जैव ऊर्जा (bio energy in hindi) : जैविक स्रोतों से प्राप्त उर्जा को जैव ऊर्जा कहते है , इसे मानव कल्याण हेतु विभिन्न स्रोतों के रूप में उपयोग किया जाता है , इनमे से कुछ प्रमुख निम्न प्रकार से है –
बायो गैस या गोबर गैस
- भारत की 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र से सम्बन्ध रखती है तथा ग्रामीण क्षेत्र में पशुपालन बहुतायत रूप से उपयोग किया जाता है।
- पशुधन के उपयोग से सामान्यत: अपशिष्ट या पशुओं का गोबर एकत्रित होता है जिसे परम्परागत रूप से सुखाकर जलाने हेतु या एक स्थान पर एकत्रित करके उर्वरक के रूप में एकत्रित किया जाता है।
नोट : यदि पशुओ के गोबर से उर्वरक का निर्माण किया जाए तो पशुओ के गोबर को सामान्यत: किसी ऊँचे स्थान पर एकत्रित किया जाना चाहिए , इसके अतिरिक्त एकत्रित किये जाने वाले ऊँचे स्थान पर लगभग एक मीटर गहरे गड्ढे का निर्माण किया जाना चाहिए तथा इस गड्ढे में पशुओं के गोबर को उर्वरक में परिवर्तन हेतु एकत्रित किया जाना चाहिए।
- परम्परागत रूप से ऊर्जा प्राप्ति हेतु पशुओ के गोबर को सुखाकर उपलों का निर्माण किया जाता है जिनकी सूखने के पश्चात् ऊर्जा प्राप्त की जाती है। परन्तु उर्जा प्राप्ति के इस स्रोत के उपयोग के कारण उचित मात्रा में ऊर्जा प्राप्त नहीं होती है तथा इसके अतिरिक्त अत्यधिक मात्रा में धुआं उत्पन्न होता है जो वायु प्रदुषण में वृद्धि करता है।
- ग्रामीण क्षेत्रो में पाले जाने वाले पशुधन से अपशिष्ट के रूप में प्राप्त गोबर को परंपरागत उपयोग के अतिरिक्त वैज्ञानिक रूप से अधिक दक्ष युक्त का उपयोग किया जा सकता है इसे बायो गैस या गोबर गैस संयंत्र के नाम से जाना जाता है।
- उपरोक्त संयंत्र की स्थापना भारतीय कृषि अनुसन्धान केंद्र नयी दिल्ली तथा ग्रामीण उद्योग , नयी दिल्ली के द्वारा की गयी है तथा यह संस्थाएं सम्पूर्ण भारत में बायो गैस संयंत्रो को ग्रामीण क्षेत्रो में पूर्ण रूप से स्थापित करने का प्रयास कर रही है।
बायो गैस संयंत्र का सिद्धांत
- बायो गैस सयन्त्र मुख्यतः अवायवीय पाचन तथा आंशिक वायवीय तथा आंशिक अवायवीय किण्वन की क्रिया पर निर्भर करता है।
- इसके अतिरिक्त बायोगैस का उत्पादन methanogen’s के द्वारा किया जाता है जो प्राकृतिक रूप से पशुओ को रूमेन में [सामान्यत: चरने वाले पशुओ में] इसके अतिरिक्त किसी स्थान पर एकत्रित वाहित मल से प्राकृतिक रूप में methanogen जीवाणु पाए जाते है।
बायोगैस संयंत्र का संगठन
- सामान्यतया बायोगैस संयंत्र को खुले स्थान में समतल भूमि पर स्थापित किया जाता है।
इसके मुख्य घटक निम्न है –
(1) slurry tank (कर्दम टैंक) : समतल भूमि पर स्थापित किया जाने वाला छोटे आकार की टैंक नुमा संरचना कर्दम टैंक कहलाती है।
इस टैंक में गाय का ताजा गोबर तथा जल उचित मात्रा में मिलाया जाता है , इसके फलस्वरूप एक घोल तैयार होता है , यह घोल कर्दम के नाम से जाना जाता है।
निर्मित कर्दम को भूमि की गहराई में निर्मित संपाचित्र टैंक में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
(2) Diagester tank (सम्पाचित्र टैंक) : बायो गैस के इस घटक का निर्माण भूमि की गहराईयो में 10 से 15 फीट गहरा निर्मित किया जाता है।
बायोगैस के इस टैंक में बायो गैस के उत्पादन की क्रिया संपन्न होती है जो मुख्यतः तीन चरणों में संपन्न होती है , ये चरण निम्न है –
स्टेप 1 : इस चरण के अंतर्गत सम्पचित्र टैंक में स्थानान्तरित की गयी स्लरी में उपस्थित जटिल पदार्थ जैसे सेल्युलोज , हेमी सेल्युलोज , पेक्टिन आदि अवायवीय विकल्पी जीवाणुओं के द्वारा सरल पदार्थ में परिवर्तित कर दिए जाते है , इस कार्य हेतु उपरोक्त जीवाणुओं के द्वारा मुख्यतः सेल्युलोज , हेमीसेल्युलोज तथा पेप्टिनेज एंजाइम का उपयोग किया जाता है।
स्टेप 2 : द्वितीय चरण में जीवाणुओं के द्वारा आंशिक वायवीय तथा आंशिक अवायवीय किण्वन की क्रिया सम्पन्न की जाती है जिसके फलस्वरूप निर्मित सरल पदार्थ कार्बनिक पदार्थो में परिवर्तित हो जाते है।
निर्मित कार्बनिक पदार्थो पर पुनः उपरोक्त क्रिया दोहराई जाती है जिसके फलस्वरूप अंततः कार्बनिक अम्लो से एसिटिक अम्ल का निर्माण होता है।
स्टेप 3 : तृतीय चरण के अंतर्गत कर्दम में उपस्थित मिथेनॉजन्स या मिथैनो बैक्टीरियम के द्वारा एसेटिक अम्ल को मुख्यतः मिथेम में ओक्सिकृत कर दिया जाता है , इसके अतिरिक्त सह उत्पाद के रूप में कार्बन डाइ ऑक्साइड अल्प मात्रा में H2S , हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन का निर्माण होता है।
(3) गैस होल्डर (gas holder) : बायो गैस बायोगैस संयत्र के अंतर्गत उपयोग किये जाने वाले गैस होल्डर को संपाचित्र टैंक के ऊपर फिट किया जाता है , यह गैस होल्डर गतिशील होता है इसमें सम्पाचित्र टैंक में निर्माण गैस , एकत्रित होती है , संपाचित्र टैंक के शीर्ष भाग पर गैस knob फिट किया जाता है जो आगे गैस सप्लाई की पाइप से जोड़ा जाता है।
उपस्थित गैस knob की सहायता से गैस की सप्लाई को चालू या बंद किया जाता है।
नोट : गैस होल्डर में निर्मित गैस एकत्रित होने के कारण यह गैस होल्डर बाहर की ओर गति करता है इसके फलस्वरूप गैस निर्माण की क्रिया का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
(4) स्लज टैंक : समतल भूमि पर निर्मित छोटे आकार की टैंक नुमा संरचना स्लज टैंक कहलाती है।
इस टैंक के भीतर यांत्रिक रूप से संपाचित्र टैंक में शेष बचे अवयव को एकत्रित किया जाता है।
इस अवयव को सामान्यत: स्लज के नाम से जाना जाता है , इसे सुखाकर उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है।
नोट : संयंत्र से उत्पादित ऊर्जा को जैव ऊर्जा का परम्परागत स्रोत से अधिक उपयोगी स्रोत माना जाता है , क्यों ?
क्योंकि परंपरागत रूप से पशुओ के गोबर को केवल ऊर्जा के रूप में या उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है परन्तु बायो गैस संयन्त्र से उत्पन्न बायो गैस को ऊर्जा के स्रोत के रूप में तथा शेष बचे पदार्थ को उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
उदाहरण : गाय के 50 किलोग्राम ताजा गोबर से परम्परागत रूप से जलाने पर केवल 3000 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है या इसे एक एकड़ भूमि हेतु उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है , वही बायो गैस संयंत्र में गाय के ताजा गोबर की समान मात्रा का उपयोग करने पर 2 घन मीटर गैस उत्पन्न होती है जिससे लगभग 2700 kg कैलोरी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है तथा शेष बचे अवयव को एक एकड़ भूमि हेती उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
सामान्यतया बायो गैस की दक्षता प्राकृतिक गैस की तुलना में कम होती है क्योंकि बायो गैस में लगभग 31% कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा पायी जाती है जो अधिक ऊष्मा उत्पन्न करती है तथा उत्पन्न अधिक ऊष्मा दक्षता को कम करती है।
यदि कार्बन डाइ ऑक्साइड की सांद्रता को कम किया जाए तो बायोगैस की दक्षता में वृद्धि की जा सकती है इस हेतु भारत सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहे है तथा इस सन्दर्भ में सन 1961 में उत्तर प्रदेश के इटावा प्रदेश के ajitmal क्षेत्र में गोबर गैस अनुसन्धान स्टेशन की स्थापना की गयी है।
bio gas के संगठन में सामान्यत: 50 से 70% मेथेन , 30 से 40% कार्बन डाइ ऑक्साइड व अल्प मात्रा में H2S , H2 और N2 पाए जाते है।