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Categories: chemistry

संकुलन का रंग , संकुलों का स्थायित्व  , वियोजन स्थिरांक , संकुल का महत्व व अनुप्रयोग compound colour in hindi

संकुलन का रंग : कोई भी यौगिक रंगीन होगा या रंगहीन , यह इस बात पर निर्भर करता है कि यौगिक दृश्यक क्षेत्र से प्रकाश का अवशोषण करता है या नहीं।

यदि यौगिक दृश्य क्षेत्र से प्रकाश का अवशोषण करता है तो वह रंगीन होगा अन्यथा रंगहीन होगा।

जब श्वेत प्रकाश किसी यौगिक पर आपतित होता है तो वह यौगिक प्रकाश के कुछ भाग का अवशोषण कर लेता है तथा प्रकाश का कुछ भाग परावर्तित हो जाता है , उस यौगिक का रंग अवशोषित प्रकाश के रंग का पूरक रंग होता है।

अवशोषित प्रकाश का रंग पूरक रंग
पिला-हरा बैंगनी
लाल नीला

CFT के अनुसार d-d संक्रमण के कारण यौगिक रंगीन दिखाई देता है।  इस घटना में इलेक्ट्रोन ऊर्जा पाकर निम्न ऊर्जा वाले d कक्षकों से उच्च ऊर्जा वाले d कक्षकों में गमन करता है।

प्रश्न 1 : [Ti(H2O)6]3+ बैंगनी रंग का दिखाई देता है , क्यों ?

उत्तर : यह एक अष्टफलकीय संकुल है।

[Ti(H2O)6]3+

Ti = [Ar] 3d2 4s2

Ti3+ = [Ar] 3d1 4s0

इस यौगिक को प्रकाश में रखने पर यह पीले -हरे रंग के प्रकाश का अवशोषण करता है।  प्रकाश के अवशोषण के कारण इसके t2g कक्षक में उपस्थित इलेक्ट्रॉन ऊर्जा पाकर eg कक्षक में चला जाता है , यह घटना d-d संक्रमण कहलाती है इस कारण ये यौगिक रंगीन होगा तथा पीले-हरे रंग का प्रकाश अवशोषित किये जाने के कारण यह यौगिक बैंगनी दिखाई देता है।  क्योंकि पीले-हरे प्रकाश का पूरक रंग बैंगनी होता है।

इस यौगिक को गर्म करने पर यह रंगहिन हो जाता है क्योंकि गर्म करने से लिगेंड के रूप में उपस्थित सभी जल के अणु बाहर निकल जाते है अत: लिगेंड की अनुपस्थिति में धातु आयन के d कक्षकों में विपाटन नहीं होगा तथा इस कारण d-d संक्रमण नहीं होगा इसलिए गर्म करने पर यह यौगिक रंगहीन हो जाता है।

प्रश्न 2 : CuSO4.5H2O (कॉपर सल्फेट) (नीला थोथा) को गर्म करने पर इसका नीला रंग गायब हो जाता है , क्यों ?

उत्तर : CuSO4.5H2O या [Cu(H2O)4]SO4.H2O

कॉपर सल्फेट / नीला थोथा को गर्म करने पर इसमें लिगेंड व हाइड्रेड के रूप में उपस्थित सभी जल के अणु बाहर निकल जाते है अत: लिगेंड की अनुपस्थिति में धातु आयन के d कक्षको में विपाटन नहीं होगा इस कारण d-d संक्रमण नहीं होगा इसलिए गर्म करने पर यह यौगिक रंगहीन हो जाता है।

संकुलों का स्थायित्व

संकुल यौगिको के स्थायित्व को स्थायित्व स्थिरांक (Ks) के आधार पर समझ सकते है।

यदि धातु आयन व लिगेंड के मध्य अन्त: क्रिया प्रबल हो तो उस संकुल के स्थायित्व स्थिरांक का मान अधिक होगा और वह संकुल अधिक स्थायी होगा।

Ma+ + nLx- → [MLn]b-

स्थायित्व स्थिरांक (Ks) = [(MLn)b-]/[Ma+][Lx-]n

यहाँ a+ = धातु आयन पर आवेश

x = लिगेंड पर आवेश

b = संकुल पर आवेश

n = लिगेंड की संख्या

वियोजन स्थिरांक : ये स्थायित्व स्थिरांक का व्युत्क्रम होता है।

वियोजन स्थिरांक = 1/स्थायित्व स्थिरांक

संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारक

स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है –

  1. केन्द्रीय धातु आयन पर आवेश: केन्द्रीय धातु आयन पर आवेश जितना अधिक होगा उस संकुल यौगिक का स्थायित्व उतना ही अधिक होगा।

उदाहरण :

K4[Fe(CN)6] < K3[Fe(CN)6]

Fe2+                         Fe3+

  1. केन्द्रीय धातु आयन का आकार: यदि केन्द्रीय धातु आयनों पर आवेश समान हो तो जिस केन्द्रीय धातु आयन का आकार छोटा होगा उससे बना संकुल ज्यादा स्थायी होता है।

उदाहरण : Mn2+ > Fe2+ > CO2+ > Ni2+ > Cu2+

अत: Cu2+ से बने संकुल Mn2+ से बने संकुलों से ज्यादा स्थायी होते है।

संकुलों के स्थायित्व का क्रम :-

Mn2+ < Fe2+ < CO2+ < Ni2+ < Cu2+ होगा।

  1. लिगेंड की क्षारीय प्रकृति: लिगेंड की क्षारीय प्रकृति जितनी अधिक होगी अर्थात एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म दान करने की प्रवृति जितनी अधिक होगी वह संकुल उतना ही अधिक स्थायी होगा।

उदाहरण : [Cu(NH3)4]2+ < [Cu(CN)4]2-

  1. कीलेट प्रभाव: एक दंतु लिगेंड युक्त यौगिको की तुलना में किलेटीकृत लिगेंड युक्त यौगिक अधिक स्थायी होते है।

K3[Fe(CN)6] < K3[Fe(C2O4)3]

CN– एक दंतुक लिगेंड < C2O42- द्विदन्तुक लिगेंड (किलेट लिगेंड)

संकुलों का महत्व व अनुप्रयोग

संकुलो के महत्व और अनुप्रयोग निम्न है –

(A) गुणात्मक विश्लेषण : क्षारीय मूलको के गुणात्मक विश्लेषण में संकुलों का निर्माण होता है।

जैसे :-

(i) प्रथम समूह के मूलक : Ag2+ , Hg22+ , Pb2+

समूह अभिकर्मक : तनु HCl

Ag2+ , Hg22+ आयन तनु HCl से क्रिया करके AgCl व Hg2Cl2 के रूप में अवक्षेप होता है।

Ag2+ , Hg22+ आयन के पृथक्करण के लिए इसकी क्रिया NH4OH से करवाते है अत: इससे AgCl का अवक्षेप NH4OH से क्रिया करके एक विलेयशील संकुल बनाता है जबकि Hg2Cl2 , NH4OH से  क्रिया करके काला अवक्षेप बनाता है जो कि एक संकुल है।

(ii) द्वितीयक समूह के मूलक :

(IIA) :  Cu2+ , cd2+ , Bi3+

(IIB) : Sn 2+ , Sn4+ , Sb3+

समूह अभिकर्मक : तनु HCl की उपस्थिति में H2S गैस।

द्वितीयक समूह के मूलक H2S से क्रिया करके सल्फाईट के रूप में अवक्षेपित है जबकि IIB समूह के सल्फाइड पीले अमोनियम सल्फाइड में विलेय होकर संकुल बनाते है।

IIA समूह में Cu2+ मूलक F4(Fe(CN)6) से अभिक्रिया करके संकुल बनाता है।

iv समूह का Ni2+ संकुल डाइ मैथिल ग्लाइओक्सिन से क्रिया कर गुलाबी रंग का संकुल बनाता है।

(B) सोने व चाँदी धातु के निष्कर्षण में : सोने एवं चांदी धातुओ के निष्कर्षण के लिए इन धातुओ के अयस्क की क्रिया NaCN (सोडियम साइनाइड) से करवाकर इन धातुओ को संकुल के रूप में पृथक कर लेते है।

इन संकुलों में उपस्थित धातु को किसी अधिक क्रियाशील धातु जैसे Zn से करवाकर शुद्ध धातु प्राप्त कर लेते है।

चांदी का निष्कर्षण :

Ag2S + 4NaCN → 2Na[Ag(CN)2] + Na2S

2Na[Ag(CN)2] + Zn → Na2[Zn(CN)4] + 2Ag

सोने का निष्कर्षण :

4Au + 8NaCN + 2H2O + O2 → 4Na[Au(CN)2] + 4NaOH

2Na[Au(CN)2] + Zn → Na2[Zn(CN)4] + 2Au

(c) जैविक प्रणाली में भूमिका :

  • रक्त में पाया जाने वाला हीमोग्लोबिन Fe धातु का संकुल है।
  • पत्तियों में पाया जाने वाला क्लोरोफिल Mg धातु का संकुल है।
  • विटामिन B12 , CO (कोबाल्ट) धातु का संकुल है।
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