Biotechnological Applications in Agriculture in hindi , कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग क्या है

जाने Biotechnological Applications in Agriculture in hindi , कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग क्या है ?

  1. एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein) :- आज मनुष्यों एवं पशुओं की बढ़ती जनसंख्या को अपेक्षा खाद्य धान्य, दलहनों, सब्जियों एवं फलों इत्यादि के पारम्परित कृषि उत्पादन कम पड़ता है जिससे आहार समस्या गंभीर होती जा रही है। पशुओं के 1 किग्रा. मास उत्पन्न करने में 3-10 किग्रा. धान्य की आवश्यकता पड़ती है अतः पशुओं की फॉर्मिंग ( रख रखाव ) के लिये भी धान्य की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि अनाज से मांसाहार की तरफ बढ़ने से भी धान्य की मांग जस की तस है। मानव की जनंसख्या का 25 प्रतिशत भूख एवं कुपोषण की शिकार है। इसलिए पशुओं एवं मनुष्यों के लिये प्रोटीन के वैकल्पिक स्त्रोतों में से ही एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein – एससीपी) है।

आजकल शोध द्वारा सूक्ष्मजीवों का प्रोटीन को एक अच्छे प्रोटीन के रूप में मान्यता प्राप्त है जिसका बड़े पैमाने पर प्रोटीन के अच्छे स्रोत के रूप में उत्पादन किया जा रहा है।

सूक्ष्मणजीवी प्रोटीन के रूप में स्पाइरूलिना नामक शैवाल का बड़े पैमाने पर औद्योगिक स्केल पर प्रोटीन के लिये उत्पादन किया जा रहा है सूक्ष्मजीवी जैसे स्पाइरूलिना इत्यादि पोटेटो प्रोसेसिंग प्लान्ट से निकले बेकार जल जिसमें स्टार्च मिला होता है अथवा भूसा तथा पशुओं की खाद्य अथवा सीवरेज जल में आसानी से उगाया जा सकता है तथा अधिक मात्रा में उत्पादन हो कर ऐसा भोज्य पदार्थ जो प्रोटीन, खनिज, वसा, कार्बोहाइट्रेट व विटामिन से भरपूर हो इसके साथ ही इस उत्पादन से वातावरण जल के प्रदूषण भी कम हो रहे हैं।

ऐसी गणना की गयी है कि 250 किग्रा गायें 200 ग्रा. प्रोटीन प्रतिदिन उत्पादित करती है। इसी तरह सूक्ष्म जीव जैसे मिथाइलोफिलस, मिथाइलोट्रोपस लगभग 25 टन प्रोटीन का उत्पादन करने में सक्षम हैं ऐसा इनकी उच्च जीवभार (Biomass) उत्पादन दर तथा वृद्धि के कारण संभव होता है। जिस प्रकार आज मशरूम लगभग सभी लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर खाने के लिये प्रयोग किया जाता रहा है। तथा उद्योग के रूप मशरूम कल्चर बड़े पैमाने पर होने लगा है। एक दिन ऐसा भी आयेगा कि सूक्ष्मजीवां द्वारा बने प्रोटीन युक्त व्यंजन लोगों के द्वारा स्वीकार किये जायेंगे ।

  1. कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Agriculture) :- जैव प्रौद्योगिकी की फसल-सुधार में भूमिका (Role of biotechnology in crop improvement) कृषि के विकास में जैव प्रौद्योगिकी का बहुत बड़ा योगदान है। कोशिका. ऊत्तक तथा अंग-संवर्धन की प्रौद्योगिकी ने रोगमुक्त पौधे, प्रतिरोधी किस्में, पोषक तत्त्वों में सुधार. सूखा और लवणनिरोधी किस्मों के विकास तथा सूक्ष्म-प्रजनन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैव प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर उच्च पैदावार वाली किस्में, बायोफर्टिलाइजर, परालैंगिक संकरण द्वारा उपयोगी किस्में प्राप्त करना, दुर्लभ संकर को प्राप्त करना, जीन का स्थानान्तरण (gene transfer) आदि शामिल है। भ्रूण- संवर्धन, कृत्रिम बीज का उत्पादन, परागकोष का संवर्धन तथा अगुणित पौधों (haploid plants) का विकास जैव प्रौद्योगिकी के कारण ही संभव हो सका है। जैत्र प्रौद्योगिकी ने कृषि के क्षेत्र में निम्नांकित महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  2. रोगमुक्त पौधों का उत्पादन : जो पौधे वर्धी जनन या कायिक जनन द्वारा अपनी संख्या बढ़ाते हैं उनमें वाइरस तथा अन्य रोग मातृ पौधे से बने अन्य पौधों में स्थानांतरित होते रहते हैं। उदाहरण के लिए, आलू की पोटैटो लीफ – रोल वाइरस (potato leaf-roll virus, PLRV) या पोटैटो वाइरस (potato virus, PV) से प्रभावित पौधों में आलू के ट्यूबर की पैदावार 95% तक घट सकती है। जिन स्पीशीज में वाइरस मुक्त पौधे प्राप्त किए गए है उनमें प्रमुख हैं- लहसुन, सोयाबीन, केला, तंबाकू, गन्ना, अदरख, गुलदाउदी, गोभी, डहनिया आदि। रोगमुक्त पौधे प्राप्त करने के लिए मेरिस्टेम – टिप संवर्धन (meristem tip culture) का प्रयोग किया जाता है।
  3. रोग-प्रतिरोधी पौधों का उत्पादन : यह ऊत्तक संवर्धन के व्यावहारिक उपयोग का एक अच्छा उदाहरण है। आलू में दो प्रकार की बीमारी मुख्य हैं : लेट ब्लाइ ऑफ पोटैटो जो Phytophthora infestans से होती है और दूसरी अर्ली ब्लाइट ऑफ पोटैटो जो Alternaria solani से होती है। ऊत्तक संवर्धित आलू के कैलस से सोमाक्लोन्स (somaclones) को छँटनी कर रोग-प्रतिरोधी पौधे प्राप्त करने में सफलता मिली है। मक्का में Southern corn-leaf blight की प्रतिरोधी किस्में सोमाक्लोन से चयनित कर बनाई गई है। ( Somaclonal variations are the variations observed in plants regenerated from somatic cultures.)
  4. लवण तथा सूखा सहने करने वाली किस्मों का उत्पादन : लवण सहन कर सकने वाली फसलों की किस्मों को जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से विकसित किया गया है। इनमें तंबाकू, टमाटर तथा धान्य फसलें प्रमुख है। टमाटर की फसल सामान्यतया ज्यादा नमक वाली मिट्टी में नहीं उगती है। टमाटर की एक स्पीशीज Lycopersicum minor समुद्री क्षेत्रों के किनारों पर नमक वाली मिट्टी में उगती है। ऊत्तक संवर्धन कर टमाटर, चावल, तंबाकू, मिर्च में लवण सहन करने वाली किस्मों को विकसित किया गया है। चावल की विकसित किस्मों में IR42, IR43, IR52 लवण सहने करने वाली किस्में हैं। सूखा सहन करने वाली किस्में टमाटर, गेहूँ आदि फसलों में बनाई गई है।
  5. तीव्र सूक्ष्म प्रजनन : ऊत्तक संवर्धन विधि द्वारा कम समय में किसी भी पौधे को बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है। इस विधि में वांछित पौधे से एक्सप्लांट लेकर उसे पोषक माध्यम पर वृद्धि करन के लिए छोड़ दिया जाता है। इस एक्सप्लांट से बने कैलस या सोमैटिक भ्रूण (somatic embryo) को पुन: अलग-अलग कर संवर्धित किया जाता है। इस प्रकार एक एक्सप्लांट के कैलस की सबकल्चरिंग (subculturing) से अनेक पौधे तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार के पौधे मक्का, आलू, सोयाबीन, सरसों, मूँगफली, अंगूर, गुलदाउदी, ग्लेडिओलस आदि में तैयार किए जा रहे हैं ।
  6. जैविक खाद : जीवाणु, जैसे राइजोबियम (Rhizobium) वायुमण्डल की नाइट्रोजन को मटर कुल के पौधों की जड़ों में स्थिर करते हैं। राइजोबियम में nif gen (nitrogen fixing gene) होता है। जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से nif gen को Escherichia coli तथा Klebsiella pneumoniae में स्थानांतरित कर इन जीवाणुओं के अंदर नाइट्रोजन स्थिर करने की क्षमता पैदा की गई हैं।
  7. कृत्रिम बीजों का उत्पादन : कृत्रिम बीज या synthetic seed in vitro culture से बने भ्रूण को एल्जिनेट में लपेटकर बनाए जाते हैं। मक्का, चावल, गाजर, सरसों, आलू, कपास आदि में कृत्रिम बिजों से पूर्ण विकसित पौधे प्राप्त किए गए है ।
  8. जर्मप्लाज्म भंडारण: सामान्यतया पौधों की स्पीशीज का भंडारण बीजों द्वारा किया जाता है। इस विधि में समय के साथ बीजों की अंकुरण क्षमता का ह्रास, बीजों का रोगाणुओं, कीटाणुओं द्वारा खराब होने की संभावना शामिल है। ऊत्तक संवर्धन विधि से कैलस को कम तापमान (4-8°C) या अतिसूक्ष्म कम तापमान (extremely low temperature), जैसे – 80°C या तरल नाइट्रोजन, जैसे –190°C पर रखा जाता है। इस प्रकार का भंडारण Fragaria vesca, Malus domestica, Medicago sativa Trifolium repens, Lycopersicum esculentum and Arachis hypogaea सफलतापूर्वक किया गया है। National Bureau of plant genetic resources, नई दिल्ली में बीजों एवं ऊत्तकों के भंडारण की विशेष विधियाँ अपनाकर भारतीय पौधों की प्रजातियों को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने का कार्य किया जा रहा है।
  9. उपयोगी रसायनों का उत्पादन : ऊत्तक संवर्धन या कोशिका संवर्धन की सहायता से कई उपयोगी रसायनों का उत्पादन किया जा रहा है। इसमें प्रमुख है डिगोक्सिजेनिन (digoxigenin) जो डिजिटैलिस लैनाटा (digitalis lanata) से प्राप्त किया जाता है। शिकोनिन (shikonin) को ऊत्तक संवर्धन विधि द्वारा लिथोस्पर्लम इरिथ्रोराइजॉन (Lithospermum erythrorhizon) से प्राप्त किया जाता है।

आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव (Genetically modified organisms, GMO) : ऐसे पौधे, जीवाणु, कवक एवं जंतु जिनके जीन में हस्तकौशल (mianipulation) द्वारा परिवर्तन किए गए हैं, आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव कहलाते हैं। GMO को निम्नवत परिभाषित कर सकते हैं।

A genetically modified organism (GMO), or genetically enginnered organism, is one whose ganetic material has been altered using genetic engineering techniques.

रूपान्तरित जीव का व्यवहार कई बातों पर निर्भर करता है : (1) परपोषी (host) पौधों, जन्तुओं या जीवाणुओं की प्रकृति, (2) खाद्य जाल (food web) तथा (3) स्थानांतरित जीन की प्रकृति ।

आनुवंशिकतः रूपांतरित जीवों में आनुवंशिकतः संशोधित फसलों की विशेष भूमिका होती है। आनुवंशिकतः संशोधित फसल वह फसल है जिसमें ट्रांसजीन होते हैं। (A transgenic crop is one that contains and expresses a transgen.) ट्रांसजेनिक फसलों को आनुवंशिकतः संशोधित फसल (genetically modified crops; GM crops) भी कहा जाता है। ट्रांसजेनिक पौधों का उपयोग निम्नांकित प्रकार से हैं।

  1. रासायनिक कीटनाशकों (insecticides) तथा पीड़नाशकों (पेस्टीसाइड्स pesticides) पर निर्भरता कम करना । इसके लिए पीड़नाशी – प्रतिरोधी फसलों का उत्पादन सहायक सिद्ध होगा।
  2. ऐसी फसल का उत्पादन जिसमें ठंड़ा, सूखा, लवण, ताप सहन करने की क्षमता हो ।
  3. खाद्य पदार्थों के पोषण स्तर में वृद्धि । उदाहरणार्थ, चावल के दानों में विटामिन A को स्थानांतरित कर, गोल्डेन राइस (golden rice) बनाया गया है। 2005 में विकसित गोल्डेन राइस 2 में original variety से 23 गुना ज्यादा बीटा कैरोटीन उत्पादित करने की क्षमता है।
  4. पौधों द्वारा खनिज उपयोग क्षमता (efficiency of mineral usage) में वृद्धि । इसके द्वारा मिट्टी की शीघ्र उर्वरता समाप्त होने पर रोक लगाई जा सकती है।
  5. कटाई के पश्चात् होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है।

ट्रांसजेनिक फसलों से जो खाद्य सामग्री प्राप्त की जाती है उसे आनुवंशिकतः संशोधित खाद्य (genetically modified food, GM food) कहा जाता है। आनुवंशिकतः रूपांतरित जीवों का उपयोग उद्योगों में वसा, ईंधन एवं भेषजीय पदार्थों की आपूर्ति के लिए किया जा सकता है।

कृषि में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोगों में पीड़क-प्रतिरोधी फसलों (pest-resistant plants) का उत्पादन प्रमुख है। इस प्रकार की फसलों के उत्पादन से पीड़नाशकों (pesticides) के प्रयोग में कमी आई है। पीड़क प्रतिरोधी फसलों के उत्पादन में बैसीलस थूरीनजिएसिस (Bacillus thuringiensis) नामक जीवाणु की अहम भूमिका है। इस जीवाणु से एक जीव विष (toxin) प्राप्त किया जाता है।

उस संक्षेप में बीटी (Bt) कहा जाता है। यह टॉक्सिन जीन जीवाणु से क्लोनीकृत होकर पौधों में अभिव्यक्त (express) होकर कीटों के प्रति प्रतिरोधकता पैदा करता है। इस कारण रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता नहीं रह गई है। बीटी का प्रयोग कर बायोपेस्टिसाइड का उत्पादन किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, बीटी कपास, टमाटर, मक्का, आलू, सोयाबीन, धान  आदि।

बीटी कपास (Bt cotton) : जीवाणु बैसीलस थूरीनजिएसिस के कुछ स्ट्रेन (strain) एक विशेष प्रेटीन बनाते हैं जो खास प्रकार के कीटों को मार देती है। इस जीव विष का प्रभाव कीट समुदाय के विभिन्न वर्गों जैसे लेपिडाप्टेरॉन ( सैनिक कीड़ा, तंबाकू का कलिका कीड़ा), कोलिप्टेरॉन (भृंग या beetles) तथा डायप्टेरॉन (मक्खी, मच्छर) पर होता है । बैसीलस थूरीनजिएसिस द्वारा उत्पादित कीटनाशक प्रोटीन (insecticidal protein) जीवाणु के जीवन के विशेष अवस्था में बनता है। यह प्रोटीन अवक्षेप या क्रिस्टल (crystal) के रूप में बनता है।

यद्यपि कीटनाशक प्रोटीन जीवाणु B thuringiensis द्वारा बनाया जाता है, परंतु इस विष के कारण जीवाण की मृत्यु नहीं होती है। इसका कारण यह है कि बीटी जीव विष प्रोटीन जब तक जीवाणु में रहता है वह निष्क्रिय प्राक्जीव विष (protoxin) के रूप में रहता है। जैसे ही यह विष कीट के शरीर में प्रवेश करता है वह सक्रिय (active) हो जाता है। विष के क्रिस्टल आँत में क्षारीय पीएच (basic pH) के कारण घुलनशील होकर सक्रिय रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। यह विष कीट मध्य आँत (midgut) की उपकलीय कोशिकाओं (epithelial cells) की सतह से बँधकर उसे छिद्रित देते हैं। इन छिद्रों के कारण उपकलीय कोशिकाएँ फूलकर फट जाती है जिसके कारण कीट की मृत्यु हो जाती है।

जैव-प्रौद्योगिकी विधि द्वारा बीटी जीन को कपास तथा अन्य फसलों में समाविष्ट ( incorporate) किया गया है। चूँकि बीटी जीन कीट- समूह विशिष्ट (specific for a group of insects) होते हैं, इसलिए जीन का चुनाव, फसल एवं निर्धारित कीट पर निर्भर करता है।

बीटी टॉक्सिन एक विशेष जन द्वारा कूटबद्ध (encode) होते हैं। इस जीन को क्राई (cry) कहते हैं। क्राई जीन कई प्रकार के होते हैं, इसे cry IAc, cry IIAb। ये प्रोटीन जीन कपास की फसल को मुकुलकृमि (bollwotms) से बचाते हैं। cry I AB मक्के की फसल को मक्का छदेक (com borer) से बचाता है।

पीड़क-प्रतिरोधी पौधे (Pest-resistant plants) : फसलों को कीटों के अतिरिक्त कवक तथा सूत्र कृमि (nematodes) से सबसे अधिक नुकसान होता है। सूत्रकृमि मिल्वाडेगाइन इन्कोगनीशिया (meloidegyne incognitia) तंबाकू की जड़ों को संक्रमित (infect) कर पैदावार को बहुत कम कर देता है।

सूत्र कृमि के संक्रमण को रोकने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विधि का प्रयोग किया जा रहा है। यह RNA अंतरक्षेप (RNA interference, RNAi) पर आधारित है। RNA interference is a mechanism that inhibits gene expression by degrading specific RNA molecules or preventing the transcription of specific genes. RNA अंतरक्षेप यूकैरियाटिक जीवों में कोशिकीय सूरक्षा (cellular defence) की एक विधि है। यह विधि इस बात पर आधारित है कि विशिष्ट दूत RNA (specific messenger RNA ), पूरक द्विसूत्री RNA (Complementary double-standed RNA) से वर्धित होने के पश्चात निष्क्रिय हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप दूत RNA के स्थानांतरिण (translocation) को रोकता है। इस द्विसूत्रीय RNA का स्रोत कौन है ? इसका स्रोत संक्रमण करने वाले वाइरस में पाए जाने वाले RNA जीनोम या मोबाइल जेनेटिक एलिमेंट, जिन्हें ट्रांसपोजॉल (transposons) कहते हैं, वे होते हैं। ये ट्रांसपोजॉन मध्यवर्ती RNA के माध्यम से रेप्लिकेट (replicate) करते हैं।

एग्रोबैक्टीरियम संवाहकों का उपयोग कर निमैटोड स्पेसिफिक जीन का परपोषी (host) पौधों में स्थानांतरित किया गया है। DNA का प्रवेश इस प्रकार कराया जाता है कि वे परपोषी कोशिकाओं में सेंस (sense) तथा एंटीसेंस ( antisense) RNA का निर्माण कर सकें। ये RNA एक-दूसरे के पूरक होते हैं, इसीलिए ये द्विसूत्रीय RNA का निर्माण करते हैं। जिससे RNA का प्रारंभ होता है। इस कारण निमैटोड के विशिष्ट दूत RNA ( specific mRNA) नष्ट हो जाते हैं। परपोषी में अंतरक्षेपी RNA (RNAi) की उपस्थिति के कारण निमैटोड जीवित नहीं रह पाता है। ट्रांसजेनिक परपोषी इस प्रकार निमैटोड से अपनी रक्षा करते हैं।