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पेरीपेटस का पाचन तंत्र कैसे कार्य करता है , Digestive system peripatus in hindi , परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)
जाने पेरीपेटस का पाचन तंत्र कैसे कार्य करता है , Digestive system peripatus in hindi , परिसंचरण तंत्र (Circulatory System) ?
पाचन तन्त्र (Digestive system) :
पेरीपेटस की आहार नाल एक सरल नलिकाकार संरचना होती है। आहारनाल को तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है अग्रआन्त्र, मध्यआन्त्र व पश्च आन्त्र।
अग्र व पश्च आन्त्र भीतर से क्यूटिकल द्वारा आस्तरित होती है। अग्र आन्त्र मुख से प्रारम्भ होती है तथा इसमें ग्रसनी व ग्रसिका भी सम्मिलित होती है। मध्य आन्त्र आमाशय व आन्त्र से मिलकर बनी होती है जबकि पश्च आन्त्र में मलाशय (rectum) आता है।
मुख (Mouth) : मुख अधर सतह पर पूर्व मुखीय गर्त में उपस्थित होता है। मुख पूर्वमुखीय अंकुरकों या पेपिला (pre oral papillae) से घिरा रहता है। पूर्व मुखीय गुहा के पार्श्व में एक जोड़ी नखर समान चिबुक या मेन्डिबल पाये जाते हैं। मेन्उिबल भोजन को पकडने व काटने के काम आते हैं। मुख ग्रसनी में खुलता है।
ग्रसनी (Pharynx) : ग्रसनी की भित्ति मोटी व पेशीय होती है ग्रसनी की गहा काइटिनी क्यटिकल द्वारा आस्तरित होती है। अनुप्रस्थ काट में ग्रसनी ‘x’ के आकार की दिखाई देती है। पेशीय भित्ति के कारण ग्रसनी एक चूषणीय अंग की तरह कार्य करती है। ग्रसनी पीछे की ओर ग्रसिका (oerophagus) में खुलती है।
ग्रसिका (Oesophagus): यह एक छोटी नलिकाकार संरचना होती है जिसकी भित्ति दर्बल पेशियों की बनी होती है तथा काइटिनी स्तर द्वारा आस्तरित होती है। ग्रसिका पीछे की ओर मध्य आन्त्र में खुलती है।
मध्यआन्त्र या आमाशय-आन्त्र (Mid gut or Stomach-Intestine): यह एक लम्बी नलिकाकार संरचना होती है जो आहारनाल का अधिकांश भाग बनाती है। यह एक फूली हई कोमल भित्ति वाली नलिका होती है। आमाशय आन्त्र में मुख्य रूप से पाचन व अवशोषण की क्रिया सम्पन्न होती है। पीछे की ओर यह मलाशय में सतत रहती है।
पश्च आन्त्र या मलाशय (Hind gut or Rectum) : यह एक छोटी नलिकाकार सरंचना होती है जो आहारनाल का अन्तिम भाग बनाती है। यह गुदाद्वार द्वारा बाहर खुलती है। गुदाद्वार से बाहर खुलने से पूर्व यह आन्त्र पर एक लूप बनाती है। मलाशय भीतर की ओर काइटिनी क्यूटिकल द्वारा आस्तरित रहती है। गुदा शरीर के पश्च सिरे की अधर सतह पर बाहर खुलती है।
पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands) : पेरीपेटस में एक जोड़ी लार ग्रन्थियाँ (salivary glands) पाचक ग्रन्थियों के रूप में पायी जाती है। लार ग्रन्थियाँ पूर्व मुखीय गुहा की छत पर उपस्थित मध्य पृष्ठ खांच में खुलती है। प्रत्येक लार ग्रन्थि एक लम्बी बेलनाकार, नलिकाकार संरचना होती है। लार ग्रन्थियाँ शरीर के तीसरे से दसवें खण्ड तक तथा कभी-कभी इक्कतीसवें खण्ड तक भी फैली रहती है। दोनों लार ग्रन्थियाँ समेकित होकर पूर्व मुखीय गुहा में खुलती है। कुछ जातियों में एक आशय भी पाया जाता है। लार ग्रन्थियों द्वारा स्रावित लार शिकार के शरीर में छोड़ी जाती है जो उसके उत्तकों का पाचन करती है फिर इसे चूषणीय ग्रसनी की सहायता से मुख द्वारा चूस लिया जाता है। यह माना जाता है कि लार ग्रन्थियाँ नेफ्रिडिया का रूपान्तरित स्वरूप होती है।
भोजन ग्रहण करना तथा पाचन (Ingestion and digestion of food)
पेरीपेटस एक शिकरी प्रवृत्ति का मांसाहारी जन्तु होता है। यह छोटे-छोटे अकशेरूकी प्राणियों जैसे-घोंघे, कीट, कृमि आदि को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। जब भी कोई शिकार इसक समीप आता है तो यह अवपंकी ग्रन्थियों (slim glands) के द्वारा स्रावित स्लाइम की तेज धार शिकार पर छोड़ता है जिससे वह निष्क्रिय हो जाता है। निष्क्रिय शिकार को यह ग्रसनी की चूषणीय क्षमता से मुँह में खींच लेता है। मुँह में उपस्थित जबड़े शिकर को चीर कर खोल लेते हैं व लार ग्रन्थियाँ अपना स्राव जिसमें लार के साथ-साथ विभिन्न एन्जाइम्स पाये जाते हैं, को शिकार के शरीर में छोड़ देती है। शिकार के कोमल ऊत्तक पाचक रसों द्वारा पाचित कर लिए जाते हैं।
शिकार के कोमल ऊत्तकों वाला पाचित पोषक तरल को ग्रसनी की चूषणीय क्रिया द्वारा ग्रसनी में खींच लिया जाता है व ग्रसिका में भेज दिया जाता है। ग्रसिका से यह तरल क्रमाकुंचन की क्रिया द्वारा आमाशय आन्त्र में भेज दिया जाता है। मध्यआन्त्र भोजन के कणों के चारों तरफ एक पतली झिल्ली का आवरण स्रावित करती है। मध्यआन्त्र की भित्ति द्वारा स्रावित पाचक एन्जाइम झिल्ली को भेद कर भोजन का पूर्ण पाचन कर देते हैं। इस प्रकार पाचित भोजन झिल्ली के आवरण से बाहर आ जाता है व मध्य आन्त्र की भित्ति के अस्तर में उपस्थित अवशोषी कोशिकाएँ पचे हुए भोजन का अवशोषण कर लेती है। शेष बिना पचा भोजन जो झिल्ली के आवरण में रह जाता है, धीरे-धीरे मलाशय या पश्च आन्त्र में भेज दिया जाता है, जिसे गुदा द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
परिसंचरण तन्त्र (Circulatory System) :
पेरीपेटस का परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है तथा रक्त कोटरों व हृदय से मिलकर बना होता है। शरीर के पृष्ठ भाग में परिहृद कोटर (pericardial sinus) पायी जाती है जिसमें नलिकाकार हृदय पाया जाता है। परिहृद कोटर सामान्य देहगुहा से एक छिद्र युक्त, लम्बवत् भित्ति से पृथक रहती है। सामान्य देहगुहा को परि आन्तरांग कोटर कहते हैं। हृदय एक मध्य पृष्ठीय नलिकाकार सरंचना होती है जो आहार नाल के ऊपर परिहृद कोटर (pericardial sinus) में उपस्थित होता है। पेरीपेटस का हृदय नलिकाकार व संकुचनशील होता है। हृदय के पार्श्व में प्रत्येक खण्ड में एक जोड़ी ऑस्टिया या छिद्र पाये जाते हैं हृदय शरीर के उस खण्ड जिसमें प्रथम जोड़ी टाँगे पायी जाती हैं, से प्रारम्भ होकर अन्तिम खण्ड से ठीक पहले वाले खण्ड तक फैला रहता है।
पेरीपेटस का रक्त जिसे हीमोलिम्फ कहते हैं, रंगहीन होता है तथा इसमें भक्षाणु अमीबोसाइट्स पाये जाते हैं। चूँकि हृदय नलिकाकार व संकुचनशील होता है अतः यह रक्त को परिहृद कोटर से सामान्य हीमोसील में धकेलता रहता है। परिहृद कोटर एक छिद्र युक्त भित्ति से सामान्य हीमोसील से पृथक रहता है अतः रक्त हृदय से सामान्य हीमोसील में आ जाता है व यहाँ से पुनः परिहृद कोटर में जाता है। हृदय के अतिरिक्त पेरीपेटस में अन्य कोई रक्त वाहिकाएँ नहीं पायी जाती है।
श्वसनतन्त्र (Respiratory System) :
पेरीपेटस का श्वसन तन्त्र वायु नलिकाओं, जिन्हें श्वांस नलिकाएँ (tracheal tubes) कहते हैं का बना होता है। श्वासनलिकाएँ कोमल व अशाखित नलिकाएँ होती है। ये भीतर से काइटिनी स्तर द्वारा आस्तरित होती है। काइटिनी स्तर में हल्की अनुप्रस्थ धारियाँ पायी जाती है। पूरे शरीर में श्वास नलिकाओं का जाल बिछा होता है तथा श्वास नलिकाएँ श्वासरन्ध्र (spiracle ) द्वारा बाहर खुलती है। श्वासं रन्ध्र छोटे-छोटे छिद्र होते है जो शरीर की सम्पूर्ण सतह पर उपस्थित गांठनुमा ट्यूबर्कल (tubercle) की धारियों के मध्य स्थित होते हैं। श्वांस रन्ध्र एक छोटे प्रकोष्ठ ( atrium) में खुलते हैं जो प्रकोष्ठ के अन्त में स्थित श्वास नलिकाओं के गुच्छे में खुलती है। श्वास नलिकाओं के माध्यम से श्वसन हेतु वायु शरीर के समस्त भागों में भेजी जाती है व वहाँ से पुनः श्वास रन्ध्र के द्वारा बाहर निकाली जाती है।
पेरीपेटस का श्वसन तन्त्र कॉकरोच के श्वसन तन्त्र से इस बात से भिन्न हैं कि पेरीपेटस में श्वांस रन्ध्रों को बन्द करने की कोई क्रियाविधि नहीं पायी जाती है जिससे श्वास रन्ध्र हमेशा खुले रहते हैं। इस स्थिति के कारण जन्तु को अत्यधिक जल की हानि होती है ।
उत्सर्जी तंत्र (Excretory System) :
पेरीपेटस में उत्सर्जन के लिए नेफ्रिडिया (nephridia) पाये जाते हैं। नेफ्रिडिया कुण्डलित नलिका के रूप में खण्डीय रूप से विन्यासित होते हैं। हर खण्ड में एक जोड़ी नेफ्रिडिया पाये जाते हैं जो अधर शिरा कोटर में स्थित होते हैं। नैफ्रिडिया की संख्या टांगों के अनुरूप होती है। एक प्रारूपी नेफ्रिडिया में एक लम्बी पक्ष्माभी कीप, एक कुण्डलित नलिका तथा एक संकुचनशील थैली या आशय (vesicle) पाये जाते हैं।
नेफ्रिडिया की पक्ष्माभी कीप व नेफ्रोस्टोम एक थैलीनुमा संरचना में स्थित होते हैं जो वास्तविक देह गुहा की निरूपित करती है। पक्ष्माभीकीप कुण्डलित नलिका के अग्रस्थ सिरे पर स्थित होती है । कुण्डलित नलिका का पश्च सिरा फूल कर संकुचनशील आशय में परिवर्तित हो जाता है। यह आशय नेफ्रिडियोफोर या उत्सर्जी छिद्र द्वारा बाहर खुलता है । उत्सर्जी छिद्र या नेफ्रिडियोपोर प्रत्येक टांग के भीतरी आधारी भाग में बाहर की ओर खुलता है केवल चौथे व पाँचवें खण्ड को छोड़कर जो एक आधारी गांठ या ट्यूबर्कल पर स्थित होते हैं। प्रथम तीन जोड़ी नेफ्रिडिया या उत्सर्गिकाएँ अल्प विकसित होते हैं व केवल आशय एवं वाहिका के ही बने होते हैं । अग्रतम नेफ्रिडिया लार ग्रन्थियों में रूपान्तरित हो जाते हैं तथा पश्चतम नेफ्रिडिया मादा में जनन वाहिका में रूपान्तरित हो जाते हैं। पेरीपेटस में उत्सर्जी पदार्थों की प्रकृति अज्ञात है। पेरीपेटस के नेफ्रिडिया एनेलिड जन्तुओं के समरूप (analogous) होते हैं परन्तु आथ्रोपोड जन्तुओं के समजात (homologous) होते हैं।
पेरीपेटस में नेफिडिया के अतिरिक्त देहगुहा के पार्श्व कक्षों में युग्मित ग्रन्थियों की एक श्रृंखला पायी जाती है जिनकी वाहिकाएँ टांगों की निचली सतह पर उत्सर्जी वाहिकाओं के छिद्र के ठीक बाहर की ओर खुलती है। इन ग्रन्थियों को कक्षीय ग्रन्थियाँ (coxal glands) कहते हैं। ये सामान्यतया केवल नर पेरीपेटस जन्तुओं में ही पाये जाते हैं। परन्तु पेरीपेटस केपेन्सिस (Peripatus capensis) में ये नर व मादा दोनों में ही पाये जाते हैं। इन ग्रन्थियों की संख्या व विन्यास विभिन्न जातियों के नरों में भिन्न-भिन्न होती है।
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