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स्कंदन की परिभाषा क्या है , कोलाइड कणों का स्कन्दन किसे कहते है , स्कंदन कैसे होता है (coagulation of colloids in hindi)

(coagulation of colloids in hindi) स्कंदन की परिभाषा क्या है , कोलाइड कणों का स्कन्दन किसे कहते है , स्कंदन कैसे होता है : धातुओं जैसे सल्फाइड आदि के कोलाइड विलयन सीधे नहीं बन पाते है , धातु का कोलाइड विलयन बनाने के लिए विशेष विधियाँ काम में ली जाती है जैसे ऐसे विलयन में विद्युत अपघट्य मिला देना आदि। कोलाइड विलयन में कोलाइड कणों पर कुछ आवेश अवश्य उपस्थित रहता है जो सभी कोलाइड कणों पर समान प्रकृति का होता है और परिक्षेपण माध्यम के कणों पर विपरीत आवेश होता है इसलिए कुल कोलाइडी विलयन विद्युत उदासीन रहता है।
कोलाइडी कणों के ऊपर उपस्थित इस विद्युत आवेश के कारण , ये कण आपस में एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते रहते है और इस तरह ये साथ संयुक्त नहीं हो सकते है।
लेकिन यदि किसी विधि द्वारा कोलाइड कणों के इस विद्युत आवेश को नष्ट कर दिया जाए तो कोलाइडी आपस में संयुक्त हो जाते है और संयुक्त होने के बाद गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में ये कण नीचे बैठ जाते है या स्कंदित हो जाते है , इस तरह किसी भी विधि द्वारा कोलाइड कणों का पैंदे में बैठ जाना या एकत्रित हो जाना स्कंदन कहलाता है।
परिभाषा : किसी भी कोलाइडी विलयन का अवक्षेप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को स्कंदन कहते है।

स्कंदन की विधियाँ

किसी कोलाइड विलयन को स्कंदित करने के कई तरीके है जिनमें कुछ तरीके या विधियां निम्न प्रकार है –
1. विद्युत कण संचलन द्वारा : इस विधि में कोलाइडी कणों को विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की तरफ गति करवाया जाता है जहाँ ये कण विद्युत उदासीन हो जाते है और विद्युत उदासीन कणों पैंदे में इक्कठे हो जाते है या स्कंदित हो जाते है।
2. दो विपरीत आवेशित कोलाइड विलयन को मिलाकर : इस विधि में  समान और विपरीत आवेशित कोलाइड विलयन को समान मात्रा में आपस में मिलाया जाता है जिससे कोलाइड कण एक दूसरे के आवेश को नष्ट कर देते है क्यूंकि दोनों विलयन के कणों पर समान और विपरीत प्रकृति का आवेश है , जिससे कोलाइड कण आवेश रहित या उदासीन हो जाते है और पैंदे में बैठ जाते है अर्थात इनका स्कन्दन हो जाता है।
3. उबालकर या क्वथन द्वारा : जब किसी कोलाइडी विलयन को उबाला जाता है तो उबालने से इसके कण आपस में या माध्यम की दिवार के साथ टक्कर करने लगते है जिससे इन कणों की अधिशोषित परत छिन्न भिन्न हो जाती है जिसके कारण इन कोलाइड कणों का आवेश नष्ट हो जाता है और ये कण आपस में संयुक्त होकर पैंदे में बैठने लगते है अर्थात इनका स्कंदन होने लगता है।
4. लगातार अपोहन द्वारा : जैसा कि हम जानते है कि किसी भी कोलाइड विलयन के स्थायित्व के लिए इसमें कुछ न कुछ विद्युत अपघट्य की मात्रा उपस्थित होना आवश्यक होती है , यदि किसी कोलाइड विलयन का लगातार या बार बार अपोहन किया जाए तो अंत में सम्पूर्ण विद्युत अपघट्य विलयन से बाहर निकल जाता है अर्थात कोलाइड कणों का आवेश ही विलयन से बाहर निकल जाता है जिससे कोलाइड कण उदासीन हो जाते है और जिससे ये पैंदे में बैठ जाते है , यही कारण है कि हम कहते है की विद्युत अपघट्य किसी कोलाइडी विलयन के स्थायित्व को बढाता है।
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