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कान की कार्यविधि क्या होती है ? ear working mechanism in hindi मनुष्य का कान किस प्रकार काम करता है
ear working mechanism in hindi कान की कार्यविधि क्या होती है ? मनुष्य का कान किस प्रकार काम करता है ?
कान की कार्यविधि :
(1) संतुलन : dynamic equilibrium शरीर की गति और गमन के दौरान संतुलन से सम्बन्धित होता है। एम्पुलेरी क्रिस्टी शरीर के घूर्णन गमन के लिए संवेदी होते है। जब शरीर गमन करता है तो एम्पुलेरी क्रिस्टी के संवेदी रोम की श्रवण तंत्रिका द्वारा उद्दीपन से अर्द्धवृत्ताकार नलिका के एंडोलिम्फ में सम्बन्धित गति होती है। static equilibrium गुरुत्वाकर्षण बल में परिवर्तक के सापेक्ष मुख्यतः जब सिर विश्राम अवस्था में होता है तब शरीर के संतुलन और पहचान से सम्बन्धित होता है। जब सीधा शरीर ऊपर अथवा निचे की ओर गति करता है तो macula utriculi के प्रभावित क्षेत्र की संवेदी रोम कोशिका युट्रिकुलस में एन्डोलिम्फ की otoconia द्वारा उत्प्रेरित होती है और गुरुत्वाकर्षण असंतुलन के आवेग स्थिर होते है। जब आवेग मस्तिष्क तक पहुँचते है और विश्लेषित होते है तो जन्तु में “पोजीशन सेंस” प्राप्त होता है। मेक्युला गतिक संतुलन में सहयोग करता है , ये रेखित acceleration और deceleration को पहचानती है। उदाहरण के लिए जब तुम कार अथवा एविलेटर में होते है तो उसकी गति के कम अथवा अधिक होने का अनुभव करते हैं।
(2) सुनना : ध्वनि तरंग श्रवण नाल के द्वारा स्थानांतरित होती है और टिम्पेनिक झिल्ली को कम्पित करती है। ये कम्पन कर्ण अस्थियों द्वारा fenestra ओवेलिस तक संचरित होते है और कोक्लिया के स्केला वेस्टिब्युलाई के पेरिलिम्फ़ को प्राप्त होती है। scala vestibuli में ये कम्पन मुख्यतया स्केला टिम्पेनी के पेरिलिम्फ़ में और हेलिकोट्रिमा तक स्थानांतरित होती है परन्तु कुछ स्केला मिडिया की छत के द्वारा इसके एंडोलिम्फ में भी स्थानांतरित होते हैं। सभी कम्पन कार्टी के अंग और टेक्टोरियल झिल्ली में कम्पन्न उत्पन्न करते हैं और कार्तिके अंग की संवेदी रोमीय कोशिकाओं में सापेक्ष आवेग उत्पन्न करते हैं। श्रवण तंत्रिका की cochlear शाखा के तंतुओं के द्वारा मस्तिष्क तक स्थानांतरित होते हैं। अंततः सभी ध्वनि तरंग स्केला टिम्पेनी में पहुंचती है और फेनेस्ट्रा ओवेलिस की झिल्ली का उच्च आवृत्ति अनुनाद होता है जहाँ ध्वनि तरंग कोक्लिया में प्रवेश करती है तो शीर्ष के समीप निम्न आवृत्तिय अनुनाद प्राप्त होते हैं , यह आधारीय झिल्ली की कठोरता के कारण होता है।
organs of smell (olfactoreceptors): वायु में विभिन्न उपकरणों के द्वारा विसरित रसायनों की प्रकृति की पहचान सेंस ऑफ़ स्मेल होती है। कुछ स्तनधारी 4000 गंधों को विभेदित कर सकते है। ये उनके भोजन , शत्रु और सम्बन्धित गंध में स्थित होते हैं , उदाहरण कुत्ता , बिल्ली , चूहा , खरगोश आदि।
स्कोलियोडॉन को इसकी सूंघने की क्षमता के कारण डॉग फिश कहते हैं। मानव में सूंघने की क्षमता कम विकसित होती है। घ्राण अंग नाक है और नाक में सूंघने का स्थल घ्राण एपिथिलियम (regio olfactoria , schneiderian membrane) होती है। नाक के ऊपरी भाग में लगभग 5 वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र में मिलियन घ्राण और गंध ग्राही होते हैं। घ्राण एपिथिलियम में चार प्रकार की संरचनाएं होती है –
(1) घ्राण कोशिका : ये द्विध्रुवीय न्यूरोन होते हैं कोशिका तर्कु आकार की होती है। पाशर्वीय घ्राण रिक्तिका और गाँठ में 10 से 23 अगतिशील परन्तु विभिन्न लम्बाई की संवेदी पक्ष्माभ (घ्राण रोम) होते है। घ्राण कोशिका के अन्य सिरे माइलिन रहित तंत्रिका तन्तु के रूप में नियमित रहते है। तंत्रिका तन्तु घ्राण बल्ब के युग्म को आपूर्ति देते है। (an एक्सटेंशन ऑफ़ लिम्बिक सिस्टम)
(ii) बोमन ग्रंथि : ये नलिकाकार म्यूकस स्त्रावी कोशिकाएं है। ग्रंथि के द्वारा स्त्रावित म्यूकस एपिथिलियम पर गिरती है जहाँ घ्राण रोम पाए जाते है।
(iii) सपोर्टिंग कोशिकाएं : ये अण्डाकार केन्द्रक युक्त स्तम्भाकार कोशिकाएं होती है। मुक्त सतह पर सूक्ष्म रसान्कुर होते हैं। ये अंत: कोशिकीय रिक्तिका बनाते है। कोशिकाएं म्यूकस के अवशोषण और रासायनिक टोक्सिन के उपापचय में भाग लेती है। (bannister and dodson , 1992)
(iv) आधारीय कोशिका : ये छोटी और गोल कोशिकाएं होती है। कुछ आधारीय कोशिकाएं नियमित विभाजित होती है।
बोमेन ग्रंथि द्वारा स्त्रावित म्यूकस घ्राण एपिथिलियम के ऊपर एक पतली परत बनाती है। घ्राण कोशिकाओं के घ्राण रोम म्यूकस के द्वारा गीले (wet) हो जाते है। गंधयुक्त पदार्थों के कण और अणु म्यूकस में घुल जाते है। ये घ्राण रोम के ग्राही के साथ संपर्क में आते है। संवेदनाएं तंत्रिका आवेग में परिवर्तित हो जाती है। ये घ्राण तंत्रिका में संघटक की तरह तंत्रिका तन्तु द्वारा घ्राण बल्ब में वाहित होते है और यहाँ से प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के टेम्पोरल पिण्ड में विश्लेषण (व्याख्या) के लिए भेजे जाते है। यह olfactory adaptation कहलाता है।
ट्राइजेमिनयल और dentist’s तंत्रिका नासिका कक्ष मुंह और जीभ पर फैले रहते है और मस्तिष्क को कुछ गंध जैसे अमोनिया और सिरका के लिए चिडचिडा बनाती है .ये मस्तिष्क को उनके लिए न केवल सचेत करते है। बल्कि बोमेन ग्रंथि को अतिरिक्त म्यूकस उत्पन्न करने के लिए सक्रीय करते है।
difference between gustatoreceptors and olfactoreceptor
gustatoreceptors | olfactoreceptors |
1. ये स्वाद ग्राही है। | ये गंध ग्राही है। |
2. ये जीभ , तालु , टांसिल स्तम्भ , एपिग्लोटिस और ग्रसनी पर होते हैं। | ये घ्राण एपिथिलियम और नासिका कक्ष की छत की आवरित झिल्ली के रूप में उपस्थित होती है। |
3. क्रिसेंट आकार | तर्कु आकार |
4. ये संवेदी तंत्रिका तन्तु के साथ सिनेप्स बनाते है। | घ्राण ग्राही की तंत्रिकाएं अपने ही संवेदी न्यूरोन की तरह कार्य करती है। |
5. ये विशिष्ट एपिथिलियम कोशिकाएं होती है। | ये द्विध्रुवीय न्यूरोन होते हैं (एक तंत्रिकाक्ष और एक डेंड्रॉन युक्त ) |
6. मुक्त सिरे पर सूक्ष्म रसांकुर होते है। | मुक्त सिरे गतिहीन पक्ष्माभ युक्त होते हैं। |
7. ये केवल संवेदी ग्राही होते है। | संवेदी और संवाहक दोनों ग्राही होते हैं। |
8. gustatoreceptors केवल स्वाद के संवेदन ग्रहण करते हैं। | घ्राण ग्राही , गंध और स्वाद दोनों से सम्बन्धित होते है। |
9. रसायन उच्च सांद्रता में होना चाहिए। | घ्राण ग्राही रसायन की कम सांद्रता से उत्तेजित हो जाते है। |
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