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Dissociation of oxyhaemoglobin in hindi | ऑक्सीहीमोग्लोबिन का विघटन क्या है प्रभावित करने वाले कारक

जाने Dissociation of oxyhaemoglobin in hindi | ऑक्सीहीमोग्लोबिन का विघटन क्या है प्रभावित करने वाले कारक कौन कौनसे है समझाइये ?

ऑक्सीहीमोग्लोबिन का विघटन (Dissociation of oxyheamoglobin): उच्च ऑक्सीजन दाब पर, हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन के साथ संयुग्मन करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण करता है। जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि प्रत्येक लौह परमाणु एक O2 अणु को संयुग्मित कर सकता है। तथा जब यह सब ओर से ऑक्सीजन द्वारा संतृप्त (saturate) हो जाता है तब और अधिक ऑक्सीजन को नहीं ग्रहण कर सकता है। निम्न 02 दाब पर, ऑक्सीहीमोग्लोबिन का वियोजन हो जाता है जिससे

सम्पूर्ण ऑक्सीजन स्वतंत्र हो जाती है। किसी निश्चित ऑक्सीजन सान्द्रता पर, हीमोग्लोबिन

एवं ऑक्सीहीमोग्लोबिन का वियोजन हो जाता है जिससे सम्पूर्ण ऑक्सीजन स्वतंत्र हो जाती है। किसी निश्चित ऑक्सीजन सान्द्रता पर हीमोग्लोबिन एवं ऑक्सीहीमोग्लोबिन के मध्य एक निश्चित अनुपात बना रहता है। इस प्रकार ऑक्सीजन के दाब तथा रक्त द्वारा ऑक्सीजन के अन्तग्रहण (uptake) एवं मुक्ति (release) के बीच जो वास्तविक सम्बन्ध होता है इसे ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वियोजन- चक्र (oxygen haemoglobin dissociation curve) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

इस वक्र को चित्र4.10 द्वारा दिखाया गया है।

चित्र 4. 11 : ऑक्सीजन के विभिन्न आंशिक दाबों पर ऑक्सीजन – हीमोग्लोबिन का वियोजन

इस वक्र के अनुसार ऑक्सीजन का आशिक दाब 100mm Hg होने पर हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन द्वारा पूर्ण रूप से ऑक्सीकृत अथवा संतृप्त हो जाता है। उच्च ऑक्सीजन दाब पर हीमोग्लोबिन द्वारा और अधिक ऑक्सीजन ग्रहण नहीं की जाती है। ऑक्सीजन के निम्न दाब पर, ऑक्सीहीमोग्लोबिन का वियोजन होता है। 30mm Hg आंशिक दाब पर उपस्थित हीमोग्लोबिन का आधा भाग ऑक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में पाया जाता है। जैसे ही ऑक्सीजन का दाब और अधिक कम होता हैं। ऑक्सीहीमोग्लोबिन से और अधिक ऑक्सीजन विष्कासित होती है तथा ऑक्सीजन दाब शून्य होने पर सम्पूर्ण ऑक्सीजन बाहर निकाल दी जाती है। इस प्रकार o2 के आंशिक दाब में कमी होने पर हीमोग्लोबिन के संतृप्तीकरण (saturation) में कमी आती है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन के रूधिर में संचरण के समय कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी होने पर ऑक्सीहीमोग्लोबिन का वियोजन शीघ्रता से होता है।

 

ऑक्सीहीमोग्लोबिन के वियोजन को निम्न कारक प्रभावित करते हैं :

(i) ऑक्सीजन का आंशिक दाब (partial pressure of O2 ) : हीमोग्लोबिन के संतृप्तीकरण की दर सम्पूर्ण रूप से ऑक्सीजन के आंशिक दाब पर निर्भर करती है। वक्र का अध्ययन करने पर पता चलता है कि 02 का आंशिक दाब 100mm Hg से अधिक होने पर हीमोग्लोबिन के संतृप्तिकरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

O2 का आंशिक दाब कम होने पर हीमोग्लोबिन के संतृप्तीकरण में कमी आती है। इससे यह पता चलता है कि ऑक्सीहीमोग्लोबिन का वियोजन 02 ) का आशिक दाब कम होने पर शीघ्रता से होता है।

 (ii) कार्बन डाई ऑक्साइड का आंशिक दाब (Partial pressure of CO2): वियोजन चक्र CO2 के आंशिक दाब द्वारा भी प्रभावित होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड की (मात्रा) बहने पर यह वक्र दाँई और विस्थापित (right displacement) हो जाता है जिसका तात्पर्य है कि सामान्य की अपेक्षा अधिक ऑक्सीजन मुक्त हुई है। (CO2 के आंशिक दाब का प्रभाव की खोज सर्वप्रथम क्रिस्टेन बोर (Christen Bohr) ने की थी। उसी के नाम पर इसको बोर-प्रभाव (Bohr (Effect) कहते हैं। चित्र में 20, 40 और 60mm Hg पर CO2 के आंशिक दाब पर ऑक्सीजन विघटन वक़ को प्रदर्शित किया गया है जिससे पता चलता है कि (CO2 के आंशिक दाब में वृद्धि होने पर रूधिर में ऑक्सीहीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने लगती है। इससे स्पष्ट है कि [CO2 के आंशिक दाब के बढन पर हीमोग्लोबिन की O धारण क्षमता कम हो जाती है और ऑक्सीजन विघटन वक्र दाहिनी ओर विस्थापित हो जाता है ।

(iii) तापक्रम (Temperature) : तापक्रम में वृद्धि होने पर हीमोग्लोबिन के संतृप्तीकरण में कमी आती है। उदाहरण के लिये ऑक्सीजन के 100 mm Hg आंशिक दाब होने पर 38°C ताप की स्थिति में 93 प्रतिशत हीमोग्लोबिन का संतृप्तीकरण देखा जाता है। ऐसा देखा गया है कि भौतिक पेशीय क्रियाओं के समय ताप में होने वाली वृद्धि के कारण अन्तरों में काफी मात्रा में O2 मुक्त होती है। O2 की यह मात्रा ऑक्सीहीमोग्लोबिन वियोजन वक्र से होती है।

(iv) हाइड्रोजन आयनों की सांद्रता (Concentration of H+ or pH): रूधिर की अम्लीयता (blood pH) ऑक्सीजन के साथ हीमोग्लोबिन के संतृप्तीकरण की दर को प्रभावित करती है। ऊनकों में उपापचयी दर के बढ़ने का कार्बन डाई ऑक्साइड एवं अम्लीय उपापचयी उत्पादों में वृद्धि होती है जिससे O2 का आंशिक दाब कम होने लगता है तथा| ऑक्सीजन-हीमोग्लोबिन के त्रियोजन के फलस्वरूप ऑक्सीजन मुक्त होती हैं।

  • (v) हीमोग्लोबिन की मात्रा ( Amount of heamoglobin): रूधिर द्वारा ऑक्सीजन के सवहन की क्षमता रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन की मात्रा पर निर्भर करती है। रूधिर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने पर कोशिका एवं उत्तकों को कम ऑक्सीजन की मात्रा वितरित की जाती है। एसी स्थिति रक्त क्षीणता (anaemia) के समय देखी जा सकती है।

(vi) कार्बनिक फॉस्फेट पदार्थों की सांद्रता (Conenctration of organic phosphate componds) : बेनेश (Benesh; 1968) के अनुसार कुछ कार्बनिक फास्फेट पदार्थ भी हीमोग्लोबिन – ऑक्सीजन बंधता को प्रभावित करते हैं। इन पदार्थों में डाइ फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (diphosphoglyceric acid) प्रमुख है। यह पदार्थ लाल रक्ताणुओं (RBC) में ग्लूकोस एवं फॉस्फेट से बनता है । इस पदार्थ की लाल रक्ताणुओं में अधिक सांद्रता होने पर ऑक्सीहीमोग्लोबिन का वियोजन शीघ्रता से होने लगता है। इसी प्रकार डाई फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल की कम सांद्रता होने

पर ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण अधिक होता है।

चित्र 4.13 : ऑक्सीजन – हीमोग्लोबिन विच्छेदन वक्र पर pH का प्रभाव

आंतरिक श्वसन या ऊत्कीय श्वसन (Internal respiration or tissue respiration) : ऑक्सीहीमोग्लोबिन के वियोजन से निष्कासित ऑक्सीजन कोशिकाओं में खाद्य पदार्थ के दहन में काम आती है जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड, जल एवं निश्चित मात्रा में ऊर्जा की प्राप्ति होती है। कोशिका में होने वाली समस्त क्रियाऐं जिनसे ऊर्जा की प्राप्ति होती है, कोशिकीय श्वसन (cellular respiration) या ऊत्तकीय (tissue respiration) कहलाती है। अधिकांश कोशिकीय श्वसन की क्रियाएँ कोशिका के माइट्रोकॉण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। इसे निम्न अभिक्रिया द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

C6H1206 + 602 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा (38 ATP)

चित्र 4.14 : श्वसन गैस आदान प्रदान के प्रमुख पद

ऊर्जा उत्पादन या कोशिकीय श्वसन में प्रयुक्त विभिन्न रासायनिक क्रियाओं को निम्न दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है :

  1. ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होने वाली समस्त अभिक्रियाओं को सामूहिक रूप से ग्लाइकोलाइसिस (glycolysis) कहा जाता है। यह कोशिकीय श्वसन की अनॉक्सीकरण अवस्था (anaerobic phas) होती है।
  2. ऑक्सीजन की उपस्थिति में होने वाली समस्त अभिक्रियाओं को सामूहिक रूप से लैब्स चक्र या सिट्रिक चक्र (Kreb’s cycle or citric acid cycle) कहा जाता है। यह कोशिकीय श्वसन की ऑक्सीकारी अवस्था होती है।
  3. रूधिर द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड का परिवहन (Transport of CO2 by blood) : कोशिकाओं में भोजन के दहन के फलस्वरूप उत्पन्न पदार्थों में कार्बन डाई ऑक्साइड एक अपशिष्ट पदार्थ होती है जो कोशिकाओं में अधिक सांद्रता एवं दाब के कारण रूधिर में विसरित हो जाती है। कार्बन डाई ऑक्साइड ऑक्सीजन की अपेक्षा ‘लगभग 20 गुना तेजी से विसरित होती है। इसका विसरण पहले कोशिकाओं में ऊत्तक द्रव में तथा वहाँ से केशिकाओं के रूधिर में होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड द्वारा कोशिकाओं में उत्पन्न दाब (PCO2) 46mm Hg के बराबर होता है। कोशिकाओं के चारों ओर उपस्थित धमनी कोशिकाओं में PCO2 का मान 40 mm Hg होता है। इस प्रकार CO2 के दाब में अन्तर के कारण, यह कोशिकाओं से रूधिर में आ जाती है तो इसे अशुद्ध रूधिर (impure or deoxygenated blood) कहा जाता है। इस रूधिर में कार्बन डाई ऑक्साइड का दाब 40 mm Hg हो जाता है।

रूधिर के द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड का परिवहन अधिक आसानी से हो सकता है क्योंकि 50 से 60 प्रतिशत CO2 को लेकर जाने की क्षमता रखता है परन्तु मनुष्य में सामान्यता – 100 मि.ली. यह जल में ऑक्सीजन की अपेक्षा 20 गुना अधिक घुलनशील होती है। रूधिर आयतन के अनुसार रुधिर के द्वारा ऊत्तकों में फेफड़ों तक लगभग 4 मि.ली. CO2 स्थानान्तरित हो जाती है। हृदय में 1 मिनट में निकलने वाली सम्पूर्ण रूधिर की मात्रा (लगभग 5 लीटर) के द्वारा 200-200 मि.ली. _CO2 उत्पन्न होकर ऊत्तकीय प्रति मिनिट की दर से स्थानान्तरित की जाती है। इस दर से co2 उत्पन्न होकर उत्तकीय द्रव में कोशिकाओं से मुक्त कर दी जाती है जहाँ से यह रूधिर द्वारा फुफ्फुसीय रक्त में पहुँच जाती है। अन्त में एल्बिओलाई की कोशिकाओं में उपस्थित वायु में दे दी जाती है।

(i) भौतिक विलयन के रूप में (In the form of physical solution): रूधिर के ले जाने वाली सम्पूर्ण कार्बन डाई ऑक्साइड का लगभग 10 प्रतिशत भाग भौतिक विलयर (Physical solution) के रूप में होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड का कुछ परिमाण प्लाज्मा में उपस्थित जल से क्रिया करता है जिससे फलस्वरूप कार्बोनिक अम्ल (carbonic acid) का निर्माण होता है।

CO2 + H2O → H2CO3 (कार्बोनिक अम्ल)

यदि कार्बोनिक अम्ल की सांद्रता में वृद्धि होती है तो यह विघटित होकर हाइड्रोजन आयन (H*) एवं बाइकार्बोनेट आयन (HCO3) देता है।

H2CO3 → H+ + HCO3

यदि हमारे रूधिर द्वारा सम्पूर्ण CO2 का परिवहन कार्बोनिक अम्ल के रूप में किया जाये तो रूधिर का pH 7.4 से घटकर 4.5 रह जाता है अर्थात् यह अधिक अम्लीय सांद्रता का हो जायेगा। यह स्थिति हमारे लिए घातक हो सकती है। इस कारण मात्रा 10 प्रतिशत CO2 ही भौतिक विलयन के रूप में लाई जाती है।

विऑक्सीजनित (PCO2 46 mm Hg) एवं ऑक्सीजनित (PCO2 40mm Hg ) रूधिर क्रमशः 2.7 एवं 2.4 CO2 प्रति 100 मि.ली. की दर से भौतिक विलयन के रूप में स्थानान्तरित करते हैं। इस प्रकार लगभग 0.3 (2.7- 2.4) मि.ली. CO2 प्रति 100 मि.ली. प्लाज्मा द्वारा घुलित अवस्था में ले जाई जाती है। यह ऊत्तकों से फेफड़ों तक लेकर जाने वाली सम्पूर्ण CO2 का लगभग 7% भाग बनाती है।

(ii) रासायनिक यौगिकों के रूप में (As chemical compound): सम्पूर्ण CO2 का लगभग 10 प्रतिशत भाग कार्बन अमीनों यौगिकों (carbamino compounds) के रूप में स्थानान्तरित किया जाता है। कार्बन डाई ऑक्साइड का कुछ भाग रूधिर में उपस्थित हीमोग्लोबिन प्रोटीन के अमीनो समूह (amino group) के साथ क्रिया करके कोर्बेमीनोहीमोग्लोबिन (carbaminohaemoglobin) का निर्माण करता है।

CO2 + Hb.NH2                                 à                  Hb.NH.COOH

हीमोग्लोबिन का स्वतंत्र अमीनों समूह                    कार्बेमीनोहीमोग्लोबिन

इस प्रकार कुछ CO2 प्लाज्मा में उपस्थित प्रोटीन्स के साथ संयुग्मित हो जाती है। 100 मि.ली. रूधिर के द्वारा लगभग 1 मि.ली. CO2 रासायनिक यौगिकों के रूप में ले जाई जाती है।

(iii) बाइकार्बोनेट्स के रूप में (As bicarbonates ) : शेष 70 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड प्लाज्मा एवं लाल रक्ताणुओं द्वारा बाइकार्बोनेट्स (biacarbonates) के रूप में ले जाई जाती है। अधिकांश CO2 प्लाज्मा से रक्ताणुओं (RBC) में विसरित हो जाती है। यह कार्बन डाई ऑक्साइड रक्ताणुओं में जल के साथ क्रिया करके कार्बोनिक अम्ल का निर्माण करती है। रक्ताणुओं में कार्बोनिक एन्हाइड्रेज (carbonic anydrase) एन्जाइम होता है जो कार्बोनिक अम्ल के निर्माण की प्लाज्मा की अपेक्षा लगभग 5000 गुणा बढ़ा देता है। इसी कारण कोशिकीय श्वसन रूधिर में प्राप्त अधिकांश (70 प्रतिशत) CO2 (लगभग 2.5 मि.ली. प्रति 100 मि.ली. रूधिर) लाल रक्ताणुओं में प्रवेश करके कार्बोनिक अम्ल में परिवर्तित हो जाती है। लाल रक्ताणुओं में बनने वाला कार्बनिक अम्ल शीघ्र ही आयनित होकर बाइकार्बोनेट (HCO3 ) एवं हाइड्रोजन (H+) आयनों का निर्माण करता है।

CO2 + H2O                 →                  H2CO3 → HCO3 + H+

कार्बोनिक एन्हाइड्रेज

इस प्रकार प्राप्त H+ लाल रक्ताणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन के साथ संयुग्मित हो जाते हैं जिससे रूधिर का pH स्थिर (7.4) बना रहता है क्योंकि हीमोग्लोबिन एक शक्तिशारी “अम्ल क्षार बफर” (acid vase buffer) होता है। HCO3 अत्यन्त विसरणशील होते हैं जो अपनी रूधिर सान्द्रता के कारण शीघ्र की बाहर की ओर विसरित होने लगते हैं। इस प्रकार लाल रक्ताणुओं में उपस्थित आयनों के सान्द्रता असंतुलित होने लगती है। जिसे रोकने के लिए प्लाज्मा से लाल रक्ताणुओं मे क्लोराइड आयन (CL) प्रवेश करना प्रारम्भ कर देते हैं। इस प्रकार लाल रक्ताणुओं में आयनों का सन्तुलन पुनः प्राप्त कर लिया जाता है। प्लाज्मा से रक्ताणुओं से क्लोराइड आयनों (CH) के गमन की क्रिया को क्लोराइड विस्थापन (chloride shift) कहा जाता है। (चित्र 4.13) इस घटना को दर्शाया गया है। इसके खोजकर्ता के सम्मान में इस हैम्बर्गर प्रक्रम (hamberger phenomenon) कहा जाता है।

चित्र 4.15 : रक्त द्वारा CO2 का परिवहन

लाल रक्ताणुओं में प्लाज्मा में विसरित होने वाले बाइकार्बोनेट आयन (HCO3 ) रूधिर में उपस्थित सोडियम ( Na+) तथा पेटेशियम (K+) आयनों से मिलकर सोडियम एवं पोटेशियम बाइकार्बोनेट का निर्माण करते हैं।

इस प्रकार स्तनियों के रूधिर में सामानय pH पर सम्पूर्ण CO2 का अधिकांश भाग बाइकार्बोनेट के रूप में पाया जाता है। हेन्डरसन हेसेलबेच्छ अभिक्रिया (Hondersan Hasselbalch equation) के अनुसार 7.4 pH पर कार्बोनिक अम्ल एवं बाइकार्बोनेट आयनों का अनुपात 1: 20 होता है।

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