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प्रत्यक्ष पीड़क और परोक्ष पीड़क क्या है | अंतर , उदाहरण , अर्थ प्रत्यक्ष पीड़क किसे कहते हैं Direct pest in hindi

Direct pest in hindi and indirect pests प्रत्यक्ष पीड़क और परोक्ष पीड़क क्या है | अंतर , उदाहरण , अर्थ प्रत्यक्ष पीड़क किसे कहते हैं ?

 पीड़क पूर्वघोषणा (Pest Forecsating)
पूर्वघोषणा का अर्थ है कि आगे क्या होने वाला है। पूर्वघोषणा हेतु यह सूचना चाहिएरू

ऽ समष्टि व्यवहार के नियंत्रणकारी कारक
ऽ समष्टि की वर्तमान स्थिति

पूर्वघोषणा में समष्टि व्यवहार को नियंत्रण करने वाले ज्ञातं कारकों की वर्तमान समष्टि को प्रभावित कर रहे कारकों के साथ तुलना शामिल है। फसल ऋतु में पीड़क घनत्व से संबंधित पहले से ही प्राप्त सूचना से कृषक को पीड़क स्थिति से निबटने में सहायता मिलती है। पीड़कों की समष्टि के विषय में समाश्रयण निदर्शों (regresion models) के अथवा समष्टि गतिकी निदर्शों (population dynamics models) के द्वारा पूर्वघोषणा की जा सकती है।

समाश्रयण निदर्शों में पीड़क समष्टि तथा तापमान, आर्द्रता, वर्षा, पवन, वेग आदि विविध मौसम कारकों के बीच का संबंध होता है। उधर दूसरी ओर पीड़क समष्टि गतिकी निदर्शों में विभिन्न पीड़ता वृद्धि प्रक्रियाओं, जैसे अण्डे तथा लार्वा, प्यूपा एवं व्यस्क परवर्धनों को गणितीय समीकरणों के रूप में दर्शाया गया होता है। पीड़क पूर्वघोषणा प्रणाली में निगरानी (surveillance) तथा अनुप्रेक्षण (monitoring) आते हैं जिनके साथ मौसम पूर्वघोषणा, विविध प्रबंधन तरीकों, निवेश मूल्यों, खेत उत्पादन आदि पर कम्प्यूटर डैटा-बेस होता है। पीड़क पूर्वघोषणा की समय रहते पीड़क प्रबंधन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आवश्यकता है कि विश्वसनीय पीड़क पूर्वघोषणा निर्देश विकसित किए जाएं।

समष्टि गतिकी (Population Dynamics)
पीड़कों की समष्टि विभिन्न ऋतुओं तथा वर्षों में एक-सी नहीं बनी रहती। यह पीड़क की सामान्य संतुलन स्थिति के इर्द-गिर्द बदलती रहती है। पीड़क के समष्टि घनत्व में परिवर्तन को समष्टि गतिकी कहते हैं। पीड़क की सामान्य संतुलन स्थिति को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है – यह दीर्घकाल में पीड़क का औसत समष्टि घनत्व होता है। पीड़क समष्टि में जो उतार-चढ़ाव आते हैं वे विभिन्न मृत्युता कारकों की तीव्रता में परिवर्तन आने के कारण आते हैं। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है। मृत्युता कारक जैविक तथा अजैविक दोनों प्रकार के होते हैं। मौसम विज्ञानीय कारक जैसे तापमान, आर्द्रता, वर्षा, पवन आदि अजैविक अथवा भौतिक कारक हैं। उधर दूसरी ओर परजीव्याभ, परभक्षी तथा रोगजनक जैविक कारकों में आते हैं। समस्त मृत्युता कारकों में से एक मृत्युता कारक विभिन्न पीढ़ियों अथवा वर्षों में पीड़क समष्टि में होने वाले परिवर्तनों से सबसे ज्यादा संबंधित हैं। इस कारक को मूल मृत्युता कारक (key mortalityf actor) कहते हैं। कुल मिलाकर मूल मृत्युता कारक ही वह चीज है जिस पर किसी भी प्रजाति की समष्टि गतिकी निर्भर होती है।

बोध प्रश्न 7
प) पीड़क प्रतिचयन के विभिन्न प्रकार क्या-क्या होते हैं?
पप) क्रमबद्ध प्रतिचयन किसे कहते हैं?
पपप) पीड़क की सामान्य संतुलन स्थिति क्या होती हैं?
पअ) पीड़क की समष्टि गतिकी किसे कहते हैं?

उत्तर

7) प) विभिन्न प्रकार की प्रतिचयन विधियां ये हैं साधारण यादृच्छिक प्रतिचयन, स्तरित यादृच्छिक प्रतिचयन, क्रमबद्ध प्रतिचयन तथा अनुक्रमी प्रतिचयन, आदि।
पप) क्रमबद्ध प्रतिचयन में पहली प्रतिचयन इकाई यादृच्छिक होती है परंतु उसके बाद की इकाइयां नियमित अंतरालों पर चुनी जाती हैं।
पपप) पीड़क का सामान्य संतुलन स्थिति पीड़क का एक लम्बे समय के दौरान औसत समष्टि घनत्व होता है।
पअ) विभिन्न पीड़ियों के दौरान पीड़क की समष्टि के घनत्व में होने वाले परिवर्तन को समष्टि गतिकी कहते हैं।

 पीड़कों के कारण फसल हानियों का मूल्यांकन
पीड़कों के कारण फसल हानि पीडक समष्टि घनत्व का कार्य है, केवल वाहकों के मामले में ऐसा नहीं होता। पीड़क समष्टि जितनी ज्यादा होगी पीड़कों के द्वारा होने वाली हानि भी उतनी ही ज्यादा होगी। परंतु वाहकों के मामले में जो रोगों के रोगजनक फैलाते हैं, समष्टि घनत्व महत्वपूर्ण नहीं है। कुछ थोड़े से ही वाहक व्यष्टि जैसे कि पीले मोजेक वायरस का वाहक श्वेत मक्खी बेमिसिया टैबकाई (Bemisia tabaci) की व्यष्टियां समूचे खेत में रोग फैला सकते हैं। ये पीड़क फसल को मुख्यतरू अपने अशन स्वभाव के द्वारा ज्यादा हानि पहुंचाते हैं, तथा अपने को अण्डनिक्षेपण स्वभाव के द्वारा अपेक्षाकृत कम हानि होती है। पीड़कों द्वारा पौधे को होने वाली हानि के प्ररूप उतने ही ज्यादा भिन्न होते हैं जितने कि उनकी अशन आदतें।

पीड़कों की श्रेणियां
मोटे तौर पर पीड़कों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है रू
ऽ प्रत्यक्ष पीड़क
ऽ परोक्ष पीड़क

प्रत्यक्ष पीड़क (Direct pests) सीधे ही पौधे के उत्पादन देने वाले भाग पर आक्रमण करते हैं। ऐसे पीड़कों की थोड़ी सी भी समष्टि से भारी क्षति पहुंचती है। उदाहरणतः चने का फली छेदक, कपास का गुलाबी डोड़ा, कृमि, फल मक्ख्यिं , फूल गोभी का मुंडक वेधक, बैंगन का प्ररोह एवं फसल वेधक, सेब का कॉड्लिग शलभ, मक्का का भुट्टा कृमि तथा चावल का तना बेधक कुछ ऐसे ही प्रत्यक्ष पीड़क हैं। ऐसे पीड़कों से होने वाली क्षति को प्रति पौधे अथवा प्रति इकाई क्षेत्रफल में क्षतिग्रस्त इकाइयों की संख्या के रूप में रिकार्ड किया जाता है। यदि प्रति पौधा अथवा प्रति इकाई क्षेत्रफल में कुल इकाइयों की संख्या मालूम हो तो पीड़क द्वारा प्रतिशत क्षति भी निकली जा सकती है।

परोक्ष पीड़क (Indirect pests) उन पादप भागों पर ग्रसन करते हैं जो कार्यिकी की दृष्टि से उत्पादन में तो सहायता करते हैं, मगर स्वयं उत्पाद नहीं बनाते। निष्पत्रणकारी बीटल, टिड्डे, पत्ती वलनक तथा पर्ण सुरंगक (lfea miners) आदि पीड़क इसी श्रेणी में आते हैं।

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