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संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक क्या है (coordination compounds in hindi) , लिगेण्ड

(coordination compounds in hindi) संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक क्या है , उदाहरण , सूत्र किसे कहते है ? : इस यौगिक का निर्माण तब होता है जब दो समान ऋण आयन युक्त दो सामान्य लवणों को आपस में मिश्रित कर शुष्क होने तक वाष्पित किया जाता है।

संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक बनाने का उदाहरण निम्न है –
एक बीकर में पोटेशियम सायनाइड और फेरस सायनाइड का जलीय विलयन मिश्रित करते है और इसे शुष्क होने तक वाष्पीकृत किया जाता है जिसके फलस्वरूप हमें संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक प्राप्त होता है , इसमें प्राप्त यौगिक को पोटेशियम फेरोसायनाइड कहते है।
किसी संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक को जल में घोलने पर यह दो आयन देता है।
इन यौगिको की पहचान ठोस और विलयन अवस्था में बनी रहती है जब दो आण्विक यौगिक मिलकर उपसहसंयोजक यौगिक का निर्माण करते है तो इसके गुण इनके अवयवी कणों से भिन्न होते है।
किसी उपसहसंयोजक यौगिक में न्यूनतम एक संकुल आयन अवश्य उपस्थित रहता है और किसी भी संकुल आयन में एक धातु धनायन उपस्थित रहता है और यह धातु धनायन दो से या दो से अधिक उदासीन अणुओं से जुडा हुआ रहता है , इस उदासीन अणु को लिगेंड कहते है अर्थात धातु धनायन से जो उदासीन अणु जुड़ा रहता है उसे लिगेण्ड कहते है।
यह धातु धनायन और लिगेण्ड आपस में उपसहसंयोजक बंध द्वारा जुड़े हुए रहते है यही कारण है कि इन्हें उपसहसंयोजक यौगिक कहा जाता है।
अत: उपसहसंयोजक यौगिक एक लुईस अम्ल-क्षार अभिक्रिया का उत्पाद होता है जिसमें उदासीन अणु (ऋणायन या लिगेण्ड) केंद्र वाले धातु अणु या आयन द्वारा बंध से जुड़ा हुआ रहता है , यह बन्ध उपसहसंयोजक बंध प्रवृति का होता है।
लिगेण्ड लुईस क्षार होते है , इन पर कम से कम एक एकांकी इलेक्ट्रॉन होता है जिसे ये धातु आयन को दे सकते है।
धातु आयन या धातु अणु लुईस अम्ल प्रवृति के होते है , ये लुईस क्षार द्वारा दिए गए एकांकी इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करने का गुण रखते है।
किसी भी लिगेण्ड में जो परमाणु जो सीधे धातु आयन या धातु परमाणु से जुड़ा हुआ रहता है उसे दाता परमाणु कहा जाता है।
उदाहरण : [Ag(NH3)2]+ यह एक उपसहसंयोजक यौगिक का उदाहरण है इसमें NH3 लिगेंड होता है जिसे लुईस क्षार भी कहा जाता है तथा Ag+ लुईस अम्ल कहलाता है साथ ही इसमें दाता परमाणु N होता है और इस यौगिक में उपसहसंयोजक संख्या 2 होती है।
3d धातु संकुलों के लिए चुम्बकीय आघूर्ण आंकड़ों के अनुप्रयोग (application of magnetic moment data for 3d complexes) प्रथम संक्रमण श्रेणी अथवा 3d धातु संकुलों के अध्ययन में चुम्बकीय आघूर्ण आकंड़ो का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। वस्तुतः चुम्बकीय आघूर्ण आकंड़ो के उपयोग से ही संकुल यौगिकों की संरचना और बंधन का ज्ञान होता है। इसके कुछ अनुप्रयोग निम्नलिखित है –

(1) इससे यह ज्ञान होता है कि कोई संकुल उच्च चक्रण है अथवा निम्न चक्रण , स्पष्ट करने के लिए यहाँ दो उदाहरण दिए जा रहे है –

(a) K3[Fe(CN)6] के चुम्बकीय आघूर्ण का मान 1.9 BM है जबकि K3[Fe(F)6] के चुम्बकीय आघूर्ण का मान 5.9 BM है।

3d धातु संकुलों में कक्षकीय आघूर्ण का योगदान नगण्य होता है अत: इनके चुम्बकीय आघूर्ण पर चक्रण मात्र सूत्र का उपयोग करके इनमें विद्यमान अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या को ज्ञात किया जा सकता है। अत:

(i) K3[Fe(CN)6] के लिए –

μ = √n(n+2) BM = 1.9 BM

या

n(n+2) = 1.9 x 1.9

या n2 + 2n – 3.61 = 0

हल करने पर n = -2.9 (काल्पनिक)   या n = 0.9 या 1 (लगभग)

अत: इस संकुल अणु में एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होना चाहिए तथा यह तभी सम्भव है यदि यह संकुल निम्न चक्रण वाला आंतरिक कक्षक संकुल बने। अत: K3[Fe(CN)6] संकुल d2sp3 संकरण के साथ अष्टफलकीय संकुल आयन बनते है।

(ii) K3[Fe(F)6] के लिए

μ = √n(n+2) = 5.9

या  n(n+2) = 5.9 x 5.9

या n2 + 2n – 34.81 = 0

हल करने पर

n = -6.9 (काल्पनिक)

या

n = +4.9 या 5 (लगभग)

 अर्थात इस संकुल में पांच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने चाहिए तथा यह तभी संभव है यदि यह संकुल उच्च चक्रण वाला बाह्य कक्षक संकुल बने। अत: K3[Fe(F)6] संकुल sp3d2 संकरण के साथ अष्टफलकीय संकुल आयन बनते है।

(b) K4[MnF6] का चुम्बकीय आघूर्ण 5.9 है जो पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के अनुरूप है जबकि K4[Mn(CN)6] के चुम्बकीय आघूर्ण का मान 1.9 है जो एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन के अनुरूप है। अत: निष्कर्ष निकाल सकते है कि K4[MnF6] संकुल में △0 का मान कम होगा तथा d5 का विवरण t32ge2g के रूप में होगा जबकि K4[Mn(CN)6] में △0 का मान अधिक होगा अत: इसमें d5 का विवरण t52ge2g के रूप में होगा।

(2) चार उपसहसंयोजन संख्या के साथ बना हुआ संकुल sp3 संकरित चतुष्फलकीय आकृति में होगा या dsp2 संकरित वर्ग समतल आकृति में होगा , इसका ज्ञान संकुल के चुम्बकीय आघूर्ण के मान से आसानी से हो जाता है।

उदाहरण : (a) [Ni(CN)4]2- एक प्रतिचुम्बकीय संकुल है जबकि [NiCl4]2- एक अनुचुम्बकीय संकुल है , इन चुम्बकीय गुणों के आधार पर ही यह निश्चित हुआ कि [Ni(CN)4]2- एक वर्ग समतल अणु है जबकि [NiCl4]2-  एक चतुष्फलकीय अणु है।

(b) [Cu(CN)4]2- के चुम्बकीय आघूर्ण का मान बहुत ही कम होता है। इस संकुल में कॉपर +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d9 होता है। ऐसी स्थिति में चार सायनाइड लिगेंडो से जुड़ने के लिए कॉपर आयन दो प्रकार से संकरित हो सकता है –

(अ) एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन लिगेंड की उपस्थिति में ऊर्जा पाकर 4p कक्षक में उत्तेजित होकर चला जाए तथा dsp2 संकरण द्वारा Cu2+ आयन एक वर्ग समतलीय संकुल बनाये तथा

(ब) कॉपर आयन sp3 संकरण करके एक चतुष्फलकीय संकुल बनाये। दोनों ही स्थितियों में संकुलों में 1-1 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होगा। परन्तु इस संकुल का चुम्बकीय आघूर्ण एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन से भी कम होता है। अत: पॉलिंग के अनुसार इस संकूल में एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर 4p कक्षक में चला जाता है। इस प्रकार dsp2 संकरण के लिए एक रिक्त d कक्षक उपलब्ध हो जाता है। इस संकरण के परिणामस्वरूप वर्ग समतलीय संकुल बनेंगे , जो यदि सतह में एक दुसरे के ऊपर व्यवस्थित हो तो उनके अयुग्मित इलेक्ट्रॉन एक दुसरे के चक्रण को कुछ हद तक उदासीन कर सकते है , फलत: इनके द्विध्रुव आघूर्ण का मान अपेक्षा से कम हो जाता है।

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