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पादप सुरक्षा एवं संगरोध केंद्रीय निदेशालय (Central Directorate fo Plant Protection and Quarantine in hindi)
(Central Directorate fo Plant Protection and Quarantine in hindi) पादप सुरक्षा एवं संगरोध केंद्रीय निदेशालय की स्थापना कब की गयी थी ?
वैदेशिक पीड़कों के आप्रवेश को रोकने हेतु विधान
वैदेशिक पीड़कों के आप्रवेश को रोकने हेतु संसार के लगभग प्रत्येक देश ने पादप एवं पादप उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा रखे हैं। इन संगरोधों के लागू किए जाने को संगरोध नियमावली (Quarantine Lwa) नामक कानूनी अधिनियमों द्वारा समर्थन दिया जाता है। आयातित पौधों तथा पादप सामग्रियों को आयात-स्थान पर पूरी तरह जांचा जाता है कि कहीं उसमें कोई वैदेशिक कीट अथवा उसकी कोई जीवन-चक्र अवस्था तो मौजूद नहीं है। कोई भी कीट जो प्रकटतरू अहानिकर लगता हो अथवा जो अपने स्ववासीय देश में एक अप्रधान पीड़क रहा हो, वह किसी नए देश में पहुंचकर एक संभव पीड़क बन सकता है। अतरू सभी प्रकार के पीड़कों के प्रवेश को, चाहे वे अपने देश में किसी भी स्तर के रहे हों, रोका जाना है और किसी भी संग्रसित सामग्री को उसके आयात स्थान पर ही उपयुक्त साधनों से विसंक्रमित किया जाना है।
अन्य देशों की ही तरह भारत ने भी ऐसे ही नियम बनाए हैं। पादप सुरक्षा एवं संगरोध केंद्रीय निदेशालय (Central Directorate fo Plant Protection and Quarantine) को सन् 1946 में स्थापित किया गया था। उससे पूर्व अधिनियम में बताए गए अनुसार संगरोध नियमों का लागू किया जाना एवं पौधों को विसंग्रसित किया जाना सीमाशुल्क अधिकार्यों द्वारा किया जाता था। 1949 के बाद से इस निदेशालय ने अनेक बंदरगाहों तथा हवाई अड्डों पर एवं थल सीमाओं पर संगरोध केंद्र स्थापित किए हैं और उसी के देखरेख में कार्यवाहियां होती हैं। पादप संगरोध निरीक्षण तथा उपचार की सुविधाएं अनेक बंदरगाहों जैसे मुम्बई, कोलकाता, कोचिन, चेन्नई, तूतिकोरिन, रामेश्वरम, भावनगर तथा विशाखापटनम पर तथा हवाई अड्डों जैसे कि अमृतसर, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, तिरुचिरापल्ली एवं नयी दिल्ली पर उपलब्ध हैं।
थल सीमांतों में आते हैं अमृतसर जनपद की अत्तारी-वागाह सीमा तथा पश्चिम बंगाल बोंगेगांव, गाडे मार्ग, कालिमपोंग तथा सुखिया पोखरी। इन केंद्रों पर 1914 के भारत सरकार के विनाशकारी कीट एवं पीड़क अधिनियम के अंतर्गत कार्य किया जाता है। बाहरी देशों से कोई भी आयातित माल केवल इन्हीं स्थानों से भीतर लाया जा सकता है। आयात किए जा रहे सामान के साथ निर्यातक देश के कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा जारी किए गए ऐसे प्रमाण-पत्र का होना अनिवार्य है जिसमें संबद्ध सामान का पीडकों तथा रोगों से मुक्त होना घोषित किया गया हो। इन प्रमाण पत्रों को पादप स्वच्छता प्रमाणपत्र (Phytosanitary Certificates, Phyto: पादप,Sanitary : स्वच्छ) (PC) कहा जाता है। ऐसे सभी सामान की प्रवेश स्थान पर ही जांच की जाती है और यदि आवश्यक हुआ तो धूमन किया जाता है ताकि उसमें मौजूद पीड़क मर जाएं। डाक अथवा विमान द्वारा पौधों का आयात किया जाना निषेध है, बस केवल विशेषज्ञ ही वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए इस तरह मंगा सकते हैं।
ऽ उन देशों से भारत में आलू के कंदों का आयात किया जाना पूर्णतरू प्रतिबंधित है, जहां पर ये आलू के मस्सा-रोग (Wart disesae) अथवा सुनहरे सिस्ट नीमैटोड से ग्रसित हुए पाए जाते हैं।
ऽ रबड़ के बीज, गन्ने की पोरियों तथा कॉफी एवं कपास के बीजों के आयात किए जाने पर प्रतिबंध लगे हैं ताकि पश्चिमी द्वीप समूह की शर्करा सुरसुरी स्फेनोफोरस सैकेराई (Sphenophorus sacchari), कॉफी का बेरी-छेदक हाइपोथेनेमस हैम्पिआई (Hypothenemus hampei) तथा मेक्सिको की डोंडा सुरसुरी ऐंथोनोमस ग्रैंडिस (Anthonomus grandis) का प्रवेश न हो सके।
मगर अन्य बहुत से पादप साज-सामानों का आयात. किया जा सकता है, बशर्ते कि उनके साथ में पादप स्वच्छता प्रमाणपत्र दिया गया हो।
इसी प्रकार भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के साथ भी जैसे कि काली मिर्च, इमली तथा इलाचयी के थोक माल के साथ भी पादप स्वच्छता प्रमाण पत्र दिया जाना आवश्यक है।
बोध प्रश्न 4
प) सन् 1946 में जो निदेशालय स्थापित किया गया था, उसका क्या नाम था?
पप) ऐसे किन्हीं चार बंदरगाहों तथा तीन हवाई अड्डों के नाम लिखिए जहां पादप संगरोध जांच एवं उपचार उपलब्ध हैं।
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