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सिफैलोकॉर्डेटा या सिफेलो कॉर्डेटा उपसंघ | subphylum : cephalochordata in hindi | लक्षण | वर्गीकरण
subphylum : cephalochordata in hindi सिफैलोकॉर्डेटा क्या है ? या सिफेलो कॉर्डेटा उपसंघ के लक्षण , वर्गीकरण किसे कहते है ?
उपसंघ : सिफैलोकॉर्डेटा (subphylum : cephalochordata) :
सामान्य लक्षण :
- ये समुद्री और छिछले पानी में मुख्य रूप से वितरित होते है।
- अधिकतर स्थानबद्ध एवं तली की रेत में दबे हुए पाए जाते है। केवल शरीर का अग्र छोर ऊपर निकला हुआ रहता है।
- इनका शरीर छोटा , 5 सेंटीमीटर से 8 सेंटीमीटर लम्बा , कृश , मत्स्य सदृश , विखंडित तथा पारदर्शी होता है।
- इनमे सिर का अभाव पाया जाता है और शरीर में केवल धड तथा दुम पायी जाती है।
- इनमे युग्मित उपांगो का अभाव पाया जाता है। मध्य पंख वर्तमान।
- इनमे बाह्य कंकाल अनुपस्थित होता है। एपिडर्मिस एक स्तरीय होता है।
- पेशियाँ पृष्ठ पाशर्विय , आदिपेशीखण्डो में विभाजित होती है।
- प्रगुहा आंत्रगुहिक , परिकोष्ठ गुहा के परिवर्धन से ग्रसनीय क्षेत्र में हासित।
- नोटोकॉर्ड शलाका सदृश , स्थायी , तुंड से दुम तक प्रसारित , अत: नाम सिफैलोकॉर्डेटा होता है।
- पाचक पथ पूर्ण। फेरिंक्स बड़ा , एट्रीयम में खुलने वाले स्थायी क्लोम छिद्रों से छिद्रित। निस्यन्दक पोषी।
- श्वसन सामान्य शरीर तल से होता है। श्वसन के लिए विशेष अंग अनुपस्थित होता है।
- इनमे परिवहन तंत्र भली भाँती विकसित होता है , बंद और बिना ह्रदय और श्वसन वर्णक का। यकृत निवाहिका तंत्र विकसित।
- उत्सर्जन नलोत्सर्जी कोशिकाओं सहित आदि वृक्कों द्वारा।
- तंत्रिका रज्जू पृष्ठ , नलिकाकार , बिना गुच्छको तथा मस्तिष्क का। पृष्ठ तथा अधर तंत्रिका मुलें पृथक।
- लिंग पृथक। जनद अनेक तथा विखंडीय पुनरावृत्ति। जनद वाहिनियों का अभाव। अलैंगिक जनन नहीं होता।
- निषेचन बाह्य , समुद्री जल में।
- स्वतंत्र प्लावी लारवा सहित अप्रत्यक्ष परिवर्धन।
- सिफैलोकॉर्डेटा में अधिकतर ब्रैंकिओस्टोमा वंश की लगभग 30 जातियाँ है तथा सबको केवल एक लेप्टोकॉर्डाइ वर्ग में रखा जाता है।
वर्गीकरण : उपसंघ सिफैलोकॉर्डेटा में एक वर्ग लेप्टोकॉर्डाई , एक कुल ब्रैंकिओस्टोमिडी तथा केवल दो वंश , 8 जातियों सहित ब्रैंक्रिओस्टोमा तथा 7 जातियों का एसिमिट्रोन सम्मिलित है। ब्रैंक्रियोस्टोमा से ऐसिमेट्रोन शरीर के दाहिने भाग में अयुग्मित जनद एवं असममित मेटाप्लुअरल वलनों के कारण भिन्न होता है।
ब्रैंकिओस्टोमा अथवा सिफैलोकॉर्डेटा के आद्य , हासित तथा विशिष्ट लक्ष्ण
1. आद्य लक्षण : ब्रैंक्रिओस्टोमा को आद्य कॉर्डेट माना जाता है। यह वर्टिब्रेट्स से भिन्न होता है क्योंकि यह अपने पूर्वजो के अनेक आद्य कॉर्डेट लक्षणों को अत्यंत प्रारूपिक अथवा अरूपांतरित रूप में पूर्वावशेषों की तरह धारण किये रहता है। इन आद्य लक्षणों में से सर्वाधिक प्रमुख निम्न प्रकार है –
(i) एकाइनोडर्मस , जिनको कॉर्डेट्स के साथ सहपूर्वजता वाला माना जाता है , की तरह असममित शरीर।
(ii) विशिष्ट सिर अथवा शिरोभवन अनुपस्थित।
(iii) युग्मित भुजाओं अथवा पंखों का अभाव।
(iv) एपिडर्मिस एक कोशिकीय मोटी। डर्मिस अनुपस्थित।
(v) प्रगुहा आंत्रगुहिक , डिम्भकीय आद्यांत्र के पाशर्विय कोष्ठों की तरह निकली हुई।
(vi) पेशियाँ अथवा आदिपेशीखंड विखंडीय विन्यसित।
(vii) नोटोकॉर्ड जीवन पर्यन्त स्थायी। कशेरुकीदंड अथवा कोई अन्य अंत:कंकाल विकसित नहीं होता।
(viii) जबड़े अनुपस्थित। आहारनाल सीधी।
(ix) फेरिंक्स वृहद , स्थायी क्लोम छिद्रों से रंध्रित तथा भोजन युक्त जलधारा को खिंचकर पक्ष्माभ अशन के लिए विशिष्टकृत। एण्डोस्टाइल बिना परिवर्तन के उपस्थित।
(x) यकृत एक मध्यांत्र अंधनाल द्वारा निरुपित।
(xi) रुधिर संवहन तंत्र सरल , ह्रदय के बिना। धमनी तथा शिराओं में भेद नहीं। यकृत निवाहिका तंत्र आद्य।
(xii) कोई विशेष श्वसनांग तथा श्वसन वर्णक नहीं।
(xiii) उत्सर्जन विखंडीय विधि से विन्यसित आद्य वृक्ककों द्वारा जो प्रगुहा वाहिनियाँ नहीं होते।
(xiv) तंत्रिका नली खोखली तथा नोटोकॉर्ड के पृष्ठ ओर स्थित। विशिष्टकृत मस्तिष्क का अभाव। रीढ़ तंत्रिकाओं की पृष्ठ और अधर मूले पृथक। पृष्ठ मुले बिना गुच्छको की जिससे आवेग त्वचा से सीधे तंत्रिका नली में चले जाते है।
(xv) संवेदांग सरल तथा अयुग्मित होते है।
(xvi) जनद अनेक जोड़े , समान , खंडीय विन्यसित तथा जनद वाहिनियों के बिना।
(xvii) अंडे छोटे , लगभग पीतकहीन होते है। कोरक गोलाकार , खोखला तथा एक स्तरीय। गैस्ट्रूलाभवन अंतरारोही।
2. हासित लक्षण : ग्रेगोरी जैसे कार्यकर्ताओं का विचार है कि ब्रैंक्रिओस्टोमा एक समय अधिक विकसित था लेकिन अर्धस्थानबद्ध जीवन पद्धति के कारण विकास के बाद के चरण में उसका विशिष्टीकरण तथा हास हुआ। हासी लक्षणों में शामिल है –
(i) अल्प विकसित मस्तिष्क (प्रमस्तिष्क आशय) तथा सरल संवेदांग।
(ii) किसी उपास्थीय अथवा अस्थिल अंत:कंकाल का अभाव।
(iii) जनद वाहिनियों का अभाव होता है।
3. विशिष्ट , विचित्र अथवा द्वितीयक लक्षण : ये परिवर्तन सम्भवतया उनकी विशिष्ट जीवन पद्धति के कारण विकसित हुए तथा इन्होने सम्भवतया उनके आगे के विकास को भी रोका। अपने हासित तथा विशिष्ट लक्षणों के कारण वे कॉर्डेट्स की सीधी विकास रेखा में नहीं माने जाते वरन एक पाशर्व शाखा माने जाते है।
(i) वयस्कों की विचित्र असममिति एवं परिवर्धन की प्रारंभिक अवस्थाएँ।
(ii) नोटोकॉर्ड का तुंड में प्रक्षेपण द्वारा उसे बिल खोदने के लिए अधिक कठोर बनाना। नोटोकॉर्ड का अतिविकास मस्तिष्क के अभाव का कारण हो सकता है।
(iii) भोजन कणों को पानी से छानने तथा उनका सांद्रण करने के लिए मुख संवेदी मुख कुरलों युक्त मुख छद से घिरा हुआ।
(iv) फेरिंक्स में केवल छोटे भोजन कणों के प्रवेश के लिए संवेदी स्पर्शकों से युक्त जटिल गुंठिका।
(v) पक्ष्माभी क्लोम विदरों से युक्त विस्तृत फेरिंक्स। पर्याप्त भोजन संग्रह के लिए पक्ष्माभी क्लोम विदरों की संख्या वास्तविक देहखंडो से अधिक।
(vi) पक्ष्माभी पोषण में सहायता के लिए चक्रांग , हैट्शेक की खांच तथा गर्त विकसित।
(vii) कोमल फेरिंक्स रक्षक परिकोष्ठीय गुहा से घिरा जो परिकोष्ठ छिद्र द्वारा बाहर खुलती है।
(viii) एट्रिअम के परिवर्धन के कारण सीलोम विस्थापित तथा हासित।
बन्धुताएं तथा वर्गीकृत स्थिति (affinities and systematic position of cephalochordata)
- शरीर द्विपाशर्वीय सममित तथा विखंडी रूप से खंडित।
- ज्वाला कोशिकाओं सहित आद्यवृक्कक विखंडीय विधि से विन्यसित (जैसे कुछ पोलीकीट्स में )
- भली भांति विकसित गुहा।
- रुधिर संवहन तंत्र बंद तथा समान प्रकार व्यवस्थित।
- कुछ पोलीकीट्स में निस्यन्दक पोषण विधि।
आपत्तियाँ : ऐनीलिड्स से भिन्न सिफैलोकॉर्डेट्स में विखंडन केवल आदिपेशीखंडो तथा जनदों तक ही सिमित है। प्रगुहा आंत्रगुहिक है तथा ऐनीलिड्स के समान दीर्णगुहिक नहीं है। दोनों समूहों की मुख्य रुधिर वाहिकाओं में रुधिर का प्रवाह विपरीत दिशाओं में होता है। सबसे महत्वपूर्ण , ऐनीलिडा में सिफैलोकॉर्डेटा के तीनो मूल कॉर्डट लक्षण नहीं होते है।
[II] कॉर्डेट बन्धुतायें
- अनेक क्लोम छिद्र तथा क्लोम दंड सहित ग्रसनीय उपकरण।
- निस्यन्दक पोषण विधि।
- समान श्वसन विधि।
- आंत्रगुहिक प्रगुहा।
- बिना जनद वाहिनियों के अनेक जनद।
- आद्य पक्ष्माभी पोषण तथा श्वसन विधियाँ।
- अनेक पाशर्वीय क्लोम छिद्रों , अधिग्रसनीय खाँच , अधोग्रसनी खाँच तथा परिग्रसनीय पट्टो से युक्त विशाल फेरिंक्स।
- परिकोष्ठ छिद्र (परिकोष्ठीय साइफन) से बाहर खुलने वाली और एक्टोडर्म से आस्तरित परिकोष्ठ गुहा।
- परिवर्धन की समान आरम्भिक अवस्थाएं (पूर्णभंजी विदलन , अंतर्वलन द्वारा कन्दुकभवन)
- ऐसिडियन लारवा में एक अविछिन्न नोटोकॉर्ड , जिसके ऊपर एक पृष्ठ खोखली तंत्रिका रज्जु तथा बिना रश्मियों के मध्यवर्ती गुदपख सहित एक पश्चगुद दुम होती है।
- अखंडित शरीर।
- सेल्युलोस के एक चोल से ढका।
- आंत्रगुहिक प्रगुहा सहित
- बगैर नोटोकॉर्ड तथा खोखली तंत्रिका रज्जु के।
- यकृत सहित।
- पेरिटोनियम द्वारा ढका भली भाँती विकसित पेशीय ह्रदय।
- बिना वृक्ककों के।
- उभयलिंगी जनदों सहित संयुक्त लिंग
- वयस्क होने के लिए लारवा प्रतिक्रमणी कायान्तरण करता है।
- लम्बा , कृश , मछली समान शरीर।
- अविछिन्न पृष्ठ मध्यवर्ती पंख
- मुखछद से घिरा एवं गुन्ठिका से रक्षित मुख।
- अधोग्रसनी खाँच तथा क्लोम छिद्रों से युक्त फेरिंक्स
- इन मौलिक कॉर्डेट लक्षणों के अतिरिक्त उनके वयस्क विखंडीय आदिपेशीखंड , स्थायी क्लोम छिद्र , गुंठिका तथा एक पश्चगुदिय दुम प्रदर्शित करते है।
4. अन्य वर्टिब्रेट्स से बन्धुताएं : साइक्लोस्टोम्स के अतिरिक्त ब्रैंकिओस्टोमा अन्य वर्टिब्रेट्स से भी अनेक प्रकार से साम्य रखता है।
- विखंडीय विन्यसित आदि पेशी खंड।
- मध्यजनस्तर उपकला से आस्तरित वास्तविक प्रगुहा।
- पश्चगुद दुम।
- यकृत के तुल्य मध्यांत्र अंधनाल।
- भली भाँती संगठित यकृत निवाहिका तंत्र।
- मुख्य अनुदैधर्य वाहिकाओं का समान विन्यास।
- सिर , युग्मित पाद , करोटि , कशेरुकदंड , पेशीय ह्रदय , लाल रक्त कणिकायें , मस्तिष्क , विशिष्ट संवेदी अंग , जनन वाहिनियाँ आदि का अभाव।
- वृक्कक , परिकोष्ठ ,अनेक जनद , असममिति आदि के सहित।
[III] वर्गीकृत स्थिति
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