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विस्फोटी क्रियाविधि द्वारा बीज और फलों का प्रकीर्णन (seed dispersal by explosive mechanism) (dispersal by explosion in hindi)

(dispersal by explosion in hindi) विस्फोटी क्रियाविधि द्वारा बीज और फलों का प्रकीर्णन (seed dispersal by explosive mechanism) विस्फोट द्वारा बीज या फल का प्रकीर्णन क्या होता है ?
जन्तुओं द्वारा बीज या फल का प्रकीर्णन (dispersal of seeds and fruits by animals in hindi) : जन्तुओ द्वारा प्रकीर्णन फल और बीज निम्नलिखित श्रेणियों में रखे जाते है –
1. अंकुशी फल और बीज (hooked fruits and seeds dispersal) : अनेक पौधों के फल अथवा बीज अंकुशों , दृढ़ रोमों , मुड़े हुए शुकों और कांटो से युक्त होते है। ये संरचनायें इनके बाहरी धरातल पर होती है तथा इनकी मदद से ये जानवरों के शरीर खास तौर पर पूंछ और मनुष्यों के कपड़ों पर चिपककर सुदूर स्थानों पर पहुँच जाते है। अक्सर जब ऐसे फल अथवा बीज मनुष्यों के कपड़ों पर चिपक जाते है तथा दूर चलने के बाद मनुष्य इन्हें देखता है तो कपड़ों से छुडाकर वही फेंक देता है तथा इस प्रकार ये अपने जनक पौधे से दूर पहुँच जाते है।
बेगर टिक्स के फल में दो अंकुश होते है , बड़े गोखरू में फल की समस्त बाहरी सतह पर अनेक अंकुश पाए जाते है। बघनखी अथवा बिलावा के बीज में दो तेज , नुकीले और मुड़े हुए अंकुश पाए जाते है। स्पीयर ग्रास के फल में ऊपर की तरफ उन्मुख दृढ़ रोम पाए जाते है। आंधी झाडा अथवा लटजीरा में सहपत्र और परिदल पुंज नोंकदार हो जाते है। प्यूपेलिया का परिदलपुंज अंकुशनुमा शूक वाला हो जाता है। छोटे गोखरू के छोटे फलों के ऊपर अनेक कांटे होते है। 2. चिपचिपे फल (sticky fruits and vegetables) : पुनर्नवा तथा हुल हुल के फलों पर चिपचिपी ग्रंथियाँ होती है। मिसेल्टो के बीजों पर चिपचिपा गुदा लगा रहता है , जिस समय चिड़िया अपनी चोंच को किसी पेड़ की टहनी आदि से साफ़ करती है तो यह बीज पेड़ की टहनी से चिपक जाते है। अनुकूल परिस्थितियों में यह वृक्ष पर ही अंकुरित हो जाते है तथा सफलतापूर्वक जीवनयापन करते है क्योंकि विस्कम एक आंशिक स्तम्भ परजीवी पादप है।
3. खाने योग्य फल (edible fruits) : खाने योग्य फलों के बीज मुख्यतः चिड़िया , गिलहरी और मनुष्य द्वारा वितरित होते है। चिड़ियाएँ अनेक फलों को बीज सहित खा जाती है लेकिन बीज का पाचन न हो सकने के कारण ये बीट के साथ बाहर आ जाते है तथा अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित हो जाते है। प्राय: बरगद , पीपल और गूलर आदि के पेड़ों को दीवार में , दुसरे वृक्षों के तनों पर जहाँ मिट्टी एकत्र हो गयी हो वहां उगते देखा गया है। इनके बीज , इन स्थानों पर चिडियों की बीट के साथ ही पहुँचते है। गिलहरी , गीदड़ और मनुष्य फलों का गुदा खाकर बीजों को फेंक देते है। आर्थिक रूप से उपयोगी फलों के बीजों को मनुष्य स्वयं इधर उधर ले जाता है। अनेक फलों के बीज मनुष्य एक देश से दुसरे देश में ले जाता है।
4. विस्फोटी क्रियाविधि द्वारा बीज और फलों का प्रकीर्णन (seed dispersal by explosive mechanism in hindi) (dispersal by explosion in hindi) : इस प्रक्रिया में पौधा स्वयं प्रकीर्णन के लिए उत्तरदायी होता है , यह फलों के या तो तनाव के कारण आकस्मिक फटने से या फिर कुछ ऊतकों के फूलने के कारण फटने से , बीजों को दूर दूर तक बिखेर देते है। झिरा की बड़ी फलियाँ अथवा शिम्ब पटाखे जैसी जोरदार आवाज से फटते है तथा अपने बीज बिखेर देते है। इसके शिम्ब की फलभित्ति स्प्रिंग की तरह कुंडलित हो जाती है। पैन्जी में अंडाशय के पकने के साथ साथ बीजों पर दबाव बढ़ता चला जाता है तथा बीज एक झोके के साथ दूर चले जाते है। इसी प्रकार फ्लोक्स में सम्पुट फल के चटकने के साथ झटके से बीज बाहर निकल आते है। रुएलिया के फल पानी के सम्पर्क में आते ही फट जाते है। इसके प्रत्येक बीज के निचे एक मुड़ा हुआ हुक अथवा जेक्युलेटर होता है। यह हुक एक झटके से खुलता है तथा बीज को दूर फेंक देता है।
गुलमेहंदी में फल 5 संयुक्त अंडपों से बना एक संपुट होता है। परिपक्व फल की भित्ति अत्यधिक तनाव में रहती है तथा जरा सा छूने अथवा झटका लगने से अंडप नीचे से फट जाते है और तनाव समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही अंडप अन्दर की तरफ मुड़ जाते है। यह मुड़े हुए अण्डप बलपूर्वक बीजों को 7-8 फिट की दूरी तक फेंक देते है।
एक्बेलियम इलेटीरियम में फल का वृन्त फल में डाट की तरह लगा रहता है। फल के परिपक्व होने की अवस्था में बीजों के चारों ओर के ऊतक , एक श्लेष्मीय पदार्थ में रूपान्तरित हो जाते है। इसके कारण फल के भीतर अत्यधिक उच्चमान का स्फीति दाब उत्पन्न हो जाता है। अब फल का वृंत भी ढीला पड़ जाता है। आन्तरिक दाब के कारण फल का रस , बीजों सहित पिचकारी की धार की तरह वृन्त को हटाकर बनाये गए छिद्र अथवा द्वार से बाहर निकल जाता है तथा बीज दूर तक बिखर जाते है।
जिरेनियम में बीजों का प्रकीर्णन गुलमेहंदी के समान ही होता है और यहाँ भी संपुट फल पाँच संयुक्त अंडपों का बना होता है। अण्डपों का निचला हिस्सा उर्वर और बीजयुक्त और ऊपरी भाग बन्ध्य होता है तथा एक चोंच के समान संरचना बनाता है। परिपक्व फल में अण्डपों की बाहरी भित्ति दोनों पाश्वों से फट जाती है और केप्सूल 5 भागों में टूट जाता है और नीचे के बीजयुक्त प्रकोष्ठों को ऊपर पहुँचा देता है। अचानक इस झटके से बीज दूर दूर तक फेंक दिए जाते है।

बीज प्रकीर्णन का महत्व (importance of seed dispersal)

यदि एक ही पौधे के सभी बीज झड़कर उसी पौधे के आसपास अथवा नीचे रहकर ही अंकुरित हो जाए तो थोड़े से सिमित स्थान में अनेक नवोद्भिद उत्पन्न हो जायेंगे। इसके साथ ही स्थान , वायु , जल और पोषण की सिमित उपलब्धता के कारण इनके मध्य स्पर्धा होगी और इनका पूरी तरह विकास नहीं हो पायेगा तथा कुछ समय बाद कोई भी नवोदभिद जीवित नहीं बचेगा। अगर प्रतिवर्ष बारम्बार यही स्थिति दोहराई जाती रहे तो उस पादप प्रजाति का प्रसार नहीं हो सकेगा और मुख्य पादप के किसी कारण से नष्ट हो जाने पर वह पादप प्रजाति भी हमेशा के लिए विलोपित हो जाएगी। अत: पादप प्रजातियों को इस प्रकार विलुप्त होने से बचाने के लिए बीजों का प्रकीर्णन अत्यावश्यक है जिससे वे दूरस्थ क्षेत्रों में पहुँचकर सफलतापूर्वक जीवनयापन कर सके , अपना प्रसार कर अपने अस्तित्व को बचाए रख सके।
बीजों के प्रकीर्णन के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –
1. जीवन संघर्ष से सुरक्षा (safeguard from struggle for existence)
2. प्रजातियों का व्यापक वितरण (extensive distribution)
3. जाति सांतत्य अथवा निरन्तरता (continuity of species)
4. दुर्घटना और विनाश के कारण , पादप प्रजाति को विलुप्त होने से बचाना (to save species from extinction)
5. नवीन प्रजातियों की उत्पत्ति (origin of new species)
1. जीवन संघर्ष से सुरक्षा (safeguard from struggle for existence) : एक पौधे के व्यक्तिगत विकास के लिए स्थान , जल , वायु और पोषण पदार्थो की पर्याप्त उपलब्धता अत्यावश्यक है। यदि उपर्युक्त सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो तो इनको प्राप्त करने के लिए पादप प्रजातियों के मध्य कड़ी प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है। यह प्रतिस्पर्धा समान प्रजाति के पौधों के बीज अधिक तीव्र होती है , उदाहरणार्थ एक ही स्थान पर उगने वाले जामुन के नवोदभिद में आपसी स्पर्धा , नीम अथवा अन्य प्रजातियों के पौधों से स्पर्धा की तुलना में तीव्र होगी।
“किसी भी सजीव इकाई को अनुकूलतम वृद्धि परिस्थिति प्राप्त करने हेतु आवश्यक स्थान और पोषण प्राप्त करने के लिए जो लड़ाई अथवा प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है , उसे ही जीवन संघर्ष कहते है। “
इस जीवन संघर्ष के परिणामस्वरूप अधिकांश पादप नष्ट हो जाते है और इससे बचने के लिए बीजों का प्रकीर्णन दूरस्थ स्थानों पर , प्रकृति के द्वारा प्रायोजित किया जाता है , जहाँ प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं होती और बीज के अंकुरण और नवोदभिद की स्वस्थ वृद्धि के लिए पर्याप्त सुविधायें भी उपलब्ध रहती है।
2. पादप प्रजातियों के व्यापक और विस्तृत वितरण के लिए (extensive distribution) : संसार की समस्त सजीव इकाइयों में अपनी प्रजाति के प्रसार और व्यापक फैलाव का गुण प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह गुण पौधों और प्राणियों में समान रूप से पाया जाता है। किसी भी प्रजाति के प्रसार और फैलाव का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जबकि उसके फल और बीजों का प्रकीर्णन व्यापक रूप से सुदूर स्थानों पर होगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विभिन्न पादप प्रजातियों के बीजों और फलों में विशेष प्रकार की आकारिकीय संरचनाएँ पायी जाती है।
3. प्राजाति निरंतरता (continuity of species) : सजीव इकाइयों में अनन्तकाल तक इस भू मण्डल पर अपनी वंशवृद्धि अथवा प्रगति निरन्तरता की सहज प्रवृत्ति आदिकाल से ही विद्यमान रही है। अर्थात विभिन्न स्तरों पर पौधों और प्राणियों का अपनी संख्या में वृद्धि करने का भी प्रयास हमेशा से रहा है। इस प्रकल्प अथवा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भी इनके फल और बीजों का दूरस्थ स्थानों पर प्रकीर्णन अत्यंत आवश्यक है। प्रकीर्णन और प्रसार की यह प्रक्रिया अनवरत जारी रहती है।
4. प्रजाति को दुर्घटना से विलुप्त होने से बचना (to save species from extinction) : इस भू मण्डल पर प्राकृतिक और मानवजन्य कारणों से अनेक दुर्घटनाएँ होती रहती है , जैसे भूकंप , ज्वालामुखी , बाढ़ , भू स्खलन और आग आदि। इनके परिणामस्वरूप वनस्पति का बड़े स्तर पर विनाश होता है। यदि कोई पादप प्रजाति वितरण की दृष्टि से सिमित क्षेत्रीय हो अर्थात अत्यंत सिमित और संकुचित क्षेत्र में ही पायी जाती हो तथा अगर वह स्थान भूकम्प अथवा आग से नष्ट हो जाए तो इस प्रजाति के वहाँ उपस्थित समस्त पौधे भी नष्ट हो जायेंगे। चूँकि यह प्रजाति विशेष पृथ्वी पर अन्यत्र नहीं पायी जाती , अत: इस दुर्घटना के साथ ही वह विलुप्त हो जाएगी लेकिन प्रकीर्णन के द्वारा पादप प्रजातियाँ पृथ्वी पर दूर दूर तक फैली रहती है।  अत: एक स्थान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बावजूद भी अन्य स्थानों पर उस प्रजाति का अस्तित्व बना रहता है अर्थात प्रकीर्णन के कारण यह प्रजाति समाप्त अथवा विलुप्त होने से बच जाती है।
5. नवीन प्रजातियों की उत्पत्ति (origin of new species) : प्रकीर्णन के कारण किसी भी पादप प्रजाति के फल और बीज सुदूर क्षेत्रों में फ़ैल जाते है वहां इसके पौधों की स्वस्थ वृद्धि के लिए जीवन सम्बन्धी सभी जरूरतें पूरी हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में जीवन संघर्ष भी न्यूनतम होता है। नए क्षेत्रों में पहुँची हुई कोई भी पादप प्रजाति विशेष और उस क्षेत्र में उपस्थित आनुवांशिक रूप से लगभग समान अन्य प्रजातियों के मध्य संकरण अथवा अन्य प्रक्रियाओं द्वारा नवीन जीन पुनर्योग उत्पन्न होते है जो आगे चलकर नयी पादप प्रजाति की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी होते है। अत: फल बीजों के प्रकीर्णन से नयी प्रजातियों की उत्पत्ति की उज्जवल संभावनाएँ बनी रहती है।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : होलोप्टेलिया में बीजों का प्रकीर्णन होता है –
(अ) वायु द्वारा
(ब) जल द्वारा
(स) जन्तु द्वारा
(द) कीट द्वारा
उत्तर : (अ) वायु द्वारा
प्रश्न 2 : टेरेक्सम में बीजों का प्रकीर्णन होता है –
(अ) पक्ष्म द्वारा
(ब) हुक द्वारा
(स) बेलन विधि द्वारा
(द) पेराशूट विधि द्वारा
उत्तर : (द) पेराशूट विधि द्वारा
प्रश्न 3 : हल्के और छोटे बीज मिलते है –
(अ) आर्किडस में
(ब) मोरिंगा में
(स) होपिया में
(द) साल में
उत्तर : (अ) आर्किडस में
प्रश्न 4 : अपाती वर्तिका किस में नहीं पायी जाती है –
(अ) क्लिमेटिस
(ब) मार्टिनिया
(स) जिरेनियम
(द) केलोट्रोपिस
उत्तर : (अ) क्लिमेटिस
प्रश्न 5 : निम्न में से किस्में विस्फोटी विधि से बीजों का प्रकीर्णन होता है –
(अ) बालसम
(ब) लटजीरा
(स) बाघनखी
(द) कमल
उत्तर : (अ) बालसम
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