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भारत धर्म महामंडल की स्थापना किसने की और कब की , bharat dharma mahamandal was founded by in hindi

By   December 10, 2022

bharat dharma mahamandal was founded by in hindi भारत धर्म महामंडल की स्थापना किसने की और कब की ?

प्रश्न: भारत धर्म महामंडल
उत्तर: पं. दीनदयाल शर्मा द्वारा सन् 1890 में पंजाब में स्थापित भारत धर्म महामण्डल रूढ़िवादी शिक्षित हिन्दुओं का अखिल भारतीय संगठन था, जो आर्य समाज, ब्रह्मविद्यावादियों (थियोसॉफियों) तथा रामकृष्ण मिशन की शिक्षाओं से रूढ़िवादी वर्ग (हिन्दू धर्म) की रक्षा के लिए उठ खड़ा हुआ था।

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भाषा एवं साहित्य
मराठी
महाराष्ट्री अपभ्रंश काफी पहले मराठी भाषा के रूप में विकसित हो चुका था, लेकिन इसका साहित्य तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सामने आया। लगभग 300 वर्षों तक यह साहित्य काव्य रूप में मुख्यतः धार्मिक और दार्शनिक रहा। इस भाषा की प्रथम उल्लेखनीय कृति मुकुंदराजा की विवेक सिंधु को माना जाता है। मुकुंदराजा नाथपंथी थे। एक अन्य धार्मिक सम्प्रदाय महानुभाव ने मराठी पद्य एवं गद्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया। भक्ति आंदोलन के दौरान महान ज्ञानदेव हुए, जिनकी भावार्थ दीपिका (लोकप्रिय ज्ञानेश्वरी) और अमृतानुभव महाराष्ट्रवासियों के लिए मानक धर्मग्रंथ थे। इसी परंपरा में नामदेव और एकनाथ थे।
सत्रहवीं शताब्दी में मराठी साहित्य को समृद्ध बनाने की दिशा में ईसाई मिशनरियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। फादर थाॅमस स्टीफंस का कृष्टपूरन इसका उल्लेखनीय उदाहरण है। हिंदू साहित्य में तुकाराम के बेजोड़ अभंग थे, जिन्होंने अपनी गीतात्मक प्रबलता के बल पर जनसाधारण को सीधे तौर पर अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया। इस काल की लौकिक कविता को पोवदस वीर रस की कविताएं और लावणी रोमांटिक एवं शृंगारपरक, में अभिव्यक्ति मिली।
उन्नीसवीं शताब्दी में मराठी साहित्य में आधुनिकता का प्रवेश हुआ। कविता के क्षेत्र में के.के. दामले उर्फ केशवसुत ने नए प्रतिमान स्थापित किए। प्रेम, प्रकृति, सामाजिक चेतना और नव. रहस्यवाद उनके विषय रहे। 1930 तक कवियों के एक समूह रवि किरण मंडल ने नए विषयों में प्रवेश किया। इनमें उल्लेखनीय कवि हैं माधव त्रियंबक पटवर्धन और यशवंत दिनकर पेंढारकर।
पहला मराठी व्याकरण और पहला शब्दकोश 1829 में आया। पत्रिकाएं लोकप्रिय हुई। बाल गंगाधरशास्त्री जाम्बलेकर, जिन्होंने दैनिक दर्पण (1831) और दिग्दर्शन (1841) प्रारंभ किया तथा भान महाजन, जिन्होंने प्रभाकर की स्थापना की, गद्य के नए रूप के प्रणेता थे। कृष्णहरि चिपलंकर और गोपाल हरि देशमुख के निबंधों ने लोगों में उनकी विरासत के बारे में जागरूकता पैदा की। विष्णुशास्त्री चिपलुंकर ने ‘केसरी’ (1881) की स्थापना की, जो बाद में लोकमान्य तिलक के अधीन अखिल भारतीय महत्व का हो गया। कई राष्ट्रीय नेताओं ने अपने लेखन से भाषा को समृद्ध किया जैसे ज्योतिबा फुले, गोपाल अगरकर,एन.सी. केलकर, वी.डी. सावरकर और निःसंदेह बाल गंगाधर तिलक।
सामाजिक उपन्यासों के क्षेत्र में हरिनारायण आप्टे का योगदान उल्लेखनीय है। वी.एस. खांडेकर को 1974 में जयति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। एक अन्य मराठी लेखक थे वी.वी. शिखाडेर, जिन्हें कुसुमगराज के नाम से भी जागा जाता है। इन्हें भी इनकी काव्यात्मक एवं अन्य रचनाओं के लिए यह पुरस्कार मिला था। बी.एस. मारधेकर का रात्रिचा दिवस मराठी का चर्चित उपन्यास रहा। एस.एन. पेंडसे की पुस्तक ‘रथचक्र’ भी काफी सराही गई।
मराठी नाटक का उद्गम इसके धार्मिक उत्सवों से हुआ। इस रूप को अन्ना साहेब किर्लोस्कर के कार्य में परिपक्वता प्राप्त हुई। विजय तेंदुलकर एवं सी. टी. धनोल्कर जैसे नाटककारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर के नाटक लिखे।
अभिधन्नतर और शब्दवेध के साथ सम्बद्ध कवियों की तथाकथित आधुनिक कविता के साथ 1990 के दशक में मराठी समझएवं संवेदनशीलता में एक भारी बदलाव शुरू हुआ। 1990 के दशक के बाद, ‘द न्यू लिटिल मैंगजीन मूवमेंट’ ने ध्यान आकर्षित किया और इसका श्रेय मान्य जोशी, हेमंत दिवेत, सचिव केटकर, मगेरा नारायण राव काले, सलील बाघ, मोहन बोर्स, नितिन कुलकर्णी, नितिन अरुण कुलकर्णी, व्रजेश सोलंकी, संदीप देशपांडे और वसंत गुर्जर जैसे कवियों को जाता है। अभिधन्नतर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह और अभिधन्नतर पत्रिका के नियमित अंकों ने मराठी कविता के स्तर में अत्यधिक वृद्धि की। समकालीन मराठी कविता में अन्य अग्रणी लहर अरुण काले, भुजंग मेशराम, प्रवीण बांडेकर, श्रीकांत देशमुख और वीरधवल परब, जिन्होंने स्थानीय या मौलिक मूल्यों पर बल दिया जैसे गैर-शहरी कवियों की कविता है।
मराठी उन चुनिंदा भारतीय भाषाओं में से भी एक है (संभवतः एकमात्र) जहां एक विज्ञान गल्प साहित्य की धारा है (इसके तहत् प्रसिद्ध लेखकों में जयंत नार्लिकर, डा. बाल फोंडके, सुबोध जावेडकर, और लक्ष्मण लोंधे शामिल हैं)।
मराठी भाषा विश्वकोष के सृजन में काफी समृद्ध है। इसमें श्रीधर वेंकटेश केटकर का ध्यानकोष, सिद्धेश्वर शास्त्री चितराव का चरित्रकोष, महादेव शास्त्री जोशी का भारतीय संस्कृति कोष, और लक्ष्मण शास्त्री जोशी का धर्मकोष और विश्वकोष कुछ प्रसिद्ध विश्वकोष हैं।
दयनेश्वर मुले ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा से मराठी भाषा को समृद्ध किया। उनकी आत्मकथा माटी पांख आनी आकाश को बीसवीं शताब्दी की कुछ सर्वोत्तम आत्मकथाओं में से एक माना जाता है।

नेपाली

नेपाली भाषा में लिखे गए साहित्य को नेपाली साहित्य कहा जाता है। नेपाली भाषा का उद्गम संस्कृत से हुआ है और स्पष्ट रूप से यह कहना मुश्किल है कि नेपाली साहित्य का इतिहास कितना प्राचीन है।
नेपाली भाषा खास प्राकृत से विकसित हुई है। लोक परंपराओं में समृद्ध इसका साहित्यिक रूप 18वीं शताब्दी में निर्धारित हुआ। सुबानंद दास, शक्ति बल्लव/आर्यल और उदयनंद आर्यल शुरुआती दौर के उल्लेखनीय कवि थे। इस भाषा का पहला ‘खंडकाव्य’ बसंत शर्मा का कृष्ण चरित है।
बीसवीं शताब्दी का समय इस भाषा में सृजनात्मक लेखन का सर्वोत्तम समय था। स्वतंत्र पत्रिका शारदा एकमात्र उपलब्ध नेपाली साहित्य का प्रकाशन है। लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा, गुरु प्रसाद मैमाली और विशेश्वर प्रसाद कोइराला द्वारा रचित लघु कथाओं को सराहा गया। निःसंदेह रूप से यह समय नेपाली साहित्य के विकास हेतु बेहद महत्वपूर्ण था। प्रसिद्ध लघु कथाओं में प्रभावी लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा की ‘मुना मदन’, और विशेश्वर प्रसाद कोइराला (‘तीन घुमती’, ‘दोषी चश्मा’, ‘नरेन्द्र दाई’) की कहानियां शामिल हैं।
आधुनिक समय में, बालकृष्ण सामा और लेखनाथ सुप्रसिद्ध कवि हैं। बालकृष्ण सामा एस.बी. अरियल की तरह एक नाटककार भी हैं। उपन्यासकारों में, रुद्रराज पाण्डेय, शिव कुमार राय और प्रतिमान लामा प्रसिद्ध नाम हैं। ऐसे कई आधुनिक नेपाली लेखक इंद्र बहादुर राय, परिजात, नारायण वाघले, मंजूश्री थापा और महानंदा पौड़याल हुए जिन्होंने लीक से हटकर और नवनिर्माण वाले लेखन से नवीन नेपाली साहित्य का सूत्रपात किया।
जैसाकि नेपाली सेंसर 1990 के बाद के विश्व में तेजी से व्यापक हो रहा है, विश्व के विभिन्न जगहों से कई नेपाली साहित्य की पुस्तकें प्रकाशित हुईं। इनमें कुछ उल्लेखनीय लेखक ,वं उपन्यास होम नाथ सुबेदी (यमपुरी को यात्रा) और पंचम अधिकारी (पथिक प्रवासन) हैं, जिन्होंने पहचान के नवीन प्रतिमानों की चमकदार दृष्टि प्रदान की।