रक्त का थक्का जमना क्या है , रक्त स्कंदन कारक कौन कौनसे है , Clotting of blood or Coagulation in hindi

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आर. एच कारक ( Rh Factor )

सन् 1940 में लैण्डस्टीनर (Landsteiner) तथा वीनर (Weiner) न रीसस (Rhesus) बन्दर की लाल रुधिर कणिकाओं में एक अन्य अन्य कारक ( factor) का पता लगाया था इसे Rh – कारक या Rh– एण्टीजन नाम दिया गया । Rh संकेत का प्रयोग ‘रीसस’ शब्दा को दर्शाने के लिये किया जाता है। इसी कारक (factor) को कई मनुष्यों की लाल रुधिर कणिकाओं में भी देखा जाता है। जिन मनुष्यों के लाल रक्ताणुओं में Rh एण्टीजन होता है उन्हें Rh पॉजिटिव (Rht) कहते हैं। और जिनमें इनका अभाव होता है, उन्हें Rh नैगटिव (Rh ) कहते हैं । विश्व में लगभग 85 प्रतिशत जन समुदाय के लोग Rh पॉजिटिव होते हैं जबकि शेष 15 प्रतिशत में यह कारण अनुपस्थित रहता है अर्थात् ये Rh नैगेटिव होते हैं। भारतीय जनसंख्यया में 90% लोग Rh + पॉजिटिव तथा 7% Rh – नैगेटिव हैं।

सामान्यतया Rh नैगेटिव (Rh ) व्यक्ति के रुधिर में ऐसी कोई भी एण्टीबॉडी उपस्थित नहीं होती जो Rh कारक के साथ प्रतिक्रिया दर्शाती है परन्तु ये एण्टीबॉडी ऐसे व्यक्ति के शरीर में Rh कारक की उपस्थित उत्पन्न हो सकती है।

यदि किसी Rh—नैगेटिव व्यक्ति प्रथम बार Rh + (पॉजिटिव) व्यक्ति का रुधिर प्रवेश कराया जाता है। प्रथम संचरण (transfusion) में एण्टीजन- एण्टीबॉडी की एग्लूटिनेशन क्रिया नहीं होती है। परन्तु उसी ग्राही को यदि कुछ दिनों या कुछ वर्षों के पश्चात् पुन: Rh रुधिर का संचरण किया जाये तो एण्टीबॉडी की अत्यधिक संख्या होने के कारण ग्राही के शरीर में एण्टीजन – एण्टीबॉडी की एग्लूटिनेशन क्रिया होने लगती है। जिससे मृत्यु हो सकती है। इसी प्रकार Rh – कारक के कारण कई बार जन्म के समय बच्चे की मृत्यु भी देखी जाती है। इसी प्रकार की स्थिति Rh (नैगेटिव) माता में Rh (नेगेटिव) भ्रूण की उपस्थिति के कारण देखी गई है। Rh नैगेटिव स्त्री की Rh (पॉजिटिव) मनुष्य से शादी होने परवह Rh (पॉजिटिव) गर्भ धारण करने पर Rh कारक के प्रति सुग्राही (sensitised) हो जाती है। गर्भ के अन्दर विकास के समय भ्रूण का कुछ कोशिकायें माता के प्रथम सन्तान लगभग सामान्य होती है। यह देखा गया है। कि माता के सुग्राही बनाने के लिए कम से कम एक सगर्भता (pregnancy) आवश्यक हैं इस स्थिति में माता के एण्टीबॉडी अपरा (placenta ) & विकासशीलता भ्रूण में पहुँचकर उनकी लाल रुधिर कणिकाओं को क्षति पहुँचाते हैं। यह क्षति भ्रूण की लाल रक्ताणुओं के एग्लूटिनेशन या हीमोलाइसिस के रूप में होती है। इसके फलस्वरूप एरिथ्रोब्लास्टोसिस फोटेलिस ( erythroblastosis foetalis) नामक रोग हो जाता घातक (fatal) होता है कि जन्म से पहले ही अथवा फिर जन्म हो जाती है।

III. एम व एन कारक (M and N factors)

A व B एग्लुटिनोजन या एण्टीजन के अतिरिक्त लाल रक्त कणिकाओं में M तथा N प्रकार के एण्टीजन भी पाये जाते हैं। ये एण्टीजन जीन रकत समूहों का निर्माण करते हैं । इन्हें M, N तथा M रक्त समूह कहते हैं। M तथा N एण्टीजन के प्रति सीरम में एण्टीबॉडीज या एग्लुटिनिन्स होता है। यदि मनुष्य के रुधिर को अन्य किसी जन्तु जेस खरहे के शरीर में प्रवेश करा दिया तो ये एण्टीबॉडीज उतपन्न हो जाती है। ये एण्टीबॉडीज विभिन्न एण्टीजन्स के प्रति विरोधी होते लैण्डस्टीनर तथा लेवीन (Landsteiner and Levine, 1927) ने खरहे के विकसित एण्टीबॉड के साथ प्रतिक्रिया के आधार पर मानव जनसंख्या को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया है।

रक्त का थक्का जमना या स्कन्धन (Clotting of blood or Coagulation)

शरीर के किसी भी भाग में चोट लगने पर उस भाग में उपस्थित ऊत्तक की रुधिर कोशिकाएं तथा वाहिनियाँ टूट जाती हैं जिससे रक्त बाहर निकलने लगता है और थौड़ी देर में स्वतः ही रक्त का बहना बन्द हो जाता है। मनुष्य के रुधिर का यदि नमूना ( sample) लिया जाये तो वह 3 से 10 मिनट (औसत 6 मिनट) जैली समान गाढ़े पदार्थ में परिवर्तित हो जाता है। जमे हुए रक्त को धक्का (clot) कहा जाता है। प्लाज्मा या सीरम (serum) से थाक अलग होने की क्रिया को थक्का बनन (clotting) या स्कन्धन (coagulation) कहा जाता है। रुधिर वाहिनियों में रक्त का थक्का नहीं बनता क्योंकि हिपैरिन (heparin) रक्त में यकृत से निकलकर इस क्रिया में अवरोध ( barrier) उत्पन करता है। कभी-कभी बिना किसी चोट के भी सामान्य रक्त वाहिनियों में रकत का थक्का बन जात है इसे थोम्ब्रस (thrombus) कहते हैं। इस प्रकार रक्त वाहिनियों में अन्दर रुधिर के थक्का की क्रिया को थ्रोम्बोसिस (thrombosis) कहा जा सकता है। इसे एम्बोलस (embolus) कहा जात है। यदि एम्बोलस किसी वाहिनी में फँसकर रुधिर संचरण को बन्द करता है तो इसे एम्बोलिम (embolism) कहा जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

(1) रक्त-स्कन्धन कारक (Blood clotting factors)

(i) कारक- 1 या फाइब्रिनोजन (Factor-1 or fibrinogen) विजव (Wirchoe; 1845) ने फइब्रिनोजन को रक्त स्कन्धन कारक खोजा था। यह रुधिर प्लाज्मा में उपस्थित एक ग्लाइकोप्रोटीन (glycoprotein) होती है जिसका अणुभार 24,000 होता है। यह यकृत उत्पन्न होती है तथा प्लाज्मा में घुलनशील (soluble) होती है। रक्त के थक्का बनने के  एक अघुलशील (insoluble), प्रोटीन फाइब्रिन (librin) में परिवर्तित हो जाती है।

(ii) कारक – II या प्राथम्बिन (Factor-II or prothrombin ) इसे सर्वप्रथम 1863 श्मिट (Schimdt) ने खोजा था यह भी एक ग्लाइकोप्रोटीन होती है जो रुधिर प्लाज्मा में उपस्थित होती है इनका अणुभार 69,000 होता है। इनका निर्माण भी यकृत में होता है । परन्तु इसके लिए विटामिन्स K आवश्यक होता है। रुधिर स्कन्धन के समय प्रोथ्रोम्बिन एक प्रोथ्रोम्बिन सक्रियक (prothrombin activator) थ्रोम्बोप्लास्टिन (thromboplastin) की उपस्थिति में थ्रोम्बिन (thrombin में परिवर्तित हो जाते हैं। थ्रोम्बिना का अणुभार 33,000 होता है।

(iii) कारक-III या थ्रोम्ब्रोप्लास्टिन (Factor- III or thromboplastin )—– यह एक लिपोप्राटीन होता है जो थ्रोम्बोसाइट्स एवं ऊत्तकों की कोशिकाओं में पाया जाता है। इनका रुंधिर स्कन्धन क्रिया का कार्य शिमड्ट (Schmidt) ने खोजा था वह उत्तकों में एक निष्क्रिय पदार्थ प्रोथ्रोम्बोप्लास्टिन (prothromboplastin ) के रूप में स्त्रावित किया जाता है। यह (प्रोकन्वर्टिन (proconvertin) कारक की ‘उपस्थिति में एक सक्रिय थ्रोम्बोप्लास्टिन में बदल जाता है।

(iv) कारक-IV या कैल्शियम आयन) (Factor- IV or calcium ion)—–— यह रुधिर स्कन्ध न में एक सतह कारक ((cofactor) के रूप में कार्य करते हैं। ये थ्रोम्बोप्लस्टिक के निर्माण तथा प्रोथ्रोम्बिन को थ्रोम्ब्रिन में परिवर्तित करने हेतु आवश्यक होते हैं।

(v) कारक – V या प्रोएक्सिलरिन (Factor-V or proaccelerin)— इसे ओवंरेन (Oweren ; 1947) ने खोजा था। यह एक ताप – अस्थिर ( thermolabile) पदार्थ होता है जो कुछ ताप द्वारा सरलता से नष्ट किया जा सकता है। यह भी प्रोथ्रोम्बिन को थ्रोम्बिन में परिवर्तित करने हेतु आवश्यक होता है। यह रुधिर प्लेटलेट्स से प्रोथ्रोम्बोप्लास्टिन के मुक्त करने में भी मदद करता है।

(vi) कारक – VI या एक्सिलरिन (Factor-VI or accelerin)—–— यह प्रोएक्सिरिन का एक परिकल्पित सक्रियण (hypothertical activation) उत्पाद होता है। इसकों अब कोई मान्यता नही . तथा यह रुधिर स्कन्धन क्रियाविधि में योगदान नहीं देता है।

(vii) कारक-VII या प्रोकन्वर्टिन (Factor- VII or proeonvertin)— यह एक प्लाज्मा प्रोटोन है जिसका अणुभार 60,000 होता है। इसके संश्लेषण हेतु विटामिन K आवश्यक होता है। यह भी यकृत में बनता है। यह चोट ग्रस्त ऊत्तकं से थ्रोम्बोप्लास्टिन बाहर निकालने में सहायक होता है।

(viii) कारक-VIII या एन्टीहीमोफिलिक ग्लोबुलिन (Factor-VIII or antihaemophilic globulin)—- यह एक ग्लाइकोप्रोटीन है जिसका अणुभार 11 लाख होता है। यह भी यकृत द्वार निर्मित होता है। यह फाइब्रिनोजन से संलग्न होता है, इस कारण रुधिर स्कन्धन के बाद नहीं देखा जाता है। यह प्रोथ्रोम्बिन त्वरक के निर्माण हेतु आवश्यक होता है। इसकी कमी से चोट ग्रस्त भाग से लगातार रुधिर बहने लगता है। जिसे हीमोफिलीया (haemophilia ) विकार कहा जाता है।

(ix) कारक – IX या क्रिस्मस कारक (Factor- IX or christmas factor ) – यह भी एक ग्लाइकोप्रोटीन है जिसका अणुभार 55,400 होता है। यह भी यकृत के द्वारा निर्मित होता है तथा इसके संश्लेषण हेतु भी विटामिन K आवश्यक हैं इसे प्लेट्लेट्स सहकारक-II (platelets cofactor-II) या ऑटोप्रोथ्राम्बिन-II (autoprothrombin-II) भी कहते हैं। यह सक्रिय होता तथा थ्रोम्बोप्लास्टिन में निर्माण में सहायता करता है।

(x) कारक-X या स्टुअर्ट कारक (Factor- X or stuart factor )—- यह भी एक ग्लाइकोप्रोटीन है जिसका अणुभार 55,000 होता है। तथा विटामिन K की उपस्थिति में यकृत के द्वारा संश्लेषित होता है। यह प्लाज्मा में निष्क्रिय अवस्था में पाया जाता है। परन्तु थक्का बनते समय यह क्रिसमस कारक, कन्वर्टिन, कैलियम आयन एवं एण्टीहीमोफिलिक कारक की उपस्थिति में सक्रिय हो है। इसकी कमी से नाक जोड़ों (joint) तथा कोमल उत्तकों (soft tissues) से लगातार रक्त प्रवाह होने लगता है।

(xi) कारक-XI या प्लाज्मा थ्रोम्बोप्लास्टिन पूर्ववर्ती (Factor-X thromboplastin ancedent ) – यह भी एक ग्लाइकोप्रोटीन है जिनका अणुभार 1,60,000 होता है यह भी यकृत के द्वारा निर्मित होता है। यह हागमेन कारक द्वारा सक्रिय होता है तथा थ्रोम्बिन के निर्माण में सहायक होता है। इसकी कमी से हीमोफिलिया C होता है। इस स्थिति में पुरुष एवं स्त्री दोनों के ही चोट ग्रस्त स्थान से अधिक रक्त स्त्राव होता है।

(xii) कारक-XII या हेगमेन कारक (Factor- X or Hagman factor ) – यह भी एक ग्लोक्रोप्राटीन है जिसका अणुभार लगभग 90,000 होता है। इसे संस्पर्श (surface contact) कारक भी कहते हैं। यह प्लाज्मा मे निष्क्रिय अवस्था में मिलता है। यह रुधिर वाहिनी की क्षतिग्रस्त दीवार में सम्पर्क में आते ही सक्रिय हो जाता है। यह प्रोथ्रोम्बिन सक्रियक का निर्माण करता है। इसकी कमी से रक्त स्कन्धन में अधिक समय लगता है।

(xiii) कारक-XIII या फाइब्रिन स्थिरकृत कारक (Factor- XIII or fibrin stabilizing factor)——— यह भी एक ग्लाकोप्रोटीन है जिसका अणुभार 3,20,000 होता है। यह Ca2+ आयन के साथ विलयशील फाइब्रिन को अविलयशील फाइब्रिन में रूपान्तरित करता है।

रक्त-स्कन्धन कारक (Blood Clotting Factors) रुधिर के स्कन्धन हेतु निम्न कारक खोजे गये हैं-

1 . फाइब्रिनोजन (Fibrinogen)

2 • प्रोथेम्बिन ( Prothrombin)

3 थ्रोम्ब्रोप्लास्टिन (Thromboplastin)

4.कैल्शियम आयन (Ca2+)

5.प्रोएक्सिलरिन (Proaccelerin)

6 – एक्सिलरिन (Accelerin)

VII – प्रोकन्वर्टिन (Progonvertin)

vII एन्टीहीमोफिलिक ग्लोबुलिन (Antihaemophilic globulin)

IX क्रिस्मस कारक (Christmas factor)

x स्टुअर्ट कारक (Stuart factor)

xl प्लाज्मा थ्रोम्बोप्लास्टिन पूर्ववती (Plasma thromboplastin ancedent)

XII हेगमेन कारक (Hagman factor)

XIII फाइब्रिन स्थिरकृत कारक (Fibrin stabilizing factor)