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रसायन परासरणी सिद्धांत क्या है , Chemi osmotic theory in hindi chemiosmotic theory of atp synthesis

पढ़िए रसायन परासरणी सिद्धांत क्या है , Chemi osmotic theory in hindi chemiosmotic theory of atp synthesis ?

रसायन- परासरणी सिद्धान्त (Chemi-osmotic theory)

यह सिद्धान्त एक ब्रिटिश जैव रसायनज्ञ, पीटर मिशेल (Peter Mitchell, 1961) ने प्रस्तुत किया जो कि अब भी अत्यधि कमान्य है। मिशेल को इस कार्य के लिये 1978 में रसायन विज्ञान में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

रसायन परासरणी से तात्पर्य रासायनिक ऊर्जा (जैसे-ऑक्सीजन द्वारा NADH के आक्सीकरण में) का परासरणी ऊर्जा (अर्थात माइटोकॉन्ड्रियायी झिल्ली के दोनों ओर प्रोटीन की सांद्रता में अंतर) में रूपान्तरण होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार माइटोकोन्ड्रिया एवं क्लोरोप्लास्ट में ATP संश्लेषण कला के दोनों तरफ प्रोटोन सांद्रता में अंतर पर निर्भर करता है। इस सिद्धान्त द्वारा प्रकाशीयफास्फोरिलीकरण (Photophosphorylation) एवं ऑक्सीय फॉस्फोरिलीकरण की प्रक्रिया को समझाने का प्रयास किया गया है।

एटीपीएज (ATPase) एन्जाइम में उत्क्रमणीय (reversible) एन्जाइम का गुण होता है। यह निर्जलीकृत रहने पर ATP का संश्लेषण तथा जलायोजित होने पर ADP में जलापघटित होता है।

ADP + Pi    ATPase     ATP + H2O ……………………….(i)

ATP + H2O   ATPase   ADP + Pi  ………………………….(2)

माइटोकॉन्ड्रिया में ETS श्रृंखला का उपयोग प्रोटोनों से इलेक्ट्रॉनों को विलग करने में होता है।

H→ H* +e

इस प्रक्रिया में सक्रिय माइटोकॉन्ड्रिया ETS श्रंखला से इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह में H+ आयनों को अन्तः झिल्ली के बाहर की ओर (Cytosole side or C-side) मुक्त करता है। प्रोटोनों के भीतरी माइटोक्रोन्द्रियाल झिल्ली के पार भीतर से (matrix side or M-side) बाहर की ओर स्थानांतरण को यह माना जाता है कि ETS चेन के एक घटक यूबीक्वीनॉन अधिकांश विलेयों और प्रोटोनो को बाहर नहीं जाने देते। यह ETS श्रृंखला और ATPase जहाँ पाये जाते हैं उन्हीं बिन्दुओं पर होता है।

माइटोकॉन्ड्रिया की अन्तः झिल्ली के बाहर की ओर (Mside से C-side की तरफ) H+ आयनों की एक सांद्रण प्रवणता (concentration gradient) अथवा प्रोटोन वाहक बल (proton motive force, pmf) स्थापित हो जाती है। माइटोकॉन्ड्रिया की कला प्रोटोन (H*) के लिये अपारगम्य होती है अतः ये C-side से M-side की तरफ कला से होते हुए वापस गमन नहीं करते हैं। वरन् वे वापस आद्यात्री (matrix ) में Fo-F ATPase के F भाग में स्थित प्रोटोन चैनल के द्वारा जाते हैं। H+ आयनों का संचय, ATP निर्माण के लिये आवश्यक ऊर्जा के लिये विभव ऊर्जा रूप में कार्य करता है। Ht के माइटोकॉन्ड्रिया में प्रोटीन चेनल द्वारा C-side की तरफ पुनः प्रवेश करने पर ADP एवं Pi से ATP एवं जल का संश्लेषण होता है।

रसायन परासरणी सिद्धान्त क्लोरोप्लास्ट की थाइलैकॉयड झिल्ली में ATP निर्माण को भी स्पष्ट करता है। इसमें थाइलैकायड झिल्ली के पार Ht का स्थानांतरण प्लास्टोक्विनॉन (यूबीक्वीनॉन की तरह) के एकांतर अपचयन और ऑक्सीकरण द्वारा होता है। प्रकाश संश्लेषण में जल से NADP+ तक इलेक्ट्रॉन प्रवाह और झिल्ली के पार H+ के परिवहन के लिये आवश्यक ऊर्जा प्रकाश के अवशोषण से प्राप्त होती है।

रसायन-परासरणी सिद्धान्त के पक्ष में साक्ष्य (Evidences in support of chemi osmotic theory)

  1. माइटोकोन्ड्रिया की आंतरिक कला H+, K+, OH एवं CIT आयनों के लिये अपारगम्य होती है। इस कला के क्षतिग्रस्त होने पर यह इन आयनों के लिये पारगम्य हो जाती है तब आक्सीय फास्फोरिलीकरण नहीं हो पाता है।

2.यदि युग्मी कला (coupling membrane) में श्वसन श्रृंखला (respiratory chain) एवं ATPase का दिशीय संगठन (vectorial organisation) बदल जावे तो आक्सीय फॉस्फोरिलीकरण नहीं होता है।

3.यदि कुछ अयुग्मी (uncouplers) रसायनों जैसे- 2.4 डाइनाट्रोफिनोल द्वारा प्रोटोन प्रवणता को समाप्त कर दिया जावे तो ATP संश्लेषण रूक जाता है।

वायवीय श्वसन का महत्व ( Significance of aerobic respiration)

एक ग्लूकोज अणु के संपूर्ण वायवीय श्वसन से 38ATP अणु प्राप्त होते। यदि एक मोल ATP से 7000 कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न प्राप्त होती है तो 38 मोल ATP से 266,000 कैलोरी ऊर्जा का लाभ होगा। एक मोल मुक्त ग्लूकोज को 686,000 कैलोरी ऊर्जा (potential) युक्त माना जा सकता है। इसलिए कार्बोहाइड्रेट के श्वसन में 266,000/686,000 अथवा 40% क्षमता (efficiency) होती है। लगभग 60% ऊर्जा ऊष्मा के रूप में निकल जाती है। ग्लूकोज के श्वसन को संक्षिप्त रूप में निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है।

C6H12O6 → 2CH3.CO.COOH + 2 H2 ग्लाइकोलिसिस   8 ATP

(ग्लूकोज)   →         पायरूविक अम्ल

2CH3CO.COOH + 2CoA. SH → 2CH3 CO-S-CoA + 2H2 + 2CO2 (2 चक्र)   6ATP

(पायरूविक अम्ल)         (कोएन्जाइम A )   (एसिटायल कोएन्जाइम A )     (दो चक्रों में)

2CH3.Co-S-CoA + 6H2O    2CoAH + 8H2 + 4CO2 क्रेब्स चक्र       24 ATP

(एसिटायल कोएन्जाइम A)     कोएन्जाइम A       (दो चक्र)

C6H12O6+6H2O   → 6CO2 + 12H2                   38 ATP

6O2                12H2O or

(कुल)    C6H12O6+6O2   → 6CO2+6H2O+     38 ATP (कुल)

Hinkle, P-C.; Kumar, M.A. Resetar, A. and Harris D.I. (1991) in Biochemistry 30 : 3576 (इनके अनुसार NADH से 2.5 AD एवं FADH2 से 1.5 ATP की प्राप्ति होती है)

ग्लाइकोलाइसिस में उत्पन्न NADH के लिए माइटोकॉण्ड्रिया की कला अपारगम्य होती है अतः ग्लिसरोल फास्फेट DHAP शटल के माध्यम से NADH से 2 ATP परंतु मैलेट-एस्परटेट शटल वाहक से ETS द्वारा 3 ATP बनते हैं।

ग्लूकोज़ के एक अणु के वायवीय श्वसन में को एन्जाइम अपचयन एवं ATP निर्माण की उचितत्वानुपालिकी (Stoichiometry of coenzyme reduction and ATP formation in aerobic respiration of one glucose molecule)

सामान्य प्रचलित धारणा के अनुसार सम्पूर्ण वायवीय श्वसन में ग्लूकोज के एक अणु से ETS द्वारा कुल 38 ATP परंतु ग्लाइकोलिसिस में उत्पन्न NADH से ग्लिसरोल फास्फेट DHAP शटल के माध्यम 36 ATP प्राप्त होते हैं।

हिंकल, कुमार, रिसेटर एवं हेरिस (Hinkle, Kumar, Resetar and Harris, 1991 ) के अनुसार ऑक्सीफॉस्फोरिलीकरण में NADH से 2.5 ATP का निर्माण होता है न कि 3 ATP | इसी प्रकार FADH2 से 15 ATP प्राप्त होते हैं न कि 2 ATP | पहले 2.5 एवं 1.5 संख्याओं को पूर्णांक मानकर गणना करने के कारण कुल ATP संख्या में अन्तर है जबकि ऑक्सीफॉस्फोरिलीकरण में उत्पन्न NADH एवं FADH2 का मान अभी भी वही है।

ऑक्सीफॉस्फोरिलीकरण में ATP अणुओं की प्राप्ति निश्चित नहीं होती है चूंकि प्रोटोन पम्पिंग, ATP निर्माण एवं उपापचय स्थानान्तरण अभिक्रियाओं (metabolic transport processes) की उचिततत्वानुपालिकी (stoichiometries) के अनुसार इनकी संख्या एक पूर्णांक संख्या ( an integral number) होना आवश्यक नहीं है। O2 को एक युग्म इलेक्ट्रॉन के स्थानान्तरण से लगभग 2.5 ATP अणु (cytosolic ATP) प्राप्त होते हैं। जब इलेक्ट्रॉन युग्म Q-cyt.Coxidoreductase स्तर पर प्रवेश करता है तब NADH (cytosolic NADH) से 1.5 ATP अणु प्राप्त होते हैं।

अतः अब यह माना जाता है कि वायवीय श्वसन में ग्लूकोज के एक अणु से कुल 32 ATP अणु अथवा 30 ATP अणु ( ग्लिसरोल फास्फेट शटल के माध्यम से) प्राप्त होते हैं। बर्ग, टायमोक्ज़को एवं स्ट्रायर (Berg, Tymoczko and Stryer 2001) के अनुसार ATP प्राप्ति की उपरोक्त संख्या (30 ATP) को पहले वाली संख्या 36 ATP से विस्थापित माना जावे (this value supersedes the traditional estimate of 36 molecules of ATP)। इस संबंध में निम्न संदर्भ पुस्तकों का अध्ययन करें-

  1. Taiz and Zeiger (2002). Plant Physiology, Page 304.
  2. Berg, Tymoczko and Stryer (2001). Biochemistry. Pages 517-518
  3. Nelson and Cox (2001). Lehninger Principles of Biochemistry. Pages 580-582.

वायवीय श्वसन में जल, O2 एव CO2 का उपयोग एवं प्राप्ति Water, O2, and CO2 utilised and produced in aerobic respiration)

  1. जल (H2O)
  2. जल के अणुओं का उपयोग = 10 अणु

Glycolysis में प्रतिक्रिया-

3-phosphoglyceraldehyde से 1,3- diphosphoglyceraldehyde बनने में  -2 अणु

Kerbs cycle में-

  1. Oxaloacetic acid से citric acid बनने में -2 अणु
  2. Cisaconitic acid से isocitric acid बनने में 3. Succinyl CoA से malic acid बनने में -2 अणु
  3. Fumaric acid से malic acid बनने में -2 अणु

अतः दो क्रैब्स चक्रों में जल के अणुओं का उपयोग   =- 10 अणु

  1. जल के अणुओं की प्राप्ति = 16 अणु

Glycolysis में

2-phosphoglyceric acid से 2- phosphoenolpyruvic acid बनने में -2 अणु

जब glycolysis में ETS के अन्त में ऑक्सीकरण होता है उस समय उत्पन्न होते हैं। -2 अणु

Pyruvic acid से ‘Acetyl CoA बनने में (दो NAD 2H द्वारा ETS के अन्त में आक्सीकरण होता है)  -2 अणु

प्रत्येक क्रैब्स चक्र में 4 अणु उत्पन्न होते हैं (1 अणु उस प्रत्येक स्थान पर जहां ETS के अन्त में ऑक्सीकरण होता है)। अतः दो क्रैब्स चक्रों में उत्पन्न होते हैं।   +2 x 4 = 8 अणु

Kerbs चक्र में ETS के अतिरिक्त citric acid से cisacontic acid बनने  -2 अणु

अतः जल के कुल अणुओं की उत्पत्ति    + 16 अणु

  1. ऑक्सीजन (O2) के उपयोग आये अणु = 6 अणु

Glycolysis में ETS के अन्त में  -1 अणु

Pyruvic acid से Acetyl CoA बनने में  -1 अणु

क्रैब्स के एक चक्र में ETS के अन्त में 2 अणुओं का उपयोग होता है  -4 अणु

अतः कुल उपयोग आये अणु     = -6 अणु

III. कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्पन्न अणु = 6 अणु

Pyruvic acid से Acetyl CoA बनने में दो क्रैब्स चक्रों में   +1 +1 = 2 अणु

Oxalosuccinic acid से – ketoglutaric acid बनने में +2 अणु

a-ketoglutaric acid से succinyl CoA बनने में  +2 अणु

अतः कुल उत्पन्न अणु  = +6 अणु

इलेक्ट्रॉन शटल (Electron Shuttle)

ग्लाइकोलिसिस (glycolysis) में उत्पन्न NADH2 सीधे ही माइटोकॉन्ड्रिया में प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि माइटोकांन्ड्रिया की झिल्ली NAD के लिए अपारगम्य होती है। इसलिए NADH2  से इलेक्ट्रॉन के माइटोकॉन्ड्रिया में स्थानान्तरण के लिए कुछ वाहक होते हैं जोकि शटल का कार्य करते हैं। यह शटल दो प्रकार के होते हैं—

  1. मैलेट- एस्पार्टेट शटल (Malate-aspartate shuttle ) :- इसमें पहले ऑक्सेलोएसिटेट कोशिकाद्रव्य (cytosol) में

उत्पन्न NADH+H+से क्रिया कर मैलेट में परिवर्तित होता है जो कि माइटोकॉन्ड्रिया के मेट्रिक्स में प्रवेश करता है। यह मैलेट एवं NAD क्रिया करके वापस NADH2  एवं ऑक्जेलोएसिटेट (oxaloacetate) बनाते हैं। अब आक्जेलोएसिटेट के अमोनीकरण होकर एस्पार्टेट बनता है जो मेट्रिक्स से निकल कर कोशिकाद्रव्य में आ जाता है एवं ऑक्जेलोएसिटेट में बदल जाता है। इस शटल के प्रभावी होने से ग्लूकोज के एक अणु से 38 (बर्ग आदि के अनुसार 31)ATP अणु प्राप्त होते हैं।

  1. ग्लीसरोलफास्फेट शटल (Glycerol phosphate shuttle) – यह शटल कम प्रभावी होता है। इसमें NADH2 इलेक्ट्रॉन माइटोकॉन्ड्रिया के FAD को प्राप्त होते हैं। डाइहाइड्रोक्सीएसीटोन – PO4 एवं NADH2 क्रिया करके ग्लीसरोल फास्फेट बनाते है। ग्लीसरोल – PO4 माइटोकान्ड्रिया की अन्तः झिल्ली के बाह्य सतह पर पहुँच जाता है। यहाँ यह FAD के साथ क्रिया करने से FADH2 एवं डाइहाइड्रोक्सी एसीटोन – PO2 (Di HAP) बनता है। FADH2 इलेक्ट्रॉन तन्त्र में प्रवेश कर एटीपी बनाते हैं एवं DiHAP कोशिकाद्रव्य में प्रवेश कर जाता है। इस शटल द्वारा एक ग्लूकोज अणु से 36 (बर्ग आदि के अनुसार 32 ) ATP अणु प्राप्त होते हैं।
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