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Categories: BiologyBiology

पक्षी वर्ग के प्रमुख लक्षण क्या है ,  रूक की चार विशेषताएं लिखिए Class Aves in hindi examples

Class Aves in hindi examples पक्षी वर्ग के प्रमुख लक्षण क्या है ,  रूक की चार विशेषताएं लिखिए  पक्षियों की त्वचा का तुलनात्मक वर्णन कीजिए ?

पक्षी वर्ग
 रूक का जीवन और बाह्य लक्षण
वासस्थान पक्षियों के जीवन और संरचना से परिचित होने के लिए हम रूक का परीक्षण करेंगे। वसंत के प्रारंभ में, मार्च महीने में जैसे ही बर्फ पिघलने लगती है और जमीन के काले धब्बे खुलने लगते हैं , रूक (रंगीन चित्र १०) सोवियत संघ के केंद्रीय भाग में आने लगते हैं। ये वसंत के अग्रदूत हैं । वसंत और गरमियों के दिन वे हमारे देश के उक्त हिस्से में बिताते हैं और जाड़ों में दक्षिणी इलाकों में चले जाते हैं। रूक जाड़ों के दिन सोवियत संघ के दक्षिण में, दक्षिणी यूरोप में और उत्तरी अफ्रीका में बिताते हैं ।
रूक जंगलों और उद्यानों में पाये जाते हैं जहां वे अपने घोंसले बनाते हैं । इसी तरह वे खेतों में पाये जाते हैं जहां उन्हें अपना भोजन मिलता है। रूक वसंत में और गरमियों के पूर्वार्द्ध में बड़ा शोर मचाते हैं। इस अवधि में वे अपने घोंसले बनाते हैं और बच्चों की परवरिश करते हैं। शरद की संध्याओं में भी वे बड़े बड़े झुंडों में शोर मचाते हुए खेतों से घर लौटते हैं।
पर सभी पंछियों की तरह रूक का शरीर परों से ढंका रहता है। सबसे ऊपर सदंड पर होते हैं और उनके नीचे मुलायम निम्न पर ( आकृति ११२)।
सदंड पर में धुरी या दंड और उसके दोनों ओर जाल दिखाई देते हैं। इन दोनों को लेकर एक हल्की, लचीली झिल्ली बनती है। धुरी का सिरा जाल से खाली रहता है और दंड कहलाता है। पुराने जमाने में हंस के सदंड परों का उपयोग खिलने के लिए किया जाता था। धुरी का यह हिस्सा तिरछा काटकर उसने कलम बनाते थे।
निचले पर सदंड परों से इस माने में भिन्न होते हैं कि उनके जाल से एक अखंड झिल्ली नहीं बनती। शरीर से गरम हुई हवा निचले परों के बीच रोक रखी जाती है।
सदंड परों के जाल एक दूसरे पर चढ़े रहते हैं और तेज उड़ान के समय भी ठंडी हवा को शरीर में नहीं घुसने देते।
पर शृंगीय पदार्थ के बने रहते हैं। पंखों को जलाने से जो एक विशिष्ट गंध आती है उससे यह स्पष्ट होता है। रूक के पैरों पर शृंगीय शल्क होते हैं। चोंच पर भी शृंगीय झिल्ली का आवरण होता है। इस प्रकार ऊपरी तौर पर बड़ी भिन्नता के होते हुए भी पक्षियों और उरगों के बाहरी आवरणों में काफी समानता होती है। पक्षियों में निर्मोचन की क्रिया भी होती है, जब पुराने पर झड़ जाते हैं और उनकी जगह नये पर लेते हैं।
गति अन्य पक्षियों की तरह रूक के अगले अंग डैनों में परिवर्दि्धत हो चुके हैं। डैने का उड़ान स्तर बड़े बड़े सदंड परों का बना रहता है (प्राकृति ११३ )। हवा में फैले हुए डैनों की बरावर फटकारों के कारण रूक का शरीर अधर में बना रहता है और आगे की ओर चलता रहता है। पक्षी की गति का निर्देशन उसकी चैड़ी पूंछ द्वारा होता है। पूंछ सदंड परों की बनी होती है। इन्हें पूंछ या पतवारवाले पर। कहते हैं!
डैने शरीर से जुड़े रहते हैं। शरीर का आकार लंब वृत्ताकार होता है। छोटे और लचकहीन शरीर से डैनों को दृढ़ आधार मिलता है।
रूक जमीन पर अपने मजबूत पैरों के सहारे फुदकता है। हर पैर के चार अंगुलियां होती हैं जो काफी फैली हुई रहती हैं। तीन अंगुलियों का रुख भागे की ओर और एक अंगुलि का पीछे की ओर होता है। इससे पूरे शरीर को पर्याप्त आधार मिलता है।
पोषण रूक एक सर्वभक्षी पक्षी है। उसके भोजन में प्राणी और वनस्पति दोनों शामिल हैं। वह काकचेफरों, उनके डिंभों, अन्य कीड़ों और केंचुओं को खाता है।
जोताई के समय हमें रूकों के झुंड के झुंड हल के पीछे पीछे फुदकते हुए दिखाई देंगे। वे जमीन में से कीटों और उनके डिंभों को चुगते जाते हैं। उतनी ही खुशी से रूक विभिन्न पौधों के बीजों को खा जाते हैं। इनमें अनाज के बीज भी शामिल हैं। इससे रूकों से खेती को कुछ नुकसान पहुंचता है। वसंत में मक्के के खेतों में वे विशेष हानिकर सिद्ध होते हैं। वे अंकुरानेवाले बीजों और नये अंकुरों का सफाया कर डालते हैं। पक्षियों से खेतीबारी को जो नुकसान पहुंचता है उसका कुछ मुआवजा हमें इस बात से मिलता है कि वे हानिकर कीटों का नाग करते हैं और अपने बच्चों को ये कीट खिलाते हैं।
रूक अपनी चोंच से जमीन पर का भोजन चुग लेता है। चोंच वाहर निकल हुए लंबे जबड़ों से बनती है। बूढ़े रूकों की चोंच की बुनियाद के पासवाले पर झड़ जाते हैं और वहां का सफेद चमड़ा खुला पड़ता है। इस चिह्न से बढ़े रूक झट से पहचाने जा सकते हैं।
प्रश्न – १. रूक कहां रहता है और क्या खाता है ? २. पक्षी के – लिए परों का क्या महत्त्व है ? ३. निम्न पर से सदंड पर किस प्रकार भिन्न है ? ४. पक्षी और उरग के प्रावरण में कौनसी समान विशेषताएं हैं ?
 रूक की पेशियां, कंकाल और तंत्रिका तंत्र
पेशियां रूक की सबसे मजबूत पेशियां उसके अंगों को गति देनेवाली और गरदन की पेशियां होती हैं। वक्षीय पेशियां विशेष बड़ी होती हैं। उड़ान के समय पंखों के दृढ़ परिश्रम के कारण इनका विशेष परिवर्द्धन होता है। कबूतर जैसे अच्छे उड़ाकू पक्षियों में इन पेशियों का वजन पूरे शरीर के कुल वजन के पांचवें हिस्से के बराबर तक हो सकता है।
पैरों में विशेष प्रकार की पेशियां होती हैं जिनके सहारे रूक पेड़ की शाखा को पकड़कर बैठ सकता है। इन पेशियों में लंबी कंडराएं होती हैं जो अंगुलियों में नीचे की ओर से जुड़ी रहती हैं। जब यह पक्षी टहनी पर उतर आता है तो ये कंडराएं खिंच जाती हैं और अंगुलियां झुक जाती हैं। यह पक्षी टहनी को अपनी अंगुलियों के बीच पकड़े रहता है और सोते हुए भी टहनी से गिरता नहीं। उसका शरीर जितना अधिक दबता है, उसकी अंगुलियां उतनी ही ज्यादा मजबूती से टहनी को पकड़ती हैं।
कंकाल रूक के कंकाल में हम कशेरुक दंड , खोपड़ी , वक्ष , अंस मेखला , श्रोणि-मेखला और अंग (आकृति ११४) पहचान सकते हैं। कंकाल में कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं जो उड़ान के लिए अनुकूल होती हैं।
कशेरूक कोक दंड में गरदन के बहुत-ले कशेरुक होते हैं। वे एक दूसरे से चल रूप में संबद्ध न्द्रते है जिससे पक्षी आजादी से सिर को घुमा सकता है। इसके विपरीत बदन के कोक अचल रूप में संवद्ध रहते हैं। इससे उड़ान के समय पक्षी का गरीर स्थिर रह सकता है!
पूंछ के हिल्ले में कुछेक नन्हे नन्हे कशेरुक और अंतिम कशेरुक के समेकन से बना पुच्छ-दंड होता है! ये अस्थियां बड़े पुच्छीय सदंड परों को आधार देती हैं।
धड़ के कशेरुकों के एक हिस्से , अस्थिल पसलियों और बड़ी वक्षास्थि को लेकर वक्ष की रचना होती है। वक्ष फुफ्फुसों और हृदय की रक्षा करता है। वाम्धि में एक आड़ा उभाड़ होता है जो उरःकूट कहलाता है। वक्षास्थि का बड़ा आकार और उमपर उररूक्ट के परिवर्द्धन के संबंध में स्पष्टीकरण इस बात मे मिलता है कि इनसे डैनों को गतिशील बनानेवाली बड़ी बड़ी छाती की पेशियां मंबद्ध रहती हैं।
खोपड़ी में एक काफी बड़ा-सा कपाल और जबड़े होते हैं। पर जबड़ों में दांत नहीं होते।
अंस-मेखला छैनों को मजबूत सहारा देती है और यह सुपरिवर्दि्धत होती है। इसमें डैने के कंकाल को छाती की अस्थि से संयुक्त करनेवाली बड़ी बड़ी कोर,कोयड अस्थियां , पीठ पर स्थित लंबाकृति स्कंधास्थि और अक्षक या हंसुली होती हैं। अक्षक समेकीकृत होते हैं और इनसे तथाकथित कांटा बनता है।
अग्रांग स्कैप्युला और कोराकोयड अस्थि से जुड़ा रहता है। यद्यपि ऊपरी तौर से डैना उरग की आगेवाली टांग से विल्कुल समानता नहीं रखता , फिर भी दोनों प्रकार के प्राणियों में इन अंगों के कंकालों में एक-सी हड्डियां होती हैं। पक्षी के स्कंध प्रदेश में वाहु, अग्रवाहु की दो हड्डियां और हाथ की कई हड्डियां शामिल हैं। इनमें तीन अंगुलियों के अपरिवर्दि्धत अवशेष नजर आते हैं। इस संरचना से स्पष्ट होता है कि पक्षी के डैने का मूल पांच अंगुलियों वाले अंग में है जो स्थलचर रीढ़धारियों की विशेषता है।
श्रोणि-मेखला अथवा श्रोणि से पैरों को दृढ़ आधार मिलता है। चलते समय। सारे शरीर का भार पैरों को ही वहन करना पड़ता है।
टांग के कंकाल में ऊरु-अस्थि , पिंडली की हड्डियां , और पाद की हड्डियां शामिल हैं। पाद में नरहर नामक एक लंबी हड्डी और चार अंगुलियों की हड्डियां होती हैं।
पक्षी की सभी कंकाल-अस्थियां पतली और हल्की होती हैं य इनमें से कुछ हवा से भरी रहती हैं।
तंत्रिका-तंत्र अन्य रीढ़धारियों की तरह हक के तंत्रिका-तंत्र में भी मस्तिष्क और रीढ़-रज्जु तथा इन दोनों से निकलनेवाली तंत्रिकाएं शामिल हैं।
रूक का बरताव जल-स्थलचरों या उरगों की अपेक्षा बहुत ही अधिक जटिल होता है। रूक घोंसले बनाता है, अंडे सेता है, अपने वच्चों को खिलाता है, जाड़ों के लिए दक्षिणी देशों में चला जाता है , इत्यादि। अतएव उरगों की अपेक्षा रूक के मस्तिष्क की संरचना अधिक जटिल होती. है। विशेषकर अग्नमस्तिष्कीय गोलार्द्ध सुविकसित होते हैं (आकृति ११५)। ये अंतर्मस्तिष्क को और मध्य मस्तिष्क के एक हिस्से को ऊपर की ओर से के रहते हैं। गोलार्डों का पिछला किनारा मुविकसित अनुमस्तिष्क की सीमा से संबद्ध रहता है। उड़ान के समय पक्षी की गति बड़ी जटिल होती है य यही कारण है कि इस अनुमस्तिष्क का आकार बहुत बड़ा होता है। अन्य रीढ़धारियों की तरह रूक का मेडयूला प्राबलंगेटा रीढ़-रज्जु में प्रवेश करता है।
ज्ञानेंद्रियों में से दर्शनेंद्रियां और श्रवणेंद्रियां सुविकसित होती हैं। पक्षी की दृष्टि बहुत ही पैनी होती है जो कि उड़ान के समय अत्यावश्यक है। निचली और ऊपरवाली पलकों के अलावा पक्षी की आंखों के एक अर्द्धपारदर्शी मिचकन झिल्ली होती है। यदि हम सिर के दोनों ओर के पर उखाड़ दें तो हमें पक्षी के कर्ण-छिद्र दिखाई देंगे। चोंच की बुनियाद में दो नासा-द्वार होते हैं पर घ्राणेंद्रियां विशेष विकसित नहीं होती।
प्रश्न – १. पक्षी की कौनसी पेशियां सर्वाधिक विकसित होती हैं और क्यों? २. पक्षी के कंकाल की कौनसी संरचनात्मक विशेषताएं उड़ान से संबंध रखती है? ६. हम ना क्यों मान सकते हैं कि पक्षी का डैना स्थलचर कशेरुक दंडी के अनांग का ही नुधरा हुआ रूप है ? ४. पक्षी के मस्तिष्क की कौनसी विशेषताओं के कारण यह स्पष्ट होता है कि वह उरगों के मस्तिष्क से अधिक जटिल है?
व्यावहारिक अभ्यास – खाने के बाद बची हुई चूजे की अलग अलग हड्डियों की जांच करो। उनके हल्केपन पर विशेप ध्यान दो। कंकाल में उनका स्थान निश्चित करो।

Sbistudy

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