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cell wall in hindi कोशिका भित्ति क्या है कोशिका भित्ति के दो कार्य लिखिए कोई तीन किसे कहते हैं

जाने cell wall in hindi कोशिका भित्ति क्या है कोशिका भित्ति के दो कार्य लिखिए कोई तीन किसे कहते हैं ?

कोशिकीय आवरण (Cell Envelops)

(A) कोशिका भित्ति (Cell Wall) :

पादप कोशिकाओं में जीवद्रव्य द्वारा स्रावित निर्जीव पर्त, जो कि सजीव प्लाज्मा झिल्ली के बाहर • चारों ओर एक रक्षात्मक कवच बनाती है, कोशिका स्थित रहती है तथा सम्पूर्ण जीवद्रव्य इकाई भित्ति कहलाती है। इसकी सूक्ष्म संरचना में दो घटक तन्तुक (Fibrils) तथा मेट्रिक्स (Matrix) पाये जाते हैं । यह पॉलीसेकेरॉइड्स (Polysaccharides) की बनी होती है, जिसमें सेल्यूलोज (Cellulose) नन्नुक तथा हेमीसेल्युलोज (hemicellulose) व पेक्टिक (Pectic) पदार्थ मैट्रिक्स बनाते हैं। पॉलीसेकेराइड्स के अलावा कुछ कोशिकाओं में कोशिका भित्ति के परिवर्धन की विभिन्न अवस्थाओं में अन्य पदार्थ जैसे-प्रोटीन, लिग्निन, लिपिड्स, सुबेरिन, क्यूटिन, मोम, रेजिन, गोंद तथा टेनिन आदि पदार्थों का जमाव (deposition) होता है। जन्तु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति का पूर्णतया अभाव होता है, लेकिन यूग्लीना (Euglena)व पैरामीसियम (Paramaecium) की कोशिकाओं के चारों ओर प्रोटीन की एक पर्त होती है, जिसे पेलिकल (Pellicle) कहते हैं ।

कोशिका भित्ति की संरचना (Structure of Cell wall) :

कोशिका विभाजन के समय कोशिका द्रव्य विभाजन ( cytokinesis ) हेतु कोशिका प्लेट (cell plate) का निर्माण होता है । यह प्लेट मुख्य रूप से पेक्टिन की बनी होती है, जिस पर कैल्सियम (calcium) तथा मैग्निशियम (magnesium) पेक्टेट का जमाव होता है। यह पर्त मध्य पटलिका (middle lamella) कहलाती है। दो संलग्न कोशिकाओं की प्राथमिक भित्तियों के मध्य पायी जाने वाली यही प दोनों कोशिकाओं में कोशिका भित्ति के जमाव के लिए आधारीय स्तर (Basal layer) का काम करती है तथा कोशिकाओं को जोड़ने वाले सीमेन्ट स्तर (Cementing layer) का भी कार्य करती है। कोशिका वृद्धि की प्रारम्भिक अवस्था में कोशिका भित्ति एक पतली व लचीली पर्त के रूप में होती है। जो कि मध्य पटलिका पर एक पर्त के रूप में जीवद्रव्य द्वारा स्रावित अन्य पदार्थों, जैसे- सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज तथा पेक्टिन आदि के एकत्रित होने से बनती है। इस पर्त को प्राथमिक भित्ति (primary wall) कहते हैं (चित्र 2.4 A ) ।

प्राथमिक भित्ति के पूर्ण निर्माण के पश्चात् कोशिका के परिपक्वन (maturation ) के दौरान कोशिका भित्ति की बनावट में परिवर्तन आता है। जीवद्रव्य द्वारा स्रावित विभिन्न पदार्थ, जैसे- सेल्युलोज, लिग्निन, सुबेरिन, क्यूटिन आदि पदार्थ प्राथमिक कोशिका भित्ति के अन्दर की तरफ कोशिका गुहा ओर जमा होने लगते हैं। प्राथमिक भित्ति पर जमा होने वाली यह परत प्राय: मोटी व अप्रत्यास्थ (Thick & Non-elastic) होती है। इसे द्वितीयक भित्ति कहते हैं। यह पर्त कोशिका को एक विशिष्ट आकृति व यांत्रिक बल (Specific shape & mechanical strength) प्रदान करती है। सामान्यतः यह भित्ति त्रिपरतीय होती है। इसकी तीनों परतों को भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर पहचाना जा सकता है। इन तीन स्तरों में मध्य स्तर प्रायः सबसे मोटा होता है। इन स्तरों के निर्माण के उपरान्त कोशिका भित्ति का लचीलापन समाप्त हो जाता है तथा यह दृढ़ व कठोर हो जाती है। कुछ कोशिकाओं में द्वितीयक भित्ति के ऊपर तीसरी पर्त (Tertiary wall) पायी जाती है जो सामान्यतः हेमीसेल्यूलोज (Hemicellulose) तथा जाइलेन (xylan) की बनी होती है ।

मध्य पटलिका तथा कोशिका भित्ति की सभी पर्तें व अन्य कोशिकाएँ छोटे-छोटे छिद्रों द्वारा छिद्रित होती हैं। इन छिद्रों द्वारा एक कोशिका का कोशिका द्रव्य ( cytoplasm) दूसरी कोशिका के कोशिका द्रव्य से सम्बन्धित रह इस प्रकार बने कोशिका द्रव्यी सूत्रों (cytoplasmic threads) को प्लाज्मोडेस्मेटा (plasmodesmata) कहते हैं (चित्र 2.4 B)।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि कोशिका भित्ति एक त्रिपरतीय संरचना है जिसमें सभी पर्तों की संरचना तन्तुकीय (fibrillar) होती है । प्रत्येक तन्तुक लम्बा व शाखित हो सकता है । यह स्वयं लगभग 250 सूक्ष्म तन्तुकों (microfibrillae) द्वारा बना होता है। सूक्ष्म तन्तुक स्वयं भी 20-22 अति सूक्ष्म तन्तुकों द्वारा बने होते हैं जिन्हें मिसेल (micelle) कहते हैं। एक मिसेल की रचना लगभग 100 सेल्यूलोज अगुओं की लम्बी श्रृंखलाओं के एक साथ, एक स्थान पर लगे होने से होती है । इस प्रकार तन्तुकीय संरचना से बने जाल में अन्तर-तन्तुकीय स्थानों (interfibrillar spaces) में हेमीसेल्यूलोज तथा पेक्टिन के कण (amorphous particles) भरे रहते हैं। प्राथमिक भित्ति में शुरू में माइक्रोफाइब्रिल्स व्यवस्थित रूप में नहीं पाये जाते हैं। लेकिन कोशिका के परिपक्व होने पर ये माइक्रोफाइब्रिल्स धीरे-धीरे लम्बाई में व्यवस्थित होने लगते हैं । द्वितीयक भित्ति में माइक्रोफाइब्रिल्स समानान्तर (Parallel) रूप से व्यवस्थित रहते

कोशिका भित्ति की उत्पत्ति व वृद्धि (Cell-wall origin and growth) :

कोशिका भित्ति की उत्पत्ति के लिए केन्द्रक विभाजन के पश्चात् कोशिका के मध्यवृत्त (Equator) पर सर्वप्रथम कोशिका पट्टी (cell plate) का निर्माण होता है, जिस पर बाद में भित्तीय पदार्थ पर्तों के रूप में जम जाते हैं। कोशिका पट्टी निर्माण के लिए अन्तःप्रद्रव्यी जालिका तथा गॉल्जी उपकरण द्वारा व्युत्पन्न तीन प्रकार की संरचनाएँ बनती हैं – (1) अन्तःप्रद्रव्यी जालिका के खण्ड, (2) 20mu परिमाप वाली पुटिकाएँ, जो कि गॉल्जी उपकरण से टूटती हैं, तथा (3) 250mp परिमाप वाली बड़ी पुटिकाएँ जिन्हें फ्रेग्मोसोम्स (Phragmosomes) कहते हैं । ये तीनों संरचनाएँ मिलकर फ्रेग्मोप्लास्ट उपकरण कहलाती हैं ( चित्र 2.6)।

कोशिका पट्टी के निर्माण के लिए अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के खण्ड व पुटिकाएँ मध्यवर्ती क्षेत्र में पंक्तिबद्ध हो जाते हैं तथा कोशिका के आर-पार पहुँचकर कोशिका द्रव्य को दो भागों में विभाजित कर देते हैं। बाद में पुटिकाएँ संगलित होकर एक झिल्ली जैसी संरचना बनाती हैं । यह झिल्ली पुत्री कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली से जुड़ जाती है, दोहरी झिल्ली के मध्य उपस्थित पेक्टिन सामग्री बाद में मध्य पटलिका का निर्माण करती है। पेक्टिन पुटिकाओं में भरा होता है। कुछ स्थानों पर संगलन अपूर्ण रह जाता है, जिससे प्लाज्मोडेस्मेटा का निर्माण होता है। 20 m ́ पुटिकाओं वाली परत के दोनों ओर फ्रेग्मोसोम्स दिखाई देते हैं । ये एक झिल्ली के बने होते हैं। इनमें कणात्मक मेट्रिक्स होता है । इनका व्यास 250 m ́ होता है । ये मध्य पटलिका पदार्थ को अपना योगदान देते हैं तथा बाद में ये समाप्त हो जाते हैं ।

इस प्रकार कोशिका पट्टी के विकसित होने के पश्चात् पुत्री कोशिकाओं का जीवद्रव्य अपनी प्राथमिक भित्ति के पदार्थों का स्राव करता है । प्राथमिक भित्ति का निर्माण मध्य पटलिका पर सेल्युलोज तथा पेक्टिन के जमाव के कारण होता है। प्रारम्भ में यह भित्ति लचीली होती है तथा खिंचने का सामर्थ्य जाती है जिससे इसके कणों के बीच-बीच में स्थान बनते रहते हैं जिनमें अन्य पदार्थ कणों के रूप रखती है, जिसके कारण कोशिका का प्रसरण सम्भव होता है। फैलने के कारण प्राथमिक भित्ति खिंच में आकर मिलते रहते हैं । इस प्रकार नये कणों का पहले से उपस्थित कणों के बीच-बीच में संचयन द्वारा कोशिका भित्ति की वृद्धि कणाधान वृद्धि ( Intussusception) कहलाती है जिसके द्वारा एक स्तर का निर्माण होता है। कोशिका के पूर्ण परिमाण की प्राप्ति के पश्चात् दृढ़ द्वितीयक भित्ति का संचयन की मोटाई में वृद्धि पर्त के रूप में होती है । इसे स्तराधान ( apposition) द्वारा वृद्धि कहते हैं । अतः होता है । भित्ति पदार्थ प्राथमिक भित्ति पर निश्चित पर्तों के रूप में संचयित हो जाता है, जिससे पूरी भित्ति इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राथमिक भित्ति का निर्माण मुख्य रूप से कणाधान विधि द्वारा एवं द्वितीयक भित्ति का निर्माण कणाधान व स्तराधान विधियों द्वारा होता है ।

कोशिका भित्ति का स्थूलन (Thickening of the Cell wall) :

पादपों में कुछ कोशिकाएँ विशिष्ट कार्य सम्पन्न करती हैं, जैसे वाहिनी व वाहिनिकाएँ संवहन का कार्य तथा दृढ़ोतक की कोशिकाएँ पादप को दृढ़ता प्रदान करने का कार्य करती हैं। इन कोशिकाओं में पूर्णरूपेण कोशिका भित्ति निर्माण, आकार व परिमाप ग्रहण करने के पश्चात् कोशिका भित्ति का स्थूलन होता है। इन कोशिकाओं में लिग्निन द्वारा स्थूलन ( lignification) होता है । दृढ़ोतक की कोशिकाओं में लिग्निन का जमाव समान रूप से पूर्ण पर्त के रूप में होता है, जबकि संवहनी कोशिकाओं में भित्ति पर विभिन्न रूपों में लिग्निन का जमाव होता है, जिससे निम्न प्रकार के आकार बनते हैं

( 1 ) वलयाकार (Annular ) : जब कोशिका भित्ति के अन्दर की सतह पर लिग्निन छल्लों के रूप में जमा होता है, इसे वलयाकार (Annular) स्थूलन कहते हैं । स्थूलन का प्रत्येक छल्ला लगभग समानान्तर होता है। प्रोटोजाइलम की वाहिनियों व वाहिनिकाओं में इस प्रकार का स्थूलन देखने को मिलता है (चित्र 2.7 ) ।

( 2 ) सर्पिल (Spiral) : इस प्रकार के स्थूलन में लिग्निन एक सर्पिल पट्टी के रूप में जमा हो जाता है। यह स्थूलन भी प्रोटोजाइलम की वाहिनिकाओं व वाहिनियों में पाया जाता है।

( 3 ) सीढ़ीनुमा (Scalariform) : इस प्रकार के निक्षेपण में लिग्निन भित्ति पर एक दूसरे से समानान्तर पट्टियों के रूप में जमा होता है। ये पट्टियाँ कोशिका के लम्बे अक्ष के साथ समकोण पर जमा होती हैं व सीढ़ी के डण्डों की तरह दिखाई देने लगती हैं ।

(4) जालिकारूपी (Reticulate) : इस प्रकार के स्थूलन में लिग्निन की पट्टियाँ आड़ी- तिरछी होकर आपस में जुड़ जाती हैं, जिससे भित्ति पर एक जाल – सा बन जाता है । इसे जालिकारूपी स्थूलन कहते हैं ।

( 5 ) गर्तमय (Pitted) : जब पूरी भित्ति पर लिग्निन लगभग समान रूप से जमा हो जाता है, पूरी भित्ति स्थूलित हो जाती है, किन्तु जगह-जगह पर खाली स्थान रह जाते हैं । ये लिग्निन रहित खाली स्थान गर्त (Pits) कहलाते हैं तथा इस प्रकार स्थूलन गर्तमय (Pitted) कहलाता है। गर्त दो प्रकार के होते हैं –

(अ) साधारण गर्त (Simple pits) तथा (ब) परिवेशित गर्त (Bordered pits) ।

(अ) साधारण गर्त : इस प्रकार के गर्त कोशिका भित्ति पर आकृत्ति में गोल, अण्डाकार या खिंचे हुए (Oblong) दिखाई देते हैं । ये गर्त जोड़ों (pairs) में दो कोशिकाओं की भित्ति पर आमने- सामने बनते हैं। दोनों कोशिकाओं की भित्ति पर उपस्थित गर्त जोड़ों को केवल मध्य पटलिका व प्राथमिक भित्ति ही अलग-अलग करती है। अतः यह झिल्ली ही गर्त कला या क्लोजिंग कला (Pit membrane or closing membrane) कहलाती है ( चित्र 2.8 ) । इस गर्त की पूरी गहराई तक समूचा क्षेत्र एक समान होता है।

(ब) परिवेशित गर्त : इस प्रकार के गर्त का आकार कीपाकार ( Funnel shaped) होता है, क्योंकि इस प्रकार के गर्त में सम्पूर्ण गहराई तक एक-सा क्षेत्र नहीं पाया जाता है। इसमें कोशिका – भित्ति से गर्त कला तक गहराई तक एक सा क्षेत्र नहीं पाया जाता है। इसमें कोशिका – भित्ति से गर्त कला तक गहराई का व्यास बढ़ता जाता है। अतः गर्त कीप की आकृति बना लेता है । इस प्रकार गर्त – युगल (Pitpair) की दोनों कीप सदृश रचनाएँ एक-दूसरे पर चौड़े भाग से रखी हुई प्रतीत होती हैं जिनके बीच गर्त कला होती है। गर्त का सबसे छोटा भाग बीच में अत्यधिक स्पष्ट होता है और भित्ति का ऊपर की ओर निलम्बित (overhanging) भाग एक परिवेशन (border) के रूप में दिखाई पड़ता है । इसीलिए इन्हें परिवेशित गर्त (bordered pit) कहते हैं। इस प्रकार के गर्तों में पिट मेम्ब्रेन भी स्थूलित हो जाती है, जिसे टॉरस (torus) कहते हैं। गर्त दो कोशिकाओं के मध्य विसरण के स्थान होते हैं। जब विसरण रोकना होता है तो टॉरस एक ओर दबकर गर्त को बन्द कर देता है (चित्र 2.8 ) । इस प्रकार टॉरस एक वाल्व की तरह कार्य करता है तथा पदार्थों के आवागमन का नियमन करता है

साधारण गर्त जीवित कोशिकाओं, जैसे- पैरेन्काइमा (Parenchyma) तथा कोलेन्काइमा (Collenchyma) में पाये जाते हैं। इनके द्वारा जीवद्रव्य का आवागमन होता है। परिवेशित गर्त तथा वाहिनिकाओं में मिलते हैं। इसके अलावा रेशे, अष्ठि कोशिकाओं (Stone cells), काष्ठ सहकोशिका व चालनी नलिकाओं में भी गर्त पाये जाते हैं।

कोशिका भित्ति : रासायनिक परिवर्तन (Cell wall: Chemical changes ) :

अधिकतर सभी पादपों में कोशिका भित्ति का रासायनिक संगठन सेल्युलोज व पक्टिक पदार्थों द्वारा होता है। किन्तु कोशिकाओं के पुराने हो जाने पर यांत्रिक सहायता के लिए कोशिका भित्ति पर अन्य रासायनिक पदार्थों, जैसे- लिग्निन, सुबेरिन, क्यूटिन, पैक्टिन, खनिज लवण, टैनिन तथा रेजिन आदि उ हो जाते हैं। कोशिका भित्ति में होने वाले रासायनिक परिवर्तन निम्न प्रकार के हो सकते हैं :

(अ) लिग्नीभवन (Lignification) :

लिग्निन (Coniferyl alcohol) एक कठोर व जटिल पदार्थ है जो कुछ हद तक पानी को अपने में सोख लेता है तथा बाद में पानी के लिए अपारगम्य (Impermeable) हो जाता है। यह सेल्यूलोज या अन्य कार्बोहाइड्रेट्स के रूपान्तरण से बनता है। सेल्यूलोज से बनी प्राथमिक भित्ति पर इसका जमाव कोशिका भित्ति को स्थलित कर दृढ़ व कठोर बना देता है। कोशिकाएँ मृत व यांत्रिक मदद करने वाली हो जाती है। इनमें जीवद्रव्य समाप्त हो जाता है। संवहन का कार्य करने वाली कोशिकाएँ वाहिनी, वाहिनिकाएँ व दृढ़ोतक की कोशिकाएँ प्राय: लिग्नीभूत (lignified) होती हैं ।

( ब ) सुब्रनीभवन (Suberization) :

रासायनिक रूप से सुबेरिन अनेक प्रकार की वसाओं का मिश्रण है । यह ग्लिसरोल व फेलोनिक अम्ल (Glycerol & Phellonic acid) का संघनित उत्पाद होता है । यह जल के लिए पूर्ण रूप से अपारगम्य (Impermeable) होता है। कोशिका भित्ति पर इसका जमाव सुब्रनीभवन ( Suberization) कहलाता है। यह सामान्य रूप से मध्य पटलिका (middle lamella) पर जमा हो जाता है, सुबेरिन युक्त कोशिकाएँ मृत होती हैं। कॉर्क कोशिकाएँ तथा केस्पेरियन स्ट्रिप्स इसके उदाहरण हैं।

(स) क्यूटिनीभवन (Cutinization) :

क्यूटिन मोम जैसा पदार्थ होता है जो पौधों के वायवीय भागों की बाह्य त्वचा (Epidermis) पर एक पर्त के रूप में जमा हो जाता है। यह पर्त क्यूटिकल कहलाती है। क्यूटिकल के बनने की क्रिया को क्यूटिनीभवन (Cutinization) कहते हैं। क्यूटिन वसीय अम्लों का एनहाइड्राइड (anhydride) होता है। यह जल के लिए अपारगम्य होता है। यह पौधों के वायवीय भागों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन पर नियन्त्रण रखता है। पौधों में वाष्पोत्सर्जन को अधिक प्रभावी ढंग से रोकने के लिए कभी-कभी क्यूटिकल पर एक मोमी पर्त (waxy layer) पायी जाती हैं, जिसे ब्लूम ( bloom) कहते हैं।

(द) सेल्यूलोज का जमाव (Deposition of Cellulose) :

कुछ कोशिकाएँ जैसे कपास के रेशे तथा कोलेन्काइमा कोशिकाओं में सेल्यूलोज से बनी प्रारम्भिक भित्ति पर सेल्यूलोज का ही जमाव हो जाता है।

(इ) पैक्टिन का बनना (Formation of Pectin) :

फलों के पकने पर उनकी कोशिकाओं की भित्ति का रासायनिक संगठन बदल जाता है। वैसे इन कोशिकाओं में मध्य पटलिका केल्सियम तथा मैग्निसियम पेक्टेट की बनी होती है तथा प्राथमिक व द्वितीयक भित्तियाँ सेल्यूलोज व पेक्टोज की बनी होती हैं। फलों के पकने के समय इन भित्तियों में पैक्टिन नामक पदार्थ बन जाता है। यह घुलनशील होता है।

(फ) म्यूसिलेज का बनना (Mucilage formation) :

कुछ विशेष अवस्थाओं में सेल्यूलोज एक लसलसे पदार्थ में विघटित (decompose) हो जाता है, जिसे म्यूसिलेज कहते हैं। इसमें अधिक मात्रा में जल को एकत्रित रखने की क्षमता होती है, यह गाढ़ा तरल हो जाता है। उदाहरणार्थ – भिण्डी के फलों, ग्वारपाठे की पत्तियाँ व ईसबगोल के बीजों की कोशिका भित्तियों में अधिक मात्रा में म्यूसीलेज बनता है।

(ज) खनिजीभवन (Mineralization) :

कुछ पौधों में कोशिकाओं को दृढ़ बनाने के लिए विभिन्न खनिज लवण, जैसे- सिलिका केल्सियम कार्बोनेट, केल्सियम ऑक्जलेट आदि कोशिका भित्ति पर जमा हो जाते हैं। यह क्रिया खनिजीभवन कहलाती है । उदाहरण : इक्वीसीटम व एट्रोपा घास की पत्तियों में सिलिका का जमाव । कोशिका भित्ति के कार्य (Function) :

  1. कोशिका भित्ति का मुख्य कार्य पौधों को यांत्रिक शक्ति प्रदान करना है।
  2. यह कोशिका को एक आकार दृढ़ता व सुरक्षा प्रदान करती है।
  3. जीवद्रव्य को बाहरी आघातों से बचाती है।