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Cell Suspension Culture in hindi , कोशिका निलंबन संवर्धन किसे कहते हैं , परिभाषा , प्रक्रिया क्या है

Cell Suspension Culture in hindi Cell Suspension Culture in hindi , कोशिका निलंबन संवर्धन किसे कहते हैं , परिभाषा , प्रक्रिया क्या है  ?

कोशिका निलम्बन संवर्धन (Cell Suspension Culture)

कोशिका निलम्बन तैयार करने के लिए कैलस को तरल पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित करके 80- 150 चक्र प्रति मिनट हलित्र ( stirrer ) पर हिलाया जाता है। इस प्रकार कैलस की भुरभुरी कोशिकायें बिखरती हैं व कोशिका निलम्बन तैयार हो जाता है। माध्यम में पेक्टीनेज विकर डालने पर कोशिकाओं की मध्य पटलिका घुल जाती हैं व कोशिकायें शीघ्र ही अलग हो जाती हैं। कैलस अगर तरल पोष पदार्थ डूबा रहता है तब उसके लिए अनॉक्सी अवस्था उत्पन्न हो जाती है किन्तु हलित्र पर कोशिकाओं का निलम्बन तैयार हो जाने से कोशिकाओं को समुचित हवा मिलती रहती है तथा इनकी वृद्धि दर बढ़ जाती है।

कोशिका निलम्बन के बारे में 1953 में डब्ल्यू. एच. मूर द्वारा रिपोर्ट किया गया था। उन्होंने निकोटिआना टबेकम व टेजीटिस इरेक्टा के कैलस को छोटे भागों में खण्डित करके उनकी कोशिकाओं की निलम्बन संवर्धन पर वृद्धि देखी थी। उनके कार्य को आगे बढ़ाते हुए एफ. सी. स्टीवर्ड व ई. एम. स्टेन्ज ने 1956 में डॉकस केरोटा की मूल से कर्तोतक लेकर कोशिका निलम्बन संवर्धन द्वारा पादपक प्राप्त करने की महत्वूपर्ण उपलब्धि हासिल की थी। एफ. किंग ने 1980 में कोशिका निलम्बन संवर्धन में कैलस के स्थान पर पादप ऊतक का उपयोग करके रिपोर्ट किया कि इस विधि द्वारा कोशिकाओं में काफी पहले ही उपापचयी (metabolic) व वृद्धि (growth) सम्बन्धी परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं जिससे विभिन्न वंशक्रम निर्मित हो जाते हैं ।

कोशिका निलम्बन संवर्धन द्वारा रासायनिक रूप से ज्ञात तरल माध्यम पर कोशिकाओं की वृद्धि एवं परिवर्धन की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले आकारिकी व जैव रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन करना संभव होता है जबकि कैलस में यह पूर्ण रूप से संभव नहीं हो पाता है।

ठोस की अपेक्षा भुरभुरे (fragile ) कैलस द्वारा उपयुक्त कोशिका निलम्बन प्राप्त किया जाता है। इसके लिए कैलस को हलित्र पर रखने के बाद तरल पोष माध्यम में स्थानान्तरित कर देते हैं। बड़े कोशिका समूहों को हटा दिया जाता है तथा एकल या छोटे समूहों को नवीन पोष माध्यम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है तथा इसके पश्चात् समय-समय पर इनका उपसंवर्धन किया जाता है। निलम्बन संबंधन में उपस्थित समरूप एकल कोशिकाओं का जैव रासायनिक संगठन व कार्यिकी समान होती है। निलम्बन संवर्धन के निम्न लाभ माने जाते हैं-

(i) वायु विनिमय आसान होता है

(ii) गुरुत्वाकर्षण के कारण कोशिकाओं में उत्पन्न ध्रुवता को सफलता से हटाया जा सकता है

(ii) पोष माध्यम व कोशिका सतह पर विभव उपस्थित नहीं होता है।

कोशिका निलम्बन संवर्धन प्रक्रिया

यह निम्न प्रकार से सम्पन्न की जाती हैं।

  1. पादप भाग अथवा कैलस से एकल कोशिका विलग करना ।
  2. संवर्धन माध्यम निर्जर्मीकरण
  3. भुरभुरे (fragile ) कैलस से अथवा निर्जमीकृत कर्तोतक से प्राप्त एकल या कुछ कोशिकाओं का संरोपण (inoculation) व पोष पदार्थ पर इनका संवर्धन
  4. निलम्बन संवर्धन के विभिन्न प्रकार |

(1) कैलस अथवा पादप भाग से एकल कोशिका विलग करना

निलम्बन संवर्धन हेतु एकल या कोशिका पुंज भुरभुरे कैलस अथवा पादप भाग से लिये जाते हैं। कैलस से निम्न चरणों में एकल या कोशिका पुंज प्राप्त किये जाते हैं।

(i) सर्वप्रथम जिस पादप का कोशिका निलम्बन प्राप्त करना हो उसके उपयुक्त कर्तोतक को पोष पदार्थ पर संवर्धित किया जाता है।

(i) कैलस को वाटमेन फिल्टर पेपर बिछी पेट्रीप्लेट पर स्थानान्तरित करने के पश्चात् निर्जमित स्केल्पल से इसके 500 से 700 mg के छोटे खण्ड कर लिये जाते हैं ।

(ii) छोटे कैलस खण्डों को द्रव पोष पदार्थ (MS माध्यम) में स्थानान्तरित करने के पश्चात् उसे हलित्र (shaker) पर पेक्टीनेज एन्जायम डालकर रख दिया जाता है। हिलने से कैलस कोशिका पुंजों व एकल कोशिका में टूट जाता है। एन्जाइम के कारण कोशिकाओं की मध्य पटलिका (middle lamellae) घुल जाती है जिससे कोशिकाओं को पृथक्करण में सहायता मिलती है।

(iv) हलित्र द्वारा तैयार द्रव निलम्बन को पराचालनी द्वारा छान कर छोटे कोशिका पुंज तथा एकल कोशिकाओं को अलग कर लिया जाता है व इन्हें कोशिका निलम्बन संवर्धन के दौरान संरोप के रूप में प्रयोग करते हैं।

(b) पादप भाग से एकल कोशिका पुंज प्राप्त करना

जिस पादप से एकल या कोशिका पूंज प्राप्त करना हो उसके बीजों को निर्जमित कर लेने के बाद उनके बीजपत्र या बीजपत्राधार (hypocotyl) से एकल या कोशिका पुंज निम्न दो विधि द्वारा प्राप्त किये जाते हैं-

(i) यांत्रिक विधि :

(i) बीजपत्र या बीजपत्राधार के निर्जमित छोटे भागों को तरल पोष पदार्थ में डाल कर समांगित (homogenizer) में पीस कर समांग बना लिया जाता है।

(ii) समांग को पराचालनी से छानकर फिल्टरित (filtrate) का अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) किया जाता है।

(iii) अवसाद में एकल या कोशिका पुंज उपस्थित होते हैं जिन्हें संरोप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

(ii) एन्जायमेटिक विधि :

विकर (enzyme) का उपयोग शाकीय (herbaceous) द्विबीजपत्री पौधों के बीजपत्राधार की कोशिकाओं को अलग करने के लिए किया जाता है। यह निम्न चरणों में किया जाता है-

(i) बीजपत्राधार को पोष पदार्थ में विकर पेक्टीनेज से उपचारित करने पर कोशिकायें एक दूसरे से अलग हो जाती हैं ।

(ii) उपचारित तरल का अपकेन्द्रण किया जाता है।

(ii) अवसाद को पोष माध्यम से भली भांति धोकर उसे विकर रहित कर लेते हैं।

(iv) प्राप्त एकल या कोशिका पुंजों को संरोप (inoculum) के रूप में इस्तेमाल करते हैं

यह विधि एकबीजपत्री पादपों के लिए प्रयुक्त नहीं की जाती है क्योंकि इनकी कोशिकायें अन्तर्ग्रथिल संकीर्ण (Interlocking constrictions) में आबद्ध रहती है अतः उन्हें सरलता से विलग करना संभव नहीं होता है।

एकल कोशिका संवर्धन (Single Cell Culture)

एकल कोशिका प्राप्त करने हेतु निम्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है-

(i) नर्स ऊतक तकनीक

(ii) सूक्ष्म प्रकोष्ठ तकनीक

(ii) सूक्ष्म बूंद विधि

(iv) बर्गमेन प्लेटिंग तकनीक

(i) नर्स ऊतक तकनीक

इस विधि में संवर्धन माध्यम में वृद्धि करते हुए कैलस संवर्धन पर एक फिल्टर पेपर रखते हैं। जब वह माध्यम में उपस्थित पोषक तत्वों से संतृप्त हो जाता है तब उस पर एकल कोशिका रख देते हैं जो कुछ समय पश्चात् विभाजित होकर काफी कोशिकाओं युक्त कॉलोनी बना देती है। कुछ समय पश्चात् कॉलोनी की इन कोशिकाओं को अलग करके इनका संवर्धन कर लेते हैं। यह फिल्टर रेफ्ट तकनीक भी कहलाती है।

(ii) सूक्ष्म प्रकोष्ठ तकनीक

गुहा युक्त ( cavity) स्लाइड तथा कवरस्लिप की सहायता से सूक्ष्म प्रकोष्ठ तैयार किये जाते हैं। एकल कोशिका को एक बूंद पोष पदार्थ सहित इस गुहा युक्त स्लाइड पर रख कर कवरस्लिप से ढक देते हैं। कुछ समय पश्चात् स्थूल कॉलोनी बन जाती है जिसका संवर्धन किया जा सकता है।

(iii) सूक्ष्म बूंद विधि

इस विधि में विशिष्ट प्रकार के पात्रों का इस्तेमाल किया जाता है । क्यूप्रैक पात्र (Cupark dish) में निलम्बन माध्यम की 0.25-0.5 ul बूंद डालते हैं तथा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पात्र में एकल कोशिका ही उपस्थित हो। इस विधि द्वारा एकल कोशिका जब कई कोशिकायें बना लेती हैं तब विलग करके नये संवर्धन माध्यम पर रख दिया जाता है । (iv) बर्गमेन प्लेटिंग तकनीक

इस विधि में पेट्रीप्लेट पर एक प्रतिशत अगार में 35°C पर पिघले पोष पदार्थ को मिलाकर पेट्रीप्लेट की सतह पर 1 mm मोटी सतह के रूप में भली-भांति फैला देते हैं। इस सतह पर एकल कोशिका डाल करके वृद्धि करने हेतु नये पोष पदार्थ पर स्थानान्तररित कर देते हैं ।

  • संवर्धन माध्यम का निर्जमीकरणः

सामान्यतः MS माध्यम का उपयोग किया जाता है। पादप की आवश्यकताअनुरूप व्हाइट या BS माध्यम को भी प्रयुक्त करते हैं। 150-250ml के कोनिकल फ्लास्क या बड़ी परखनली में 40/60ml तरल माध्यम लेकर उसके मुख पर एब्जोरबेन्ट रूई लगाने के पश्चात् उसे एल्यूमिनियम फॉइल से ढक देते हैं। इन फ्लास्क या परखनली को ऑटोक्लेव में रखकर निर्जमित कर लिया जाता है। यह माध्यम भण्डारित करके रख लिया जाता है व आवश्यकता होने पर कर्तातकों को संरोपित ( inoculate) करने के लिए इस्तेमाल कर लिया जाता है।

(3) कैलस अथवा निर्जमित कर्तोतकों से प्राप्त एकल या कोशिका पुंजों का संरोपण व संवर्धन

कैलस अथवा कर्तोंतकों से प्राप्त कोशिकाओं को उपर्युक्त विधि से तैयार अनेक पोष पदार्थ युक्त कोनिकल फ्लास्कों या परखनली में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इन्हें कक्षीय हलित्र ( orbital shaker) पर रख कर इसे 80-120 rpm पर हिलना शुरू (start) कर देते हैं। हलित्र के निरन्तर हिलते रहने से माध् यम व इसमें रखी कोशिकायें हिलती रहती हैं जिससे उनका वातन होता रहता है व वह पुंज में एकीकृत नहीं हो पाती है। गोल अण्डाकर, दीर्घित, कुण्डलित आदि आकारों की तथा पतली भित्ति युक्त होती हैं।

निलम्बन संवर्धन में कोशिका समूह से भ्रूणाभ निर्मित हो जाते हैं जिनमें मूल तथा प्ररोह आरंभिकायें (initials) उपस्थित होते हैं । भ्रूणाभ आगे परिवर्धित होकर बहुकोशिकीय गोलाकार व हृदयाकार आकार ग्रहण करने के पश्चात पादपक निर्मित कर लेते हैं।

निलम्बन संवर्गों के विभिन्न प्रकार

यह निम्न प्रकार के होते हैं –

(i) बैच संवर्धन :

ऐसे संवर्धन जिनमें पोष माध्यम व कोशिकायें शुरू से आखिर तक संवर्धन पात्र (100ml, 200ml से 2 litre) में रहते हैं उन्हें बैच संवर्धन कहते हैं। इन्हें हलित्र पर रखा जाता है तथा इनका समय-समय पर उपसंवर्धन (sub culture) किया जाता है। यह कोशिका क्लोनन, संरोप आदि के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। इस संवर्धन में कोशिकायें सिग्मोइड वृद्धि चक्र प्रदर्शित करती हैं। इस वक्र में निम्न पद प्राप्त होते हैं-

(i) लैग प्रावस्था (Lag Phase) : इस प्रावस्था में कोशिकाओं की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं होती है। इसका समय संरोप ( inoculation) के माप व वृद्धि अवस्था पर निर्भर करता है।

(ii) लॉग प्रावस्था (Log Phase) : इस प्रावस्था में कोशिकायें बहुत तेजी से बढ़ोतरी प्रदर्शित करते हैं। यह अवस्था एक दिन से लेकर दो दिन तक रह सकती है अर्थात् तीन या चार कोशिकीय पीढ़ी तक रह सकती है।

(iii) स्थिर प्रावस्था (Stationary Phase) : इस प्रावस्था में कोशिकायें बिल्कुल बढ़ोतरी प्रदर्शित नहीं करती है। इसका मुख्य कारण संवर्धन माध्यम में पोषक पदार्थ कम होने लगते हैं या समाप्त हो जाते हैं जिससे कोशिकायें मर जाती है।

बैच संवर्धन की निरन्तरता उपसंवर्धन (sub-culture) द्वारा बना कर रखी जाती है। इनका उपयोग निलंबन कल्चर आरम्भ करने, कोशिका क्लोनन कोशिका वरण अथवा संरोप के लिए किया जाता है।

(ii) सतत संवर्धन

इस प्रकार के संवर्धनों में कोशिकाओं की स्थिर संख्या बनी रहती है क्योंकि इनमें मुक्त पोष पदार्थ निकाल कर नवीन मिलाते रहते हैं यह निम्न प्रकार के होते हैं।

(a) विवृत संवर्धन : इसमें मुक्त पोष पदार्थ कोशिका सहित निकाल कर नया पोष माध्यम इस हिसाब से मिलाते हैं कि संवर्धन एक निश्चित दर पर लम्बे समय तक बना रहे। इस प्रकार के संवर्धन रसायन व अविलता स्थायी ( chemostate, tubridostate) होते हैं।

रसायन स्थाई संवर्धन के पोष माध्यम में एक पोषक (nutrient ) इस प्रकार की सान्द्रता में रहता है जिससे पोष पदार्थ का अवक्षय शीघ्र होने से वह पोषक वृद्धि सीमाकारी हो जाता है अतः उसे मिलाने पर वृद्धि में बढ़ोतरी हो जाती है। इनका उपयोग कोशिका वृद्धि एवं उपापचय पर पोषकों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।

अविलता स्थायी संवर्धन में कोशिका की वृद्धि उस सीमा तक करने देते हैं जब तक उपयुक्त अपेक्षित अविलता प्राप्त नहीं हो जाती है। यह आने के बाद संवर्धन के मुक्त आयतन के स्थान पर नया पोष पदार्थ इस्तेमाल करते हैं ।

(b) संवृत संवर्धन : कोशिकाओं के पात्र में बने रहते ही जब मुक्त पोष पदार्थ को निकाल कर

उसके स्थान पर नया पोष पदार्थ मिलाया जाता है तब वह संवृत संवर्धन कहलाता है। इस प्रकार के संवर्धन में कोशिका संख्या व जीव भार दोनों में ही वृद्धि प्रदर्शित करते हैं।

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