रक्त का स्कंदन , डेल्टा का निर्माण , कोलाइड के अनुप्रयोग (coagulation of blood in hindi) , कृत्रिम बरसात

(coagulation of blood in hindi) रक्त का स्कंदन , डेल्टा का निर्माण , कोलाइड के अनुप्रयोग : हम यहाँ कुछ हमारे चारों ओर देखे जा सकने वाले कोलाइड के अनुप्रयोगों का अध्ययन करेंगे।
रक्त का स्कन्दन : रक्त को एल्ब्यूमिनाइडों के ऋणावेशित कोलाइडी कणों का जल में कोलाइडी विलयन माना जा सकता है चूँकि यहाँ कोलाइड कण ऋणावेशित है इसलिए ये कण किसी धनावेशित आयन द्वारा स्कंदित हो सकते है।
रक्त में उपस्थित एल्ब्यूमिनाइड के ऋणावेशित कोलाइडी कण , फिटकरी में उपस्थित Al3+ द्वारा स्कंदित हो जाते है या एल्ब्यूमिनाइड के ऋणावेशित कोलाइडी कण , फेरिक क्लोराइड में उपस्थित Fe3+ द्वारा स्कंदित हो जाते है।
रक्त का स्कंदन होने से रक्त का थक्का जम जाता है जिससे रक्त वाहिनियों में रक्त का बहना बंद हो जाता है।
डेल्टा का निर्माण : जिन स्थानों पर नदियाँ समुद्र में जाकर मिलती है उन स्थानों पर त्रिभुज आकार की भूमि का निर्माण हो जाता है इस त्रिभुजाकार भूमि को डेल्टा कहते है और इस प्रकार इस त्रिभुजाकार भूमि बनने की प्रक्रिया को डेल्टा का निर्माण कहते है।
यह डेल्टा भी स्कंदन के कारण ही बनता है।
नदी के पानी में उपस्थित रेत , मिट्टी या अन्य सभी पदार्थ  ऋणावेशित निलंबित रहते है अर्थात ऋणावेशित कोलाइडी कणों की तरह कार्य करते है , तथा समुद्र में विभिन्न प्रकार के विद्युत अपघट्य पाए जाते है जैसे NaCl , KI आदि।
जब नदी किसी समुद्र में मिलती है या गिरती है तो नदी में उपस्थित ऋणावेशित कोलाइडी कण अर्थात मिटटी , रेत आदि समुद्र में उपस्थित विद्युत अपघट्य से प्राप्त धनावेशित आयनों द्वारा उदासीन हो जाते है या समुद्र के विद्युत अपघट्य के धनायनो द्वारा नदी में उपस्थित रेत आदि अपना आवेश खो देती है और उदासीन हो जाती है जिससे नदी में उपस्थित मिट्टी , रेत आदि स्कन्दन हो जाता है और वह अवक्षेपित हो जाती है और डेल्टा का रूप ले लेती है या डेल्टा का निर्माण होने लगता है।

हमारे चारों तरफ कोलाइड के अन्य अनुप्रयोग

कोहरा , धुंध तथा बरसात : हम जानते है कि आकाश में नमी उपस्थित रहती है , आसमान में उपस्थित यह नमी ओसोक से कम ताप पर वायु में उपस्थित धूल के कणों पर संघनित हो जाती है और संघनित होकर छोटी छोटी बूंदों का रूप ले लेती है।
इन बूंदों का आकार कोलाइड आकार का होता है जिससे ये वायु में तैरती रहती है और धुंध या कोहरा बन जाता है।
बादल में हवा और ये पानी की छोटी छोटी बुँदे उपस्थित रहती है अर्थात बादल को एरोसोल कहा जा सकता है , जब ये छोटी छोटी बुँदे अपना आवेश खो देती है तो ये बहुत सारी छोटी छोटी बुँदे आपस में संघनित हो जाती है और बड़ी बूंदों का रूप ले लेती है और अब गुरुत्वीय प्रभाव में ये बड़ी बुँदे धरती पर गिरने लगती है जिसे बरसात कहते है , दो आवेशित बादलो के आपस में टकराने से यही तात्पर्य है कि ये एक दुसरे की बूंदों को अनावेशित कर देते है जिससे उनका स्कंदन हो जाता है और वे मिलकर बड़ी बुँदे बना लेती है और पृथ्वी पर गिरने लगती है।
कृत्रिम बरसात के लिए बादलो पर उपस्थित आवेश के विपरीत आवेश के धुल के कण या कार्बन डाई ऑक्साइड या AgI के बारीक चूर्ण को वायुयान द्वारा आकाश में स्प्रे करवाया जाता है ताकि बादलों में उपस्थित बुँदे संघनित होकर बड़ा आकार लेकर गुरुत्वीय प्रभाव में धरती पर गिरने लगे अर्थात बारिश होने लगे।