हिंदी माध्यम नोट्स
अभिलाक्षणिक वक्र क्या है ? characteristic graph definition in hindi अभिलाक्षणिक वक्र की परिभाषा किसे कहते हैं ?
characteristic graph definition in hindi अभिलाक्षणिक वक्र की परिभाषा किसे कहते हैं ? अभिलाक्षणिक वक्र क्या है ?
अभिलाक्षणिक वक्र – अर्ध चालक डायोड में लगाए गए अग्र उत्क्रम विभ्व एवं संगत धारा में प्राप्त ग्राफ को अभिलाक्षणिक वक्र कहते हैं।
(अ) अग्र बायस अभिलाक्षणिक वक्र — अग्र बायस अभिलाक्षणिक वक्र खीचनें के लिए चित्र के अनुसार विद्युत बनाते हैं। D एक PN संधि डायोड है। इसका p भाग बैटरी के सिरे से जुड़ा है। डायोड के परिपथ में जुड़े वोल्टमीटर V तथा मिली. अमीटर mA द्वारा p-n संधि पर विभवान्तर व धारा के नाम ज्ञात करते हैं । धारा नियंत्रण के लिए परिपथ में एक धारा नियंत्रक R1 लगा होता है। p-n संधि पर विभिन्न विभवान्तर लगाकर विभवान्तर V संगत धारा I का मान प्राप्त कर लेते हैं। V तथा I के बीच ग्राफ अग्र वायस में डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है।
अग्र बायस पर आरोपित वि. वा. बल के कारण विद्युत क्षेत्र E तथा अवरोधी विधुत क्षेत्र EB एक दूसरे के विपरीत होते हैं। अतः अवक्षय क्षेत्र छोटा हो जाता है। अवरोधी विभव का मान बहुत कम होता है। अतः अग्र विभव का मान इससे अधिक होने पर अवरोध विभव समाप्त हो जाता है। अब p की ओर से होल व n की ओर से इलेक्ट्रॉन संधि की ओर आने लगते हैं जिससे संधि तल से धारा बहने लगती है। अग्रबायस की अवस्था में संधि का प्रतिरोध eF कम होता है। अग्र विभव का मान बढ़ाने से संधि से धारा भी बढ़ती है। अग्र विभव व धारा में ग्राफ चित्र में दिखाया गया है।
(ब) उत्क्रम बायस अभिलाक्षणिक वक्र – उत्क्रम बायस अभिलाक्षणिक वक्र खीचनें के लिए चित्र के व्यवस्था करते हैं। PN संधि डायोड D का n सिरा बैटरी के धनात्मक सिरे से जुड़ा है। डायोड के पथ में वोल्टमीटर V तथा माइक्रोअमीटर (μA) द्वारा डायोड पर विभवान्तर व धारा का मान ज्ञात कर सकते हैं। संधि विभवान्तर V के विभिन्न मान लगाकर प्राप्त धारा के मान ज्ञात कर लेते हैं। इस समय V तथा I कि बाच ग्राफ उत्कर बायस में डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है।
उत्क्रम बायस की स्थिति में बाह्य विभव के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र E तथा अवरोधी क्षेत्र EB एक ही दिशा में होते हैं। इससे अवरोध क्षेत्र बढ़ जाता है तथा बहुसंख्यक धारावाहक ( n से इलेक्ट्रॉन व p से होल) का संधि से आर-पार संचरण रूक जाता है। धारावाहक संधि तल से दूर हटते जाते हैं। संधि के पास काफी बड़े क्षेत्र में केवल स्थिर आवेश रह जाते हैं। इस समय संधि का प्रतिरोध Ùk उच्च हो जाता है। इस स्थिति में संधि से अल्प धारा, अल्प संख्यक धारा वाहकों से बहती है।
उत्क्रम बायस में विभव के साथ धारा का मान ग्राफ में बताया गया है। प्रारम्भ में अल्प धारा का मान धीरे-धीरे बढ़ता है। उत्क्रम बायस विभव को बहुत अधिक कर देने पर संधि तल के निकट के सहसंयोजक बंध टूट जाते हैं एवं इलेक्ट्रॉन व होल मुक्त होकर संधि से बहने शुरू हो जाते हैं। इस समय धारा का मान यकायक बहुत बढ़ जाता है। चित्र में उत्क्रम बायस विभव को र्ट से दर्शाया गया है। उत्क्रम बायस विभव JV, के बाद धारा के मान को शीघ्रता से बढ़ता हुआ दिखाया गया है। JV को जीनर वोल्टता या भंजन वोल्टता कहते हैं। चित्र 11.5 में अग्र व उत्क्रम बायस में अभिलाक्षणिक वक्रों को एक साथ बताया गया है।
अर्ध चालक डायोड का प्रतिरोध- V- I ग्राफ से स्पष्ट है कि यहाँ ओम के नियम का पूर्णतया पालन नहीं होता है, अतः हम यहाँ गतिक प्रतिरोध ज्ञात करते हैं।
गतिक प्रतिरोध = विभव में परिवर्तन / धारा में परिवर्तन
त्कि त्र ∆ fV / ∆ iF
अग्र बायस में गतिज प्रतिरोध का मान बहुत होता है और उत्क्रम बायस में जीनर वोल्टता से पहले इसकी मान बहुत अधिक होता है व जीनर वोल्टता के बाद इसका मान बहुत कम होता है।
स्थैतिक प्रतिरोध –
अग्रदिशिक बायस व्यवस्था में खींचे गये अभिलाक्षणिक पाक के किसी बायस वोल्टता के लिए अप वोल्टता तथा पारा के अनुपात को स्थैतिक अग्र प्रतिरोध कहते हैं, अर्थात्
∴ fr = अग्रबायस वोल्टता / अग्रधारा = fV / iF ओम
अग्र अभिलाक्षणिक वक्र से ति त्र ∆ Vr / ∆ I r ओम
उत्क्रमिक व्यवस्था में किसी बायस वोल्टता के लिए उत्क्रमित वोल्टता तथा उत्क्रमित धारा के अनुपात को उत्क्रमिक प्रतिरोध कहते हैं, अर्थात्
तत = उत्क्रमिक बायस वोल्टता / उत्क्रमिक धारा = Vr / Ir
उत्क्रमिक अभिलाक्षणिक वक्र से, rr = ∆ Vr / ∆ I r
जीनर डायोड (Zener Diode)
एक P-N संधि डायोड को जब उत्क्रम बायस अवस्था में संयोजित कर उत्क्रम विभव Vr का मान बढ़ाया जाता है तो प्रारंभ में डायोड में प्रवाहित धारा लगभग स्थिर रहती है परंतु एक निश्चित वोल्टता जिसे जीनर विभव भी कहते हैं पर उत्क्रम धारा के मान में अचानक तेजी से वृद्धि होती है यह घटना संधि क्षेत्र पर भंजन के कारण होती हैं। भंजन की क्रिया दो कारणों से संभव है-
(i) जीनर भंजन प्रभाव – यह प्रभाव उन डायोडों में देखा… जाता है जिनमें अधिक डोपिग के कारण अवक्षय परत पतली रह जाती है तथा पश्च वोल्टता के कम मान पर ही संधि पर उपस्थित विद्युत क्षेत्र प्रबल हो जाता है जो कि संधि तल के समीप स्थित सहसंयोजी | बंधों में बंधे इलेक्ट्रॉनों पर पर्याप्त बल आरोपित करता है जिससे सहसंयोजी बंध टूटने लगते हैं तथा बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉन-होल युग्मों का उत्पादन होने लगता है फलतः पश्च धारा में अचानक वृद्धि हो जाती है।
(ii) ऐवलांशे भंजन प्रभाव – उत्क्रम विभव, अल्पसंख्यक आवेश वाहकों (होल एवं मुक्त इलेक्ट्रॉन) को गतिज ऊर्जा प्रदान करता है जिससे ये संधि के पार जाते हैं। जब उत्क्रम विभव का मान एक सीमा से अधिक किया जाता है (जीनर विभव पर तो इन अल्पसंख्यक आवेश वाहकों की गतिज ऊर्जा इतनी अधिक हो जाती है कि ये संधि के पार जाकर सहसंयोजी बंधों को तोड़ने लग जाते हैं तथा इलेक्ट्रॉन-होल युग्मों का उत्पादन करते हैं जिससे पश्च धारा में अचानक वृद्धि हो जाती है।
एक सामान्य संधि डायोड पर उत्क्रम वापस अवस्था में जीनर विभव से अधिक विभव आरोपित करने पर यह क्षतिग्रस्त हो जाता है।
जीनर डायोड- ये विशेष प्रक्रिया तथा मिलायी जाने वाली अपमिश्रण की मात्रा के आधार पर इस प्रकार निर्मित किये जाते हैं कि ये भंजन क्षेत्र में उत्क्रम धारा के काफी उच्च मान तक बिना क्षतिग्रस्त हुए कार्य कर सकते हैं तथा इनके भंजन विभाग का मान भिन्न-भिन्न डायोडों के लिए भिन्न-भिन्न रखा जा सकता है। जीनर डायोड को वोल्टता नियामक की भांति प्रयुक्त किया जाता है। इसका संकेत चित्रानुसार होता है-
संधि ट्रांजिस्टर (Junction Transistors)
सन्धि ट्रांजिस्टर एक ऐसी अद्धचालक इलेक्टॉनिक यक्ति है, जिसमें तीन भाग होते हैं। दोनों बाहरी भाग ही प्रकार के बाहा अर्द्धचालक से बना होता है तथा मध्य भाग विपरीत प्रकार के बाहा अर्द्धचालक में बना होता है। प्रकार संधि ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं –
(i) P-N-P ट्रांजिस्टर (ii) N-P-N ट्रांजिस्टर।
(i) P-N-P ट्रांजिस्टर – यह ट्रांजिस्टर छ-प्रकार के अर्द्धचालक की पतली परत को दो च्-प्रकार के अर्द्धचालक के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के मध्य अन्तर्दावित कर बनाया जाता है। इस प्रकार इसमे P. प्रकार के अर्द्धचालक बाहः भाग में तथा N प्रकार का अर्द्धचालक मध्य में होता है।
(ii) N-P-N ट्रांजिस्टर – यह ट्रांजिस्टर च्-प्रकार के अर्द्धचालक की परत को दो छ-प्रकार के अर्द्धचालक के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के मध्य अन्तर्वाचित कर बनाया जाता है। इस प्रकार का N-P-N ट्रांजिस्टर में N-प्रकार के अर्द्ध-चालक बाह्य भाग में तथा P . प्रकार का अर्द्धचालक मध्य में होता है।
ट्रांजिस्टर के तीन भागों में से दो बाहरी भाग, उत्सर्जक (Eiitter) एवं संग्राहक (Collector) कहलाते है। उत्सर्जक भाग में डोपिंग को मात्रा, संग्राहक की तुलना में अधिक रखी जाती है। उत्सर्जक आवेश वाहको के उत्सर्जन का कार्य करता है जबकि संग्राहक आवेश वाहको के संग्रहण का कार्य करता है।
मध्यवर्ती पतला भाग आधार कहलाता है। इसमें डोपिंग को मात्रा अल्प रखी जाती है तथा यह उत्सर्जक आने वाले आवेश वाहको को संग्राहक में जाने के लिए प्लेटफार्म प्रदान करता है। ट्रांजिस्टर में दो संधि होती है। (i) उत्सर्जक-आधार सधि (EBI) (ii) संग्राहक-आधार संधि (CBJ)
ट्रांजिस्टर को किसी विद्युत परिपथ में उपयोग में लाते समय रदव उत्सर्जक आधार संधि को अग्रअभिनन तथा संग्राहक आधार संधि को उत्क्रम-अभिनत रखा जाता है।
यदि ट्रांजिस्टर को ट्रायोड से तुलना करें तो ट्रांजिस्टर का आधार ग्रिड की भांति उत्सर्जक कैथोड तथा संग्राहक आधार प्लेट की भांति कार्य करता है।
ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र (Characteristics fo Transistory)
बॉयस वोल्टता के साथ प्रवाहित धारा के परिवर्तनों को व्यक्त करने वाला आरेख अभिलाक्षणिक है। प्रत्येक विन्यास में टांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र दो प्रकार के होते है-
(i) निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र (Input Characteristics) : वोल्टता को नियत रखते हुए, वोल्टता एवं निवेशी पार के मध्य खोया गया आरेख निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है। उभयानर विन्यास के लिए संग्राहक वोल्टता टब् को नियत रखते हुए आधार वोल्टता के साररू आधार पर का उभयनिष्ठ उत्सर्जक निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है।
(ii) निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र (Output characteristics) : निवेशी धारा को नियत रखते हए, निर्गत के साथ निर्गत धारा का ग्राफ निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है। उभयनित उत्सर्जक विन्यास के लिए आधार प्इ के नियत मानों पर संग्राहक वोल्टता VC के साथ. संग्राहक धारा I C के ग्राफ, उभयनिष्ट उत्सर्जक निर्गत आनल चक्र कहलाते हैं।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…