(development of monocot embryo in hindi) एकबीजपत्री भ्रूण का परिवर्धन : एकबीजपत्री पौधों में भ्रूण परिवर्धन के अन्तर्गत भ्रूण अक्ष के शीर्ष पर केवल एक बीजपत्र ही बनता है जबकि द्विबीजपत्री पौधों में दो बीजपत्र पाए जाते है। अंगीय संगठनात्मक इस मूलभूत असमानता के कारण दोनों समूहों के भ्रूणों को आसानी से विभेदित किया जा सकता है। हालाँकि आवृतबीजी पौधों के इन दोनों प्रमुख समूहों के बीजों में संरचनात्मक भिन्नता पायी जाती है , फिर भी इन दोनों में , अर्थात एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री पौधों में बीजों का आरम्भिक विकास लगभग समान ही होता है। बीजपत्र के विभेदन से पहले सामान्यतया गोलाकार भ्रूण अवस्था तक दोनों प्रकार के भ्रूण समान रूप से विकसित होते है। यद्यपि एकबीजपत्रिता केवल एकबीजपत्री पौधों के भ्रूण में ही दिखाई देती है , फिर भी कुछ द्विबीजपत्री पौधों में उदाहरणार्थ – रेननकुलस फिकेरिया और एपीएसी कुल के सदस्यों की कुछ प्रजातियों में भी केवल एक ही बीजपत्र पाया जाता है।
एकबीजपत्री भ्रूण का परिवर्धन (development of monocot embryo in hindi) सैजीटेरिया सेजीटीफोलिया (sagittaria sagittifolia)
एकबीजपत्री भ्रूण का अध्ययन करने हेतु प्रारूपिक उदाहरणों के तौर पर यहाँ सैजीटेरिया सेजीटिफोलिया (एलीस्मेसी) और पोआ एनुआ (पोएसी) में भ्रूण परिवर्धन का वर्णन दिया जा रहा है।
इस पादप में भ्रूण विकास की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है –
1. यहाँ सर्वप्रथम युग्मनज का अनुप्रस्थ विभाजन होता है और दो सन्तति कोशिकाओं क्रमशः नीचे वाली , आधारीय कोशिका और ऊपर वाली शीर्षस्थ कोशिका वाला द्विकोशिकीय प्राकभ्रूण बनता है।
2. आधारीय कोशिका फिर से आगे विभाजित नहीं होती , यह आकृति और साइज़ में फूलकर थैलीनुमा पुटिका अथवा चुषकांग के समान संरचना में विकसित हो जाती है , इसके साथ ही यह निलम्बक का कार्य भी करती है।
3. ऊपरी अथवा शीर्षस्थ कोशिका अनुप्रस्थ रूप से विभाजित होती है जिससे दो सन्तति कोशिकाएँ बनती है। अब प्राकभ्रूण में कुल तीन कोशिकाएँ इस अवस्था में एक पंक्ति में व्यवस्थित पायी जाती है।
4. अब शीर्षस्थ कोशिका में दो लम्बवत विभाजन एक दुसरे के समकोण पर होते है , परिणामस्वरूप 4 कोशिकाओं के समूह चतुर्थांश का निर्माण होता है।
5. चतुर्थांश में अनुप्रस्थ विभाजन होता है और आठ कोशिकीय संरचना अष्टांशक का निर्माण होता है।
6. तीन कोशिकीय प्राकभ्रूण की बीच वाली कोशिका में भी अनुप्रस्थ विभाजन होता है और दो सन्तति कोशिकाएँ बनती है। आधारीय थैलीनुमा कोशिका की तरफ स्थित सन्तति कोशिका के विभाजन से एक सूक्ष्म निलम्बक , मूलांकुर , मूलगोप और बीजपत्राधार विकसित होते है।
7. अष्टांशक की तरफ व्यवस्थित ऊपर वाली सन्तति कोशिका में अनेक विभाजनों के पश्चात् कोशिकाओं का एक समूह बन जाता है। इसकी वृद्धि पाशर्व दिशा की तरफ अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होती।
8. भ्रूण परिवर्धन की उत्तरवर्ती अवस्था में अष्टांशक परिनत विभाजन द्वारा विभाजित होकर बाह्यत्वचाजन का बाहरी सतह पर विकास करता है और भीतरी कोशिकाएँ बारम्बार विभिन्न तलों में विभाजित होकर एक अग्रस्थ बीजपत्र बनाती है।
बारम्बार विभिन्न तलों में विभाजित होकर एक अग्रस्थ बीजपत्र बनाती है।
पोएसी कुल के सदस्यों में भ्रूण विकास के अंतर्गत स्कुटेलम , प्राकुरंचोल और मूलांकुर चोल आदि संरचनाओं के निर्माण के कारण भ्रूण परिवर्धन की प्रक्रिया में जटिलता आ जाती है। पोआ के भ्रूण विकास के प्रमुख चरण निम्नलिखित है –
1. युग्मनज में प्रथम विभाजन अनुप्रस्थ होता है जिससे अन्तस्थ कोशिका और आधारी कोशिका बनती है।
2. अंतस्थ कोशिका में अनुदैधर्य विभाजन और आधारी कोशिका में अनुप्रस्थ विभाजन (m और ci) द्वारा चार कोशिकीय प्राकभ्रूण बनता है।
3. अन्तस्थ कोशिकाओं में पहले के समकोण पर एक तरफ अनुदैधर्य विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप चतुर्थांश का निर्माण होता है।
4. इस चतुर्थांश में अनुप्रस्थ विभाजन होता है जिससे चार चार कोशिकाओं के दो सोपान (l और l’) बनते है।
5. इस अवस्था में आधारी कोशिका से व्युत्पन्न कोशिकाएं (ci और m) भी विभाजित होती है। ci के अनुप्रस्थ विभाजन से n और n’ बनती है। अब m और n कोशिकाओं में अनुदैधर्य विभाजन होता है और n’ कोशिका अनुप्रस्थ विभाजित (o और p) होती है।
6. अगली प्रावस्थाओं में धीरे धीरे अंग विभेदित होने प्रारंभ हो जाते है।
7. (l और l’) सोपान से स्कूटेलम और प्राकुरचोल का एक भाग बनता है और प्रांकुर चोल का शेष भाग m कोशिका से बनता है। इसके अलावा यह कोशिका प्ररोह और मूल शीर्ष का वल्कुटजन और रभंजन भी बनाती है।
8. मूलगोप और मूलांकुर चोल का विकास n कोशिका से होता है और n’ की सन्तति कोशिकाएँ (o और p) निलम्बक का निर्माण करती है।
उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि अधिकांशत: स्वपोषी आवृतबीजी पौधों में परिपक्व भ्रूण प्रांकुर , मूलांकुर और बीजपत्र में विभेदित होता है। कुछ प्राश्रयी और मृतोपजीवी उदाहरणों में भ्रूण अपहासित होता है और अलविकसित होने के कारण इनमें यह विभेदन नहीं पाया जाता है। लेकिन स्वपोषी एकबीजपत्री कुल आर्किडेसी में भी अल्पविकसित भ्रूण पाया जाता हैं।
निम्नलिखित संरचनाओं और ऊतकों का विकासशील भ्रूण के पोषण में उल्लेखनीय योगदान रहता है –
1. भ्रूण पोष (endosperm) : यह भ्रूण के पोषण का प्रमुख स्रोत है। भ्रूणपोष का परिवर्धन ही भ्रूण के पोषण के लिए होता है , क्योंकि इसका अन्य कोई पृथक कार्य नहीं होता। वस्तुतः भ्रूणपोष बीजाण्ड के विभिन्न भागों से , पहले भोज्य पदार्थो का अवशोषण करता है , इसके बाद इन भोज्य पदार्थो की आपूर्ति भ्रूण में होती है। भ्रूण निर्माण की प्रारंभिक अवस्थाओं में ही निलम्बक द्वारा भ्रूण को भ्रूणपोष में गहराई तक धकेल दिया जाता है , जहाँ भ्रूण को आवश्यक और उपयुक्त भोज्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है। भ्रूणपोष में अनेक पोषक और वृद्धिकारी तत्व पाए जाते है। नारियल के द्रवीय भ्रूणपोष अथवा नारियल के दूध में अनेक अकार्बनिक पदार्थ , अमीनो अम्ल , शर्कराए और वृद्धि हार्मोन्स उपस्थित होते है। नारियल दूध के इस पोषक गुण के कारण ही इसे प्रयोगशालाओं में संवर्धन माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। भ्रूणपोष में उपस्थित वृद्धिकारी पदार्थ , कोशिका विभाजन को प्रेरित करने में सक्षम होते है। मक्का का अपरिपक्व भ्रूणपोष कार्बोहाइड्रेटस , प्रोटीन और अमीनो अम्लों का प्रमुख स्रोत है। भ्रूणपोष द्वारा संचित पदार्थ एन्जाइम क्रिया द्वारा सुगमता से भ्रूण को उपलब्ध होते है।
2. निभागीयपोष (chalazosperm) : अनेक पौधों में बीज के विकास के दौरान बीजाण्डकाय विघटित हो जाता है और पोषण हेतु प्रयुक्त कर लिया जाता है। लेकिन कुछ पौधों जैसे साइनेस्ट्रम में भ्रूणकोष के निभागीय सिरे पर बीजाण्डकाय की कुछ कोशिकाएँ बची रहती है जो कि तेजी से विभाजित होकर एक पोषक ऊतक बना लेती है , इनको निभागीयपोष कहते है। निभागीयपोष की कोशिकाओं में स्टार्च और वसा की बहुलता होती है और ये भी परिवर्धनशील भ्रूण को पोषण प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।
3. परिभ्रूणपोष (perisperm) : भ्रूणपोष के चारों तरफ उपस्थित बीजाण्डकाय ऊतक को परिभ्रूणपोष कहते है। ये बीजांडकायी ऊतक भ्रूण विकास के दौरान बचे रह जाते है। अत: अनेक पौधों के बीजों में भ्रूण के चारों तरफ उपस्थित बीजाण्डकाय ऊतकों की यह परत ही परिभ्रूणपोष कहलाती है। सामान्यतया बीज में यह भ्रूण और बीजचोल के मध्य पाया जाता है और यह बीज के अंकुरण के दौरान भ्रूण का पोषण करता है। अनेक कुलों में सदस्यों जैसे – एमेरेन्थेसी , कोनेसी , केपेरिडेसी , जिंजीबरेसी और पाइपेरेसी के सदस्यों के बीजों में परिभ्रूणपोष सुस्पष्ट और विकसित होता है। यहाँ तक कि कालीमिर्च (पाइपर नाइग्रम) में तो उपस्थित परिभ्रूणपोष , भ्रूणपोष से भी अधिक मांसल होता है।
अधिकांश आवृतबीजी पौधों में निलम्बक का प्रमुख कार्य , पोषक ऊतक अथवा भ्रूणपोष में भ्रूण को गहराई तक धकेलने का होता है परन्तु अनेक पौधों में ऐसा देखा गया है कि निलम्बक कोशिकाएँ आकृति में वृद्धि करके प्रमुख चूषकांगी अतिवृद्धियाँ बनाती है , जो कि भ्रूणपोष की कोशिकाओं में मध्य से से होती हुई बीजाण्डकाय तक पहुँच जाती है। लेग्यूमिनोसी कुल के सदस्यों में हालाँकि निलम्बक जैसी कोई संरचना नहीं पायी जाती फिर भी यहाँ प्राकभ्रूण अनेकानेक विभाजन के पश्चात् एक गोलाकार कोशिका समूह बनाता है। मटर और चना के निलम्बक में दो जोड़ी अर्थात चार कोशिकाएँ क्रॉसित रूप से व्यवस्थित होती है। इनमें से बीजाण्डद्वार की तरफ वाली दो कोशिकाएँ , बहुत अधिक लम्बी हो जाती है लेकिन इनके ऊपर वाली कोशिकाएँ लगभग गोलाकार होती है। निलम्बक की ये चारों कोशिकाएँ बहुकेन्द्रकीय होती है।
कुछ पौधों जैसे साइटिसस में निलम्बक कोशिकाएँ अत्यधिक बड़ी हो जाती है और अंगूर के गुच्छे के समान एक गोलाकार समूह में व्यवस्थित हो जाती है। इसी प्रकार रुबियेसी कुल के अनेक सदस्यों में निलम्बक चूषकांग मिलते है।
एक अन्य उदाहरण एस्पेरुला में शुरू में निलम्बक की कोशिकाएँ एक पंक्ति में व्यवस्थित रहती है परन्तु आगे चलकर इन कोशिकाओं से फूली हुई थैली अथवा पुटिका के समान अतिवृद्धियाँ उत्पन्न होती है जो भ्रूणपोष ऊतक में धँसी हुई रहती है। एक तथा पादप मायारियोफिल्लम में उपस्थित निलम्बक चूषकांगों की संरचना और आकृति सहायक कोशिकाओं के समान होती है। निलम्बक कोशिका लम्बवत रूप से विभाजित होकर दो सन्तति कोशिकायें बनाती है जो आकार में वृद्धि करके भ्रूणपोष के बीजाण्डद्वारीय सिरे को घेर लेती है।
5. कूट अथवा आभासी भ्रूणकोष (pseudo embryo sac) :
पोडोस्टिमोनेसी (podostemaceae) कुल के सदस्यों में भ्रूणपोष निर्माण , प्रारंभिक अवस्थाओं में ही निरुद्ध हो जाता है और इसकी बजाय बीजाण्डकाय में एक बड़ी गुहिका का निर्माण होता है जिसमें असंख्य मुक्त केन्द्रक और सघन कोशिकाद्रव्य उपस्थित होता है। इस संरचना को आभासी भ्रूणकोष कहते है और यह भ्रूणपोष की अनुपस्थिति में एक वैकल्पिक अथवा स्थानापन्न व्यवस्था होती है। कूट भ्रूणकोष का निर्माण गुरुबीजाणु मातृ कोशिका के ठीक निचे उपस्थित बीजाण्डकायी कोशिकाओं के विघटन के कारण होता है। सामान्यतया इसका विकास भ्रूण की चतुर्थांश अवस्था के समय होता है।
प्रश्न 1 : पाइपर नाइग्रम में उपस्थित होता है –
(अ) परिभ्रूणपोष
(ब) भ्रूणकोष
(स) निभागीय कोष
(द) कूटभ्रूणकोष
उत्तर : (अ) परिभ्रूणपोष
प्रश्न 2 : भ्रूण का बीजपत्रों से ऊपर का भाग कहलाता है –
(अ) हाइपोकोटाइल
(ब) एपीकोटाइल
(स) प्रांकुर
(द) मुलांकुर
उत्तर : (ब) एपीकोटाइल
प्रश्न 3 : रेननकुलेसी कुल में निम्न में से किस प्रकार का भ्रूण पाया जता है –
(अ) सोलेनाड प्रकार
(ब) एस्ट्रेड प्रकार
(स) क्रुसीकर प्रकार
(द) पाइपराइड प्रकार
उत्तर : (स) क्रुसीकर प्रकार
प्रश्न 4 : पेरीस्पर्म का निर्माण पाया जाता है –
(अ) बीजाण्ड से
(ब) अध्यावरण से
(स) भ्रूणपोष से
(द) बीजाण्डकाय से
उत्तर : (द) बीजाण्डकाय से
प्रश्न 5 : आभासी भ्रूणकोष पाया जाता है –
(अ) पोड़ोस्टीमोन में
(ब) ट्रापा में
(स) जुसिया
(द) पेपेवर
उत्तर : (अ) पोड़ोस्टीमोन में