Cytoplasmic Inheritance and Nuclear Inheritance in hindi , कोशिका द्रव्यी वंशागति एवं केन्द्रकीय वंशागति

कोशिका द्रव्यी वंशागति एवं केन्द्रकीय वंशागति Cytoplasmic Inheritance and Nuclear Inheritance in hindi ?

अतिरिक्त केन्द्रकीय जीनोम (Extranuclear Genome )

वंशागति के गुणसूत्र सिद्धान्त के अनुसार मेन्डेलियन कारक अथवा जीन गुणसूत्रों पर अवस्थित होते हैं। मेण्डल द्वारा वंशागति सम्बन्धी अनेक प्रयोगों के द्वारा इसे प्रमाणित किया गया है। इसके अनुसार क्योंकि एक सजीव में बनने वाले नर तथा मादा युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या समान होती है, अतः उनके व्युत्क्रम क्रास (Reciprocal | cross, A × B एवं  ুA × B ‘ ) के परिणाम भी एक जैसे ही होते हैं। इस प्रकार गुणसूत्रों द्वारा संचरित वंशागति को केन्द्रकीय या गुणसूत्रीय वंशागति (Nuclear or Chromosomal Inheritance) कहते हैं ।

लेकिन बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययन के परिणामस्वरूप यह ज्ञात हुआ कि कोशिका द्रव्य में भी आनुवांशिक पदार्थ या DNA पाया जाता है। इस तथ्य से हम भली-भाँति परिचित हैं कि गुणसूत्रों में उपस्थित DNA एकमात्र ऐसा आनुवांशिक पदार्थ होता है, जिसमें अधिकांश आनुवांशिक सूचनाएँ संग्रहीत होती हैं, अत: इसे अनुवांशिक सूचनाओं का भण्डार गृह (Store House) भी कहा जा सकता है। केन्द्रक के बाहर पाये जाने वाले विभिन्न कोशिका उपांगों जैसे- क्लोरोप्लास्ट एवं माइटोकोन्ड्रिया में DNA की उपस्थिति में यह स्वयंमेव सिद्ध हो जाता है कि कोशिका द्रव्य में भी अनुवांशिक सूचनाएँ मौजूद होती हैं। इन अनुवांशिक सूचनाओं या इनके द्वारा अभिव्यक्त लक्षणों की वंशागति को अतिरिक्त केन्द्रकीय वंशागति या कोशिका द्रव्यीय वंशागति (Cytoplasmic Inheritance) कहते हैं। साथ ही केन्द्रक के बाहर कोशिका द्रव्य में कुछ विशेष कोशिका उपांगों में उपस्थित DNA सूत्र को अतिरिक्त केन्द्रकीय जीनोम (Extra nuclear Genome) कहा जाता है ।

इस जीनोम के द्वारा अभिव्यक्ति लक्षणों का कोशिकाद्रव्यीय नियंत्रण या तो पूर्ण रूप से स्वायत्त हो सकता है अथवा कभी-कभी इनके लक्षण आंशिक रूप से गुणसूत्रों पर उपस्थित कुछ जीनों के द्वारा नियंत्रित होते हैं । उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि सजीवों के अनेक लक्षणों का संचालन केन्द्रकीय जीन्स (Nuclear Genes) के द्वारा न होकर कोशिका द्रव्य या उपांगों में उपस्थित जीनों के द्वारा होता है। सर्वप्रथम कार्ल कोरेन्स (Carl Correns 1908) ने मेण्डल के वंशागति सिद्धान्तों से हट कर ऐसी जीन्स के बारे में परिकल्पना प्रस्तुत की थी, जो केन्द्रकीय गुणसूत्रों पर स्थित न होकर कोशिका द्रव्य में पाई जाती हैं।

उपरोक्त विवरण से यह जानकारी उभर कर सामने आती है कि सजीवों में कुछ लक्षण ऐसे पाये जाते हैं, जिनका निर्धारण कोशिका द्रव्य DNA के द्वारा होता है क्योंकि युग्मनज (Zygote 2n) कोशिका के निर्माण में मातृक द्रव्य अधिक मात्रा में प्रस्तुत होता है एवं गुणसूत्र नर तथा मादा दोनों जनकों के द्वारा होते हैं, अत: कोशिका द्रव्य द्वारा नियंत्रित लक्षणों की वंशागति को मातृक वंशागति (Maternal inheritance) भी कहते हैं ।

कोशिका द्रव्यीय वंशागति अथवा अतिरिक्त केन्द्रकीय जीनोम (Extra nuclear Genome ) द्वारा संचरित लक्षणों की आगामी पीढ़ियों में वंशागति (Inheritance), गुणसूत्रीय या केन्द्रकीय वंशागति की तुलना में कुछ अलग प्रकार के संयोजन (Combination) परिलक्षित करती है । अत: दोनों प्रकार की वंशागतियों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत हैं-

कोशिका द्रव्यीय वंशागति एवं केन्द्रकीय वंशागति का तुलनात्मक विवरण (Comparative account of Cytoplasmic Inheritance and Nuclear Inheritance)

कोशिका द्रव्यीय वंशागति (Cytoplasmic Inheritance) केन्द्रकीय वंशागति (Nuclear Inheritance)
1.       इसमें एकल क्रास (Single Cross) एवं व्युत्क्रम क्रास (Reciprocal Cross ) दोनों के परिणाम अलग-अलग होते हैं।

2. यहाँ लक्षणों की वंशागति में मातृक कोशिका की सक्रिय भूमिका होती है।

3. कोशिकाद्रव्यीय जीनों का मानचित्रण (Gene mapping) नहीं किया जा सकता ।

4. मातृक कोशिका द्रव्य (Maternal Cytoplasm) का प्रभाव संतति पर स्पष्टतया परिलक्षित होता है ।

5. इसकी वंशागति इकाई को प्लाज्मा जीन (Plasma Gene) कहते हैं ।

यहाँ दोनों के परिणाम एक समान होते हैं।

 

 

मातृक कोशिका का कोई योगदान नहीं होता।

 

 

यहाँ जीन्स का मानचित्रण ( Mapping) हो सकता है।

संतति पर मातृक कोशिका द्रव्य का कोई भी प्रभाव नहीं होता ।

 

इसकी वंशागति इकाई जीन (Gene) होती है।

प्रसिद्ध कोशिकानुवांशिकी विज्ञानी हेमरलिंग (Hammerling) द्वारा एक समुद्री हरित शैवाल ऐसिटेबुलेरिया (Acetabularia) पर किये गये प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि सजीव कोशिका में उपस्थित केन्द्रक (Nucleus) इसके जीवन चक्र (Life Cycle) के संचालन हेतु अत्यावश्यक होता है। डार्लिंगटन (Darlington 1958) के अनुसार कोशिका द्रव्य में उपस्थित जीन्स या DNA खण्ड (Cytoplasmic Genes) प्राय: केन्द्रकीय जीन्स (Nuclear Genes) के द्वारा थोड़ी बहुत या आंशिक रूप से नियंत्रित होती है।

कोशिकाद्रव्यीय वंशागति की इकाई (Unit of Cytoplasmic Inheritance)—

बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक अर्थात् सन् 1950 से पूर्व वैज्ञानिकों की यह अवधारणा थी कि सजीवों में वंशागति की इकाइयाँ, जीन (Gene) होती हैं, जो कि केन्द्रक (Nucleus) में मौजूद गुणसूत्रों पर पाई जाती है लेकिन वंशागति की कुछ विशेष अवस्थाओं में कोशिका द्रव्य के महत्त्व का सर्वप्रथम अध्ययन सन् 1950 में सेनगा (Sanger) एवं उनके सहयोगियों के द्वारा किया गया। सेन्गर ने एककोशीय हरित शैवाल क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas ) में कुछ विशिष्ट लक्षणों की वंशागति के बारे में अपने प्रयोगों के माध्यमसे जानकारी | प्रदान की और बताया कि अनेक लक्षणों की वंशागति में गुणसूत्री जीन्स के अतिरिक्त कोशिका द्रव्य में उपस्थित DNA खण्डों या जीन्स का सक्रिय योगदान होता है । अत: इस प्रकार से सजीव कोशिका द्रव्य एवं उपांगों में उपस्थित अनुवांशिक पदार्थ (प्राय: DNA ) जो स्वत: प्रतिकृतिकरण (Self replication) करता है, उसे प्लाज्मोन (Plasmon) कहते हैं एवं कोशिका द्रव्य/उपांगों में उपस्थित वंशागति की उपरोक्त इकाइयों को प्लाज्मा जीन्स या साइटोजीन्स (Plasmagene / Cytogenes) कहा जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में पादप कोशिकाओं के अन्तर्गत कोशिका द्रव्यीय वंशागति का अध्ययन क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) एवं माइटोकोन्ड्रिया (Mitochondria) में उपस्थित DNA अथवा जीन्स द्वारा इनके विशिष्ट लक्षणों की वंशागति को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। प्राणि कोशिकाओं में कोशिका द्रव्यीय वंशागति सम्बन्धी अध्ययन फाइलम प्रोटोजोआ में पेरामीसियम के कप्पा कणों एवं फाइलम मोलस्का में घोंघा प्रजाति लिम्नियाके कवच कुण्डलन की वंशागति के बारे में किये गये हैं। यहाँ पौधों में क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकोन्ड्रिया के विशेष लक्षणों की कोशिका द्रव्यीय वंशागति के उदाहरणों की चर्चा की गई है।

हरितलवक में अनुवांशिक पदार्थ (Genetic material in Choloroplast——

उच्चवर्गीय पौधों एवं अनेक शैवाल प्रजातियों में भी DNA अणु, अनुवांशिक पदार्थ के रूप में पाये जाते हैं । सर्वप्रथम रुथ सेगर (Ruth Sanger 1954) द्वारा क्लेमाइडोमोनास नामक एक कोशीय हरित शैवाल में विशिष्ट स्ट्रेप्टोमाइसिन प्रतिरोधी जीन का अध्ययन किया गया। तत्पश्चात् रिस एवं प्लान्ट (Ris and Plant 1962) के द्वारा किये गये अध्ययन से उपरोक्त विशेष जीन की उपस्थिति हरित लवक (Chloroplast) में भी अंकित की गई । किस्ले, स्विस्ट एवं बोर्ड (Kisley, Swist and Bogord 1965), गनिंग (1965) एवं विशालपुत्रा (Bisalputra 1969) द्वारा इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शी के द्वारा हरित लवक संरचना का अध्ययन करने पर यह ज्ञात हुआ कि संरचनात्मक रूप से हरित लवक DNA (Chloroplast DNA), जीवाणु DNA (Bacterial DNA) से अत्यधिक समानता प्रदर्शित करता है । क्लोरोप्लास्ट DNA न केवल इसके अर्थात् लवक के विभाजन के लिये उत्तरदायी हैं, अपितु यह कोशिकाद्रव्यीय वंशागति में भी सक्रिय योगदान देता है ( गिबोर 1962 ) ।

क्लोरोप्लास्ट का DNA अणु वर्तुलाकार (Circular) एवं लगभग 40 लम्बाई वाला होता है (चित्र 6.1)। उच्चवर्गीय पौधों एवं अधिकांश हरित शैवाल प्रजातियों में केवल एक DNA अणु ही लवक जीनोम (Genome ) का गठन करता है परन्तु वर्ग फियोफाइसी (भूरी शैवाल) की अधिकांश प्रजातियों के लवक जीनों में एक से अधिक वर्तुलाकार DNA अणु पाये जाते हैं। प्रत्येक लवक (Plasid) के 5-6 विशेष स्थानों में 10 से लेकर 100 तक Cp DNA (Chloroplast DNA) खण्ड व्यवस्थित हो सकते हैं। सामान्यतया एक क्लोरोप्लास्ट जीनोम का परिमाप (Size), 85kb (kilobase) से 2000 kb तक होता है, लेकिन उच्चवर्गीय पौधों में लवक जीनोम का परिमाप तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा अर्थात् केवल 120 से 160kb तक का ही होता है।

हरितलवक DNA के कार्य (Functions of Chloroplast DNA)

सामान्यतया क्लोरोप्लास्ट के विभिन्न लक्षणों की अभिव्यक्ति कोशिका द्रव्यी एवं केन्द्रकीय DNA के द्वारा होती है। केन्द्रकीय जीन एवं – RNA, इस हरितलवक DNA (Cp-DNA) के अनुलेखन एवं प्रतिकृतिकरण (Transcription Replication) के लिये आवश्यक एन्जाइम उपलब्ध करवाने का कार्य करते हैं।

हरित लवक के एक जीनोम में लगभग 126 प्रकार के प्रोटीनों के संश्लेषण हेतु अनुवांशिक सूचनाएँ निहित होती हैं। इसमें लगभग 25 प्रकार के जीन पाये जाते हैं, जो प्रोटीन्स के लिये कूट (Code) का गठन करते हैं। यही

नहीं हरित लवकों (Chloroplasts) की स्वायत्तता (Autonomy) को परिलक्षित करने के लिये इसमें 1-RNA एवं RNA जीनों के पूरे सेट (Set) पाये जाते हैं । इसके अतिरिक्त हरित लवक में मौजूद राइबोसोम्स एक विशेष प्रकार के प्रोटीन संश्लेषण तंत्र से सम्बद्ध होते हैं जो m-RNA की सहायता से CO2 की उपस्थिति में लवक अमीनो अम्ल द्वारा प्रोटीन (पोलीपेप्टाइड शृंखला) का संश्लेषण करने में समर्थ होते हैं। (ब्रावरमेन एवं एसेन्स्डट 1968) I

सूत्रकणिका या माइटोकोन्ड्रियल DNA (Mitochondrial DNA)

यूकेरियोटिक जीवधारियों की कोशिकाओं में श्वसन कार्य हेतु माइटोकोन्ड्रिया पाये जाते हैं। इनमें एक अथवा एक से अधिक डी एन ए अणु विद्यमान होते हैं जो द्विरज्जुकी, वर्तुलाकार (Circular) एवं अत्यधिक कुण्डलित (Coiled) होते हैं (चित्र 6.2), इनकी लम्बाई लगभग 5 होती है एवं ये माइटोकोन्ड्रिया का DNA भी प्रतिकृतिकरण (Replication) करके अपनी अनेक प्रतियाँ तैयार करने में सक्षम होता है लेकिन कुछ विशेष लक्षणों के परिप्रेक्ष्य में यह केन्द्रकीय DNA (Nuclear DNA) से भिन्नता परिलक्षित करता है, जो कि निम्न प्रकार से हैं-

  1. बेक्टीरियल डी. एन. ए. की भाँति ही माइटोकोन्ड्रिया का डी. एन. ए. भी वर्तुलाकार होता है।
  2. गुआनीन एवं साइटोसीन ( G एवं C) की मात्रा एवं घनत्व भी माइटोकोन्ड्रिया के … में अधिक है ।
  3. माइटोकोन्ड्रिया के DNA का अणुभार 9- 12 × 10° होता है।
  4. माइटोकोन्ड्रिया का DNA उच्चताप पर ही विकृत (Denature) हो सकता है, क्योंकि इसका गलनांक (Melting Point) अधिक होता है।
  5. पूर्ववत सामान्य अवस्था (Renaturation) प्राप्त करने की इसमें अभूतपूर्व क्षमता होती

माइटोकोन्ड्रिया डी.एन.ए. के कार्य (Funtions of Mitochondrial DNA)—

माइटोकोन्ड्रिया में पाये जाने वाले DNA का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह भी RNA के द्वारा केन्द्रका गुणसूत्र की तरह ही संकेत या सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है, अत: यह कहा जा सकता है। कि इसकी कार्यप्रणाली एक क्रोमोसोम के समान होती है। इसके अतिरिक्त केन्द्रकीय RNA (Nuclear RNA) के समान ही माइटोकोन्ड्रिया में RNA का निर्माण होता है। कोशिका विभाजन चक्र (Cell Cycle) में G, अवस्था (G, Phase) एवं साइटोकाइनेसिस के बीच माइटोकोन्ड्रियल DNA का संश्लेषण होता है। केन्द्रक के समान ही माइटोकोन्ड्रिया में भी डीएनए पोलीमेरेज उपस्थित होता है परन्तु यह केन्द्रकीय डी.एन.ए. पोलीमेरेज की तुलना में अलग प्रकार का होता है, हालांकि यह DNA संश्लेषण (DNA synthesis) में भाग लेता है।

केन्द्रकीय DNA (Nuclear DNA) के समान ही माइटोकोन्ड्रिया का DNA भी m-RNA, RNA व 1- RNA एवं प्रोटीन का संश्लेषण करने में सक्षम होता है लेकिन इसकी मात्रा कम होने के कारण इसमें सभी प्रकार के प्रोटीन एवं एन्जाइमों का संश्लेषण करने के पर्याप्त अवसर नहीं होते। फिर भी यह तो माना जा सकता है कि माइटोकोन्ड्रिया का DNA अपनी संरचनात्मक प्रोटीन का निर्माण तो कर ही लेता है। हालांकि अन्य दूसरे एन्जाइम्स एवं मुख्य रूप से नोन होम प्रोटीन साइटोक्रोम (Cytochrome) का संश्लेषण केन्द्रकीय DNA के द्वारा नियंत्रित होता है।