crassulacean acid metabolism in hindi क्रसुलेसियन अम्ल उपापचय (सी. ए. एम.) क्या है

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क्रेसुलेसियन अम्ल उपापचय (सी. ए. एम.) (Crassulacean-acid metabolism)

कुछ पादप विशेषकर मांसल (succulents) पादप जो अर्ध शुष्क परिस्थितियो में पाये जाते हैं वातावरणीय CO2 का स्थिरीकरण अन्धकार में करते हैं। यह पादप दो प्रकार से कार्बनिक अम्ल निर्माण दर्शाते हैं अर्थात रात्रि में यह कार्बनिक अम्ल का संचय करते हैं तथा दिन में इन्हें मुक्त कर देते हैं। क्योंकि यह क्रिया सर्वप्रथम क्रेसूलेसी कुल के पादपों में उदाहरण- ब्रायोफिलम (Bryophyllum), कैलेन्को (Kalanchole), सिडियम (Sedium), केलीसिनम (Calycimum) इत्यादि देखी गयी थी इसलिए इसे क्रेसूलेसियन अम्ल उपापचय (Crassulacean acid metabolism, CAM) कहते हैं। इस प्रकार का उपापचय अन्य पादपों जैसे कैक्टस उदाहरण- आपेन्शिया (Opuntia), आर्किड (Orchid) एवं अनानास कुल में भी पाया जाता है।

CAMचक्रे दो भागों में सम्पन्न होते हैं।

(i) रात्रि में अम्लीकरण

(ii) दिन में विअम्लीकरण

(i) अम्लीकरण (Acidification)

अन्धकार में संचित कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोलिसिस क्रिया से फास्फोइनोल पायरूविक अम्ल में रूपान्तरित होते हैं। पादपों में रन्ध्र (stomata) रात्रि में भी खुले रहते हैं जिससे कि रात्रि में CO2  का पर्ण में विसरण (diffusion) स्वतन्त्ररूप से होता रहता है। अब PEP, का कार्बोक्सीलिकरण PEP कार्बोसीलेज (PEP carboxylase) विकर की उपस्थिति में होता है जिससे आक्जेलो एसिटिक अम्ल (oxaloacetic acid) बनता है।

फास्फोइनोल पायरूविक अम्ल + CO2 + H2O  आक्जेलो एसीटिक अम्ल + H3PO4

(Phosphoenol pyruvic acid)                      (Oxaloacetic acid)

मैलिक डीहाइड्रोजीनेज (malic dehydrogenase) विकर की उपस्थिति में आक्जेलोएसीटिक अम्ल (oxaloacetic ac) मैलिक अम्ल (malic acid) में परिवर्तित हो जाता है। इस अभिक्रिया में अपचयित NADP की आवश्यकता होती है ग्लाइकोलिसिस में उत्पन्न होता है।

ऑक्जेलोएसिटिक अम्ल (Oxaloacetic acid) + NADPH + H+ – मेलिक अम्ल (Malic acid) + NADPA कुछ स्थितियों में कार्बोहाइड्रेट का ग्लाइकोलिसिस क्रिया द्वारा पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid ) में विघटन होता है। पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid) CO2 ग्राही अणु की तरह कार्य करता है जिसका मैलिक एनजाइम (Malic enzyme) के उपस्थिति में मैलिक अम्ल में कार्बोक्सीलिकरण (carboxylation) होता है।

पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid) + CO2 + NADPH+H* → मैलिक अम्ल (Malic acid) + NADP+ रात्रि में अम्लीकरण (acidification) के कारण उत्पन्न मैलिक अम्ल रिक्तिका (vacuoles) में संचित हो जाते है।

(ii) विअम्लीकरण (Deacidification)

प्रकाश में मैलिक अम्ल (malic acid) का विकार्बोक्सीलिकरण होकर पायरूविक अम्ल (pyruvic acid) एवं CO2  गैस होती है। इस क्रिया को विअम्लीकरण (deacidification) कहते हैं। सामान्यतः यह क्रिया मैलिक एन्जाइम द्वारा सम्पन्न होती है परन्तु कुछ पादपों में यह PEP कार्बोक्सीकाइनेज विकर (PEP carboxykinase) द्वारा सम्पन्न होती है इस अभिक्रिया में NADP* का एक अणु अपचयित होता है।

मैलिक अम्ल (Malic acid) + NADP’ पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid) + NADPH+H’ + CO2 यह पायरूविक अम्ल क्रेब चक्र (Krebs cycle) द्वारा CO2  में आक्सीकृत हो सकता है। इसलिए CAM पथ गूदेदार पादपों के लिए महत्वपूर्ण पथ है जो कि इन पादपों को अत्यन्त शुष्क परिस्थितियों में प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सहायक होता है। जब रन्ध्र दिन के समय बन्द रहते हैं तथा वायुमंडल से CO2  नहीं मिल पाती।

CO2 स्थिरीकरण की अन्य विधियाँ (Other methods of CO2 fixation)

कुछ पादपों में CO2  स्थिरीकरण की अन्य विधियाँ जैसे C4  अथवा डाईकार्बोक्सिलिक अम्ल (Dicarboxylic acid, DCA चक्र एवं केसलेसीअन अम्ल उपापचय (Crassulacean acid metabolism) भी पायी जाती हैं। इन पादपों को C4  पादप अथवा CAM पादप कहते हैं।

C4  चक्र (C4  Cycle)

कोर्टशैक एवं हार्ट (Kortschak and Hartt, 1965) ने गन्ने की पत्ती को CO2  देने पर पाया कि प्रकाश संश्लेषण का प्रथम उत्पाद 3 कार्बन युक्त यौगिक न होकर 4 कार्बनयुक्त यौगिक (4 carbon compound) आक्जेलोऐसिटिक अम्ल (Oxaloacetic acid, OAA), मैलिक अम्ल (malic acid) अथवा एस्पार्टिक अम्ल (aspartic acid) होता है। गन्ने के अतिरिक्त बहुत से उष्ण कटिबंधीय पादप जैसे मक्का (maize), ज्वार, जई (Oat) बाजरा ( pearl millet) इत्यादि में भी यही उत्पाद बन हैं। सभी उपरोक्त पादप एकबीजपत्री हैं तथा C4  पादप (C4  plants) कहलाते हैं। द्विबीजपत्रियों में भी इस प्रकार के पादप पाये जाते हैं। उदाहरण- एमारेन्थस (Amarathus), चीनोपोडियम (Chenopodium), एट्रीप्लेक्स (Atriplex), यूफोरबिया (Euphorbia) इत्यादि। डाउटॉन (Dowton) ने इस प्रकार के 117 वंश बताये हैं। पादपों में 13 कुल ऐसे हैं जिनमें कि C4

पादप पाये जाते हैं (जिनमें से ग्रेमिनी, साइप्रेसी एकबीजपत्री है ) 11 वशों के पादपों में C3  एवं C4  दोनों प्रकार के पादप प्रजातियाँ पायी जाती है। उदाहरण- एट्रीप्लेक्स पेटूला (Arriplex patula C3), एट्रीप्लेक्स रोजिया (Atriplex rosea, C4 ) हैच एवं स्लैक (Hatch and Slack, 1966) ने बताया कि CO2 का स्थिरीकरण C4  पादपों में अधिक प्रभावी ढंग से होता है। यह पादप मुख्यतः मरूद्भिद (xerophytic) होते हैं तथा इनके संवहन बण्डलों के चारों ओर संकेन्द्री परतों में पर्णमध्योतक (mesophyll tissue) उपस्थित होता है। यह क्रेज शारीरी (Krantz anatomy, Kranz-Crown or Halo) कहलाती है। इनमें संवहन आच्छद (bundle sheath) की कोशिकाएँ बड़ी होती है जिनमें ग्रेना रहित हरित लवक पाये जाते हैं। इनमें हरित लवक में थायलेकाइड विसरित होते हैं परन्तु परिधि पर जालिकारूप में समूहीकृत पाये जाते हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में स्टार्च के पाये जाते हैं। पर्णमध्योतक की कोशिकाओं में हरित लवक छोटे परन्तु सुविकसित ग्रेना युक्त होते हैं। इन हरित लवकों में स्टार्च कण अनुपस्थित रहते हैं। पर्णमध्योतक एवं संवहन आच्छद की कोशिकाएँ जीवद्रव्य-तन्तुओं द्वारा आपस में जुड़ी रहती है।

डाउटॉन एवं त्रेगुने (Dowton and Tregune) ने क्रेज शारीरी एवं C4 पथ में सम्बन्ध स्थापित किया। तथा हैंच एवं स्लैक ने CO2 स्थिरीकरण की विधि एवं C4 पादपों में अपचयन की खोज की। इसे हैच-स्लैक पथ भी उन्हीं के नाम से दिया गया।

हैच- स्लेक पथ (C4 चक्र) Hatch – Slack pathway (C4 cycle)

C4 पादपों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं में उपस्थित फास्फोइनोल पायरूविक अम्ल (phosphoenol pyruvic acid, PEP), CO2 ग्रहण कर ओक्जेलो एसीटिक अम्ल (oxalo acetic acid, OAA) में परिवर्तित हो जाता है।

PEP + CO2 + H2O  PEP कार्बोक्सीलेज (PEP-Carboxylase) → OAA + H3PO4

OAA तुरन्त मैलिक अम्ल (malic acid) परिवर्तित हो जाता है। इसके लिए [H], NADPH2 के द्वारा दिया जाता है।

OAA + NADPH2 हाइड्रोजनेज (Dehydrogenase) मैलिक अम्ल (Malic acid)

मैलिक अम्ल (malic acid) संवहन आच्छद में स्थानांतरित हो जाता है। यहाँ इसका विकार्बोक्सीलिकरण (decarboxylation) होता है जिससे CO2 मुक्त होती है।

मैलिक अम्ल + NADP+ (Malic acid)

ड्रोहाइड्रोजनेज (Dehydrogenase) पायरूविक अम्ल + CO2 + NADPH2 (Pyruvic acid)

अब पायरूविक अम्ल मध्योतक में पुनः स्थानान्तरित हो जाता है जहां यह फिर से PeP में परिवर्तित होता है।

पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid) + ATP + iP फास्फोपाय रूवेट डाइकाइनेज Phosphopyruvate dikinase PEP +AMP+PP

कुछ पादपों में जैसे पेनिकम मैक्सीमम (Panicum maximum) में एस्पारटिक अम्ल पर्ण मध्योतक से संवहन आच्छाद मे स्थानान्तरित हो जाता है। यहाँ यह CO2 मुक्त करने के लिए मैलिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है। कुछ पादपों में CO2 प्रत्यक्ष ही एस्पारटिक अम्ल से मुक्त हो जाती है। जब संवहन आच्छद में CO2 की सांद्रता बढ़ जाती है तब RuBP सक्रिय होकर CO2 का अपचयन अथवा स्थिरीकरण C3 पथ द्वारा करता है। C4 पादपों में C3 पादपों से अधिक ATP की आवश्यकता होती है। अतिरिक्त ATP संवहन आच्छद के हरित लवकों द्वारा चक्रिक फास्फोरिलीकरण (cyclic phosphorylation) से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार C4 पादपों द्वारा अधिक प्रकाश की आवश्यकता को समझा जा सकता है। C4 पादपों में प्रथम स्थायी उत्पाद डाईकार्बोक्सलिक अम्ल (dicarboxylic acid) होता है इसलिए इसे DCA चक्र भी कहते हैं।

C4 चक्र का महत्व (Significance of C4 cycle)

(1) PEP कार्बोक्सीलेज एन्जाइम CO2 के प्रति सुग्राही होता है इसलिए यह उच्च ताप एवं निम्न- CO2 मे प्रकाश संश्लेषण में सक्षम होता है। यह श्वसन द्वारा मुक्त CO2 का भी उपयोग कर सकते हैं ।

(ii) C4 पादपों में संवहन आच्छद जायलम (xylem) के निकट होता है इसलिए इन पादपों में जल की कमी से उत्पन्न हानिकारक प्रभाव कम होते हैं।

(iii) C4 पादपों में अधिक प्रकाश संश्लेषण क्षमता तथा उनकी विपरीत परिस्थितियों में रहने योग्य अनुकूलताओं के कारण इनमें कुछ पादप प्रभावी खरपतवार के रूप में विकसित हो जाते हैं। उदाहरण- चीनोपोडियम (Chenopodium),

सालसोला (Salsola), एमरेन्थस (Amaranthus) इत्यादि ।

(iv) RuBP कार्बोक्सीलेज (RuBP Carboxylase) विकर CO2 के लिए कम सुग्राही होता है इसलिए C पादप RuBP के लिए अधिक CO2 प्रदान करते हैं।

(v) C4 पादपों में धनायनों (cations) का संचय होता है क्योंकि यह कार्बनिक अम्लों द्वारा प्रदान किये गये ऋणायनों (anions) द्वारा संतुलित हो जाते हैं।

तालिका : केल्विन चक्र (C, पादप) एवं हैच-स्लैक चक्र (C, पादप) के मध्य अन्तर

C3 पादप

 

C4 पादप

 

1.    पर्ण की सामान्य शारीरी होती है।

2 हरित लवक सामान्य परन्तु स्टार्च कण अनुपस्थित

 

 

3.पर्णहरित युक्त संवहन आच्छद अनुपस्थित

4. हरितलवक द्विरूपता नहीं पायी जाती है।

5. केवल C3 चक्र पाया जाता है।

6. CO2 स्थिरीकरण एक बार होता है।

7. कम ताप पर अधिक उत्पाद बनता है परन्तु उच्च ताप पर कम उत्पाद बनता है।

8. CO2 के लिए संतुलन- प्रकाश तीव्रता

(compensation point) 50-150 ppm होती है।

9. उच्च प्रकाश तीव्रता पर कुल प्रकाश संश्लेषण 15-35mg CO2/Dm/h होता है। संतृप्ति बिन्दु कुल प्रकाश के 10-15% भाग पर स्थापित होता है।

10. 21% वातावरणीय O2 की सान्द्रता पर प्रकाश श्वसन (Photorespiration) प्रारम्भ हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है।

11. CO2 के एक अणु के अपचयन के लिए  3 ATP एवं 2 NADPH2 की आवश्यकता है।

12. Cपादप प्रकाश संश्लेषण में कम सक्षम होते हैं।

13. CO2 का ग्राही RuBP होता है।

 

1. पर्ण में क्रेज शारीरी पायी जाती है।

2 संवहन आच्छद में हरित लवक ग्रेना रहित होते हैं, इसकी परिधि में थायलेकाइड जालिका रूप में पाये जाते हैं, PS – II अनुपस्थित, NADPH2 अनुपस्थित, स्टार्च उपस्थित |

3. पर्णहरित युक्त संवहन आच्छ उपस्थित

4. हरित लवक द्विरूपता पायी जाती है।

5. C3  एवं C4 चक्र दोनों पाये जाते हैं।

6. CO2  स्थिरीकरण दो बार होता है।

7. यह कम ताप पर कम प्रभावी होता है। परन्तु उच्च ताप पर अधिक उत्पाद बनता है।

8. संतुलन- प्रकाश तीव्रता 0-10ppm होती है।

9. उच्च प्रकाश तीव्रता पर कुल प्रकाश संश्लेषण अधिक (40-80 mg CO2/Dm2/hr) होता है। पूर्ण प्रकाश पर भी सन्तृप्ति बिन्दु प्राप्त नही होता है।

 

10. प्रकाश श्वसन (Photorespiration) नहीं पाया जाता।

 

11. CO2 के एक अणु के अपचयन के लिए 5 ATP एवं 2 NADPH2 की आवश्यकता होता है

 

12. C4 पादप प्रकाश संश्लेषण में अधिक सक्षम होते हैं।

13. CO2 का ग्राही PEP होता है।