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विद्युत यांत्रिक निकाय क्या है , प्रक्षेप धारामापी किसे कहते हैं , Electromechanical System : Ballistic Galvanometer in hindi

Electromechanical System : Ballistic Galvanometer in hindi विद्युत यांत्रिक निकाय क्या है , प्रक्षेप धारामापी किसे कहते हैं ?

विद्यत यांत्रिक निकाय (प्रक्षेप धारामापी) (Electromechanical System : Ballistic Galvanometer)

प्रेक्षप धारापामी में चम्बकीय ध्रुवों के मध्य अन्तराल में फास्फर-ब्रोज (phosphor-bronze) के तार द्वारा एक कण्डली स्वतंत्र रूप से लटकी होती है। चालक कुण्डली में जब आवेश प्रवाहित करते हैं तो क्षण मात्र के लिए कण्डली घर्णित हो जाती है। इसके फलस्वरूपलटकन तार में घूर्णन के विपरीत दिशा में मरोड़ी बलयुग्म उत्पन हो जाता है। इसे प्रत्यानयन बलयुग्म (restoring couple) कहते हैं। यदि लटकन तार की ऐंठन दृढ़ता C हो तो लटकन (suspension) तार में θ कोण से ऐंठन होने पर प्रत्यानयन बल युग्म का बलाघूर्ण (-Cθ) होगा।

यहाँ c = πnr4/2I, I तथा  r क्रमशः तार की लम्बाई व त्रिज्या हैं तथा n तार के पदार्थ का दृढ़ता गुणांक (modulus ofrigidity) है। प्रत्यानयन बलयुग्म के अतिरिक्त कुण्डली में दो अन्य बलयुग्म भी विक्षेपक बलयुग्म (deflecting couple) के विपरीत दिशा में कार्य करते हैं

() खुले परिपथ में कुण्डली पर गति का अवमन्दन करने वाले यान्त्रिक बल जैसे वायु प्रतिरोध बल एवं श्यान बल के कारण बल युग्म लगते हैं। इनका बलाघूर्ण (torque) कुण्डली के कोणीय वेग के अनक्रमानुपाती होता है, अर्थात् यान्त्रिक अवमन्दन बलाघूर्ण (mechanical damping torque)= – y dθ/dt ‘ यहाँ y अवमन्दन गुणांक है। इस प्रकार का अवमन्दन यान्त्रिक अवमन्दन कहलाता है।

(ii) बन्द परिपथ में कुण्डली पर, गति का अवमन्दन करने वाले विद्युत चम्बकीय बल के कारण बल युग्म लगता है। यह विद्युत चुम्बकीय बल कुण्डली में प्रेरण धाराओं से उत्पन्न होता है। कुण्डली पर उत्पन्न विद्युत चुम्बकीय बल का बलाघूर्ण (electromagnetic torque) परिपथ के प्रतिरोध R के व्युत्क्रमानुपाता कोणीय वेग के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् विद्युत चुम्बकीय बलाघूर्ण =-m/R dθ/dt यहाँ m एक नियतांक है जो चुम्बकीय फ्लक्स तथा कुण्डली के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है। इस प्रकार के अवमन्दन विद्यत चुम्बकीय अवमन्दन (electro magnetic damping) कहते हैं। : कुण्डली में लगा परिणामी बलाघूर्ण

= – Cθ – Y dθ/dt – m/R dθ/dt

यदि कुण्डली का जड़त्व आघूर्ण । हो तो कुण्डली की घूर्णन गति का समीकरण होगा

I d2θ/dt2 = – Cθ – Y dθ/dt – m/R dθ/dt

I d2θ/dt2 + 1/l (y + m/R) dθ /dt + C/1 θ = 0

माना

1/I (y + M/R) = 2r  तथा C/I = ω02

D2θ/dt2 + 2r dθ/dt + ω02θ = 0 ………………………..(1)

समीकरण (1) अवमन्दित कोणीय सरल आवर्ती दोलक का अवकल समीकरण है। यह समीकरण अन्य अवमन्दित दोलक के अवकल समीकरण [खण्ड (1.6) के समीकरण (2)] के समतुल्य है इसलिए इसका हल निम्न रूप से लिखा जा सकता है

θ = e-rt [ Aet r2- ω02  + Be-tr2- ω02  ……………………………..(2)

माना t = 0 पर कुण्डली का विक्षेपθ शून्य है परन्तु आवेश के क्षणिक प्रवाह के कारण कुण्डली को कोणीय वेग प्रदान किया जाता है। अतः t = 0 पर θ = 0

A + B = 0  B = – A

अतः θ = Ae-rt [etr2- ω02  -e-tr2- ω02 ] ………………….(3)

अब हम कुण्डली के कोणीय विस्थापन का तीन विशिष्ट परिस्थितियों में अध्ययन करते हैं(a) स्थिति I: अति अवमन्दन के लिए r > ω0

या (y + m/R) > 2 CI

इस स्थिति में θ का मान अधिकतम मान θmax तक बढ़ता है और तत्पश्चात् कुण्डली बिना दोलन किये चरघातांकी विस्थापन-क्षय के साथ स्थिरावस्था में आ जाती है। जैसा कि चित्र (13) में प्रदर्शित किया गया है। अतः कुण्डली की गति रूद्ध दोलित (dead beat) होती है।

(b) स्थिति 2 : यांत्रिक अवमन्दन, विद्युत चुम्बकीय अवमन्दन की तुलना में कम होता है। विद्युत चुम्बकीय अवमन्दन कुण्डली के प्रतिरोध R द्वारा नियन्त्रित हो सकता है। अतः जबr = ω0, हो तो दोलन की यह अवस्था क्रान्तिक-अवमन्दन की अवस्था कहलाती है। क्रान्तिक-अवमन्दन के लिए

(y +m/R) = 2 CI

इस स्थिति में कुण्डली अधिकतम θ तक विक्षेपित होने के पश्चात् बिना दोलन किये न्यूनतम समय में स्थिरावस्था में आ जाती है।

(c) स्थिति 3 : न्यून अवमन्दन के लिए r < ω0  या  (y + m/R) <2 CI

इस स्थिति में कुण्डली में आवेश प्रवाहित हो जाने के पश्चात् कुण्डली दोलन करना प्रारम्भ कर देती है। इसके लिए r का मान अल्प होना चाहिए अर्थात् (a) कुण्डली का जड़त्व आघूर्ण I तथा प्रतिरोध R अधिक होना चाहिए और (b) यान्त्रिक तथा विद्युत चुम्बकीय अवमन्दन नियतांक y तथा m दोनों कम होने चाहिए। अध्याय (6) के खण्ड (6) के समीकरण (6) की भांति न्यून अवमन्दन की स्थिति में कुण्डली का विस्थापन θ के लिए हल होगा

θ = θ0e-rt sin ωt

ω = ω02 – r2 = 2π/T

जहाँ तथा θ0, अवमन्दन की अनुपस्थिति में आवर्ती गति का आयाम है।

चित्र (14) में प्रदर्शित धारामापी की प्रक्षेप-गति में आयाम θ0 e-rt है जो अवमन्दन की स्थिति में आयाम के तुल्य है। अतः t = 0 पर आयाम = θ0

T = T/4 पर आयाम θ1 = θ0e-rt/4

T = 3T/4 पर आयाम θ2 = θ0e-3rt/4

T = 5T/4 पर आयाम θ3 = θ0e-5rt/4

इस प्रकार,

Θ1/ θ2 = θ2/ θ3 = θ3/ θ4 = ………..erT/2 = et/4t = d ……………………….(4)

2r = 1/t

इस प्रकार d अवमन्दित दोलन में दो क्रमागत आयामों का अनुपात है इसे अपक्षय (decrement) कहते हैं। इसका लॉग (log). लॉगरिथमीय अपक्षय (logarithmic decrement) कहलाता है। जिसे λ से निरूपित करते हैं।

λ = loged = loge e/4r = T/4t

यदि प्रथम अधिकतम विस्थापन अर्थात् गति का आयाम θ1, ज्ञात कर लिया जाये तो उसके द्वारा अवमन्दन की अनुपस्थिति में अपेक्षित आयाम θ0 ज्ञात कर सकते हैं।

θ = θ1 मान t = T/4 समय पर प्राप्त होता है,

θ0/ θ1 = ert/4 = et/8r = eλ/2

अतः θ0 = θ1 e λ/2

= θ1 (1 + λ/2 + 1/2 λ2/4 + ……………)

λका मान अत्यल्प माना गया है। अतः λ के उच्च घांताकों को नगण्य मान सकते हैं।

θ0 = θ1 (1 + λ/2) …………………………(5)

λ का मान ज्ञात करने के लिए प्रथम तथा n वां आयाम ज्ञात करते हैं।

θ1/ θn = θ1/ θ2 . θ2/ θ3 . θ3/ θ4 …………… θn-1/ θn = e(n -1)λ

(n – 1) λ = loge θ1/ θn

Λ = 1/(n – 1) loge θ1/ θn

= 2.303/(n – 1) log10 θ1/ θn …………………………(6)

अवमन्दन की अनुपस्थिति में प्राप्त आयाम 8 कुण्डली में प्रवाहित आवेश से सम्बधित किया जा सकता है। इस प्रकार प्रेक्षप धारामापी द्वारा आवेश का मान ज्ञात कर सकते हैं।

कुण्डली से किसी समय t पर प्रवाहित धारा में हो तो कुण्डली पर कार्यरत बलाघूर्ण = nABi = dj/dt अतः समय t पर कुण्डली का कोणीय संवेग

J = lω’=nAB  idt

lω’ = nABq …………………………(1)

यहाँ n= कुण्डली में फेरों की संख्या; A= कुण्डली का अनुपस्थ काट, B= चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता तथा q प्रवाहित आवेश का मान है।

कुण्डली द्वारा प्राप्त गतिज ऊर्जा = 1/2 Iω2

यदि अवमन्दन अनुपस्थित है तो यह ऊर्जा ऐंठन बलाघूर्ण के विरूद्ध कार्य में व्ययित होगी।

1/2 Iω2 = Cθdθ

= 1/2 Cθ02 ……………………………..(2)

समीकरण (2) में (1) से ω’ का मान रखने पर

02 = I (nABq/1)2

Q2 = CI/n2A2B2 θ02 = 1/C (C/Nab)2 θ02

Q = 1/C (C/Nab) θ0

ऐठनी दोलनो के लिए आवर्त काल

T = 2π I/C

Q = T/2π (C/NAB) θ0

= 1/2π (C/NAB) θ1 (1 + λ/2)

1 (1 + λ/2)

यहाँ K = T/2π (C/NAB) एक नियतांक  है जो नियतांक (ballistic constant) कहलाता है

  1. अप्रसंवादी दोलक (Anharmonic Oscillator),

स्थायी साम्यावस्था के इधर-उधर दोलन करने वाले किसी कण की स्थितिज ऊर्जा को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त करते हैं

U = U0 + kx2/2 + k1x3/3 + k2x4/4 + …..(1)

यहां U0, साम्यावस्था स्थिति पर कण की स्थितिज ऊर्जा, x साम्यावस्था स्थिति से कण का विस्थापन तथा k,k1,k2…..नियतांक है।

अतः दोलक पर कार्यरत् बल

F = Δu/ Δx = – kx – k1x2/2 – k2x3/3 + ……………(2)

सरल आवर्त गति करने वाले दोलक के लिए k1,k2…. आदि के मान शून्य के बराबर होते हैं अर्थात्

सरल आवर्ती दोलक की स्थितिज ऊर्जा (U0 + 1/2kx2) तथा कार्यरत बल F =- kx होता है। यदि k1,

K2…. इत्यादि के मान शुन्य के बराबर नहीं है तो कण की गति आवृर्ती तो होती है परन्तु सरल आवर्ती नहीं होती है। ऐसे दोलक को अप्रसंवादी (anharmonic) दोलक कहते हैं।

समीकरण (2) से अप्रसंवादी दोलक के गति का समीकरण होगा

M d2x/dt2 = – kx – k1x2/2 – k2x3/6

D2x/dt2 + ω02x = – ax2 – BX3 …………………….(3)

यहां    K/M = ω02 a = k1/m2 तथा B = k2/m3

यद्यपि समीकरण (3) का हल सरलता से ज्ञात नहीं किया जा सकता है। परन्तु कुछ विशिष्ट पारस्थतियों में इसका सन्निकट हल ज्ञात कर सकते हैं। यदि x4 या इससे उच्च घात वाले पदों का मान उपेक्षणीय हो तो समीकरण (3) का सन्निकट हल ज्ञात किया जा सकता है। अतएव x4 तथा इससे उच्च घात वाले पदों को उपेक्षणीय मानते हुए लिख सकते हैं,

D2x/dt2 + ω02x = ax2 – bx3 …………………………….(4)

फूरिये प्रमेय (Fouriertheorem) के अनुसार किसी जटिल (complex) आवर्ती दोलक की गति सरल आवर्ती गतियों के योग से व्यक्त कर सकते हैं, जिनकी आवृत्तियाँ न्यूनतम या मूल (fundamental) आवृत्ति के पूर्ण गुणज (integral multiples) के बराबर होती हैं। अतः फूरिये प्रमेय द्वारा किसी जटिल अप्रसंवादी दोलक के विस्थापन का समीकरण निम्न रूप से लिखा जा सकता है

x =A0 + An sin nωt + Bn cos nωt ……………….(5)

यहाँ A0.An तथा Bn अज्ञात फूरिये गुणांक (Fourier coefficient) हैं। अब हम इन नियतांकों का मान ज्ञात करेंगे।

सममिति के आधार पर जटिल दोलक के कुछ गुणांकों को शून्य के बराबर कर सकते हैं। यदि समय की गणना उस क्षण से करना प्रारम्भ करें जहाँ से समय t तथा -t के लिए विस्थापन x का मान समान होता है तो यह ज्ञात होता है कि दोलक की गति, समय का समफलन (even function) होना चाहिए। परन्तु समीकरण (5) में विद्यमान An sin ωt समय t का विषम फलन (odd function) है। इसलिए An गुणांकों का मान शून्य के बराबर लिखते हैं। अतः An = 0 समीकरण (5) में रखने पर,

X = A0 + B0 cos n nωt …………………………(6)

समीकरण (4) से यह ज्ञात होता है कि यदि a = B = 0 कर दें तो इसका हल आवर्त गति के समान x=B1,cos ωt होगा।

अतः यदि जटिल दोलक के समीकरण (4) में a तथा B का मान बहुत कम हो तो इसका प्रभाव सरल आवर्त गति में विक्षोभ (perturbation) के रूप में मान सकते हैं इसलिए B1, के सापेक्ष अन्य गुणांकों A0B2.B3….. इत्यादि को अल्प मानते हैं।

समीकरण (6) को (4) में रखने पर

-(nω)2 Bn, cos nωt + ω02 (A0 + Bn cos nωt)

=-a (A0 + Bn, cos nωt) -B(A0 +  Bn cos nωt)3 ………………………..(7)

या ω02A0) + (ω02 – ω2) B1 cos ωt + (ω02 – 4ω2)B2 cos 2ωt +

+( ω02 – 9ω2)B3 cos 3ωt+( ω02 -16ω02 )B4 cos 4 ωt+…

= – Ab12 cos2 ωt – BB13 cos3 ωt

= – Ab12 (1 + cos 2 ωt/2) – BB13 (3cos ωt + cos 3ωt/4) ……………………(8)

इस समीकरण के दोनों तरफ cos ωt . cos 2ωt  …………… इत्यादि के गुणोंको की तुलना करने पर

ω02A0 = – a B12/2 ………………………….(9)

02 – ω2) B1 = – 3/4 BB13 …………………………(10)

02 – 4 ω2) B2 = – Ab12/2 …………………………..(11)

02 – 9 ω2) B3 = – BB13/4 ………………………………..(12)

02 – 16 ω2) B4 = 0 ………………………………..(13)

समीकरण (13) से यह होता है की X4  तथा इससे उच्च घात के पदों का मान नगण्य होने के कारण B4  B5 . B6  …………. इत्यादि गुणांको का मान शून्य के बराबर होता है तथा समीकरण (10) से

02  – ω2 ) B1 = – 3/4 BB13

ω02 – ω2 = – 3/4 BB12

ω2 = (ω02 + 3/2 BB12)

ω = ω0 (1 + 3/4 BB12/ ω02)1/2 ……………………………….(14)

3/4 BB12/ ω02 << 1 होता है इसलिए द्विपद सन्निकट प्रमेय से

Ω = ω0 (1 + 3/8 BB1 2 / ω02) ………………………………..(15)

अब समीकरण (9),(11) व (12) से A0 . B2  तथा B3 , का मान करके समीकरण (6) में रखने पर ,

x = – Ab12/2ω02 + B1 cos ωt – ab12/2(ω02 – 4 ω2) cos 2ωt – BB13/4(ω02 – 9 ω2) cos 3 ωt …………..(16)

उपरोक्त समीकरण (16) अपसंवादी दोलक के विस्थापन का समीकरण है। इस समीकरण (16) से अप्रसंवादी दोलक के लिए निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं

(1) अप्रसंवादी दोलक  ω0 मूल आवृत्ति से दोलन करने के अतिरिक्त द्वितीय (second) तथा तृतीय (third) संनादियों (harmonics) से भी दोलन करते हैं।

(2) यदि गुणांक B1, का मान अल्प है तो B12 तथा B13 का मान नगण्य माना जा सकता है। इस स्थिति में दोलक के विस्थापन का समीकरण x = B1, cos ωt हो जायेगा। इसका अर्थ है कि कम आयाम के लिए अप्रसंवादी दोलक की गति, सरल आवर्त गति होती है।

(3) यदि मूल आवृत्ति के दोलन के आयाम B1, में वृद्धि होती है तो उच्च संनादियों के दोलन के आयाम B2, B3 ……. आदि के मानों में और अधिक तेजी से वृद्धि होगी।

(4) जैसे-जैसे अप्रसंवादी दोलक के आयाम B, में परिवर्तन होता है तो दोलक के आवर्तकाल में भी परिवर्तन होता है।

यदि दोलक का आवर्तकाल T है तो समीकरण (14) से

T = 2π/ ω = 2π/ω0  (1 + 3BB12/4ω02)-1/2

= 2π/ ω0 (1 – 3/8 BB12/8ω02)

यदि  2π/ω0 = T0  है तो

T = To (1 – 3/8 BB12T02/4π2) ………………………..(17)

(5) अप्रसंवादी दोलक का आयाम मूल आवृत्ति के दोलन के आयाम B1, के बराबर नहीं होता है और यदि a का मान शून्य नहीं हो तो स्थायी सन्तुलनावस्था के दोनों तरफ अधिकतम विस्थापन का मान भी बराबर नहीं होता है।

(6) चूँकि एक आवर्तकाल समय में cos ωt, cos 2ωt तथा cos 3ωt का औसत शून्य होता है। अतः अप्रसंवादी दोलक का माध्य विस्थापन होगा

<X> = – Ab12/2ω02

अर्थात् जब अप्रसंवादी दोलक कम्पन करता है तो उसके साम्यवस्था स्थिति का विस्थापन हो जाता है। इसका कारण है कि साम्यवस्था के दोनों तरफ प्रत्यानयन बल समान नहीं लगता है।

अप्रसंवादी दोलक के उदाहरण के में ठोसों का ऊष्मीय प्रसार लेते हैं। ठोसों में अणु अपने माम्यावस्था के इधर-उधर कम्पन्न करते हैं। जब कोई अण कम्पन्न करते समय किसी अणु कानकट आता है तो अधिक प्रतिकर्षण बल अनुभव करता है। अतः अणु, किसी अन्य अणु के निकट आने में जितना बल अनुभव करता है उससे अधिक बल अलग होने में अनुभव करता है। इस स्थिति में ठोसों के अणु अप्रसवादि दोलन के  समान व्यवहार करते हैं। जब ठोसों को गर्म किया जाता है तो अणु के दालना के आयामों में वृद्धि होती है। ठोसों के अणुओं के दोलन अप्रसंवादी प्रकृति के होने के कारण अणु अपने साम्यावस्था के बाहर की ओर विस्थापित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप ठोसों का प्रसार होता है। जितना अधिक अणुओं के साम्यावस्था का विस्थापन होता है उतना ही अधिक ठोसों का प्रसार होता है।