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कॉकरोच (तिलचट्टा) क्या है , जानकारी , संरचना , चित्र ,प्रजनन तंत्र , cockroach in hindi कॉकरोच का जीवन चक्र
कॉकरोच का जीवन चक्र कितना होता है ? कॉकरोच (तिलचट्टा) क्या है ? cockroach in hindi जानकारी , संरचना , चित्र ,प्रजनन तंत्र कैसा होता है ? किसे कहते है ?
परिभाषा : स्वभाव एवं प्रकृति : यह एक मुक्तजीवी रात्रिचर प्राणी है। यह नम , अँधेरे वाले स्थानों पर पाया जाता है। यह सर्वाहारी होता है। यह तेजी से दौड़ने वाला तथा खतरे के समय उड़ने की क्षमता भी रखता है।
बाह्य आकारिकी
1. रंग – यह चमकीला पीला , लाल व हरे रंग का हो सकता है। परन्तु मुख्यत: चमकीले भूरे रंग का होता है।
2. आकार – यह 1/4 से 3 इंच लम्बा (पेरिप्लेनेटा अमेरिकन 34 – 53 मिली लम्बा ) होता है।
3. खण्ड – शरीर मुख्यत: सर , वक्ष व उदर में बंटा होता है।
4. बाह्य आवरण – बाह्य कंकाल काइटिन का बना होता है। बाह्य कंकाल में मजबूत पट्टिकाएँ होती है , जिन्हे कठक कहते है। पृष्ठांश व अद्यांश एक पतली झिल्ली से जुड़े रहते है जिसे संधि झिल्ली कहते है।
सिर : शरीर के अग्र भाग में त्रिकोणीय गहरे रंग का सिर होता है , जो वक्ष से समकोण पर लगा होता है। लचीली गर्दन के कारण यह चारो ओर घूम सकता है। सिर पर एक जोड़ी संयुक्त नेत्र व एक जोड़ी श्रंगिकाएं पायी जाती है , जो संवेदी ग्राही होती है। सिर के अग्र छोर पर काटने व चबाने के लिए मुखांग पाये जाते है। मुखांग में निम्न भाग होते है –
- एक जोड़ी उधर्वोष्ठ – ऊपरी जबड़ा
- एक जोड़ी चिबुकास्थी – निचला जबड़ा
- एक जोड़ी जम्भिका
- एक जोड़ी अधरोष्ठ
- अद्योग्रसनी – जीभ का कार्य
वक्ष (Thorax) : वक्ष तीन खण्डो में बंटा होता है।
अग्र वक्ष , मध्य वक्ष व पश्च वक्ष
प्रत्येक वक्ष भाग से एक जोड़ी टाँगे निकलती है , प्रत्येक टांग के निम्न भाग होते है।
- कक्षांक
- शिखरक
- ऊर्विका
- अंतजरधानिका
- गुल्फ
वक्ष भाग से दो जोड़ी पंख निकलते है।
1. अग्र पंख – ये मध्य वक्ष से निकलते है , वे अपारदर्शी व हरे रंग के होते है व प्रवार आच्छाद कहलाते है।
2. पश्च पंख – ये पश्च वक्ष से निकलते है , ये पारदर्शी , झिल्लीनुमा व उड़ने में सहायक होते है।
उदर (Abdomen) : नर व मादा में उदर 10 खण्डीय होता है। 7 , 8 व 9 वा खण्ड मिलकर जनन कोष्ठ बनाते है। 10 वें खण्ड पर एक जोड़ी संधि युक्त तन्तुमय गुदीय लूम पायी जाती है। लुमो के बीच में एक जोड़ी गुदा शुष्क होते है , मादा में गुदा शुष्क अनुपस्थित होते है।
आन्तरित आकारिकी
1. आहारनाल : कॉकरोच की आहारनाल तीन भागो में विभक्त होती है –
- अन्ग्रान्त्र : यह क्यूटिकल से स्थिरित भाग होता है | इसमें निम्न अंग होते है –
- मुख : सिर के अग्र छोर पर मुख स्थित होता है , जिसमे भोजन को काटने , चबाने के लिए मुखांग पाये जाते है |
- मुखगुहा : मुख मुखगुहा में खुलता है , मुखगुहा ग्रसिका से जुडी होती है |
- ग्रसिका : यह एक सकरी नलिका होती है जो अन्न्पुट में खुलती है |
- अन्न्पुट : इसमें भोजन का संग्रह होता है |
- पोषणी : इसमें भोजन को पिसा जाता है |
- मध्यान्त्र : यह भाग क्यूटिकल से स्थिरित नहीं होता है , यह समान व्यास की सकरी नलिका होती है | जिसमे अंगुली के समान 6-8 अंध नलिकाएं निकलती है | ये पाचक रस बनाती है |
- पश्चांत्र : यह मध्यांत्र से चौड़ा भाग होता है , इसमें निम्न संरचनाएं पायी जाती है |
- क्षूंदात्र
- वृहदांत्र (कोलोन)
- मलाशय
- गुदा
परिसंचरण तंत्र (circulatory system)
परिसंचरण तन्त्र खुला प्रकार का होता है , रुधिर वाहिनियाँ अनुपस्थित होती है | रूधिर रक्त पात्रों में भरा होता है , रुधिर लसिका (हिमोलिंक) रंगहीन प्लाज्मा व रुधिराणु से बना होता है | ह्रदय लम्बी पेशीय नलिका के रूप में होता है |
श्वसन तंत्र (Respiration system) :
कोकरोच का श्वसन तंत्र 10 जोड़ी श्वसन नालो से बना होता है , जो शरीर के पाशर्व में में 10 जोडी श्वसन छिद्रों के रूप में खुलते है , श्वसन नाल पुन: विभाजित होकर श्वसनिकाएं बनाती है | जिन पर गैसों का आदान प्रदान विसरण विधि द्वारा होता है |
उत्सर्जन तंत्र
कोकरोच में उत्सर्जन मैलपिघी नलिकाओ द्वारा होता है , ये नलिकाएं ग्रंथिल व रोकयुक्त होता है | ये यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करती है |
मैलपीघी नलिकाओ के अतिरिक्त वसा पिण्ड , वृक्काणु , उपत्वचा व युरेकोष ग्रन्थियां उत्सर्जन में सहायक होती है |
तंत्रिका तंत्र :
कोकरोच में तन्त्रिका तन्त्र गुच्छको का बना होता है , कुल नौ गुच्छक होते है , जिनमे से तीन गुच्छक वक्ष भाग में व 6 गुच्छक उदर भाग में होते है |
तंत्रिका तंत्र पूरे शरीर में फैला रहता है , सिर भाग में तंत्रिका तंत्र कम जबकि शरीर के शेष भाग अधिक विस्तारित होता है | यही कारण है की कोकरोच का सिर कट जाने पर भी वह एक सप्ताह तक जीवित रह सकता है |
संवेदी अंग :
- श्रगिका व स्पर्शक : ये स्पर्श संवेदी अंग होते है |
- संयुक्त नेत्र : ये एक जोड़ी होते है , प्रत्येक संयुक्त नेत्र में लगभग 2000 षटकोणीय नेत्रशांक होते है | नेत्रशांको की सहायता से कोकरोच एक ही वस्तु के कई प्रतिबिम्ब देख सकता है , इसे मौजेक दृष्टि कहते है |
- मैक्सिलरी स्पर्शक : ये स्वाद ग्राही अंग है |
- गुदा लूम : ये धमनी ग्राही अंग है |
- लैबियल स्पर्शक : ये संवेदनाओं को ग्रहण करते है |
प्रजनन तंत्र
- नर जनन तंत्र :
- वृषण : कोकरोच में एक जोडी वृषण 4-6 खण्ड के पाशर्व में पाये जाते है , ये शुक्राणुओ का निर्माण करते है |
- शुक्रवाहिनी : प्रत्येक वृषण से एक पतली शुक्रवाहिनी निकलती है जो शुक्राशय से होते हुए स्खलनीय वाहिनी खुलती है |
- शुक्राशय : यहाँ शुक्राणुओं का अस्थायी संग्रह किया जाता है |
- स्खलनीय वाहिनी : यह शुक्राशय से जुडी रहती है , आगे की ओर नर जनन छिद्र में खुलती है |
- छात्रक ग्रन्थियाँ : 6 वे व 7 वे खण्ड में पायी जाती है , सहायक जनन ग्रंथि का कार्य करती है |
- बाह्य जननेन्द्रिय : यह गोनोफोसिस या शिश्न खण्ड के रूप में होता है |
- शुक्राणु : ये शुक्राशय में संग्रहित रहते है , आपस में चिपककर पुंज बनाते है जिसे शुक्राणुधार कहते है |
- मादा जनन तंत्र
- अंडाशय : एक जोड़ी अण्डाशय उदर के 2-6 खण्डो के पाशर्व में स्थित होते है , ये अण्डाणुओ का निर्माण करते है |
- अण्डवाहिनी : प्रत्येक अण्डाशय से एक चौड़ी कीपनुमा नलिका निकलती है जिसे अण्डवाहिनी कहते है , दोनों अण्डवाहिनी योनी में खुलती है तथा योनी जननकोष्ट में खुलती है |
मैथुन तथा निषेचन : मैथुन क्रिया रात्रि में मार्च से सितम्बर माह के मध्य होता है , प्रजनन काल के दौरान मादा कामोत्तेजक फिरामोन स्त्रावित करती है जिससे आकर्षित होकर नर मादा से मैथुन करता है |
मैथुन के फलस्वरूप शुक्राणु शुक्राणुधर से मादा में स्थानान्तरण हो जाते है , निषेचन कक्ष में निषेचन होता है | निषेचित अंडे एक सम्पुट में रहते है , जिसे अण्ड कवच कहते है | अण्डकवच लाल काले रंग के लगभग 8 मिमी लम्बे होते है | औसतन एक मादा 9 से 10 अण्ड कवच उत्पन्न करती है तथा प्रत्येक अंड कवच में 14-16 अण्डे होते है |
परिवर्धन :
परिवर्धन पोरोमेटाबोलस प्रकार का होता है , जिसमे लार्वा अवस्था होती है जो व्यस्क के समान दिखाई देता है , कायांतरण के दौरान 13 निर्मोचनो के बाद व्यस्क में बदल जाता है |
आर्थिक महत्व : कोई आर्थिक महत्व नही है , ये पीडक जीव होते है , ये खाद्य पदार्थो को दूषित कर अनेक रोग फैलाते है |
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