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common base configuration in hindi उभयनिष्ठ आधार विन्यास किसे कहते हैं , अभिलाक्षणिक (Characteristics)
उभयनिष्ठ आधार विन्यास किसे कहते हैं , अभिलाक्षणिक (Characteristics) common base configuration in hindi ?
संधि ट्रांजिस्टर के विभिन्न धारा घटकों में सम्बन्ध (RELATIONS BETWEEN DIFFERENT CURRENT COMPONENTS IN A JUNCTION TRANSISTOR)
खण्ड (4.3) के संधि ट्रॉजिस्टर प्रचालन के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि जब संधि ट्रॉजिस्टर के उत्सर्जक- आधार संधि JEB को अग्रदिशिक बायसित तथा संग्राहक आधार संधि JCB को पश्चदिशिक बायसित करते
हैं तो धारा IE. NPN ट्रॉजिस्टर में IE (e) बहुसंख्यक इलेक्ट्रॉनिकों के उत्सर्जक से आधार में अन्त:क्षेपित (injected) होने से तथा TE (h) अल्पसंख्यक होलों के आधार से उत्सर्जक में अन्तःक्षेपित (injected) होने के कारण उत्पन्न होती है अर्थात् NPN संधि ट्रॉजिस्टर के लिए
IE = IE (e) + IE (h)
यही उत्सर्जक धारा IE, PNP ट्रॉजिस्टर में IE(h) बहुसंख्यक होलों के उत्सर्जक से आधार में अन्त:क्षेपित होने से तथा Igle) अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉनों के आधार से उत्सर्जक में अन्तःक्षेपित होने के कारण उत्पन्न होती है अर्थात् PNP ट्रॉजिस्टर के लिये
IE = IE (h) + IE (e)
संधि ट्रॉजिस्टर में उत्सर्जक भाग की चालकता आधार की अपेक्षा बहुत अधिक होती है । अत: उत्सर्जक धारा le मुख्यतः बहु-संख्यक आवेश वाहकों के कारण ही होती है अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण धारा नगण्य (अत्यल्प ) होती है। अत:
IE = IE (e) NPN ट्रॉजिस्टर के लिये
IE = IE (h) PNP ट्रॉजिस्टर के लिये
NPN ट्रॉजिस्टर के आधार में अन्त:क्षेपित ( injected ) इलेक्ट्रॉनों में से अधिकांश इलेक्ट्रॉन संधि JCB की ओर अग्रसित होते हैं जिसके कारण संग्राहक में, संग्राहक धारा घटक Ic(e) उत्पन्न होती है तथा कुछ इलेक्ट्रॉन होलों के साथ आधार के क्षेत्र में पुन: संयोजन ( recombination) के द्वारा आधार Ib उत्पन्न करते हैं जिसका परिमाण Ib = IE (e) – Ic (e) के बराबर होता है।
इसी प्रकार PNP ट्रॉजिस्टर के आधार में अन्तःक्षेपित होलों में से अधिकांश होल संधि JCB की ओर गतिमान होते हैं जिसके कारण संग्राहक में संग्राहक धारा घटक I (h) उत्पन्न होती है तथा कुछ होल, इलेक्ट्रॉनों के साथ आधार क्षेत्र में पुन: संयोजन (recombination) के द्वारा आधार धारा IB, उत्पन्न करते हैं जिसका परिमाण [IE (h) – Ic (h)] के बराबर होता है।
चित्र (4.3-1) या चित्र (4.3 – 2 ) के लिये ट्रॉजिस्टर में निविष्ट कुल धारा का मान उससे निर्गत कुल धारा के बराबर होगा, अत:
IE = Ic + IB ………(1)
अर्थात् उत्सर्जक धारा, संग्राहक धारा तथा आधार धारा के योग के बराबर होती है या संधि ट्रांजिस्टर में उत्सर्जक धारा स्वयं को संग्राहक धारा तथा आधार धारा में वितरित करती है।
है।
संग्राहक धारा भी दो भागों से मिलकर बनी होती है- (i) बहुसंख्यक आवेश वाहकों के कारण तथा (ii) अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण अर्थात्
Ic = Icबहुसंख्यक + Icoअल्पसंख्यक…………….(2)
अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण संग्राहक धारा का अंश Ico क्षरण धारा ( leakage current) कहलाता
[संकेत (symbol) Ico का तात्पर्य है कि I का वह मान जबकि उत्सर्जक टर्मिनल खुला (open) हो ।] ट्रॉजिस्टर के लिये एक अन्य महत्वपूर्ण राशि ade परिभाषित की जाती है-
abcको dc धारा लाभ (dc current gain) कहते हैं।
वास्तव में ade उत्सर्जक में, उत्पन्न बहुसंख्यक आवेश वाहकों के उस अंश को प्रदर्शित करता है जो संग्राहक में पहुंचते हैं, अत: समीकरण (1) से (4) तथा समीकरण (2) से
निश्चित ही abc का मान सदैव 1 से कम होता है। आधार में पुन: संयोजन अत्यल्प होने से abc का मान सामान्यतः
0.95 से 0.99 के मध्य होता है।
जब उत्सर्जक आधार परिपथ में किसी संकेत वोल्टता के द्वारा निवेशी वोल्टता को परिवर्तित किया जाता है तब निर्गत धारा के परिवर्तन की निवेशी धारा के परिवर्तन पर निर्भरता अधिक महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार गतिक अवस्था ।
में दिष्ट धारा लाभ के स्थान पर प्रत्यावर्ती धारा लाभ ( ac current gain) aac परिभाषित किया जाता है।
aac का मान भी adc की भांति 1 से कम व लगभग 0.95 से 0.99 के मध्य होता है।
चिन्ह मान्यतायें तथा संधि ट्रांजिस्टर के लिये विभिन्न वोल्टताओं तथा धाराओं के चिन्ह (SIGN CONVENTIONS AND SIGNS OF VARIOUS VOLTAGES AND CURRENTS INA JUNCTION TRANSISTOR)
संधि ट्रॉजिस्टर को एक चर्तुटर्मिनल या द्वि-द्वारक 0 युक्ति (four terminal or two port device) माना जाता है। इसलिये ट्रॉजिस्टर के लिये विभिन्न वोल्टताओं तथा धाराओं के चिन्ह की वही मान्यतायें ली जाती हैं जो कि चर्तुटर्मिनल युक्ति के लिये मानी जाती हैं। सामान्यतः ट्रॉजिस्टर में निविष्ट तथा निर्गत टर्मिनलों में से एक टर्मिनल को उभयनिष्ठ (common) लिया जाता है तथा उसे प्राय:
भू-सम्पर्कित (grounded) मानते हैं। इस प्रकार से संधि ट्रॉजिस्टर को एक तीन टर्मिनल युक्ति (three terminal) के रूप में भी माना जा सकता है। निम्न चित्र (4.5-1) चार टर्मिनल जाल तथा चित्र (4.5-2 ) में वास्तविक धारा दिशाओं के साथ NPN और PNP संधि ट्रॉजिस्टर को प्रदर्शित किया गया है।
धारा के लिये चिन्ह मान्यतायें यह हैं कि जो धारा संधि ट्रॉजिस्टर में प्रवेश (entering) करती हुई दिशा में होती है धनात्मक (positive) मानी जाती है तथा जो धारा संधि ट्रॉजिस्टर में से बाहर (leaving) की ओर निकलती दिशा में होती है उसे ऋणात्मक (negative) माना जाता है। इस प्रकार से उत्सर्जक धारा IE, PNP ट्रॉजिस्टर में धनात्मक तथा NPN ट्रॉजिस्टर में ऋणात्मक होती है।
विभिन्न वोल्टताओं को धनात्मक तब लिया जाता है जबकि वोल्टता को प्रदर्शित करने वाले संकेत (symbol) में प्रयुक्त पादाक्षर (subscript) के प्रथम अक्षर के संगत टर्मिनल, दूसरे अक्षर के संगत टर्मिनल के सापेक्ष धनात्मक होता है। उदाहरण स्वरूप VEB धनात्मक होगा जब पादाक्षर के रूप में प्रयुक्त प्रथम अक्षर E के संगत टर्मिनल अर्थात् उत्सर्जक दूसरे अक्षर B अर्थात् आधार के सापेक्ष धनात्मक हो । NPN तथा PNP संधि ट्रॉजिस्टर के विभिन्न धाराओं तथा वोल्टताओं के चिन्हों को निम्न सारिणी में प्रदर्शित किया है-
जहाँ IE – संधि ट्रॉजिस्टर की उत्सर्जक धारा
Ip – संधि ट्रांजिस्टर की आधार धारा
Ic – संधि ट्रॉजिस्टर की संग्राहक धारा
VEB – संधि ट्रॉजिस्टर के आधार के सापेक्ष उत्सर्जक की वोल्टता
VCB – संधि ट्रॉजिस्टर के आधार के सापेक्ष संग्राहक की वोल्टता
VCE – संधि ट्रॉजिस्टर के उत्सर्जक के सापेक्ष संग्राहक की वोल्टता
द्विध्रुवी संधि ट्रांजिस्टर के लिये वोल्ट ऐम्पियर सम्बन्ध (VOLT-AMPERE RELATIONS FOR BIPOLAR JUNCTION TRANSISTORS)
परन्तु इसे तीन पिछले खण्ड (4.5) में हम यह जान चुके हैं संधि ट्रॉजिस्टर एक चार टर्मिनल युक्ति होती है टर्मिनल युक्त के रूप में सामान्यतः प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि ट्रॉजिस्टर के तीन टर्मिनलों E, B तथा C में से एक टर्मिनल (E या B या C) उभयनिष्ठ होता है। प्रत्येक अवस्था में एक निवेश द्वार (input port) तथा दूसरा निर्गम द्वार (output port) होता है। साधारणत: निर्गम पर प्राप्त प्रत्येक विद्युतीय राशि ( वोल्टता या धारा) पर निवेश पर प्रयुक्त विद्युतीय राशि (वोल्टता या धारा) का नियंत्रण होता है। दोनों द्वारों से सम्बन्धित चार विद्युतीय राशियां होती हैं – निवेश धारा (input current), निवेश वोल्टता (input voltage), निर्गत धारा ( output current) तथा निर्गत वोल्टता (output voltage)। इन राशियों की एक दूसरे पर निर्भरता को विभिन्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है। इनकी निर्भरता को ग्राफीय रूप में (graphically) या गणितीय रूप में (analytically) दर्शाया जा सकता है। ग्राफीय विधि का उपयोग सरल एवं अधिक उपयुक्त होता है।
किसी संधि ट्रॉजिस्टर के विभिन्न वोल्ट – ऐम्पियर सम्बन्ध या अभिलाक्षणिक (characteristics) प्राप्त करने के लिये उसके निम्न तीन मूलभूत विन्यास (configurations) प्रयुक्त किये जाते हैं –
(A) उभयनिष्ठ आधार विन्यास (Common – Base Configuration)
(B) उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास (Common – Emitter Configuration)
(C) उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास ( Common – Collector Configuration)
(A) उभयनिष्ठ आधार विन्यास (Common – Base Configuration)
चित्र (4.6–1) में संधि ट्रॉजिस्टर PNP तथा NPN के उभयनिष्ठ आधार विन्यास को प्रदर्शित किया गया है। इस विन्यास में आधार का टर्मिनल निवेश (input) तथा निर्गम ( output) दोनों परिपथों में उभयनिष्ठ होता है। इसे भू-सम्पर्कित आधार विन्यास (grounded-base configuration) भी कहते हैं।
चित्र (4.6-1) में संधि ट्रॉजिस्टर के विभिन्न धारा घटकों की दिशाओं को प्रदर्शित किया गया है। PNP ट्रॉजिस्टर में वोल्टता VEB धनात्मक तथा VCB ऋणात्मक होती है जबकि NPN ट्रॉजिस्टर में वोल्टता VEB ऋणात्मक तथा Vcb धनात्मक होती है । संधि ट्रॉजिस्टर PNP या NPN का उभयनिष्ठ आधार विन्यास में व्यवहार प्रदर्शित करने के लिये दो अभिलाक्षणिक वक्र समूह खींचे जाते हैं – (i) निवेश अभिलाक्षणिक (input characteristics) (ii) निर्गम अभिलाक्षणिक (output characteristics)
(i) अभिलाक्षणिक (Characteristics)
निवेश अभिलाक्षणिक ( Input characteristics)- इस विन्यास में निवेशी धारा, उत्सर्जक धारा IE तथा निवेशी वोल्टता, उत्सर्जक आधार वोल्टता VEB होती है। संग्राहक – आधार वोल्टता Vop निर्गत वोल्टता होती है तथा संग्राहक धारा L निर्गत धारा होती है। संग्राहक – आधार वोल्टता VCB को स्थिर रखकर उत्सर्जक – धारा Ig तथा उत्सर्जक आधार वोल्टता VEB के मध्य खींचे गये वक्र उभयनिष्ठ आधार विन्यास के लिए निवेश अभिलाक्षणिक (input characteristics) होते हैं। चित्र (4.6-2) में उभयनिष्ठ आधार विन्यास के लिए PNP संधि ट्रॉजिस्टर के निवेश अभिलाक्षणिकों को प्रदर्शित किया गया है। इन अभिलाक्षणिकों को उत्सर्जक अभिलाक्षणिक (emitter characteristics) भी कहते हैं।
चित्र (4.6-2) के वक्र से यह ज्ञात होता है कि वोल्टता VCB के एक स्थिर मान लिये जब वोल्टता VEB का मान बढ़ाया जाता है तो उत्सर्जक धारा I का मान बढ़ता है। VEB वोल्टता का एक ऐसा मान भी होता है जिससे कम मान के लिये उत्सर्जक धारा का मान बहुत कम (अत्यल्प ) होता है, इस वोल्टता को संधि ट्रांजिस्टर की प्रारम्भिक वोल्टता (cutin voltage) या देहली वोल्टता (threshold voltage) कहते हैं। जरमेनियम ट्रॉजिस्टर के लिये इसका मान लगभग 0.1 V तथा सिलिकन ट्रॉजिस्टर के लिये लगभग 0.5 V होता है।
NPN संधि ट्रॉजिस्टर के निवेश अभिलाक्षणिक भी चित्र (4.6-2) के समान प्राप्त होता है परन्तु इसके लिये IE तथा VEB दोनों ऋणात्मक होते हैं तथा वोल्टता VCB धनात्मक होती है। Ver के किसी मान के लिये ये अभिलाक्षणिक वक्र अर्धचालक डायोड के अग्रदिशिक बायसित अभिलाक्षणिक वक्र के समरूप होते हैं। ट्रॉजिस्टर के गतिक निवेश प्रतिरोध का मान होगा-
निर्गम अभिलाक्षणिक (Output characteristics)
उभयनिष्ठ आधार अभिविन्यास में संग्राहक धारा I निर्गत धारा तथा संग्राहक आधार वोल्टता VCB निर्गत वोल्टता होती है। उत्सर्जक धारा IE निवेश धारा होती है। निर्गत या संग्राहक धारा I निवेशी या उत्सर्जक धारा वोल्टता. VCB द्वारा नियंत्रित होती है, अर्थात्
उत्सर्जक धारा Ig को स्थिर रखकर संग्राहक धारा I तथा संग्राहक आधार वोल्टता VCB के बीच खींचे गये वक्र समूह उभयनिष्ठ आधार विन्यास के लिये निर्गम अभिलाक्षणिक वक्र होते हैं। चित्र (4.6 – 3 ) में PNP ट्रॉजिस्टर के उभयनिष्ठ आधार विन्यास के लिये निर्गत अभिलाक्षणिक वक्रों के एक विशेष सेट को प्रदर्शित किया गया है। (यह ध्यान रहे कि PNP संधि ट्रॉजिस्टर के लिये IE धनात्मक तथा Ic और Ig ऋणात्मक होते हैं, वोल्टता VEB धनात्मक तथा वोल्टता VCB ऋणात्मक होती है ।)
चित्र (4.6-3) के निर्गम अभिलाक्षणिकों को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-
(a) सक्रिय क्षेत्र (active region) (b) अन्तक क्षेत्र ( cut off region) (c) संतृप्त क्षेत्र ( saturation region) (a) सक्रिय क्षेत्र (Active region)- यह क्षेत्र ट्रॉजिस्टर का सामान्य प्रचालन क्षेत्र होता है जब कि उसे प्रवर्धक के रूप में उपयोग में लाया जाता है इस क्षेत्र में संकेत ( signal) का प्रवर्धन न्यूनतम अपरूपण के साथ होता है। सक्रिय क्षेत्र में संग्राहक संधि (collector junction) पश्चदिशिक बायसित होती है जबकि उत्सर्जक संधि ( emitter junction) अग्रदिशिक बायसित होती है। जब उत्सर्जक धारा IE शून्य होती है तो संग्राहक धारा Ic, उत्क्रम धारा ( reverse saturation current) Ico के कारण होती है। धारा Ico का मान अत्यल्प (माइक्रो एम्पियर में) होता है। जब उत्सर्जक धारा के मान को बढ़ाया जाता है तब संग्राहक धारा का मान परिमाण में लगभग उतना ही बढ़ता है। इस क्षेत्र में IE तथा Ic में सम्बन्ध लगभग निम्न होता है।
Ic = IE
सक्रिय क्षेत्र में संग्राहक धारा का मान संग्राहक आधार वोल्टता VCB पर निर्भर नहीं होता है। इस क्षेत्र में निर्गम अभिलाक्षणिक वक्र लगभग एक दूसरे के समान्तर होते हैं !
(b) अन्तक क्षेत्र (Cut off region)- वोल्टता VCB अक्ष तथा IE = 0 अभिलाक्षणिक वक्र के बीच का क्षेत्र (region) अन्तक क्षेत्र (cut off region) होता है । Ico का मान अत्यल्प होने से यह क्षेत्र इस अभिविन्यास में स्पष्ट रूप से प्रक्षित नहीं होता। इस क्षेत्र में संग्राहक संधि तथा उत्सर्जक संधि दोनों ही उत्क्रमित बायसित होते हैं जिसके कारण संग्राहक धारा का मान बहुत कम प्राप्त होता है।
(c) संतृप्त क्षेत्र (Saturation region)- इस क्षेत्र में उत्सर्जक – आधार तथा संग्राहक – आधार दोनों संधियां अग्रदिशिक बायसित होती है। चित्र (4.6-3) में संतृप्त क्षेत्र Vcp = 0 रेखा के बाईं ओर तथा IE = 0 अभिलाक्षणिक के ऊपर है। इस क्षेत्र में संग्राहक धारा में परिवर्तन संग्राहक – आधार वोल्टता Vop के साथ चरघातांकी रूप में होता है तथा परिवर्तन बहुत अधिक होता है। इस क्षेत्र में संग्राहक धारा की उत्सर्जक धारा पर निर्भरता बहुत कम होती है। इस क्षेत्र में संग्राहक-आधार संधि अल्प वोल्टता से अग्रदिशिक बायसित होती है।
(ii) गतिक निर्गम प्रतिरोध (Dynamic output resistance ro)
ट्रॉजिस्टर का गतिक निर्गम प्रतिरोध
जहाँ 1E के किसी नियत मान के लिये Vcb निर्गम अभिलाक्षणिक वक्र के किसी बिन्दु पर संग्राहक आधार वोल्टता VCB में अल्प परिवर्तन है तथा lc संग्राहक धारा में अल्प परिवर्तन होता है। उभयनिष्ठ आधार विन्यास में ट्राजिस्टर के गतिक निर्गम प्रतिरोध का मान बहुत अधिक (लगभग मेगाओम की कोटि का) होता है क्योंकि निग अभिलाक्षणिक वक्र लगभग Vcb अक्ष के समान्तर होते हैं। VCb के किसी मान के लिये lc का मान अत्यल्प प्राप्त होता है।
(iii) धारा प्रवर्धन गुणांक (Current amplification factor)
उभयनिष्ठ आधार विन्यास में सधि ट्रॉजिस्टर के लिये उसके स्थिर संग्राहक आधार वोल्टता VCB पर संग्राहक धारा (Ic) तथा उत्सर्जक धारा (IE) के अनुपात को स्थैतिक धारा प्रवर्धन गुणांक या dc धारा लाभ कहते हैं। इसे से प्रदर्शित करते हैं अर्थात्
सक्रिय क्षेत्र में अभिलाक्षणिक वक्र के किसी बिन्दु पर Ic का मान lg से कम होता है परन्तु इनमें अन्तर बहुत कम होता है। अत: ade का मान एक से कम लेकिन एक के निकट होता है।
गतिक अवस्था के लिये यदि निवेशी धारा में परिवर्तन AIE से निर्गत धारा में परिवर्तन l होता है तो AL व AIE का अनुपात गतिक धारा लाभ 0 कहलाता है। अतः
aac का मान भी 1 के निकट परन्तु 1 से कुछ कम (0.95 से 0.99 के मध्य होता है । )
(iv) उभयनिष्ठ आधार विन्यास में ट्राँजिस्टर के अभिलाक्षणिकों का प्रयोग द्वारा आलेखन-प्रयोग के द्वारा NPN/PNP ट्रॉजिस्टर के उभयनिष्ठ आधार विन्यास में अभिलाक्षणिक वक्रों को खींचने के लिये निम्न परिपथों (चित्र 4. 6-4 तथा चित्र 4.6-5 ) का उपयोग किया जाता है।
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