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concept of diffusion space in hindi , विसरण दिक्स्थान अवधारणा क्या है , निष्क्रिय खनिज लवण अवशोषण
पढ़े concept of diffusion space in hindi , विसरण दिक्स्थान अवधारणा क्या है , निष्क्रिय खनिज लवण अवशोषण ?
विसरण दिक्स्थान अवधारणा (Concept of diffusion space)
खनिज तत्वों के अवशोषण को समझने के लिए अनेक वैज्ञानिकों ने प्रयोग किये। एप्स्टीन (Epstein, 1955) ने जौ की तरुण जड़ो को लवण के उच्च सांद्रता युक्त विलयन (20p mole/ml) में रखने पर पाया कि जड़ द्वारा लवण अंतर्ग्रहण (salt uptake) काफी बढ़ जाता है। इस विलयन में से निम्न सांद्रता वाले विलयन में जड़ों को स्थानांतरित करने पर उन्होंने पाया कि कुछ लवण (4.45 pmoles) जड़ से वापस विलयन में निकल गये। इससे निष्कर्ष निकाला गया कि कोशिका / ऊतकों के कुछ भाग में एवं आयन विनिमय मुक्त रूप से हो सकता है। यह भाग बाह्य मुक्त दिक्स्थान (outer free space) कहलाता है। मुक्त दिक्स्थान से तात्पर्य है पादप कोशिका अथवा ऊतक के आयतन का कुछ भाग जिसमें से बाह्य विलयन से आय मुक्त रूप से विसरण द्वारा प्रवेश अथवा आयन विनिमय कर सकते हैं। ऐसा बाह्य विलयन तथा मुक्त दिक्स्थान में संतुलन स्थापित होने तक चलता है। ब्रिग्स एवं राबर्टसन (Briggs and Robertson, 1957) के अनुसार बाह्य दिक्स्थान में कोशिका भित्ति एवं जीवद्रव्य का कुछ भाग समाहित है।
बाह्य दिकस्थान में दो मुख्य भाग है- (i) जलीय मुक्त दिक्स्थान (water free space) तथा (ii) डोनेन मुक्त दिक्स्थान (Donnan free space)। जलीय दिक्स्थान (WFS) एक प्रकार से बाहर के विलयन का कोशिका में विस्तार को निरूपित करता है। इसमें कोशिका भित्ति एवं अंतरा कोशिकी स्थल (intercellular space) शामिल किये किये जाते हैं जो कुल आयतन का लगभग 7-10% होता है। इसमें आयनों की सांद्रता बाह्य विलयन के बराबर ही होती है।
डोनन मुक्त दिक्स्थान (DFS)- यह धनायन विनिमय स्थल है तथा कार्बोक्सी अम्ल समूह की उपस्थिति से पहचाना जाता है। इस क्षेत्र में बाह्य विलयन की अपेक्षा ऋणायनों का बाहुल्य होता है। यह कुल आयतन का लगभग 2-3% होता है इसके विपरीत बर्नस्टीन एवं नीमैन (Bernstein and Neiman, 1960) के अनुसार बाह्य दिक्स्थान में कोशिका भित्ति एवं अन्तरकोशिकी अवकाश ही शामिल होते हैं कोशिका झिल्ली अथवा उसके भीतर का कोई भाग नहीं ।
खनिज लवणों के अवशोषण की क्रिया विधि (Mechanism for absorption of mineral salts)
बाहरी माध्यम से किसी अणु अथवा आयन द्वारा जीवित कोशिका में कोशिका झिल्ली को भेदकर प्रवेशन एवं संचय की प्रक्रिया अवशोषण कहलाती है । कभी-कभी लवणों के स्थान पर विलेय (solute) शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त माना गया है क्योंकि लवणों के अतिरिक्त मृदा विलयन में कार्बनिक पदार्थ भी होते हैं जिनका अवशोषण होता है। लवणों के अवशोषण की क्रियाविधि को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने अनेक परिकल्पनाएं एवं सिद्धांत प्रतिपादित किये। इन्हें हम मुख्यतः दो समूहों में बांट सकते है।
- निष्क्रिय खनिज लवण अवशोषण (Passive mineral absorption)- इसमें उर्जा की आवश्यकता नहीं होती।
- सक्रिय खनिज लवण अवशोषण (Active mineral absorption )- इसमें उपापचयी उर्जा की आवश्यकता होती है। इन दोनों में मुख्य अंतर तालिका-2 में दिये जा रहे हैं।
तालिका-2 : निष्क्रिय एवं सक्रिय खनिज लवण अवशोषण में अंतर (Difference between passive and active mineral absorption)
क्र. स.
| निष्क्रिय अवशोषण
| सक्रिय अवशोषण
|
1. | उपापचयी उर्जा आवश्यकता नहीं होती।
| अपचयी उर्जा की आवश्यकता होती है ।
|
2. | इसमें लवण अथवा पदार्थ अपनी उच्च सांद्रता से निम्न सान्द्रता की ओर गति करते हैं।
| इसमें लवण अथवा पदार्थ सांद्रता प्रवणता के विरूद्ध निम्न सान्द्रता उच्च सांद्रता से की ओर गति करते हैं।
|
3. | यह प्रक्रिया स्वतः प्रेरित (spontaneous) होती है तथा साम्यावस्था (equillibrium) होने तक चलती है।
| यह स्वतः प्रेरित नहीं होती।
|
4. | उपापचयिक अवरोधक व संदमक का इस की गति पर काई प्रभाव नहीं पड़ता ।
| उपापचयिक अवरोधक व संदमक से यह भी संदमित हो जाती है।
|
5. | तापमान का कोई प्रभाव नहीं होता ।
| तापमान उपापचयी क्रियाओं की भांति इन्हें भी प्रभावित करता है।
|
6. | इसमें प्लाज्मा झिल्ली का कोई उपयोग नहीं होता बाहर से लवण कोशिका भित्ति को पारकर जीवद्रव्य में आ जाते हैं।
| यह सामान्यतः प्लाज्मा झिल्ली एवं टोनोप्लास्ट के आर-पार होता है ।
|
- निष्क्रिय खनिज लवण अवशोषण (Passive absorption)
निष्क्रिय अवशोषण अथवा भौतिक अवशोषण में विसरण नियमों के अनुसार अवशोषण होता है। क्रिस एवं राबर्टसन (Chris and Robertson, 1957) ने निष्क्रिय अवशोषण का प्रदर्शन किया और पाया कि पादप कोशिका को उच्च सांद्रता में रखने पर कोशिका आयनों को तेजी से अंतर्ग्रहण (uptake) करती हैं फिर से उन्हे निम्न सांद्रता में रखने आयनों का चालन की दिशा परिवर्तित हो जाती है। इसी तथ्य के आधार पर विभिन्न सिद्धान्त दिए गये हैं।
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