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कशेरुकी और अकशेरुकी , रज्जुकी और अरज्जुकी में अंतर chordate and non chordate difference in hindi
Chordata = chord (रस्सी) + ata (धारक ) = पृष्ठ रज्जु धारी प्राणी
बॉल्फर ने 1880 में Chordate शब्द का प्रयोग किया था।
इस संघ में लगभग 55 हजार जातियाँ शामिल है।
कशेरुकीयो के तीन मूलभूत लक्षण :-
1. पृष्ठ रज्जू (natochord) नोटोकॉर्ड : पृष्ठ वंशी जन्तुओं में जीवन की किसी न किसी अवस्था में मध्य पृष्ठ रेखा पर एक लचीली , लम्बी , छडनुमा संरचना पायी जाती है जिसे पृष्ठ रज्जु कहते है।
पृष्ठ रज्जू के कुछ जन्तुओं में जीवन भर उपस्थित रहती है , परन्तु कुछ जन्तुओ में पृष्ठ रज्जु कशेरुकी दण्ड में बदल जाती है , इसलिए सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं होते है , जबकि सभी कशेरुकी रज्जुकी होते है।
2. पृष्ठीय खोखली तंत्रिका रज्जु :
पृष्ठवंशी जन्तुओं में जीवन की किसी न किसी अवस्था में मध्य पृष्ठ रेखा पर खोखली तंत्रिका रज्जु पायी जाती है।
3. ग्रसनीय कलोम दरारे : पृष्ठ वंशियों में श्वसन हेतु ग्रसनीय की दीवार में पाशर्व क्लोम दरारें जीवन की किसी न किसी अवस्था में अवश्य पायी जाती है , जलीय जीवो में ये आजीवन रहती है जबकी स्थलीय जीवन में व्यस्क अवस्था से पूर्व ही विलुप्त हो जाती है।
4. अन्य लक्षण : इनमे द्विपाशर्व सममिति , त्रिस्तरीय , प्रगुहीय , तथा अंग तंत्र स्तर का शारीरिक संगठन होता है।
परिसंचरण तंत्र बन्द प्रकार का होता है।
इनमें गुदा के पीछे पुच्छा पायी जाती है।
इनमे दो , तीन या चार कोष्ठीय पेशीय ह्र्दय पाया जाता है।
इनमें उत्सर्जन वृक्क द्वारा होता है।
इनमे गमन हेतु पंख या 1 या 2 जोड़ी पैर पाये जाते है।
रज्जुकी और अरज्जुकी में अंतर (chordate and non chordate difference)
रज्जुकी | अरज्जुकी |
1. पृष्ठ रज्जु उपस्थित होती है। | पृष्ठ रज्जू अनुपस्थित होता है। |
2. इनमे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पृष्ठीय , खोखला तथा एकल होता है। | इनमे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र अधर में , ठोस व दोहरा होता है। |
3. जीवन की किसी न किसी अवस्था में कलोम दरारें पायी जाती है। | क्लोम दरारें अनुपस्थित होती है। |
4. हृदय अधर भाग में होता है। | हृदय पृष्ठ भाग में होता है। |
5. इनमे गुदा के पीछे पुच्छ उपस्थित होती है। | इनमें पुच्छ अनुपस्थित होती है। |
कॉर्डेट्स और उच्च नॉन कॉर्डेट्स के समान लक्षण (characters common to chordates and higher non chordates) : ऐसे अनेक लक्षण है जिनमे रज्जुकी अथवा कॉर्डेट्स , उच्च अरज्जुकी अथवा अकशेरुकियो से मिलते है |
- अक्षीयन: दोनों में ही शरीर का एक स्पष्ट ध्रुवीय अक्ष होता है | अग्र सिरा शीर्ष प्रदेश अथवा सिर में विभेदित होता है जो की चलन में आगे रहता है | विपरीत अथवा पश्च सिरा अधिकतर पुच्छ बनाता है | शरीर के इस अनुदैर्ध्य अक्ष को , जो सिर से पूंछ तक जाता है , अग्र-पश्च अक्ष कहते है |
लेकिन यह ध्रुवीय अथवा अक्षीय संगठन दोनों समूहों में वस्तुतः समजात नहीं होता | उदाहरण के लिए , दोनों समूहों का सिर समजात नहीं होता क्योंकि अधिकतर अरज्जुकीयों में कोरकरन्ध्र सिरा मुख विकसित करता है | (प्रोटोस्टोमिआ) जबकि अधिकतर रज्जुकियों में गुदा का निर्माण करता है | (ड्युटेरोस्टोमिआ)
|
- द्विपाशर्व सममिति: अनुदैधर्य अग्र-पश्च अक्ष पाए जाने के कारण सभी रज्जुकियों और अधिकतर उच्च अरज्जुकियों (ऐनीलिडा , ऑर्थ्रोपोडा) के शरीर में द्विपाशर्व सममिति पायी जाती है , अर्थात शरीर के दाए और बाएं पाशर्व अथवा पक्ष एक दुसरे के ठीक ठीक दर्पण प्रतिबिम्ब होते है |
- त्रिकोरकी अवस्था: सीलेंटरेट के स्तर से ऊपर के अकशेरुकी और सभी रज्जुकी त्रिकोरकी जन्तु होते है | उनमे तीन जनन स्तर –
ब्राह्माचर्म , अंत:चर्म और मध्यचर्म होते है | एनीलिड्स , मोलस्कस , आर्थ्रोपोड्स और अन्य सम्बंधित जन्तुओं में कन्दुक अथवा गैस्ट्रुला अवस्था में बाह्यचर्म और अन्त:चर्म के संगम से भ्रूणीय मध्यचर्म एक ठोस रज्जु के समान बाह्यवृद्धि के रूप में विकसित होता है |
इसके विपरीत , ब्रेंकिओपोड्स , एकाइनोडमर्स , ब्रेंकिओस्टोमा और अन्य आंत्रगुहिक जन्तुओं का मध्यचर्म गैस्ट्रुला की आद्यंत्र से निकले पार्श्वीय उभारों से निर्मित होता है।
- प्रगुहा अथवा सीलोम: आहारनाल और देहभित्ति के मध्य एक द्वितीयक देहगुहा अथवा वास्तविक सीलोम होती है। इसके चारों तरफ मध्यचर्म का अस्तर होता है लेकिन रज्जुकी और अरज्जुकी समूहों में इसके उद्गम की विधि में भिन्नता होती है। ऐनीलिड्स , मोलस्क्स , आर्थ्रोपोड्स और उच्च रज्जुकियों में यह दीर्णगुहा होती है तथा मध्यचर्मीय पट्टो के विपाटन से उत्पन्न होती है जिनका उद्गम कोरकरंध्रिय प्रदेश से होता है।
एकाइनोडर्म्स , बैंक्रिओपोड्स एवं बैंक्रिओस्टोमा में यह आंत्रगुहा होती है तथा आद्यंत्र से एक रेखीय श्रेणी में निकले खोखले बाह्य उभारो अथवा कोष्ठों के संगलन और विस्तारण द्वारा विकसित होती है।
- विखन्डावस्था: विखंडावस्था वह अवस्था होती है जिसमे शरीर एकरेखीय श्रेणी के एक समान शरीर खंडो का बना होता है जिन्हें विखंड अथवा कायखंड कहते है। विखंडावस्था तीन संघों में पायी जाती है – ऐनीलिडा , आर्थ्रोपोडा और कॉर्डेटा।
ऐनीलिडा एवं आर्थ्रोपोड़ा में विखंडन आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार से होता है जबकि कॉर्डेटस में यह बाह्य रूप से कम स्पष्ट होता है। आर्थ्रोपोडा में बाह्य खण्डीभवन की आवश्यकता होती है। जिससे कि खंडो के मध्य सन्धियाँ शरीर को गति प्रदान कर सके।
मछलियों में विखंडन शल्कों की व्यवस्था में दृष्टिगोचर होता है। भ्रूणीय रज्जुकियो में विखंडी अवस्था मांस पेशियों की व्यवस्था में सुस्पष्ट दिखाई पड़ती है और प्रोढ़ कशेरुकियो में यह कशेरुकाओं की व्यवस्था में पायी जाती है।
- अंग तन्त्र: किसी एक अंग तंत्र में बहुत से अंग एक साथ मिलकर कोई समान कार्य करते है जैसे कि पाचन , परिवहन , श्वसन आदि। अंग तंत्र प्लान अथवा संगठन स्तर सभी रज्जुकियो और निमर्टियन कृमियों के बाद के सभी अरज्जुकियों में पाया जाता है। लेकिन कशेरुकी इस प्लान अथवा संगठन स्तर की उच्चतम अकशेरुकियों से भी बहुत अधिक विकसित अवस्था और मूलभूत एकता प्रगट करते है।
रज्जुकी और अरज्जुकियो दोनों में समान रूप से पायी जाने वाली संरचनात्मक समानतायें कदाचित उनकी सुदूर सामान्य पूर्वज परम्परा की ओर संकेत करती है। यद्यपि , वंश परम्परा का ठीक ठीक पता लगाना संभव नही है , फिर भी सभी विद्यमान तथ्यों से पता चलता है कि रज्जुकियो का विकास अकशेरुकियो का विकास अकशेरुकियों से हुआ है।
कॉर्डेट्स की नॉन कॉर्डेट्स से तुलना अथवा भेद या अंतर
अभी तक हम देख चुके है कि जन्तु जगत को परम्परागत ढंग से दो असमान समूहों में बाँटा गया –
- रज्जुकी अथवा कॉर्डेट्स
- अरज्जुकी या अकशेरुकी
सभी रज्जुकी एक अकेले संघ से सम्बंधित होते है जिसे रज्जुकी संघ अथवा कॉर्डेटा कहते है। ये एक खोखली पृष्ठीय तंत्रिका रज्जु , ग्रसनीय क्लोम दरारों की एक श्रेणी और शरीर की लम्बाई में फैले एक अपूर्व आलम्बी अक्षीय छड , पृष्ठरज्जु या कशेरुकदंड के विशेष लक्षणों से युक्त होते है। जबकि अरज्जुकी अथवा अकशेरुकी शेष लगभग 30 जन्तु संघो से सम्बंधित होते है जिनमे पृष्ठ रज्जु अथवा कशेरुक दंड नहीं पाया जाता। यह विभाजन केवल कृत्रिम है लेकिन वर्गिकीय अध्ययन में इसकी व्यावहारिक उपयोगिता है।
हम यह भी देख चुके है कि रज्जुकी तथा अरज्जुकियों में अनेक संरचनात्मक समानताओं होती है जैसे कि अक्षीय शरीर प्रणाली , द्विपाशर्व सममिति , त्रिकोरकी प्रगुहीय अवस्था , अंग तंत्र , विखण्डन आदि।
लेकिन दोनों समूहों में अनेक मूलभूत अंतर अथवा भेद पाए जाते है जिनमे से सर्वाधिक प्रमुख भेदों को सारणी में दर्शाया गया है –
लक्षण | रज्जुकी अथवा कॉर्डेटा | अरज्जुकी या नॉन कॉर्डेटा |
1. सममिति | द्विपाशर्वीय | अरीय , द्वयर द्विपाशर्वीय अथवा रहित |
2. विखंडावस्था | यथार्थ विखंडावस्था | यथार्थ अथवा कूटविखंडावस्था या अनुपस्थित |
3. गुदपश्च पूंछ | सामान्यत: उपस्थित | अनुपस्थित |
4. संगठन स्तर | अंग तंत्र | जीव द्रव्यीय से अंग तंत्र तक |
5. जनन स्तर | 3 , त्रिकोरकी | 2 (द्विकोरकी) , 3 (त्रिकोरकी) अथवा रहित |
6. प्रगुहा | यथार्थ रूप से प्रगुहिक | अप्रगुहिक , कूटगुहिक अथवा यथार्थ प्रगुहिक |
7. पादों की व्युत्पत्ति | अनेक खंडो से | उसी खंड से |
8. पृष्ठरज्जु | किसी अवस्था में उपस्थित या वलयाकार कशेरुकों से बनी रीढ़ द्वारा प्रतिस्थापित | पृष्ठ रज्जु अथवा रीढ़ अनुपस्थित |
9. आहारनली की स्थिति | तंत्रिका रज्जु जे अधरतल पर | तंत्रिका रज्जु के पृष्ठ तल पर |
10. ग्रसनीय क्लोम छिद्र | जीवन की किसी अवस्था में उपस्थित | अनुपस्थित |
11. गुदा | विभेदित , अंतिम शरीरखंड से पूर्व खुलती है | अंतिम खंड पर खुलती है अथवा अनुपस्थित |
12. रुधिर संवहन तंत्र | बंद प्रकार का | बंद , खुला अथवा अनुपस्थित |
13. ह्रदय | अधरतल पर स्थित | पृष्ठ , पाशर्व या अनुपस्थित |
14. पृष्ठ रुधिर वाहिनी | रुधिर पश्च दिशा में बहता है | रुधिर अग्र दिशा में बहता है |
15. यकृत निवाहिका तंत्र | उपस्थित | अनुपस्थित |
16. हीमोग्लोबिन | लाल रक्त कणिकाओं में स्थित | प्लैज्मा में घुला अथवा अनुपस्थित |
17. श्वसन | क्लोम या फेफड़ो द्वारा | क्लोमो या ट्रेकिआ द्वारा |
18. तंत्रिका तंत्र | खोखला | ठोस |
19. मस्तिष्क | सिर में फेरिंक्स के पृष्ठ ओर | फेरिंक्स के ऊपर अथवा अनुपस्थित |
20. तंत्रिका रज्जु | एक , पृष्ठीय , गुच्छिका रहित | दोहरा , अधरतलीय , प्राय: गुच्छिकायुक्त |
21. खंडीय तंत्रिकाओं के मूल | पृष्ठ और अधर मूल पृथक | पृष्ठ और अधर मूल पृथक नहीं |
22. प्रजनन | लैंगिक प्रजनन प्रबल | अलैंगिक प्रजनन प्रबल |
23. पुनर्जनन शक्ति | प्राय: हीन | प्राय: अच्छी |
24. शरीर ताप | असमतापी अथवा समतापी | असमतापी |
रज्जुकियों को उनके तंत्रिका और परिवहन तन्त्रों की स्थिति के कारण “अधोमुख अथवा औंधे” अकशेरुकियों की भांति चित्रित किया जा सकता है।
कॉर्डेटा संघ की अन्य संघो पर प्रगतिशीलता
कॉर्डेटा संघ की कुछ लक्षणों के आधार पर अन्य संघो पर श्रेष्ठता पायी जाती है –
- जीवित अंत:कंकाल: इकाइनोडर्मस और कुछ अन्य अपवादों के अतिरिक्त , केवल रज्जुकियों में जीवित अन्त:कंकाल पाया जाता है। शेष शरीर के साथ साथ इसके परिमाण में वृद्धि होती है। इस कारण शारीरिक वृद्धि के लिए इसे अरज्जुकी संघो के अजीवित काइटिनी बाह्य कंकाल की भांति समय समय पर उतारने अथवा गिराने की आवश्यकता नहीं होती। इसके अलावा भी जीवित अन्त:कंकाल गति के लिए अधिक स्वतंत्रता और असिमित वृद्धि प्रदान करता है जिससे कि अनेक रज्जुकी जन्तु जगत के विशालतम प्राणी है।
- कार्यक्षम श्वसन: जलीय रज्जुकियो में क्लोम और स्थलियो में फेफड़े श्वसन के कार्यक्षम अंग होते है | कुछ आर्थ्रोपोड्स का वातक तंत्र भी कार्यक्षम होता है लेकिन यह केवल छोटे आकार के जन्तुओं के लिए ही उपयुक्त होता है |
- कार्यक्षम परिवहन: रज्जुकियो का परिवहन तंत्र अच्छी तरह विकसित होता है और श्वसन अंगो में गैसों के तीव्र आदान प्रदान को सुनिश्चित करते हुए स्वतंत्रता पूर्वक बहता है | इसके अतिरिक्त रक्त परिवहन तंत्र शरीर की अन्य आवश्यक जैव क्रियाओं के लिए एक प्रमुख माध्यम का कार्य करता है |
- केन्द्रित तंत्रिका तंत्र: अकशेरुकी संघो में तंत्रिका तंत्र के केन्द्रीयकरण की बढती हुई प्रवृति मिलती है जो उच्च रज्जुकियों में उच्चतम शिखर पर पहुँच जाती है | उसी के अनुरूप संवेदी तंत्र भी रूपांतरित हो जाता है | तंत्रिका और संवेदी तन्त्रों में प्रगतिशीलता रज्जुकियो की उस महान शक्ति की पुष्टि करती है जिसमे उन्होंने स्वयं को अत्यन्त सफलतापूर्वक विविध वातावरणों के अनुकूल बना लिया है |
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