ्योपोडा से भिन्न होता है। इसके की हिस्से होते हैं – सिर, सीना और उदर। कीटों के एक जोड़ा शृंगिकाएं और तीन जोड़े पैर होते हैं। अधिकांश कीटों के पंख होते हैं।
प्रश्न – १. काकचेफर की बाह्य संरचनात्मक विशेषताएं क्या हैं ? २. बीटल के काइटिनीय आवरण का क्या महत्त्व है? ३. बीटल वातावरण से कैसे संपर्क रखता है? ४. बीटल किस प्रकार चलता और खाता है? ५. कीट के विशेष लक्षण क्या हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – १. बीटल के शरीर को काटकर उसके सिर, सीने और उदर को अलग कर दो। फिर पैरों और पंखों को अलग कर दो। यह सब एक दफ्ती पर चिपकाकर हरेक हिस्से के पास उसका नाम लिख दो। २. काकचेफर को देखकर उसका चित्र बनाओ।