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biotechnology in hindi definition , notes , जैव तकनीकी विज्ञान या जैव प्रौद्योगिकी किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है

जानो biotechnology in hindi definition , notes , जैव तकनीकी विज्ञान या जैव प्रौद्योगिकी किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है ?

जैव तकनीकी विज्ञान या जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology)

परिचय (Introduction)

“जैव तकनीकी विज्ञान” (Biotechnology) विज्ञान की सबसे युवा शाखा है। यह शाखा विज्ञान की सबसे महत्त्वपूर्ण शाखा है, क्योंकि इसने मानव कल्याण का कार्य किया है। विज्ञान को इस महत्वपूर्ण शाखा के अन्तर्गत जैविक तंत्रों या जैविक क्रियाओं का अनुप्रयोग (application) मानव जीवन के सामान्य स्तर को ऊपर उठाने एवं मानव कल्याण हेतु किया जाता है। जैव तकनीकी विज्ञान जैव रसायन, सूक्ष्मजैविकी, आनुवंशिकी कोशिका विज्ञान एवं रासायनिक अभियांत्रिकी आदि के ज्ञान व तकनीकों का अन्योन्य रूप से तकनीकी स्तर पर लाभ उठाने से संबंधित विज्ञान की यह महत्वपूर्ण शाखा है। इसके अन्तर्गत सूक्ष्मजीवों के जैविक गुणों या इनकी क्षमता का अथवा इनका या इनके विभिन्न घटकों का व्यापक स्तर पर संवर्धन कर प्राकृतिक सम्पदाओं को प्राप्त करने या इनका नवीनीकरण करने, मानव जीवन हेतु आवश्यक पदार्थों को औद्योगिक स्तर पर उत्पादन करने हेतु कार्य किया जाता है। अधिक स्पष्ट एवं सूक्ष्म रूप से यह जीवों के DNA का तकनीकी स्तर विशिष्ट क्रिया हेतु लाभ उठाने के ज्ञान से संबंधित विज्ञान है। जैव तकनीकी विज्ञान ने औषधि कृषि, स्थास्थ्य, उद्यान, वन व पर्यावरण सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने का योगदान किया है।

सम्भवतः 1920 के आरम्भिक वर्षों में संयुक्त गणराज्य की लीड्स शहर की काऊन्सिल (council) में प्रथम बार इस शब्द “जैवतकनीकी विज्ञान” का प्रयोग किया गया। जब यहाँ जैव तकनीकी विज्ञान की एक संस्था की स्थापना की गयी । यद्यपि मनुष्य पिछले 5000 वर्षों से सूक्ष्मजीवों के इस ज्ञान का उपयोग करता आया है। इसका आरम्भ किण्वन क्रिया की खोज एवं अनेकों प्रकार के एल्कोहलिक पेय पदार्थों के निर्माण के साथ हुआ। 1960 में जैव तकनीक द्वारा अनेकों रसायनिक पदार्थों एवं औषधियों के उत्पादन में परिवर्तन आये अतः इस विज्ञान की उत्पत्ति हुई। 1970 के मध्य तक जैव तकनीक शब्द काफी लोकप्रिय हो गया। इस समय का वैज्ञानिकों ने आण्विक जीव विज्ञान के क्षेत्र में काफी ज्ञान अर्जित कर लिया था। अतः इस दिशा में खोज का युग आरम्भ हुआ। जैव रसायन एवं आनुवंशिकी ने इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिये जिनमें अनेकों एन्जाइम्स की संरचना, कार्य, उपयोग एवं प्राप्ति तथा DNA की संरचना में परिवर्तन एवं एक जीव से दूसरे जीव में स्थानान्तरण की तकनीक का विकास प्रमुख थे।

आधुनिक काल में वैज्ञानिकों का उद्देश्य है कि जैव तकनीक के अन्तर्गत जैविक क्रियाओं का अध्ययन कर आधुनिक व पुरातन विधियों के सम्मिश्रण द्वारा, अभियान्त्रिकी, इलेक्ट्रोनिक्स एवं जैव संसाधन जैव ज्ञान का उपयोग कर मानव कल्याण के क्षेत्र में अधिकाधिक लाभ उठाने का कार्य किया जाये एवं भविष्य की चुनौतियों का हल तलाश किया जाये।

विश्व की जनसंख्या 2050 तक 1000 करोड़ हो जाने का अनुमान है। भारत की जनसंख्या अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक होगी। खेती हेतु भूमि सीमित है। भूमि की उरर्वक क्षमता घट रही है। मनुष्य को रहने हेतु आवास चाहिये अतः भूमि का उपयोग अन्य दिशाओं में भी बढ़ रहा है। जल की मात्रा घट रही है। ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य को भर पेट भोजन व तन ढकने को कपड़ा तथा . स्वच्छ जल उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होगा। यह कार्य जैवतकनीक का लाभ उठाकर ही वैज्ञानिक द्वारा किया जा सकता है। इक्कीसवीं सदी की यही मुख्य चुनौती है।

जैव तकनीकी विज्ञान के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन किये जा रहे अनुसंधानों को जिन प्रमुख क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है इनमें पुनर्योगज तकनीकी, जैविक ऊर्जा, अनेक प्रकार के एन्जाइम, किण्वन ( fermentation), प्राणि एवं पादप कोशिका संवर्धन, नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं जैविक तत्वों के अनुप्रयोग सम्मिलित किये जाते हैं। आज जैव प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत अनेक प्रकार के एंजाइम्स, प्रतिजैविक औषधियाँ, इन्टरफेररॉन्स, हार्मोन्स, स्टीरॉइड्स, टीके, विटामिन्स, प्रोटीन्स, एल्कोहल, एल्कालॉएड्स ( alkaloids), उत्तम किस्म के रसायनिक पदार्थ, जैव ऊर्जा, जैव उर्वरक (bio-fertilizers ), जैव कीटनाशी (bio-insecticides) एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ (monoclonal antibodies), अधिक उत्पादन करने वाली प्रजातियाँ, विपरीत परिस्थितियों का सामना करने वाली किस्मों का विकास कर प्राप्त कर लिया गया है। मानव की देह में बहने वाले रक्त को प्रतिस्थापित करने हेतु कृत्रिम रक्त (artifical blood) के निर्माण की दिशा में वैज्ञानिक सफलता के निकट पहुँच चुके हैं। इसका चिकित्सकीय परीक्षण किया जा रहा है। वातावरण को प्रदूषित करने वाले कचरे एवं अपशिष्ट जल के शुद्धिकरण करने एवं इनका पुनक्रमण (recycle) कर उपयोगी पदार्थों को प्राप्त कर पर्यावरण सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य गया है।

विश्व भर के अनेकों अनुसंधान केन्द्रों में इस दिशा में कार्य जारी है। इनमें जापान में आणविक अभियान्त्रिकी का केन्द्र इन्टरनेशनल सेन्टर फॉर कोपरेटिव रिसर्ज एव ट्रेनिंग (International- Centre for Coopertative Research and Training) एवं संयुक्त गणराज्य का इन्स्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजिकल स्टडीज (Institute of Biotechnological Studies) प्रमुख हैं जिनके अनुसंधान कार्यों का लाभ आज पूरा विश्व उठा रहा है। जैव तकनीकी की विकास एवं अनुप्रयोगों के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संगठन ने विकासशील देशों में अंतराष्ट्रीय आनुवंशिक अभियांत्रिकी एवं जैव प्रोद्योगिक केन्द्र (International Centre for Genetic Engineering and Biotechnology) ICGEB स्थापित किये हैं भारत में इसकी एक शाखा नई दिल्ली में है। भारत सरकार ने 1982 में इस दिशा में गति देने हेतु राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिक बोर्ड (National Biotechnology Board) NBTB की स्थापना विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विभाग (Department of Science and Technology) DST के अन्तर्गत की है। 1986 में NBTB को जैव प्रौद्योगिक विभाग (Department of Biotechnology) में परिवर्तित कर दिया गया है। भारत में जैव तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में अनेकों केन्द्रों पर अनुसंधान कार्य कार्य जा रहे हैं इनमें से कुछ केन्द्र अग्र प्रकार से हैं-

  1. भारतीय प्रतिरक्षा संस्थान, नई दिल्ली
  2. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
  3. सूक्ष्मजीवी प्रौद्योगिकी संस्थान, चण्डीगढ़
  4. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर
  5. केन्द्रीय भोजन एवं तकनीकी अनुसंधान संस्थान, मैसूर
  6. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल
  7. मलेरिया अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली
  8. क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, जम्मू
  9. केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ
  10. केन्द्रीय औषधि एवं ऐरोमेटिक पादप अनुसंधान संस्थान, लखनऊ
  11. राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद
  12. भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर
  13. भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
  14. कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र, हैदराबाद
  15. भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान कानपुर, मद्रास, मुम्बई एवं नई दिल्ली

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में स्व. राजीव गांधी ने 4 अक्टूबर 1988 को जैव प्रौद्योगिकी हेतु ” लाल बहादुर प्रौद्योगिक संस्थान” की आधारशिला रखी।

इन केन्द्रों के अतिरिक्त अनेक विश्वविद्यालयों एवं प्रयोगशालाओं में भी इस दिशा में अनुसंधान कार्य किये जा रहे हैं। भारत मुख्य रूप से जैव प्रौद्योगिकी के निम्न कार्यकारी क्षेत्रों में कार्य किया जा रहा है-

  1. सूक्ष्मजीव एवं व औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी
  2. जैव रसायन एवं जैव प्रौद्योगिकी
  3. विधि रसायन एवं जैव प्रौद्योगिकी
  4. पशु चिकित्सा विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी
  5. चिकित्सा एवं जैव प्रौद्योगिकी
  6. पादप आणविक जैविकी एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी
  7. सागरीय एवं जल – कृषि जैव प्रौद्योगिकी
  8. वन व पर्यावरण सुधार जैव प्रौद्योगिकी
  9. जैव प्रौद्योगिकी का व्यापक प्रयोग।
  10. जैव प्रौद्योगिकी की अन्योन्य प्रणालियाँ।

विश्व में जैव तकनीकों का उपयोग आजकल उद्योग में धन्धों के रूप में किया जाने लगा है अर्थात् जैविक क्रियाएँ कोशिकाओं से बाहर परखनली या फ्लास्क के स्थान पर फरमन्टर (fermenter) या विभिन्न औद्योगिक इकाईयों में बड़े पैमाने पर की जाने लगी हैं। अनेक उद्योगों में अब सामान्य उद्योग तकनीकों के स्थान पर जैव तकनीकों का उपयोग किया जाने लगा है इनमें प्लाटिक उद्योग, वस्त्र उद्योग, कृत्रिम गन्ध, वर्णक उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग, जैव-धातुकी एवं ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र (मीथेनॉल, इथेनॉल, जैव-गैस, हाइड्रोजन) प्रमुख हैं।

जैव तकनीकों के उपयोग का दूसरा समूह कृषि उत्पादों की वृद्धि, पादप व प्राणियों की प्रजातियों के सुधरे रूप, खाद्य उद्योग (यीस्ट, शैवाल, जीवाणुओं से प्रोटीन, अमीनों अम्ल, शर्करा, एन्जाइम्स, विटामिन्स), औषधा उद्योग (टीकें, हॉरमोन्स व स्टीरॉइड, प्रतिजैविकों, इन्टरफेरॉन्स एवं एक क्लोनी प्रतिरक्षी की प्राप्ति) पर्यावरण से प्रदूषण दूर कर सुरक्षा करने (अपशिष्ट पदार्थों व जल के उपचार, वाहित मल के उपचार तथा जैव निम्नीकारक यौगिकों के उत्पादन एवं वानिकी) के क्षेत्र में कार्यरत है।

परिभाषा (Defination )

जैव प्रौद्योगिकी अपने आप में एक शुद्ध विज्ञान नहीं है बल्कि जीव विज्ञान की अनेक शाखाओं जैसे कोशिका विज्ञान, आणविक जैविकी, सूक्ष्म जैविकी, आनुवंशिकी, जैव रसायन तथा अभियांत्रिकी उद्योग एवं अर्थशास्त्र जैसे क्षेत्रों का संयुक्त प्रयास है। पिछले दस वर्षों में जैवतकनीकी या जैव प्रौद्योगिकी को अनेक प्रकार से परिभाषित किया है। चूँकि विज्ञान की इस शाखा के गठन में जीव विज्ञान की अनेक शाखाओं के ज्ञान एवं अनुप्रयोग का योगदान है अतः प्रदत्त परिभाषाओं में कुछ अन्तर होते हुए भी लगभग सभी में जैविक तंत्रों के ज्ञान से लाभ उठाने को सम्मिलित किया गया है । ” अत्यन्त सरल में जैव तकनीकी जैविक संसाधनों के औद्योगिक अनुप्रयोग किये जाने की विज्ञान की अत्यन्त महत्वपूर्ण शाखा है। ”

“मानव एवं जीवन के प्रत्येक स्तर के लिये जैविक तंत्रों, जैविक क्रियाओं एवं अवस्थाओं के विकास एवं योजनाबद्ध तरीके से अनुप्रयोग को जैव प्रौद्योगिकी कहते हैं। ” जैव प्रौद्योगिकी “जैविक क्रियाओं के अनुप्रयोग का विज्ञान है । ”

“उपयोगी जैविक क्रियाओं के विज्ञान को जैव प्रौद्योगिक कहते हैं। ”

यूरोपियन फेडेरेशन ऑफ बायोटेकनोलॉजी (European Federation of Biotechnology) EEB के अनुसार- जैव प्रौद्योगिकी “जैव रसायन, सूक्ष्मजैविकी एवं अभियांत्रिकी के ज्ञान एवं तकनीकों का अन्योन्य रूप से प्रयोग कर सूक्ष्मजीवों, संवर्धित ऊत्तकों, कोशिकाओं एवं इनके कोशिकांगों से इनकी क्षमताओं का लाभ उठाने का विज्ञान है । ”

इन्टरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एवं एप्लाइड केमिस्ट्री (International Union of Pure and Applied Chemistry) IUPAC के अनुसार- “औद्योगिकी क्रियाओं, उत्पादों एवं वातावरण पर जैव रसायन, सूक्ष्मजैविकी एवं रसायनिक अभियांत्रिकी के अनुप्रयोग को जैव प्रौद्योगिकी कहते हैं।”

आर्थिक सहकारिता एवं विकास संगठन (Economic Cooperation and Development) OECD के अनुसार- जैव प्रौद्योगिकी “विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के सिद्धानों का उपयोग का जैविक कारकों से उपयोगी उत्पाद व सेवा प्राप्त करने का विज्ञान है।”

इस परिभाषा में विज्ञान व अभियांत्रिकी के सिद्धान्तों से आशय सूक्ष्मजैविकों, आनुवंशिकी, जैव रसायन आदि से तथा जैविक कारकों से तात्पर्य, सूक्ष्मजीवों, किण्वकों, पादप व प्राणी कोशिकाओं से एवं सेवा से आशय अपशिष्ट पदार्थों व अपशिष्ट जल के उपचार से तथा उत्पाद से तात्पर्य हॉरमोन्स, विटामिन्स, औषधियों, जैव-गैस आदि पदार्थों की प्राप्ति से है।

उपरोक्त सभी परिभाषाओं का सार लगभग एक जैसा ही है किन्तु यदि गहन दृष्टि के देखा जाये तो यह जीवों के DNA में हेर-फेर ( manipulation) करने एवं जीवों का विभिन्न तरीकों से विशिष्ट कार्यों हेतु उपयोग करने का विज्ञान है।

इतिहास (History)

यदि जैव प्रौद्योगिकी के उद्भव को देखा जाये जो यह लगभग मानव सभ्यता के साथ ही आरम्भ हो गयी है। बेबिलोनिया के निवासियों को सूक्ष्मजीवों की जैविक क्रियाओं का ज्ञान ईसा से 6000 वर्ष पूर्व था जिसका उपयोग ये बीयर बनाने में करते थे । सुमेरिया के देशवासी ईसा से 3000 वर्ष पूर्व लगभग 20 प्रकार की बीयर बनाने के ज्ञान से समृद्ध थे जिनमें विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं द्वारा किण्वन क्रियाओं का उपयोग किया जाता था। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व इजिप्ट में किण्वन क्रियाओं का प्रयोग डबल रोटी बनाने में किया जाता था । जीवाणुओं एवं कवकों से अनेक क्रियाओं द्वारा जैविक रूपान्तरण कर औषधियाँ प्राप्त करने का ज्ञान भी मनुष्य को काफी पहले था। भारतीय वेद व पुराणों में आर्यों (Aryans) द्वारा दही एवं मद्य के प्रयोग का वर्णन मिलता है। ये देवों को सोमरस का पान कराते थे एवं इन्हें तैयार करते थे। महाभारत में भी भगवान श्री कृष्ण द्वारा माखन भोग का वर्णन किया गया है।

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