(digestive glands in human body in hindi) पाचन ग्रंथियाँ , पाचन ग्रंथियां किसे कहते हैं , लार ग्रन्थि : स्तनियो में विभिन्न प्रकार की पाचन ग्रंथियां पाई जाती है जैसे –
लार ग्रन्थि , जठर ग्रंथि , आंत्रीय ग्रंथि , अग्नाशय और यकृत। ये ग्रन्थियां पाचक रस का स्त्रावण करती है। पैरासिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र पाचक रस के स्त्रावण को बढ़ा देता है और सिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र स्त्रावण को नियंत्रित करता है।
(a) लार ग्रन्थियाँ : मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती है , जो निम्नलिखित है –
- पैरोटिड: कान के नीचे एक जोड़ी लार ग्रंथि पाई जाती है , जो स्टेन्सस डक्ट (नलिका) द्वारा ऊपरी जबड़े के दाँतो के मध्य खुलती है। पैरोटिड ग्रंथि एंजाइम का स्त्रावण करती है। पैरोटिड ग्रंथि में वायरस का संक्रमण होने पर मम्प्स हो जाते है।
- सब मैंडीबुलर / सब मैक्जिलरी: निचले और उपरी जबड़े के बीच गाल में एक जोड़ी सब मैंडीबुलर ग्रंथि पाई जाती है , जो व्हार्टन्स डक्ट द्वारा निचले जबड़े में खुलती है। ये सीरोम्यूकस ग्रंथि है।
- सब लिंगुअल: बक्कोफैरिंजियल कैविटी की फर्श पर एक जोड़ी सब लिंगुअल ग्रंथि होती है , यहाँ पर म्यूकस ग्रन्थि की 6-8 नलिकाएँ होती है , जो डक्ट ऑफ रिविनस अथवा बार्थोलिन डक्ट कहलाती है , इनके द्वारा यह बक्कोफैरिंजियल गुहा के फर्श पर जीभ के नीचे खुलती है।
लार / लार रस : लार ग्रंथियों के स्त्राव को लार अथवा लार रस कहते है। लार के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित है –
- मात्रा : 1-1.5 लीटर/दिन
- रासायनिक प्रकृति : हल्का अम्लीय
- pH : 6.3 से 6.8
- स्त्रावण का नियंत्रण : स्वायत्त रिफ्लेक्स के द्वारा जिसमे पैरासिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र लार स्त्रावण को बढ़ा देता है जबकि सिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र इसके स्त्रावण का दमन करता है।
- रासायनिक संघटक : जल (99.5%) , म्यूकस (चिकनापन प्रदान करने हेतु ) , लवण (NaCl , NaHCO3 इत्यादि |) , एंजाइम (टायलिन और लाइसोजाइम) आदि।
कार्य : लार रस और इसके उत्पाद –
- एंजाइम को कार्य करने के लिए माध्यम को हल्का अम्लीय बनाते है।
- स्वाद ज्ञान , निगलन और उच्चारण में सहायक।
- स्टार्च → माल्टोज + आइसोमाल्टोज + लिमिड डैक्सिट्रन [लार एमाइलेज अथवा टायलिन/डाएस्टेज की उपस्थिति। ]
- बैक्टीरिया (जीवित) → बैक्टीरिया (मृत) [लाइसोजाइम की उपस्थिति]
जठर ग्रंथियाँ : मनुष्य के आमाशय में 35 मिलियन जठर ग्रंथियां पाई जाती है , जो जठर रस का स्त्रावण करती है। इन्हें 3 वर्गों में बाँटा गया है। जठर ग्रंथि , जठर रस का स्त्राव करती है।
जठर रस :
- मात्रा : 2 से 3 लीटर प्रतिदिन।
- रासायनिक प्रकृति : अत्यधिक अम्लीय।
- pH : 1.0 – 3.5 (एचसीएल की उपस्थिति के कारण)
- नियंत्रण : गैस्ट्रिक हार्मोन द्वारा |
- रासायनिक संघटक : जल (99%) , म्यूकस , अकार्बनिक लवण , कैसल्स इंट्रेंसिक फैक्टर , 0.5% एचसीएल और एंजाइम प्रोरेनिन , पेप्सिनोजन और गैस्ट्रिक लाइपेज।
जठर रस के कार्य और इसके एन्जाइम्स :-
- लार की क्रिया को निष्क्रिय करता है।
- जठर रस के द्वारा माध्यम को अम्लीय बनाया जाता है।
- HCl सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।
- निगले गए जीवित जन्तुओ को मारता है।
- पेप्सिनोजन (निष्क्रिय) → पेप्सिन (सक्रीय) [एचसीएल की उपस्थिति।]
- प्रोरेनिन (निष्क्रिय) → रेनिन (सक्रीय) [HCl की उपस्थिति।]
- प्रोटीन + पेप्टोंस → पोली पेप्टाइडस + ओलिगो पेप्टाइड [पेप्सिन की उपस्थिति]
- कैसीन (घुलनशील दुग्ध प्रोटीन) → कैल्शियम पैराकैसीनेट (अघुलनशील दही जैसा ) इस क्रिया विधि को कर्डलिंग ऑफ़ गिल्क कहते है। [काइमोसिन / रेनिन / रेनिट की उपस्थिति]
- लिपिड्स → ट्राइग्लिसरोइड्स + मोनोग्लिसरोइड्स [गेस्ट्रिक लाइपेज की उपस्थिति , मानव आमाशय में उपेक्षणीय , pH 4-6 पर क्रियाशील]
- एचसीएल एंटीसेप्टिक है।
- संरक्षक की तरह कार्य करता है।
स्तनीयो में मानव की केवल वयस्कावस्था में भी दूध का सेवन करता है।
लैक्टोज इनटोलरेन्स ;- स्तनियो में मानव ही केवल व्यस्कावस्था में भी दूध का सेवन करता है। कुछ मनुष्यों में उम्र के साथ साथ लैक्टोज का स्त्रावण कम या बंद हो जाता है , इस स्थिति को लैक्टोज इनटोलरेन्स कहते है। ये लोग दूध में पायी जाने वाली लैक्टोज शर्करा को नहीं पचा पाते है। अत: इनकी बड़ी आंत में लैक्टोज का बैक्टीरिया द्वारा किण्वन होता है जिससे गैस और अम्ल बनते है।
आंत्रीय ग्रंथियाँ : स्तनीयों में पाई जाने वाली आंत्रिय ग्रंथियों को सामूहिक रूप से क्रिप्ट्स ऑफ़ लीबरकुहन (क्षारीय एंजाइम रस का स्त्रावण) और ब्रुनर्स ग्लैंड्स (म्यूकस स्त्रावण) कहते है। आन्त्रिय ग्रंथियाँ आंत्रीय रस का स्त्रावण करती है।
सक्कस एंटेरिकस (आंत्रीय रस) :-
- मात्रा : 1.5-2.0 लीटर/दिन
- रासायनिक प्रकृति : क्षारीय
- pH : 7.6 – 8.3
- स्त्रावण का नियंत्रण : तंत्रिका और हार्मोनल (एंटरोक्राइनिन) तथा ड्यूओक्राइनिन आदि।
- रासायनिक संघटक : जल (99%) , म्यूकस , अकार्बनिक लवण एंजाइम आदि।
आंत्रीय रस और इसके विकरों के कार्य :-
- गैस्ट्रिक एंजाइम की गतिविधि को रोकता है।
- इसके एन्जाइमों के सक्रियकरण हेतु माध्यम को क्षारीय बनाता है।
- स्टार्च → माल्टोज + आइसोमाल्टोज और लिमिट डेक्स्ट्रिन [एमाइलेज की उपस्थिति]
- माल्टोज → ग्लूकोज + ग्लूकोज [माल्टेज की उपस्थिति]
- आइसोमाल्टोज → ग्लूकोज + ग्लूकोज [आइसोमाल्टेज की उपस्थिति]
- लैक्टोज (मिल्क शुगर) → ग्लूकोज + गैलेक्टोज [लेक्टेज की उपस्थिति ]
- सुक्रोज (गन्ना) → ग्लूकोज + फ्रक्टोज [सुक्रेज अथवा इन्वरटेज की उपस्थिति]
- पोलीपेप्टाइड + ओलिगोपेप्टाइड → अमीनो अम्ल [इरेप्सिन की उपस्थिति]
- ट्रिप्सिनोजन (अक्रिय) → ट्रिप्सिन (सक्रीय) [एंटेरोकाइनेज की उपस्थिति]
- लिपिड्स → वसा अम्ल + ग्लिसरोल + मोनोग्लिसरोइड्स [लाइपेज की उपस्थिति]
- फास्फोलिपिड्स → फास्फोरस + वसा अम्ल + ग्लिसरोल + मोनोग्लिसरोइड्स [फास्फोलाइपेज की उपस्थिति]
- कार्बनिक फास्फेट → फ्री फास्फेट [फास्फेटेज की उपस्थिति]
- न्यूक्लिक अम्ल → न्युक्लियोटाइड्स [पोली न्यूक्लियोटाइडेज की उपस्थिति]
- न्युक्लियोसाइड्स → नाइट्रोजिनस बेस [न्युक्लियोसाइडेज की उपस्थिति]
अग्नाशय
ड्यूओडिनम के बढ़ते और घटते लिम्ब के मध्य एक एंडोडर्मल , चपटी , पत्ती के समान , पीले रंग की हैटरोक्राइन (मिश्रित) ग्रंथि पायी जाती है , जो ड्यूओडिनम में अग्नाशयी नलिका द्वारा खुलती है। यह निम्नलिखित भागों में बंटी रहती है –
एक्सोक्राइन : यह अग्नाशय का बड़ा हिस्सा (लगभग 99%) है। अग्नाशय के एक्सोक्राइन उत्तक गोल लोब्यूल्स (एसिनी) के बने होते है , जो क्षारीय पैन्क्रियाटिक जूस स्त्रावित करते है। यह जूस पैन्क्रियाटिक डक्ट द्वारा (जिसे विरसंग डक्ट भी कहते है। ) हिपैटोपैन्क्रियाटिक एम्पुला से होते हुए ड्यूओडिनम में पहुँचता है। एक सहायक पैन्क्रियाटिक डक्ट जिसे सैन्टोराइनी की डक्ट भी कहते है , सीधे ड्यूओडिनम में खुलती है।
एंडोक्राइन : इसका एक छोटा भाग (लगभग 1%) आइसलेट ऑफ़ लैंगरहैन्स कहलाता है। जो एक्जोक्राइन भाग में फैला होता है। इसमें चार प्रकार की कोशिकाएं पाई जाती है।
α (A) कोशिका
β (B) कोशिका
δ (D) कोशिका
F कोशिका अथवा PP कोशिकाएँ |
α कोशिकाएं ग्लूकेगोन , β कोशिका इन्सुलिन और δ कोशिकाएँ सोमेटोस्टेटिन का स्त्रावण करती है। F कोशिका अथवा PP कोशिका द्वारा पेन्क्रियाटिक पोलीपेप्टाइड हार्मोन का स्त्रावण किया जाता है , जो सोमेटोस्टेनिन हार्मोन के कार्यो का नियंत्रण करता है। ये सीधे रक्त में स्त्रावित किये जाते है।
अग्नाशयी रस :-
- मात्रा : 1 – 1.5 लीटर / दिन
- रासायनिक प्रकृति : क्षारीय
- pH : 7.1 से 8.2
- स्त्रावण का नियंत्रण : हार्मोनल और सामान्य क्रियाविधि से
सिक्रीटिन हार्मोन के प्रभाव से अधिक मात्रा में पैन्क्रियाटिक जूस स्त्रावित होता है लेकिन उसमे एन्जाइम्स की मात्रा कम होती है।
पैन्क्रियोजाइमिन अथवा कोलिसिस्टोकाइनिन के प्रभाव से स्त्रावित होने वाले जूस में एन्जाइम्स की मात्रा अधिक होती है।
- रासायनिक संघटक : जल (99%) , एंजाइम्स , लवण आदि।
अग्नाशय तथा इसके एंजाइमों के कार्य :-
- आइसलेट्स ऑफ़ लैंगरहैंग्स इन्सुलिन और ग्लुकेगोन हार्मोन्स का स्त्रावण करते है।
- पैन्क्रियाज का एक्जोक्राइन भाग पैंक्रियाटिक जूस स्त्रावित करता है।
- इलास्तेज : यह इलास्टिन प्रोटीन के ऊपर कार्य करता है।
- ट्रिप्सिनोजन → ट्रिप्सिन [इंटरोकाइनेज की उपस्थिति]
- ट्रिप्सिनोजन → ट्रिप्सिन [ट्रिप्सिन / ऑटो कैटालाइसिस की उपस्थिति]
- काइमोट्रिप्सिनोजन → काइमोट्रिप्सिन [ट्रिप्सिन या ऑटोकैटालाइसिस की उपस्थिति]
- पोलीपेप्टाइडस + पेप्टोंस → ट्राई पेप्टाइड्स + डाइ पेप्टाइड्स + ओलिगो पेप्टाइड्स [ट्रिप्सिन या पेन्क्रियाटिक प्रोटिएज]
- स्टार्च → माल्टोज + आइसो माल्टोज + लिमिट डेक्सट्रिन [एमाइलोप्सिन / पैन्क्रियाटिक एमाइलेज की उपस्थिति]
- इमल्सीफाइड लिपिड → वसा अम्ल + ग्लिस्रोल + ग्लिस्रोल + मोनोग्लिसरोइड्स [स्टिकएप्सिन / पैन्क्रियाटिक लाइपेज की उपस्थिति]
- न्यूक्लिक एसिड → न्युक्लियोटाइड्स + न्युक्लियोसाइड्स [न्युक्लिएज की उपस्थिति]
- न्यूक्लिक अम्ल → प्यूरिन्स + पिरीमिडीन्स [न्युक्लियोसाइडेज की उपस्थिति]
- पोली पेप्टाइडस → ओलिगोपेप्टाइड्स [ काइमोट्रिप्सिन की उपस्थिति ]