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कार्डियक ग्रन्थियाँ क्या है (Cardiac glands in hindi) , फण्डिक ग्रन्थियाँ (Fundic glands) किसे कहते हैं

जाने कार्डियक ग्रन्थियाँ क्या है (Cardiac glands in hindi) , फण्डिक ग्रन्थियाँ (Fundic glands) किसे कहते हैं ?

  1. आमाशय में पाचन (Digestion in stomach) : आमाशय में भोजन का पाचन जठर रस (gastric juice) द्वारा होता है। स्पलेंजेनी (Spallanzni; 1783) ने सर्वप्रथम आमाशयी पाचन (gastric digestion) की क्रिया को देखा था। इनके अनुसार आमाशय में भोजन का पाचन आमाशय की दीवारों में उपस्थित जठन ग्रन्थियों (gastric glands) से स्त्रवित जठर रस (gastric juice) द्वारा होता है। मनुष्य में आमाशय पाचन के बारे में विस्तृत विवरण सर्वप्रथम बिओमोन्ट (Beaumount, 1822) ने दिया था। पावलोव (Pavlov) ने भी आमाशयी पाचन के बारे में विस्तार से बतलाया। जैसे ही भोजन बोलस के रूप में आमाशय में प्रवेश करता है वैसे ही आमाशय की जठर ग्रन्थियाँ जठर रस का स्त्रवण करती है । आमाशय की श्लेष्मिका सतह (mucosa layer) में लगभग 35000000 जठर ग्रन्थियाँ (gastric glands) होती है । आमाशय में वितरण के आधार पर जठर ग्रन्थियों को निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
  2. कार्डियक ग्रन्थियाँ (Cardiac glands) : ये ग्रन्थियाँ आमाशय के आगमी या कार्डियक भाग (cardiac region) की श्लेष्मा में उपस्थित रहती है। ये एकल (single) अथवा नलाकार रेसीमोस (tubular recemose) ग्रन्थियाँ होती है जो छोटी स्तम्भाकार कणिकीय कोशिकाओं columnar granular cells) द्वारा रेखित होती है। ये श्लेष्म (mucous ) का स्त्रावण करती है. जो भोजन को लसलसा बनाता है जिससे यह आहार नाल में आगे को आसानी के साथ आगे को धकेला जाता है।
  3. फण्डिक ग्रन्थियाँ (Fundic glands) : ये ग्रन्थियाँ आमाशय की श्लेष्मा स्तर में जटिल बनाकर (comples tubular ) ग्रन्थियों के रूप में पाई जाती है। ये स्तम्भाकार (Columnar) कोशिकाओं द्वारा रेखित होती है। ये दो प्रकार की होती है।

(i) मुख्य कोशिकायें (Chief cells) या केन्द्रीय कोशिकायें (central cells) या जाइमोजन कोशिकायें (Zymogen cells) ये कोशिकायें जठर-रस के एन्जाइम्स जैसे पेप्सिन (pepsin), रेनिन (rennin) एवं जठरीय लाइपेज (gastric lipase) का स्त्रावण करती है।

(ii) पैराइटल (Parietal) या आक्सिन्टिक (oxyntic) कोशिकायें : ये कोशिकायें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) का स्त्रावण करती है जो आमाशय में पाचन हेतु अम्लीय माध्यम (acidic medium) प्रदान करता है।

  1. पाइलोरिक ग्रन्थियाँ (Pyloric glands) : ये जटिल कुण्डलित नलाकार (complex coiled tublar) ग्रन्थियाँ होती है जो स्तम्भाकर (columnar) कोशिकाओं से रेखित होती है। ये कोशिकायें पेप्सिन एन्जाइम एवं श्लेष्म का स्त्रावण करती है ।

जठर का संगठन (Chemical composition of gastric juice)

  1. कुल मात्रा (Total amount ) : 1 – 3 लीटर / 24 घण्टे में
  2. विशिष्ट गुरूत्व (Specific gravity) : 1.003
  3. pH : 1.0 – 1.5 (अति अम्लीय)
  4. जल (water) :99.5%
  5. अकार्बनिक लवण ( Inorganic salts) : 0.7%

Na+, K+. Ca2+, Mg2+, HPO4. SO 2,

HCI (0.16N)

कार्बनिक लवण (Organic salts) :0.3%

श्लेष्म (mucous) पेप्सिनोजन (pepsinogen), प्रानिन (prorennin) जठरी लाइपेज (gastric lipase), एवं आन्तरिक कारक (instrinsic factors)

जठर रस में उपस्थित एन्जाइम्स एवं उनके कार्य (Enzymes of gastric juice and their actions)

  1. पेप्सिन ( Pepsin ) : यह एन्जाइम पेप्टिक (peptic) या केन्द्रीय (central) या मुख्य (chief) कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है। पेप्सिन चार एन्जाइम का समूह होता है। ये पेप्सिन I, II A, B एवं III होते हैं। आमाशय का सम्पूर्ण सतह पेप्सिनोजन I का स्त्रावण रकती है। पेप्सिनोजन II तथा III कार्डियक एवं फन्डस भागों की श्लेष्मा सतह द्वारा स्त्रावित होते हैं ।

पेप्सिनोजन एवं अक्रियाशील एन्जाइम होता है जो HCI की उपस्थिति से क्रियाशील पेप्सिन में परिवर्तित हो जाता है।

पेप्सिनोजन (अक्रियाशील ) HCI) पेप्सिन (क्रियाशील)

पेप्सिन एन्जाइम मात्र कशेरूकियों में ही पाया जाता है। यह भोजन में उपस्थित प्रोटीन अणुओं पर क्रिया करके उन्हें मध्यवर्ती उत्पाद (intermediate products) प्रोटीओजेज (proteoses) एवं पेप्ट्रोन्स (peptones) में अपघटित कर देता है। पेप्सिन हेतु उपयुक्त pH 1.6 से 2.4 होता है।

  1. रेनिन (Rennin) : इसे रेन्नेट (rennet) या कीमोसिन ( chymosin) भी कहा जाता है। यह एन्जाइम भी जठर ग्रन्थियों की मुख्य (cheif ) कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है। यह एन्जाइम प्रोरेनिन (prorennin) के रूप में स्त्रावित होता है जो रेनिन का अक्रियाशील रूप होता है। प्रोरेनिन HCL की उपस्थिति में क्रियाशील रेनिन में बदला जाता है।

प्रोरेनिन (अक्रियाशील) HCL) रेनिन (क्रियाशील)

रेनिन दूध में उपस्थित घुलनशील (Soluble) प्रोटीन केसीनोजन ( caseinogen) पर क्रिया करके उसे अघुलनशील (insoluble) कैल्सियम पैराकैसीनेट (calcium paracaseinate) में बदल देता है।

रेनिन +     केसीनोजन →   केसीन

(दुध में घुलनशील)  (दूध में अघुलशील)

यह केसीन Ca21 से संयोजन करके कैल्सियम कैसीनेट का निर्माण करता है जो वसा केसीन के साथ मिलकर थक्का (clot) सा बना देता है इसे ही दही (curd) कहते हैं। इस प्रकार रेनिन दूधा (milk) पर क्रिया करके दही (curd) का निर्माण करता है। इस कारण रेनिन को दही बनाने वाला इन्जाइम (curdling enzyme) भी कहा जाता है।

  1. जठरीय लाइपेज (gastric lipase ) : यह एन्जाइम भोजन में उपस्थित वसा (fat) का अपघटन करता है। आमाशय में वसा का पाचन काफी कम मात्रा में होता है। अत: यह अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। वसा का पाचन वसीकरण (emulsification) के साथ ग्रसनी (duodenum) में अग्नाशयी रस (pancreatic juice) के कारण होता है।

जठरीय लाइपेज अम्लीय माध्यम में क्रिया करता है जबकि अन्य रसों में उपस्थित लाइपेज एन्जाइम क्षारीय माध्यम में क्रिया करते हैं। जठरी लाइपेज फण्डिक ग्रन्थियों में उपस्थित मुख्य कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है। यह एन्जाइम क्षारकों द्वारा नष्ट हो जाता है।

  1. जठरीय श्लेष्मा (Gastric mucous) : यह एक संयुग्मी प्रोटीन (conjugated protein) है जो वास्तव में ग्लाइकोप्रोटीन (glycoprotein) माना जाता है। यह निम्नलिखित कार्य करता है:

(i) यह भोजन को नम (moist) एवं लसलसा बनाता है जिससे पाचक एन्जाइम उस पर अच्छी तरह कार्य कर सकें।

(ii) यह आमाशय में उपस्थित जठर रस के अम्लीय प्रभाव को कम करता है।

(iii) यह आमाशय की श्लेष्मिका (mucosa) स्तर के आंतरिक भाग पर एक मोटी पर्त बनाता है जिससे जठरीय रस में उपस्थित HCI आमाशय की सह को प्रभावित नहीं कर पाता है। 5. इंट्रिसिक कारक (Intrinsic factor ) : जठरीय रस में इंट्रिसिक या आन्तरिक कारक की उपस्थिति भी देखी गई है। इसे ‘केस्टल कारक’ (Castle factor) भी कहा जाता है। यह कारक, भोजन में उपस्थित विटामिन B12 लाल अस्थि मज्जा (red bond marrow) से, लाल रूधिर कणिकाओं (RBC) के निर्माण (formation ) एवं परिपक्वन ( maturation ) में सहायक होता है ।

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्त्रावण ( Secreation of hydrochloric acid) : HCL के निर्माण के समय H+ आयन का निर्माण लगातार होता रहता है तथा ये आयन पैराइटल कोशिकाओं की कैनालीकुली (eanaliculi) में पहुँचते रहते हैं। H’ का निर्माण जल के अपाटन (dissociation) के कारण होता है।

H2O =→ H+ + OH-

H+ के स्त्रावण के कारण कोशिका में OH- आयन्स के एकत्रित होने का डर बना रहता ये OH- कोशिकीय उपापचय एवं अम्लीय स्त्रावण को प्रभावित कर सकते हैं। OH- की कोशि में एकत्रित होने की क्रिया इनके H,CO, से संयुग्मन द्वारा रोकी जाती है।

H2CO3 + OH- ←→ H2O + HCO3

पैराटाल कोशिकाओं में कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase) नामक एन्जाइम पाया जाता है। इसकी उपस्थिति में CO, तथा HO क्रिया करके कार्बोनिक अम्ले का निर्माण करते हैं। यह कार्बोनिक अम्ल OH- से क्रिया करने हेतु उपलब्ध रहता है।

H2O + CO2 कार्बोनिक HCO3

OH` तथा H2CO3 के संयुग्मन से पैराटाइल कोशिकाओं में H2O तथा HCO3 का निर्माण होता है। ये दोनों ही पैराइटल कोशिकाओं से निकलकर रूधिर प्लाज्मा में आ जाते हैं जिससे रूधिर pH बढ़ जाता है। इसे ‘क्षारीय ज्वार’ (alkaline tide ) कहा जाता है। पैराइटल कोशिकाओं में HCI निर्माण हेतु अनेक CI बाहरी कोशिकीय द्रव (extra cellular fluid) में वाहक क्रियाविधि (carrier mechanism) द्वारा अन्दर की ओर प्रवेश करते हैं । (चित्र 2.7)। इसी के साथ HCO3 के बाहर की ओर रूधिर में विसरित हो जाता है। अन्त में H+ तथा CI- कैनालीकुली में परस्पर संयोग कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल बनाते हैं।

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