(Cumin in hindi) जीरा या सफ़ेद जीरा :
वानस्पतिक नाम : Cuminum cyminum
कुल : apiaceae या Umbelliferae
उपयोगी भाग : Cremacarp फल
उत्पत्ति तथा उत्पादक देश :
- प्राचीन स्रोतों के अनुसार जीरे की उत्पत्ति भू-मध्य सागरीय क्षेत्र के लेवेन्ट प्रदेश में हुई है।
- इसे प्रमुखत: भारत , चीन , इरान , मोरक्को , इंडोनेशिया , तुर्की , रूस तथा जापान में बोया जाता है।
- ईरान में जीरे की मात्रा सर्वाधिक रूप से उत्पन्न की जाती है तथा ईरान जीरे का सबसे बड़ा निर्यातक है।
- भारत में इसे व्यवसायिक स्तर पर उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में बोया जाता है।
पादप की बाह्य आकारिकी
- जीरे का पादप सामान्यतया एक वर्षीय शाखीय , अशाखित , तने युक्त होता है।
- पत्तियाँ छोटे छोटे खंडो में विभाजित होती है अर्थात द्विसंयुक्त प्रकार की पायी जाती है।
- पुष्पक्रम संयुक्त छत्रक प्रकार का होता है जिस पर छोटे सफ़ेद रंग के पुष्प पाए जाते है तथा पुष्प कलिकाओ का रंग बैंगनी होता है।
- फल परिपक्व क्रीमोकार्प प्रकार का होता है जो दो भागो में विभाजित किया जा सकता है तथा प्रत्येक भाग पेरीकार्प के नाम से पाया जाता है।
- जीरे के फल पर पाँच प्राथमिक तथा चार द्वितीयक धारिया पायी जाती है।
- जीरे के फल में 4% सगंध तेल पाया जाता है जिसे cumin aldehyde के नाम से जाना जाता है इसके अतिरिक्त 10% हल्के रंग का स्थिर तेल पाया जाता है।
- जीरे की खेती प्रमुखत: शीत ऋतू में की जाती है अर्थात यह रबी प्रकार की फसल है।
जीरे का आर्थिक महत्व
- जीरे के फल को सब्जियों में तड़का लगाने के लिए तथा सब्जियों को सुगन्धित करने हेतु उपयोग किया जाता है।
- भुने हुए जीरे को दही -बडो के निर्माण में , जलजीरा के निर्माण तथा आयुर्वेदिक चूर्ण के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
- जीरा उद्दीपक , वातहर तथा आमाशय के विकारो को दूर करने वाला होता है अत: इसे अजीर्ण तथा अतिसार में दवा के रूप में उपयोग किया जाता है।
- जीरे के फल से प्राप्त सुगंध तेल की सहायता से विभिन्न पेय पदार्थो को तथा अन्य सौन्दर्य प्रसादनो को सुगन्धित करने हेतु उपयोग किया जाता है।