तंत्रिका आवेग और विद्युत आवेग में अंतर बताइए , difference between nerve impulse and electrical impulse in hindi

difference between nerve impulse and electrical impulse in hindi तंत्रिका आवेग और विद्युत आवेग में अंतर बताइए ?

पुनः ध्रुवण (Repolarization) : विध्रुवण की क्रिया के पूर्ण हो जाने के पश्चात् ओर अधिक सोडियम आयन (Na+) अन्तरालीय द्रव से एक्सोप्लाज्म के अन्दर नहीं जा सकते परन्तु बहुत अधिक संख्या में पौटेशियम आयन (K+) एक्सोलेमा द्वारा बाहर की ओर जाना प्रारम्भ करते हैं। इस स्थिति में Na+ का प्रवेश अन्दर की होने लगता है। धनात्मक आवेग के लगातार बाहर की ओर जाने पर एक्सोमा भीतर की ओर ऋणात्मक तथा बाहर की ओर धनात्मक होत जाती है तथा इस प्रकार न्यूरॉन की प्लाज्मा झिल्ली पुनः अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है, अर्थात् यह पहिले की तरह ध्रुवीय (polarized) हो जाती है। इस क्रिया को पुनः ध्रुवण (repolarization) कहा जाता है। इस स्थिति में झिल्ली पर फिर से विराम कला विभव (resting membrane potential) देखा जा सकता है जिसका मान -70 से -85 mv होता है। एक्सोलेमा पर पुनः ध्रुवीकरण ठीक उसी बिन्दु पर स्थापित होता है जहाँ पर विध्रुवीकरण प्रारम्भ हुआ था।

चित्र 6.8 : तन्त्रिका आवेग संचरण

आधुनिक मान्यताओं के अनुसार “तंत्रिका आवेग प्रेषण” (nerve impuls transmission) की क्रिया को बेर्नहार्ड काज (Bernhard Katz) तथा पीटर बेकर (Peter Baker) ने समझाया है। बेकर की क्रियाविधि, स्किविड (squid) जन्तु के न्यूरॉन पर किये गये प्रयोग पर आधारित है। बेकर के अनुसार ,  आवेग प्रेषण कर वाला तन्तु एक नलिका के समान की रचना होती है तथा एक्सॉन की विद्युत क्रियाशीलता (electrical activity) निम्न तीन कारको ( factors) पर आधारित होती है :. (i) एक्सॉन में उपस्थित पदार्थ, एक्सोप्लाज्म (axoplasm )

(ii) एक्सोप्लाज्म को घेरे रखने वाली भित्ति, एक्सोलेमा (axolemma)

(iii) एक्सॉन के बाहर उपस्थित पदार्थ अन्तरालीय द्रव (interstitial luid) बेकर के अनुसार, तंत्रिका संचरण को समय ऊर्जा का कोई विशेष स्रोत नहीं होता है बल्कि एक्सोलेमा झिल्ली के दोनों ओर उपस्थित आयनिक सान्द्रता (ionic concentration) में पाये जाने वाला अन्तर ही विद्युत आवेग के प्रवर्धन (amplification) एवं एक्सॉन पर संचरण (transmission हेतु आवश्यक होता है। इस धारणा के अनुसार एक्सॉन पर विद्युत काप्रवाह मात्र संवहन (conduction) पर ही निर्भर नहीं करता है बल्कि यह वास्तव में “प्रवर्धन एवं प्रसारण तंत्र’ (amplification and relay system) की तरह भी कार्य करता है।

सामान्तया तंत्रिका आवेग की तुलना उस सूक्ष्म विद्युत-संकेत (electrical signal) से की जा सकती है जो तार संचार व्यवस्था ( telegraphy) में तार पर भेजा जाता है। इसके बावजूद भी, तंत्रिका आवेग वास्तव में एक विद्युत रासायनिक (electro chemical) क्रिया होती है जो विद्युत आवेग से इस प्रकार से भिन्न होती है :

सारणी 6.1 : तंत्रिका एवं विद्युत आवेग में अन्तर

तंत्रिका आवेग

  1. यह स्वजनित (automatic) होता है अर्थात् यह उन्हीं न्यूरॉन्स द्वारा उत्पन्न किया जाता है जो इसे भेजते हैं।
  2. इस आवेग की गति धीमी ( slow speed) होती है। यह गति अधिकतम 350 फुट प्रति सैकण्ड हो सकती है।
  3. इस प्रकार के आवेग की तीव्रता ( intensity) दूरी के साथ कम नहीं होती है।
  4. इस आवेग के संचरण के समय आयन्स में गति देखी जाती है जो आवेग की दिशा के समकोण (right angle) परं होती है। ये आयन तंत्रिका तन्तु के बाहर एवं अन्दर गमन करते हैं।

विद्युत आवेग

यह आवेग उन तारों द्वारा उत्पन्न नहीं किया जाता जिस पर इसे भेजा जाता है।

इसकी गति बहुत अधिक तेज (fast speed) होती है। यह लगभग 10,000 मील प्रति सैकण्ड या इससे अधिक या लगभग प्रकाश की गति के बराबर होती है।

इस आवेग की तीव्रता दूरी के साथ घटती जाती है।

ये आयन तंत्रिका तन्तु के बाहर एवं अन्दर गमन करते हैं। विद्युत आवेग के गमन करते समय चालक एवं निष्क्रिय वाहक (passive

carrier) की तरह इलेक्ट्रॉन का गमन विद्युत धारा की गमन की दिशा की दिशा में होता है ।

मज्जावृत तंत्रिका तन्तु में आवेग प्रेषण

(Transmission of nerve impulse along medullated nerve fibre)

मज्जावृत तंत्रिका तन्तु में आवेग प्रेषण की क्रिया को सर्वप्रथम होयले (Hoyle) ने 1963 में वल्गी चालन (Saltatory conduction) द्वारा समझाया था। मज्जा आच्छद (myelin sheath) लिपिड की बनी एक झिल्ली होती है जिसमें उच्च विद्युत प्रतिरोधकता (high electric resistance) पाई जाती है जिससे यह एक प्रभावशाली अवरोधक (insulator) की तरह कार्य करती है। इस आच्छद की उपस्थिति से, विद्युत उत्तेजनशील ऐक्सॉन की कला का बाह्य वातावरण से सम्पर्क मात्र रेवियर की पर्व संधियों (nodes or Ranvier) पर सीमित हो जाता है। इस प्रकार मज्जा-युक्त तन्तुओं में सक्रियता एक पर्व-सन्धि से दूसरी पर्व-संधि तक नृत्य करती हुई या कूदती हुई (dancing or jumping) आगे बढ़ती है जबकि यही मज्जा-रहित तन्तुओं में सतत् (continuous) तरंग की तरह प्रेषित होती है। आवेग का एक पर्व – सन्धि से दूसरी पर्व- संधि पर इस प्रकार का प्रेषण वल्गी चालन (saltatory action) कहलाता है। इस प्रकार के चालन में सोडियम आयन (Nat) के प्रवेश से उत्पन्न विध्रुवीय तरंग (depolarization wave) मात्र पर्व सन्धि ( node) भाग पर ही सीमित रहती है परन्तु सम्पूर्ण एवं (internode) की लम्बाई पर “स्थानीय परिपथ क्रिया” (local circuit action) के कारण विध्रुवीकरण हो जाता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आवेग एक पर्व सन्धि से दूसरे पर्व सन्धि तक कूदती हुई प्रेषित होती है।

मज्जा-आच्छद तंत्रिका आवेग की गति को तीव्र करता है तथा संलग्न तन्तुओं में आवेग क्षय (impulse loss) को रोकता है। ऐसा माना जाता है कि रेनिवयर पर्व सन्धि (node of Ranvir) पर स्थित झिल्ली 500 गुणा अधिक पारगम्य होती है। किसी भी मज्जा युक्त तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचारण मज्जा-रहित एक्सॉन में, तन्तु का व्यास अधिक होने पर आन्तरिक प्रतिरोधकता (internal resistance) कम हो जाती है जिससे प्रेषण वेग (conduction velocity) अधिक होती है। प्रेषण की

चित्र 5.9 : उच्छलन या वल्गीचालन

यह सबसे अधिक गति अधिकतम व्यास (thickness) वाले तंत्रिका तनतु में देखी जाती है। मज्जा वृत तन्तुओं में आवेग प्रेषण की गति तंत्रिका तन्तु के व्यास के सीधे समानुपाती होती है क्योंकि पर्व-संधियों के मध्य की दूरी तंत्रिका तन्तु के व्यास के समानुपाती होती है। इनमें प्रेषण की गति (मीटर/सेकण्ड ) तन्तु के व्यास में, के लगभग 6 गुणा अधिक होती है। इस प्रकार के प्रेषण से न केवल प्रेषण वेग ही बढ़ता है बल्कि सामान्य स्थिति को पुनः प्राप्ति के लिए उपापचयी क्रियाओं (metabolic activities) की आवश्यकता में भी कम हो जाती है अर्थात् ऐसे चालन के समय ऐक्सॉन कला (axolemma) के केवल कुछ ही भाग का विध्रुवण (depolarization) होगा जिसके कारण आयनों के विनिमय हेतु कम ऊर्जा की आवश्कयता होती है।