bridge rectifier in hindi सेतु दिष्टकारी किसे कहते हैं चित्र सहित व्याख्या कार्यविधि समझाइये

सेतु दिष्टकारी किसे कहते हैं चित्र सहित व्याख्या कार्यविधि समझाइये bridge rectifier in hindi ?

सेतु दिष्टकारी (BRIDGE RECTIFIER) 

पिछले खण्ड (3.4 ) में दर्शाये गये पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ में दो प्रमुख कमियाँ थी (1) इसमें मध्य निष्कासी (centre tap) ट्रांसफार्मर होने के कारण इसका आकार बड़ा होता है और (2) इसका प्रतीप शिखर वोल्टता (peak inverse voltage) निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता के शिखर मान Em के दुगुने के बराबर होता है जिसके कारण डायोड तथा फिल्टर में संधारित्र 2Em वोल्टता अनुमतांक के उपयोग में लिये जाते हैं।

इन कमियों को दूर करने के लिए एक अन्य पूर्ण तरंग दिष्टकारी का उपयोग कर सकते हैं जिसे सेतु दिष्ट (bridge rectifier) कहते हैं। इसमें चार सर्वसम PN डायोड को ह्वीटस्टोन सेतु के समान परिपथ चित्र (3.7-1 अनुसार संयोजित करते हैं। E  F संधियों पर ट्रांसफार्मर के द्वितीयक कुण्डली के सिरों को जोड़ देते हैं C सन्धियों के मध्य लोड प्रतिरोध R लगा दिया जाता है जिसके सिरों के बीच स्पंदमान दिष्ट वोल्टता प्राप्त होती है

जब ट्रांसफार्मर के प्राथमिक कुण्डली पर प्रत्यावर्ती वोल्टता Vi = Ep sin wf निवेश किया जाता है तो द्वितीयक कुण्डली के सिरों E व F पर Vs = Ep sin wf वोल्टता प्रेरित होती है, यहाँ n द्वितीयक तथा प्राथ कुण्डलियों में फेरों की संख्याओं का अनुपात है। इस प्रत्यावर्ती वोल्टता के कारण E व F सन्धि एकान्तर रूप से आवर्तकाल समय T=π/w के लिए धनात्मक तथा ऋणात्मक विभव पर होते हैं।

जब E का विभव धनात्मक तथा F का विभव ऋणात्मक होता है तो इस स्थिति में D1 व D3 डायोड पर अग्र दिशिक तथा D2 व D4 पर पश्च दिशिक बायस होता है जिससे केवल D1 व D3 में धारा चालन होता है और धारा EABCF पथ के अनुदिश प्रवाहित होती है। प्रत्यावर्ती वोल्टता के शेष अर्ध चक्र के लिए जिसमें E का विभव ऋणात्मक तथा F का विभव धनात्मक होता है D2 D4 डायोड अग्र दिशिक तथा D1 व D3 पश्च दिशिक बायसित हो जाते हैं जिसके कारण केवल D2 व D4 डायोड में धारा चालन होता है और धारा FABCE पथ के अनुदिश प्रवाहित होती है। धाराओं की दिशा चित्र (3.7-1 ) में दिखाई गयी है। अतः स्पष्ट है कि प्रत्यावर्ती निविष्ट वोल्टता के दोनों चक्रों के लिए लोड प्रतिरोध R में से धारा एक ही दिशा AB के अनुदिश प्रवाहित होती है। निविष्ट तथा निर्गम वोल्टताओं का तरंग रूप चित्र (3.7-2) में दर्शाया गया है।

यदि डायोड का चालन अवस्था में प्रतिरोध Rf तथा कुण्डली का प्रतिरोध R8 है तो लोड प्रतिरोध RL में प्रवाहित धारा का मान

समीकरण (1) व (2) का उपयोग कर पिछले खण्ड ( 3, 4 ) के समान विश्लेषण कर ऊर्मिका गुणांक, दक्षता आदि श्री का अध्ययन कर सकते हैं।

इस सेतु दिष्टकारी की मुख्य कमी यह है कि डायोड में धारा चालन की स्थिति में दो डायोड श्रेणी क्रम में होते हैं जिसके कारण डायोड प्रतिरोधों पर विभव पतन अधिक हो जाता है और पूर्ण तरंग दिष्टकारी की तुलना में सेतु दिष्टकारी से निर्गत वोल्टता कम प्राप्त होती है तथा इसकी दक्षता कम और वोल्टता नियमन भी बहुत अच्छा नहीं होता है। इस कारण से सेतु दिष्टकारी का उपयोग दिष्टकारी प्रकार के वोल्टमीटर या अमीटर में करते हैं। अतः सेतु दिष्टकारी को दिष्ट वोल्टमीटर या अमीटर के साथ संयोजित कर प्रत्यावर्ती वोल्टता या धारा का मापन कर सकते हैं।

इस दिष्टकारी का मुख्य लाभ यह है कि इसमें पूर्ण तरंग दिष्टकारी की भाँति मध्य निष्कासी ट्रांसफॉर्मर की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अतिरिक्त इस दिष्टकारी के डायोड की प्रतीप शिखर वोल्टता (PIV) निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता के शिखर मान E के बराबर होती है जब कि पूर्ण तरंग दिष्टकारी के डायोडों की प्रतीप शिखर वोल्टता 2Em होती है।

 वोल्टता नियमन तथा जेनर डायोड द्वारा वोल्टता स्थायीकरण (VOLTAGE REGULATION AND VOLTAGE STABILIZATION BY ZENER DIODE)

(i) वोल्टता नियमन (Voltage regulation)- दिष्टकारी परिपथ से प्राप्त निर्गत दिष्ट वोल्टता लोड धारा तथा निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता (मेन्स वोल्टता) पर निर्भर करती है अर्थात् इनके परिवर्तन होने से निर्गत दिष्ट वोल्टता स्थिर नहीं रह पाती है इसलिए दिष्टकारी के निर्गत दिष्ट वोल्टता के परिवर्तन या अनियमन को मापने की आवश्यकता होती है। इस अनियमन (unregulation) को वोल्टता नियमन प्रतिशत (voltage regulation percentage) द्वारा ज्ञात करते हैं। वोल्टता नियमन दिष्टकारी के लोड प्रतिरोध को परिपथ से हटाने पर (अर्थात् RL = ∞ के लिये या दिष्ट धारा शून्य होने की स्थिति पर) निर्गत दिष्ट वोल्टता में हुए प्रतिशत परिवर्तन को व्यक्त करता है ।

यदि लोड प्रतिरोध की अनुपस्थिति में निर्गत दिष्ट वोल्टता VNL तथा उपस्थिति में VFL हो तो

प्रतिशत वोल्टता नियमन

यदि निविष्ट वोल्टता में परिवर्तन से निर्गत वोल्टता में परिवर्तन होता है तो इसे लाइन नियमन ( line regulation) द्वारा मापा जाता है।

लोड धारा में परिवर्तन से भी निर्गत वोल्टता में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन को लोड नियमन से परिभाषित करते हैं।

अनेक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में स्थिर वोल्टता के शक्ति प्रदायों (power supplies) की आवश्यकता होती है।

निर्गत दिष्ट वोल्टता को अचर या स्थायी बनाने के लिये प्रयुक्त विधि वोल्टता स्थायीकरण (voltage stabilizatio या नियमन (regulation) कहलाती है तथा उपकरण को वोल्टता स्थायीकारी (voltage stabilizer) कहते हैं। अनिय शक्ति प्रदायों में वोल्टता स्थायीकरण या नियमन के लिए जेनर (Zener) डायोड का उपयोग किया जाता है।

(ii) जेनर डायोड (Zener diode)

PN सन्धि डायोड में जब उत्क्रमित बायस व्यवस्था में आरोपित वोल्टता का मान एक सीमा से अधिक हो जाता है तो परिपथ में एकाएक धारा का मान बहुत अधिक हो जाता है (चित्र 3.8- 1)। जेनर के I-V लाक्षणिक के इस भाग को भंजन प्रभाग (break-down region) भी कह सकते हैं। सामान्य डायोड जो दिष्टकरण के लिये प्रयुक्त होते हैं इस प्रभाग में कार्य नहीं करते हैं परन्तु जेनर डायोड (Zener diode) जो सिलिकन डायोड होते हैं विशेषकर इस प्रभाग में कार्य करने हेतु बनाये जाते हैं तथा इनका उपयोग वोल्टता नियंत्रक के रूप में किया जाता है। जेनर डायोड का प्रतीकात्मक निरूपण चित्र (3.8 – 2) में प्रदर्शित हैं।

जब दोनों P व N प्रभागों में मादन (अपमिश्रण, doping) अधिक मात्रा में किया जाता है तो P-N साँघ आवेश वाहकों का घनत्व परिवर्तन सहसा (abrupt) होता है और बहुत पतली अवक्षय परत (depletion layer) प्रार

होती है। P-N संधि की रचना से इस परत के दोनों ओर विपरीत प्रकृति के आवेश संग्रहित हो जाते हैं और परत की मोटाई Ecop अत्यल्प होने से शून्य बायस अवस्था में भी उच्च तीव्रता का विद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता Evp है। जब डायोड उत्क्रमित बायस अवस्था में होता है तो विद्युत क्षेत्र की तीव्रता और अधिक हो जाती है। इसके अतिरिक्त P- प्रभाग का संयोजकता बैंड N – प्रभाग के चालन बैंड के सम्मुख आ जाता है (चित्र 3.8-3)

इस अवस्था में अपक्षय परत में उच्च तीव्रता के विद्युत क्षेत्र की सहायता से इलेक्ट्रॉनों का P-प्रभाग के संयोजकता बैंड से N-प्रभाग के चालन बैंड में सुरंगन प्रभाव ( tunnelling effect) द्वारा प्रवाह संभव हो जाता है। सुरंगन प्रभाव क्वान्टम यांत्रिकीय प्रभाव है जिसमें अवरोध ऊँचाई से कम ऊर्जा होते हुए भी पतले अवरोध को पार करने की प्रायिकता यथेष्ट होती है। P-N संधि डायोड में सुरंगन प्रभाव में भंजन (breakdown) होने की परिघटना को जेनर (Zener) प्रभाव कहते हैं।

अपक्षय परत की मोटाई अपेक्षाकृत अधिक होने पर भी भंजन संभव होता है। ऐसे डायोड में अपक्षय परत उच्च तीव्रता के विद्युत क्षेत्र के कारण कुछ सहसंयोजी आबन्ध टूट जाते हैं और इससे प्राप्त इलेक्ट्रॉन-होल इतनी अधिक ऊर्जा विद्युत क्षेत्र से ग्रहण कर लेते हैं कि वे संघट्टों के द्वारा आबन्ध तोड़ कर इलेक्ट्रॉन व होल मुक्त करने में समर्थ हो जाते हैं। ये मुक्त इलेक्ट्रॉन – होल भी क्षेत्र के द्वारा त्वरित होकर इलेक्ट्रॉन-होल मुक्त करने की प्रक्रिया जारी रखते हैं। इस प्रकार एक श्रृंखला बद्ध अभिक्रिया प्रारंभ हो जाती है और मुक्त आवेश वाहकों की वृहद् संख्या के द्वारा उत्क्रमित धारा का मान तीव्रता से वृद्धि करता है। इस प्रक्रिया को एवेलांश भंजन (avalanche breakdown) कहते हैं।

भंजन प्रक्रिया चाहे सुरंगन प्रभाव (जेनर प्रभाव ) द्वारा हो या एवेलांश प्रभाव द्वारा भंजन प्रक्रिया का उपयोग करने वाले डायोड जेनर डायोड (Zener diode) कहलाते हैं। भंजन प्रक्रिया एक निश्चित उत्क्रमित बायस वोल्टता Vz पर होती है तथा यह उत्क्रमणीय अभिक्रिया (reversible) होती है। जेनर डायोडों के लिये शक्ति अनुमतांक (power rating) PzM 0.25 W से लगभग 50 W तक होता है। यदि जेनर डायोड को शक्ति अनुमतांक से कम शक्ति पर प्रचालन किया जाय तो भंजन प्रभाग में बिना किसी हानि के इसका उपयोग किया जा सकता है। शक्ति अनुमतांक के संगत जेनर

डायोड के लिये अधिकतम अनुमत धारा Iz = PZM/VZ

होती है। भंजन प्रभाग में धारा बढ़ने पर वोल्टता में भी अत्यल्प परिवर्तन होता है। इस प्रभाग में किसी परीक्षण धारा (test current) Izt के लिये डायोड प्रतिरोध Rzt डाटा पत्र (data sheet) में दिया हुआ होता है ।

(iii) जेनर डायोड द्वारा वोल्टता स्थायीकरण (Voltage stabilization by Zener diode)

जेनर डायोड का उपयोग करते हुए वोल्टता नियंत्रक का परिपथ चित्र (3.8 – 4 ) में प्रदर्शित किया गया है। इसमें दिष्टकारी से प्राप्त दिष्ट वोल्टता Vi को चित्र के अनुसार जेनर डायोड पर प्रतिरोध R द्वारा आरोपित करते हैं। जेनर डायोड डत्क्रमित बायस अवस्था में संयोजित होता है तथा निर्गत वोल्टता जेनर डायोड की भंजन वोल्टता Vz होती है। यदि निर्गत वोल्टता Vz है तथा प्रतिरोध R में से प्रवाहित धारा I है तो

Vz = Vi – RI ………….(1)

तथा जेनर डायोड में से प्रवाहित धारा

Iz = I – IL ……………….(2)

यहां I लोड प्रतिरोध में से प्रवाहित धारा का मान है।

चूँकि हम जानते हैं कि निविष्ट वोल्टता Vi तथा लोड धारा IL के परिवर्तन से निर्गत वोल्टता अनियमित – ( unregulated) रहती है यदि उपरोक्त परिपथ के अनुसार जेनर डायोड लोड प्रतिरोध के समान्तर क्रम में संयोजित कर दें तो उपरोक्त परिवर्तनों के होते हुए भी डायोड निर्गत वोल्टता को अचर रखता है। उदाहरण के तौर पर यदि निविष्ट दिष्ट वोल्टता में Vi परिवर्तन होता है तो इससे प्रवाहित धारा I में परिवर्तन I हो जाता है। यह धारा परिवर्तन जेनर धारा के मान में समान परिवर्तन I कर देता है परन्तु लोड धारा में IL का मान स्थिर रहता है। इसके परिणामस्वरूप RL के सिरों पर जेनर वोल्टता Vz के तुल्य नियत वोल्टता रहती है। इसी प्रकार यदि लोड धारा I परिवर्तन होता है तो इसके संगत जेनर धारा में विपरीत परन्तु समान परिवर्तन (II) हो जाता है जिससे कुल धारा I नियत रहती है और निर्गत वोल्टता अचर रहती है।

किसी भी जेनर डायोड के लिए जेनर वोल्टता इसमें प्रवाहित धारा के निश्चित परास के लिए अचर रहता है।

इस परास से बाहर धारा प्रवाहित हो जाने पर जेनर डायोड वोल्टता नियंत्रक के रूप में कार्य नहीं करता है।

साधारणतः जेनर डायोड में प्रवाहित धारा को अधिकतम् अनुमत जेनर धारा I…… के 20% तक ही सीमित रखते हैं। इस धारणा से परिपथ में प्रयुक्त प्रतिरोध R का मान ज्ञात कर सकते हैं। समीकरण (1) व (2) से

उपरोक्त वोल्टता नियामक में अधिक लोड धारा के लिए जेनर डायोड की दक्षता कम होती है तथा डायोड का प्रतिरोध होने के कारण निर्गत वोल्टता में अत्यल्प विचरण ( variation) भी होता है। इन कारणों से जेनर डायोड

का केवल कम निर्गत दिष्ट वोल्टता वाले नियंत्रकों में उपयोग किया जाता है।

वोल्टता नियमन अधिक उत्तम बनाने के लिये एक जेनर डायोड के स्थान पर दो जेनर डायोडों को उपयोग किया जा सकता है जैसा चित्र (3.8-5) में प्रदर्शित है। प्रथम डायोड अधिक भंजन वोल्टता वाला लिया जाता है। इसके द्वारा नियमित वोल्टता दूसरे डायोड के लिए निविष्ट वोल्टता होती है जिससे परिणामी निर्गत वोल्टता का नियमन अत्युत्तम होता है।

परिवेश ताप (प्रचालन ताप) में वृद्धि से जेनर भंजन वोल्टता में भी परिवर्तन हो जाता है। यह प्रभाव भंजन वोल्टता में, प्रति डिग्री ताप परिवर्तन के कारण, प्रतिशत परिवर्तन द्वारा निरूपित किया जाता है व इसे डायोड का ताप गुणांक (temperature coefficient) कहते हैं। 5 वोल्ट से कम भंजन वोल्टता के डायोड में यह ऋणात्मक होता है व 6 वोल्ट से अधिक भंजन वोल्टता के डायोडों में यह धनात्मक होता है। 5 व 6 वोल्ट भंजन वोल्टता के मध्य शून्य गुणांक का डायोड प्राप्त हो सकता है।