कॉट्रेल विधि क्या है , cottrell’s method is used for the determination of in hindi हिटलर विधि (Heitler’s method)

हिटलर विधि (Heitler’s method) कॉट्रेल विधि क्या है , cottrell’s method is used for the determination of in hindi ? 

विभिन्न अणुसंख्य गुणों के निर्धारण की प्रायोगिक विधियां (EXPERIMENTAL METHODS FOR DETERMINING VARIOUS COLLIGATIVE PROPERTIES)

विभिन्न अणुसंख्य गुणों में हम आपेक्षिक दाब अवनमन एवं परासरण दाब के निर्धारण की विधियों का वर्णन इन्हीं शीर्षकों के अन्तर्गत ऊपर कर चुके हैं। यहां पर क्वथनांक में उन्नयन एवं हिमांक में अवनमन के निर्धारण का वर्णन किया जा रहा है।

क्वथनांक उन्नयन का प्रायोगिक मापन (Experimental Measurement of Boiling Point Elevation) इसके लिए कई विधियां हैं जिनमें से प्रमुख का वर्णन निम्न प्रकार है :

  • लैण्ड्सबर्गर विधि (Landsberger’s method) चित्र 23 में दर्शाए अनुसार उपकरण के निम्न भाग होते हैं : त क्वथनांक फ्लास्क जिसमें विलायक को उबाला जाता है। ।
  • भीतर की क्वथन नली जो मध्य भाग में अंशांकित है। इस नली में, एक बेकमान थर्मामीटर जिसे01K तक सही पढ़ सकते हैं, और एक मुड़ी हुई कांच की नली लगी रहती है जिसका एक निचला सिरा गोल होता है।
  • इस क्वथन नली को घेरे हुए एक बाह्य गरम वाष्प जैकेट।

विधि (Procedure) : भीतरी क्वथन नली में बेकमान 5-7 ml शुद्ध विलायक लेकर उसमें विलायक की तापमापी वाष्प को प्रवाहित करते हैं। नली के गोल सिरे के कारण वाष्प का द्रव में सब ओर समांग वितरण  हो जाता है। जब द्रव उबलने लगे और तापमान स्थिर हो जाये तो थर्मामीटर की रीडिंग नोट कर लेते हैं। इस प्रकार शुद्ध विलायक का क्वथनांक वाष्प  ज्ञात हो जाता है। जैकेट अब वाष्प प्रवाह को बन्द करके द्रव को थोड़ा ठण्डा होने देते हैं और उसके बाद विलेय की एक तुली हुई मात्रा W, ग्राम क्वथन नली के मध्य के छिद्र में से प्रवेशित कराते हैं और पुनः वाष्प प्रवाहित करके इस विलयन का संघनित्र क्वथनांक T, ज्ञात कर लेते हैं, दोनों के अन्तर से AT, का मान ज्ञात हो जाता है। क्वथन नली के विलयन का सही आयतन पढ़कर उसका घनत्व ज्ञात कर लेते हैं और गणना करके विलेय के W, ग्राम ज्ञात कर लेते हैं।

सीमाएं (Limitations) : इस विधि में द्रवा के अतिगरम (superheating) होने का खतरा रहता है व क्वथनांक पर विलयन के सही संघटन को ज्ञात करना कठिन होता है।

(2) कॉट्रेल विधि (Cottrell’s method) : उपर्युक्त सीमाओं को ध्यान में रखते हुए कॉट्रेल ने इस प्रकार उपकरण (चित्र 9.24) में सुधार किया। जैसा कि संलग्न चित्र से स्पष्ट है कि इस विधि में वाष्पीकरण से विलायक का ह्रास (loss) नहीं होता क्योंकि इसके पार्श्व में एक संघनित्र लगा रहता है जिससे सारी वाष्प संघनित होकर नली में वापस आ जाती है और दूसरा इस विधि में द्रव के अतिगरम होने का खतरा भी नहीं है क्योंकि इसमें वाष्प व द्रव को, उलटी लगी हुई कीप व पार्श्व नलियों की सहायता से फब्बारों के रूप में बेकमान थर्मामीटर पर गिराया जाता है। विधि (Procedure) सर्वप्रथम विलायक की एक तुली हुई मात्रा W. ग्राम का को नली में लेकर उसका क्वथनांक To ज्ञात करते हैं। फिर उसमें एक तुली हुई। गरम क्वथनांकासंघनित्र नली की ओर मात्रा W1g विलेय की डालकर उस विलयन का क्वथनांक T ज्ञात करते हैं और दोनों के अन्ता । T का मान ज्ञात हो जाता है।

(3) हिटलर विधि (Heitler’s method) – 1958 में हिटलर ने एक अर्द्धसूक्ष्म एब्यूलियोमीटर (Semimicro ebulliometer)का विकास किया जिसमें तापमान के स्थान पर प्रतिरोध का मापन किया जाता है। तापमान की वृद्धि प्रतिरोध में कमी के समानुपाती होती है अर्थात

R – Tb

R = aTb,

अथवा  Tb = R /a

जहां a एक स्थिरांक है। इस प्रकार AR के रूप में AT, का मापन किया जाता है। a का मान विलायकों के लिए परिकलित कर लिया जाता है। इस उपकरण (चित्र 9.25) में एक गोलीय (spherical) क्वथन पात्र की पन (B) होता है जिस पर लम्बवत् एक नली लगी होती है जो एक संघनित्र C को घेरे रहती है। चित्र के अनुसार एक नली P इस क्वथन नली में सील ___ की हुई रहती है, जो कि एक संवेदनशील अवयव (sensitive element) से जुड़ी रहती है।

विधि (Procedure) विलायक की एक तुली हुई मात्रा क्वथन नली में लेकर क्वथन बिन्दु पर एक व्हीटस्टोन ब्रिज (Wheatstone bridge) की सहायता से प्रतिरोध R ज्ञात कर लेते हैं। फिर विलेय की एक तुली हुई मात्रा लेकर उसका प्रतिरोध ज्ञात कर लेते हैं और दोनों के अन्तर से R का मान ज्ञात हो जाता है। इस प्रकार किसी भी विधि से मोलर उन्नयन ज्ञात करके उसकी सहायता से हम किसी भी विलेय की आण्विक संहति का परिकलन कर सकते हैं। कुछ विलायकों के लिए मोलल उन्नयन स्थिरांकों के मान सारणी 9.6 में दिये जा रहे हैं।

सारणी 9.6. कुछ सामान्य विलायकों के क्वथनांक व मोलल उन्नयन स्थिरांक

बिलायक क्वथनांक (K) KB(K mol-1)
ऐसीटिक अम्ल

ऐसीटोन

बेन्जीन

क्लोरोफॉर्म

एथेनॉल

एथिल ईथर

जल

391.0

329.0

353.2

334.2

351.3

307.4

 

373.0

2.93

1.71

2.53

3.63

1.22

2.02

 

0.513

 

हिमाक अवनमन का प्रायोगिक मापन (Experimental Determination of Freezing Point Depression)

इसके लिए दो विधियां हैं

(1) बेकमान विधि (Beckmann’s method) बेकमान के उपकरण को चित्र 9.26 में प्रदर्शित किया गया है। इस उपकरण के प्रमुख रूप से निम्न तीन भाग होते हैं

(i) भीतर की हिमांक नली जिसमें बेकमान थर्मामीटर व एक विलोडक लगा रहता है जिसमें 0.01K तक सही-सही तापमान नोट किया जा सकता है। इसमें एक पार्श्व नली लगी होती है जिसमें से विलेय को प्रवेशित कराया जाता है।

(ii) भीतर की नली को घेरे रखने वाली बाह्य नली जो जैकेट का कार्य करती है भीतरी नली का धीरे-धीरे शीतलन करती है।

(iii) कांच का जार जिसमें हिम मिश्रण व एक विलोडक लगा रहता है।

विधि (Procedure) – भीतरी नली को साफ व शुष्क करके उसमें विलायक की एक तुली हुई मात्रा डालकर चित्र की भांति उपकरण को व्यवस्थित कर देते हैं और विलोडक से हिलाते हुए बेकमान थर्मामीटर में ताप को देखते बेकमान जाते हैं। हिमांक बिन्दु पर जब तापमान स्थिर हो जाता है तो तापमापी उसे नोट कर लेते हैं। फिर नली को बाहर निकाल कर विलायक विलोडक को पिघला देते हैं और पार्श्व नली से विलेय की एक तुली हुई मात्रा प्रवेशित कराते हैं। और फिर उपर्युक्त विधि से इस विलयन का हिमांक बिन्दु ज्ञात करते हैं। दोनों तापों का अन्तर हिमांक विलोडक का अवनमन है। विलेय की तुली हुई थोड़ी-सी मात्रा और प्रवेशित –हिमांक करवाकर अर्थात् विलयन II बनाकर इस प्रयोग को फिर दोहराया बिन्दु नली जा सकता है।

(2) रास्ट विधि (Rast’s method) – इस विधि में हम ऐसे हिमाक – कांच की विलायक का चुनाव करते हैं जिसके लिए मोलल अवनमन बाह्य नली स्थिरांक का मान अधिक हो, उदाहरणार्थ, कपूर (camphor)। इसीलिए इस विधि को रास्ट कैम्फर विधि (Rast’s camphor | method) भी कहते हैं। मोलल अवनमन स्थिरांक का मान अधिक होने के कारण ये विलायक हिमांक का अवनमन अधिक दिखाते हैं जिससे त्रुटि की सम्भावना कम रहती है। इसमें साधारण थर्मामीटर का प्रयोग करते हुए गलनांक ज्ञात करना होता है। एक नली में कैम्फर व विलेय दोनों की अलग-अलग तुली हुई मात्रा लेकर गरम करते हैं जब पिघलकर दोनों का एक समांग मिश्रण बन जाय तो उसे ठण्डा कर लेते हैं और बारीक पाउडर करके केशनली में लेकर उसका गलनांक ज्ञात कर लेते हैं। शुद्ध केम्फर का भी गलनांक ले लेते हैं। दोनों का अन्तर हिमांक अवनमन को दर्शाता है। बेकमान विधि की तुलना में यह विधि निम्न कारणों से अधिक उत्तम है

(1) यह अधिक संवेदनशील (sensitive) है।

(2) साधारण थर्मामीटर से ही प्रयोग सम्पन्न हो जाता है, बेकमान थर्मामीटर की आवश्यकता नहीं पड़ती।

(3) पदार्थ की कम मात्रा में ही प्रयोग सम्पन्न हो जाता है।।

इन कारणों के उपरान्त भी यह विधि अधिक उपयोगी नहीं है क्योंकि उन यौगिकों की बडी सीमित संख्या है जो कैम्फर में विलयशील होते हैं। कैम्फर के स्थान पर टेट्राब्रोमोमेथेन, हेक्साक्लोरोएथेन, आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है।

कछ सामान्य विलायकों के हिमांक एवं मोलल अवनमन स्थिरांकों के मान निम्न सारणी में दिये जा रहे हैं

सारणी 9.7. कुछ विलायकों के हिमांक व मोलल अवनमन स्थिरांकों के मान

यौगिक  (Compound) F.P (K) Kf(K kg mol-1)
जल (Water)

ऐसीटिक अम्ल (Acetic Acid)

बेन्जीन (Benzene)

नैफ्थलीन (Naphthalene)

फीनॉल (Phenol)

एथिलीन ब्रोमाइड (Ethylene Bromide)

द्राइब्रोमोफीनॉल (Tribromophenol)

कैम्फर (Camphor)

 

273

290

 

278.4

353

 

316

 

283

 

368

 

453

 

 

 

1.86

3.9

 

5.13

6.8

 

7.27

 

12.5

 

20.4

 

37.70

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