JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: 10th science

बायो गैस biogas in hindi , जैव-मात्रा (बायो-मास) , चारकोल , बायो गैस (जैव गैस) , बायो गैस का निर्माण

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार

जैव-मात्रा (बायो-मास) 

प्राचीन काल से ही लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। ईंधन के रूप में उपलों के दहन से भी उर्जा को प्राप्त किया जा सकता है। भारत में पशुधन की विशाल संख्या है जिसके कारण इससे हम बहुत अधिक संख्या में उर्जा का निर्माण कर सकते है।

वे ईंधन जो हमे पादप एवं जंतु के उत्पाद से प्राप्त होते है जैव मात्रा कहलाते है। जैसे की लकड़ी , गोबर ,पेड़ के सूखे पत्ते आदि।

1.यह ईंधन अधिक ऊष्मा उत्पन्न नहीं करते है।

2. इन ईधन को जलाने पर अत्यधिक धुआँ निकलता है।

3. यह प्रकाश देकर जलते है।

4. इस उर्जा के स्रोत को गैरपरम्परागत स्रोत भी कहा जाता है।

इन ईंधनों की दक्षता में वृद्धि के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आवश्यक है।

चारकोल 

वायु की सीमित आपूर्ति में जब लकड़ी को जलाते हैं तो उसमें उपस्थित जल तथा वाष्पशील पदार्थ बाहर निकल जाते हैं तथा अवशेष के रूप में केवल चारकोल रह जाता है।

विशेषताऐ 

1.चारकोल बिना ज्वाला के जलता है।

2. चारकोल को जलाने पर अपेक्षाकृत कम धुआँ निकलता है।

3. चारकोल को जलने पर इसकी ऊष्मा उत्पन्न करने की दक्षता भी अधिक होती है।

(biogas in hindi) बायो गैस (जैव गैस) 

गोबर, फसलों के कटने के पश्चात बचे अवशिष्ट, सब्जियों का अपशिष्ट जैसे विविध पादप तथा वाहित मल जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटित होते हैं तो अपधटन के बाद बायो गैस (जैव गैस) निकलती है। इस गैस को बनाने में उपयोग होने वाला मुख्य पदार्थ मुख्यत गोबर है इसलिए इसे गोबर गैस के नाम से भी जाना जाता है।

किसी भी जैव गैस को एक संयंत्र में उत्पन्न किया जाता है इस सयंत्र को जैव गैस सयंत्र या गोबर गैस सयंत्र कहते है। जैव गैस की कुछ विशेषताऐ होती है जो की कुछ इस तरह से है

1.जैव गैस में 75 प्रतिशत तक मेथैन गैस होती है अत: यह उत्तम ईधन है

2.जैव गैस को जलाने पर यह धुआँ उत्पन्न किए बिना जलती है।

3.लकड़ी, चारकोल तथा कोयले के विपरीत जैव गैस के जलने के पश्चात राख जैसा कोई अपशिष्ट प्रदाथ शेष नहीं बचता है।

4.जैव गैस की तापन क्षमता उच्च होती है।

5.जैव गैस का उपयोग प्रकाश के स्रोत के रूप में भी किया जाता है।

6. जैव गैस को बनाने में तकनीक का उपयोग किया है जिसके कारण यह ईधन सस्ता होता है।

बायो गैस का निर्माण 

गोबर, फसलों के कटने के पश्चात बचे अवशिष्ट, सब्जियों का अपशिष्ट जैसे विविध पादप तथा वाहित मल जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में बहुत महीनो तक रहते है तो यह अपघटित होकर जैव गैस बनाते हैं।इस संयंत्र में ईंटों से बनी गुबंद जैसी संरचना होती है। इस जैव गैस को बनाने के लिए अनेक संरचना का निर्माण किया जाता है जो की कुछ इस तरह से है

1.कर्दम = इस संरचना में जैव गैस बनाने के लिए मिश्रण टंकी में गोबर तथा जल का एक गाढ़ा घोल लिया जाता है। इस गाढ़ा घोल को कर्दम या स्लरी कहा जाता हैं।

2. संपाचित्र = चारों ओर से बंद एक कक्ष जिसमें ऑक्सीजन नहीं होती है संपाचित्र कहलाता है इस स्लरी के बनने के बाद इसे संपाचित्र में डाल देते हैं। यह इस सयंत्र का सबसे प्रमुख भाग होता है जिसमे जटिल प्रदाथो का अपधटन कर जैव गैस का निर्माण किया जाता है।

अत: कर्दम या स्लरी को बनाकर इसे संपाचित्र में ले लिया जाता है। अवायवीय सूक्ष्मजीव जिन्हें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है इस गोबर की स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन कर देते हैं। अपघटन-प्रक्रम पूरा होने पर इसके फलस्वरूप मेथैन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें उत्पन्न होने में कुछ दिन लग जाते हैं तथा बनी जैव गैस को संपाचित्र के ऊपर बनी गैस टंकी में एकत्रित किया जाता है। जैव गैस को गैस टंकी से उपयोग के लिए पाइपों द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है।

इस स्लरी के अपधटन के बाद जैव गैस संयंत्र में शेष बची स्लरी को समय-समय पर संयंत्र से बाहर निकालते हैं। इस स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं अतः यह एक उत्तम खाद के रूप में काम आती है। जैव अपशिष्टों व वाहित मल के उपयोग द्वारा जैव गैस निर्मित करने से हमारे कई उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है

1. ऊर्जा का सुविधाजनक दक्ष स्रोत मिलता है

2. उत्तम खाद मिलती है

3. अपशिष्ट पदार्थों के निपटारे का सुरक्षित उपाय भी मिल जाता है।

पवन ऊर्जा 

गतिशील वायु को पवन कहते है इस पवन में गतिज उर्जा होती है जिसका उपयोग अनेक कार्यो में विधुत को उत्पन्न करने में, पवन चक्की में आदि में किया जाता है। सूर्य के विकिरणों द्वारा भूखंडों तथा जलाशयों के असमान गर्म होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है। पवनो की गतिज उर्जा से कई कार्य किये जाते है। पवन उर्जा का उपयोग पवन-चक्कियों द्वारा यांत्रिक कार्यों को करने में होता रहा है।

किसी पवन-चक्की से चलने वाले जलपंप (पानी को ऊपर उठाने वाले पंपों) में पवन-चक्की की पंखुडि़यों की घूर्णी गति का उपयोग कुओं से जल खींचने के लिए होता है। आजकल पवन ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने में भी किया जा रहा है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now