सबसे पहले डीएनए की खोज किसने की dna ki khoj kisne ki in hindi who discovered dna in hindi

who discovered dna in hindi सबसे पहले डीएनए की खोज किसने की dna ki khoj kisne ki in hindi ?

उत्तर : डीएनए की खोज सबसे पहले 1869 में Johann Friedrich Miescher (जॉन फ्रेडरिक मिशर) ने की थी |

परिचय (Introduction)
डी.एन.ए. डीआक्सी राइबो न्यूक्लिओटाइड्स का एक दीर्घ बहुलक है। डी.एन.ए. की लम्बाई इसमें उपस्थित न्यूक्लिओटाइड्स पर आधारित होती है। पृथ्वी पर उपस्थित सभी प्राणियों में DNA की लम्बाई व इसके न्यूक्लिओटाइड्स की संख्या पूर्व निर्धारित होती है व किसी में कम तथा किसी में ज्या होती है जैसे जीवाणुभोजी 4174 में 5386 न्यूक्लिओटाइड्स पाये जाते है। जीवाणुभोजी लैम्डा में 48500 बेस युग्म (इच) उपस्थित होते है। इश्रेशिया कोलाई में 4.6 x 106 इच व मानव के अगुणित DNA में 3.3 x 109 इच मिलते हैं। डीएनए का संश्लेषण
फ्रेडरिक मिशर ने 1869 में कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित अम्लीय पदार्थ डी.एन.ए. खोजा व इसे न्यूक्लिन कहा। यह पदार्थ चूंकि एक दीर्घ बहुलक था अतः इसे सम्पूर्ण रूप से अलग करना मुश्किल था यही कारण है कि डीएनए संरचना के बारे में लम्बे समय तक कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं हो पाई। मौरिस विलकिन्स व रोजलिंड फ्रैंकलिन ने इस बहुलकं का एक्स-रे अध्ययन किया जिसको आधार बनाकर 1953 में जेम्स वाट्सन व फ्रांसिस क्रिक ने डी.एन.ए. की द्विकुंडली संरचना का मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल में उन्होंने डी.एन.ए. के बहुलक श्रृंखला के दो लड़ियों के मध्य क्षार युग्मन की उपस्थिति को दर्शाया। वाटसन व क्रिक के मॉडल की प्रमाणिकता इर्विन चारग्राफ के परीक्षण के आधार पर भी खरी उतरती थी जिसमें बताया गया था कि एडीनीन व थायमीन व ग्वानीन तथा साइटोसीन के मध्य अनुपात सदैव स्थिर रहता है तथा यह सदैव एक दूसरे के बराबर का होता है।
डीएनए का संश्लेषण समझने से पूर्व उसकी संरचना की जानकारी होनी आवश्यक है।
डी.एन.ए. अथवा आर.एन.ए. की रासायनिक संरचना निम्न प्रकार की होती है- न्यूक्लिओटाइड के मुख्यतः तीन घटक होते हैं (I) नाइट्रोजनी क्षार (II) पेंटोस शर्करा जो आर.एन.ए. में राइबोस तथा डी.एन. ए. में डीऑक्सीराइबोस होती है तथा (III) एक फॉस्फेट समूह । नाइट्रोजनी क्षार दो प्रकार के होते हैं प्यूरीन (एडेनीन व ग्वानीन) तथा पिरामिडीन (साइटोसीन, थायमीन व यूरेसिल) साइटोसीन आर.एन.ए व डी.एन. ए दोनों में पाया जाता है जबकि डी.एन.ए. में थायमीन मिलता है व आर.एन.ए. में थायमीन के स्थान पर यूरेसील उपस्थित होता है। नाइट्रोजनी क्षारध्बेस नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा पेंटोस शर्करा के साथ जुड़ जाता है व निम्न प्रकार के न्यूक्लिओसांइड बनाता है।
(प) एडीनोसीन अथवा डीऑक्सी एडीनोसीन
(पप) ग्वानोसीन अथवा डीऑक्सी ग्वानोसीन
(पपप) साइटीडीन अथवा डीऑक्सी साइटीडीन
(पअ) यूरीडीन अथवा डीऑक्सी थाइमीडीन
जब फास्फेट समूह फॉस्फोइस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड के 5′ हाइड्रोक्सील समूह से जुड़ता है तब न्यूक्लिओटाइड्स बन जाते हैं। जिस समय दो न्यूक्लिओटाइड्स 3′-5′ फॉस्फोडाइस्टर बंध द्वारा संबंधित होते हैं तब वह डाइन्यूक्लिओटाइड् का निर्माण करते हैं। इस तरह से अनेक न्यूक्लिओटाइड्स जुड़कर एक पॉलीन्यूक्लिओटाइड् की लम्बी श्रृंखला की रचना कर लेते हैं। इस प्रकार बने पॉलीन्यूक्लिओटाइड के राइबोस सिरे के 5 किनारे पर स्वतंत्र फॉस्फेट समूह प्राप्त होता है यह पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला का 5′ सिरा कहलाता है। इसी प्रकार पॉलीन्यूक्लिओटाइड् के दूसरे सिरे पर राइबोस 3′-हाइड्रॉक्सील समूह से बंधित होता है व यह पॉलीन्यूक्लिओटाइड का 3′ सिरा कहलाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला के आधार ना शर्करा व
फॉस्फेट द्वारा होती है। नाइट्रोजनी क्षारध्बेस शर्करा के एक भाग से जुड़ा रहता जो आधार से भीतर की ओर प्रक्षेपित होता है।
आर एन.ए. में हर न्यूक्लिओटाइड अवशेष के राइबोस की 2′ स्थली पर एक और हाइड्रोक्सील समूह पाया जाता है। आर.एन.ए. में थायमीन के स्थान पर यूरेसील प्राप्त होता है। –
पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं की एक विशिष्टता इनके क्षार युग्मन से संबंधित है। अगर एक लड़ी के क्षार युग्मन का पता होता है तो दूसरी लड़ी के क्षार युग्मन का पता आसानी से लगाया जा सकता है क्योंकि दोनों लड़ियों के क्षार युग्म एक दूसरे के पूरक होते हैं। डी.एन.ए. की एक लडी जिसे पैतृक डी.एन.ए. कहते हैं नई लड़ी के निर्माण के लिये टेम्पलेट का कार्य करती है व इस प्रकार एक द्विलड़ी डी.एन.ए. जो संतति डी.एन.ए. कहलाता है संश्लेषित होता है। यह संतति डी.एन.ए. पैतृक डी.एन.ए. के पूर्णतया समान होता है।
RNA निर्देशित DNA संश्लेषण (RNA Directed DNA Synthesis)
आरम्भ में 1960 के दशक में शोध करते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि रॉस सारकोम वायरस (Rous Sarcome Virus = RSV) जब परपोषी (host) को संक्रमित (infect) करता है तब वह मध्यवर्ती (intermediate) चरण में DNA का संश्लेषण करता है। इस शोध में वैज्ञानिक किसी भी प्रकार विकर तलाशने में विफल रहे थे। लगभग 1970 में हावर्ड टेमिन (Howard Temin) ने रॉस सार वायरस के खण्डित (dirupted) वायरस कण (particles) पर शोध प्रारम्भ किया। इसी समय के बाल्टीमोर (David Baltimore) ने मॉऊस ल्यूकेमिया वायरस (Mouse Leukemia Virus = MLY शोध करना आरम्भ किया। टेमिन व बाल्टीमोर दोनों ने ही डीएनए संश्लेषण के दौरान पाया वायरस के क्रोड (core) में एक एन्जाइम उपस्थित होता है जो त्छ। निर्देशित DNA संश्लेषण के में सक्षम होता है। इस कार्य के लिए इन दोनों वैज्ञानिकों को 1975 में नोबेल पुरस्कार भी पा हुआ। इस एन्जाइम को शुरू में RNA पर निर्भर DNA पॉलीमरेज (RNA dependent d~ polymerase) कहा गया किन्तु बाद में यह RNA निर्देशित DNA पॉलीमरेज (RNA directedd~ polymetase) कहलाया। इस शोधित (purified) एन्जाइम को प्राकृतिक व संश्लेषित (naturala synthetic) DNA,
RNA,RNA-DNA टेम्पलेट का इस्तेमाल करके संश्लेषण (synthesis) करने में सक्षम पाया गया। यह एन्जाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) कहलाया।
रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज के उपयोग (Applications of Reverse transcriptase)
1. यह काम्पलीमेन्टरी डीएनए सीडीएनए (CDNA) के निर्माण में महत्वपूर्ण है।
2. विशिष्ट ऊतकों (special tissues) के जीन अभिव्यक्ति (gene expression) के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु cDNA लाइब्रेरी महत्वपूर्ण है।
3. एमआरएनए पर कोडित जीनों को संरक्षित करने के लिए एम आरएनए अस्थिर अणु के कारण अनुपयुक्त होता है। इसकी तुलना में डीएनए अधिक स्थायी जैविक अणु है अतः एम आरएनए से रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज द्वारा कोडित जीनों का डीएनए पर स्थानान्तरण कर दिया जाता है।
4. सामान्य डीएनए में कोडित व नॉन कोडित जीन उपस्थित रहते हैं परन्तु रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज द्वारा उत्पन्न डीएनए जो बडीएनए कहलता है में मात्र कोडित जीन ही उपस्थित होता है।
डीएनए संश्लेषण के एन्जाइम्स (Eæymes for DNA Synthesis)
डीएनए संश्लेषण में, डीएनए पॉलीमरेज (DNA polymerase) तथा पॉलीन्यूक्लियोटाइड लाइगेज (polynucleotide ligase) नाम के दो एन्जाइम आवश्यक हैं। डीएनए पॉलीमरेज में तीन सक्रिय स्थल पाए जाते हैं। ये एन्जाइम डीएनए प्राइमर (DNA primer) में ट्राई फॉस्फेट न्यूक्लियोटाइड्स जोड़ता है। डीएनए के अणु नए सूत्र (strand) में संश्लेषित होते हैं। ये संश्लेषित खण्ड पॉली न्यूक्लियोटाइड लाइगेज (ligase) एन्जाइम की उपस्थिति में आपस में जुड़ जाते हैं।
प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में निम्न तीन तरह के डीएनए पॉलीमरेज मिलते हैं-
डीएनए पॉलीमरेज I (DNA polymerase-1)- यह ई.कोलाई में 1957 में कोर्नबर्ग द्वारा रिपोर्ट किया गया। इस एन्जाइम को डीएनए पॉलीमरेज- I नाम कोनबर्न ने दिया। संरचनात्मक रूप से डीएनए पॉलीमरेज एक 109000 डाल्टन अणुभार युक्त पॉलीपेप्टाइड हैं। यह चवज। जीन द्वारा कोडित होता है। यह डीएनए के 3श् सिरे पर मौजूद 3- व्भ् समूह के साथ एक मोनोन्यूक्लियोटाइड इकाई को सलंग्न करने के लिये प्रेरित करता है।
डीएनए पॉलीमरेज-II (DNA polymerase-II)-यह भी पॉलीपेप्टाइड है जो डीएनए में सुधार का कार्य करता है। 9000 डाल्टन अणुभार युक्त इस एन्जाइम की 40 तक संख्या मौजूद रहती है।
डीएनए पॉलीमरेज-III (DNA polymerase-III)- यह एक जटिल एन्जाइम है जो वास्तव में है ई.कोलाई के डीएनए की अर्द्धसंरक्षी पुनरावृत्ति में प्रमुख भूमिका निभाता है। इसका अणुभार 900,000 डाल्टन होता है।
डीएनए लाइगेज (DNA Ligase)- यह, एन्जाइम पॉलीन्युक्लियोटाइड खण्डों को सलंग्न करता है। यह कटे अथवा ओकाजाकी खण्डों को आपस में जोड़ देता है। यह निम्नलिखित कार्यों में संलग्न रहता है-
(प) यह पॉलीमरेज एन्जाइम के साथ डीएनए पुनरावृत्ति में सहायक होता है।
(पप) दिसूत्रीय डीएनए खण्ड के एक सूत्र में लगे “कट” (cut) को जोड़ता है।
(पपप) दो सूत्रीय डीएनए में दोनों सूत्रों में लगे “कट” (cut) को भी जोड़ता है।
हेलीकेज (Helicase)- यह एन्जाइम. डीएन के दोनों सूत्रों को अकुण्डलित करता है जिससे दोनों को सत्र अलग हो जाते हैं। यह एन्जाइम एटीपी के साथ हाइड्राक्सीकरण करके हाइड्रोजन बन्ध का तोड़ देता है जिससे दोनों सूत्र चेन के समान खुल जाते हैं।
डीएनए टोपोआइसोमरेज (DNA Topoisomerage)- यह डीएनए के सूत्र में कट लगा कर उसके बल सीधे करके पुनः जोड़ देता है जिससे डीएनए के सूत्र सीधे सीढ़ीनुमा हो जाते हैं। यूकेरियोटिक जीवों में 5 प्रकार के डीएनए पॉलीमरेज मिलते हैं। कुछ अर्द्ध संरक्षी पुनरावर्ती तथा कुछ माइटोकोन्ड्रियल डीएनए की पुनरावृत्ति तथा अन्य मरम्मत का कार्य करते हैं।
संश्लेषित डीएनए कुण्डली संरचना की विशिष्टतायें
(Characteristics of Synthesised double heliÛ of DNA)
द्विकुंडली डी.एन.ए. की संरचना में निम्न विशिष्टताएं उपस्थित होती हैं.
(प) द्विकुंडली डी.एन.ए. की दो श्रृखंलाऐं पॉलीन्यूक्लिओटाइड से निर्मित होती है।
(पप) इन श्रृंखलाओं का आधार शर्करा फॉस्फेट से निर्मित होता है।
(पपप) इन श्रृंखलाओं में क्षारध्बेस भीतर की ओर प्रक्षेपित होता है।
(पअ) दोनों पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाएं एक दूसरे से प्रति समानांतर ध्रूवणता रखती है अर्थात एक श्रृंखला की ध्रुवणता अगर 5 से 3′ की ओर है तो दूसरी श्रृंखला की ध्रुवणता 3′ से 5′ की ओर होगी।
(अ) दोनों लड़ियों के क्षारध्बेस आपस में हाइड्रोजन बंध द्वारा युग्मित होने पर क्षार युग्मक निर्मित कर लेते है। इनमें एडेनीन व थायमीन विपरीत लड़ियों में पाये जाते हैं व दो हाइड्रोजन बंध द्वारा बंधित रहते हैं। इसी प्रकार ग्वानीन व साइटोसीन एक दूसरे से तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा बंधित रहता है। इस प्रकार हमेशा प्यूरीन के विपरीत दिशा में पिरामीडीन होता है। इस प्रकार दोनों लड़ियों में लगभग बराबर की दूरी बनी रहती है।
(अप) दोनों श्रृंखलाएं अधिकतर दक्षिणावर्ती रूप से कुंडलित होती है। कुंडली का पिच 3.4 नैनोमीटर होता है। एक नैनोमीटर 10-9 मीटर के बराबर होता है अर्थात वह मीटर का करोड़वां भाग होता है।
(अपप) श्रृंखला के हर घुमाव में 10 क्षार युग्मक उपस्थित होते हैं जिससे एक कुंडली में एक क्षार युग्मक के मध्य की दूरी लगभग 0.34 नैनोमीटर तक की होती हैं।
(अपपप) हाइड्रोजन बंध कुंडलिनी संरचना को स्थिरता प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।