caesalpinioideae in hindi subfamily सिजलपिनोइडी – उपकुल क्या है caesalpinioideae वृक्ष महत्व

सिजलपिनोइडी – उपकुल क्या है caesalpinioideae family वृक्ष महत्व caesalpinioideae in hindi subfamily ?

सिजलपिनोइडी – उपकुल (subfamily caesalpinioideae) :

प्राप्तिस्थान और वितरण : यह नाम प्रसिद्ध चिकित्सक सिजलपीनियस के सम्मान में रखा गया था। इस उपकुल को केसिया कुल भी कहते है।

उपकुल में लगभग 152 वंश और 2800 प्रजातियाँ सम्मिलित है जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण क्षेत्रों में मुख्यतः पायी जाती है। भारत में इस उपकुल के 23 वंश और 80 प्रजातियाँ पायी जाती है।

वर्धी लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)

प्रकृति और आवास : इस उपकुल के अधिकांश सदस्य काष्ठीय है , जिसमें कचनार , गुलमोहर , इमली , अमलतास , हार्डविकिया आदि वृक्ष है और सिजलपीनिया और पारकिन्सोनिया क्षुप है और बाहिनिया वेहलाई काष्ठीय आरोही है जबकि केसिया टोरा और केसिया ओब्ट्यूसीफ़ोलिया आदि शाक है।
मूल : शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ : उधर्व , बेलनाकार , ठोस , शाकीय या काष्ठीय और शाखित।
पर्ण : अनुपर्णी , सवृन्त , एकान्तरित , स्तम्भीय और शाखीय , पर्णाधार फूले हुए , पिच्छकी रूप से संयुक्त। बोहिनिया में पत्तियाँ सरल दिखाई देती है परन्तु वास्तव में ये द्विपर्णी संयुक्त होती है। केसिया में एकपिच्छकी और डेलोनिक्स और टेमेरिंडस में द्विपिच्छकी संयुक्त होती है। पारकिन्सोनिया में भी पर्ण द्विपिच्छकी संयुक्त होती है , जिसके पाशर्वीय अनुपर्ण काँटों में रूपान्तरित हो जाते है और पर्णक शीघ्र गिर जाते है और द्वितीयक रेकिस हरा और चपटा होकर फिल्लोड़ में रूपान्तरित हो जाता है। शिराविन्यास जालिकावत।

पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characters)

पुष्पक्रम : असीमाक्ष अथवा यौगिक असीमाक्ष।
पुष्प : सहपत्री , कुछ सदस्यों में दो पाशर्व सहपत्रिकाओं युक्त , सवृन्त , द्विलिंगी , पूर्ण , पंचतयी , चक्रिक , मध्यस्थ एकव्यास सममित , परिजायांगी।
बाह्यदल पुंज : बाह्यदल-5 , पृथक बाह्यदली , विन्यास कोरछादी अथवा अवरोही कोरछादी। सराका इंडिका और टेमेरिंडस इन्डिका में दो पश्च बाह्यदल जुड़कर संयुक्त संरचना बनाते है। विषम बाह्यदल अग्र। सराका में बाह्यदल दलाभ।
दलपुंज : दल-5 , पृथकदली , विन्यास आरोही कोरछादी , सराका इंडिका और सिरेटोनिया में दलपुंज अनुपस्थित।
पुमंग : पुंकेसर 10 , 5+5 के दो चक्रों में , इनमें से प्राय: 7 पुंकेसर जननक्षम और 3 पश्च पुंकेसर बन्ध्य होते है और स्टेमिनोड कहलाते है। केसिया में पुंकेसर विभिन्न डिग्री तक अपहासित हो जाते है जैसे – केसिया माइमोसोइडिस में सभी 10 पुंकेसर जननक्षम होते है , केसिया फिस्टुला में भीतरी चक्र का पश्च पुंकेसर बंध्य पुंकेसर के रूप में अर्थात शेष 9 पुंकेसर जननक्षम जबकि केसिया एब्सस में भीतरी चक्र के पाँचो पुंकेसर समानित होते है। बोहिनिया परप्यूरिया में भी यही स्थिति पायी जाती है। टेमेरिन्डम में केवल 3 पुंकेसर जननक्षम होते है। पुंकेसर सामान्यतया स्वतंत्र होते है , जैसे – डेलोनिक्स में लेकिन एमहसर्टिया में पुमंग द्विसंघी और बोहिनिया एक्यूमिनेटा में पुमंग आधारीय भाग में एकसंघी होता है। परागकोष द्विकाष्ठी , अंतर्मुखी और अन्त: स्थित , स्फुटन लम्बवत , शीर्षस्थ छिद्रों द्वारा।
जायांग : एकांडपी , अंडाशय एककोष्ठीय , अर्धअधोवर्ती , सीमांत बीजांडविन्यास। वर्तिका एक , सीधी अथवा मुड़ी हुई वर्गिकाग्र सरल। टाउनेशिया डाइकार्पा में जायांग द्विअंडपी।
फल : लम्बा शिम्ब , बीज भ्रूणपोषी और अभ्रूणपोषी।
परागण : कीट अथवा पक्षी परागण।
पुष्प सूत्र :

उपकुल के महत्वपूर्ण लक्षण (important characters of subfamily)

1. पत्ती अनुपर्णी पिच्छकार संयुक्त।
2. पुष्पक्रम असीमाक्ष और यौगिक असीमाक्ष।
3. पुष्प परिजायांगी , एकव्यास सममित।
4. बाह्यदल-5 विषम बाह्यदल अग्र।
5. दल-5 आरोही कोरछादी विन्यास।
6. पुंकेसर – 10 , 5+5 के दो चक्रों में लेकिन कुछ (प्राय: 3) पुंकेसर बंध्य।

आर्थिक महत्व

I. खाद्य पदार्थ :
1. बोहिनिया वेरीगेटा : कचनार – पुष्प , कलियों की सब्जी बनाई जाती है।
2. टेमेरिन्डस इंडिका : इमली – गूदा खटाई के काम आता है , इसमें टार्टरिक अम्ल होता है।
II. औषधियाँ :
1. सराका इंडिका : अशोक – छाल का क्वाथ मासिक धर्म की अनियमितता के उपचार में उपयोगी होता है।
2. केसिया फिस्टुला : अमलतास – इसके फल का काला गुदा दस्तावर होता है।
3. केसिया गलाऊका : छाल और पत्तियाँ मधुमेह और गोनोरिया रोगों के उपचार में लाभदायक होती है।
4. केसिया सोफेरा : इसका क्वाथ दमे और पत्तियाँ दाद में उपयोगी होती है।
III. रंग :
1. हेमैटोक्सिलोन कैम्पेचियनम – इसकी अंत: काष्ठ से हेमैटोक्सीलीन रंग मिलता है। यह जीवविज्ञान प्रयोगशालाओं में केन्द्रक को अभिरंजित करने में उपयोगी है।
2. सिजलपीनिया सेप्पान – तने की अंत:काष्ठ से लाल नारंगी रंग प्राप्त होता है जो कपडा और रेशम रंगने के काम आता है , इससे गुलाल भी प्राप्त होती है।
3. सिसलपीनिया इकाईनेटा – इसकी अंत:काष्ठ से निकला हुआ रंग भी कपडा रंगने के काम आता है।
IV. गोंद :
1. बोहिनिया वेहलाई और बोहिनिया वेरीगेटा (अथवा कचनार) के तनों से गोंद प्राप्त होता है।
V. चर्मशोधन :
बोहिनिया परप्यूरिया , बोहिनिया मालाबारिका , बोहिनिया वेहलाई और सिजलीपीनिया डिगाइना आदि का उपयोग चमड़ा रंगने में किया जाता है।
VI. सजावटी पौधे :
1. सराका इंडिका – अशोक वृक्ष।
2. बोहिनिया वेरीगेटा – कचनार।
3. केसिया फिस्टुला – अमलतास।
4. डोलोनिक्स रीजिया – गुलमोहर।
5. केसिया जावानिका – पिंक केसिया वृक्ष।
6. केसिया स्यामिया – श्याम अमलतास।
7. सिजलपीनिया पल्चेरिमा – मोर पुष्प।
8. पारकिन्सोनिया एक्यूलियेटा।
9. सार्सिस सिलिक्वेस्ट्रम – जुडास वृक्ष।
10. पेल्टोफोरम टेरोकार्पम।
अन्य उपयोग :
हार्डविकिया बाइनेटा – अंजन इसकी लकड़ी से गाडी के पहिये , हल और अन्य कृषि उपकरण बनाये जाते है।

उपकुल सिजलपिनोइडी के प्रमुख पादप का वानस्पतिक वर्णन (botanical description of an important plant of caesalpinoidea)

केसिया फिस्टुला लिन (cassia fistula linn) :
स्थानीय नाम – अमलतास।
प्रकृति – वृक्ष , प्राय: शोभाकारी के रूप में उगाया जाता है।
मूल – मूसला जड़ शाखित।
स्तम्भ – कठोर , काष्ठीय , हल्का पीला हरा , बेलनाकार ठोस चिकना।
पर्ण : एकांतर , सवृंत , अनुपर्णी , संयुक्त एकपिच्छकी और समपिच्छकी , पर्णक युग्म 4-8 , पर्णाधार फूला हुआ , पर्णक , छोटे वृंत युक्त , सम्मुख , अंडाकार , अच्छिन्नकोर , निशिताग्र , अरोमिल , शिराविन्यास एकशिरीय जालिकावत।
पुष्पक्रम : यौगिक असीमाक्ष , निलंबी।
पुष्प – सहपत्री , पूर्ण , सवृंत , द्विलिंगी , एकव्यासममित , पंचतयी , परिजायांगी और चक्रिक।
बाह्यदलपुंज – बाह्यदल 5 , पृथकबाह्यदली , विन्यास क्विनकुंशियल , दलाभ।
दलपुंज : दल-5 , पृथकदली , विन्यास आरोही कोरछादी , पीले।
पुमंग – पुंकेसर 10 , द्विचक्रपुंकेसरी 5+5 , पृथकपुंकेसरी , पश्च 3 पुंकेसर (दो बाहरी और एक भीतरी चक्र के) बंध्य पुंकेसर में अपहासित , परागकोष द्विकोष्ठी , आधारलग्न और अंतर्मुखी।
जायांग – एकांडपी , अंडाशयअर्धअधोवर्ती , एककोष्ठीय , बीजाण्ड विन्यास सीमांत , अंडाशय हंसिया रुपी , वर्तिका छोटी , वर्तिकाग्र समुंड।
फल : लम्बा बेलनाकार , गहरा भूरा अस्फुटनशील लेग्यूम।
पुष्पसूत्र :