JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

बैंथम एवं हुकर की वर्गीकरण पद्धति bentham and hooker classification system in hindi दोष गुण

बैंथम एवं हुकर की वर्गीकरण पद्धति (bentham and hooker classification system in hindi) : जोर्ज बेन्थम (1800-1884) और जोसेफ डाल्टन हुकर (1817-1911) प्रसिद्ध ब्रिटिश पादप वर्गीकरण शास्त्री थे , जिनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक “जेनेरा प्लांटेरम” में उनकी प्रसिद्ध वर्गीकरण पद्धति प्रस्तावित हुई थी। यह पुस्तक 3 खण्डो में विभाजित थी , इसका प्रथम खण्ड जुलाई , 1862 और अंतिम खंड अप्रेल 1883 में प्रकाशित हुआ। बैंथम और हुकर दोनों ही इंग्लैंड के रॉयल बोटेनिक गार्डन क्यू में कार्यरत थे। उनके द्वारा प्रस्तावित यह लोकप्रिय पादप वर्गीकरण पद्धति संभवत: किसी भी ब्रिटिश पादप वर्गीकरण शास्त्री द्वारा वर्गिकी और पादप अन्वेषण के क्षेत्र में दिया गया सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान कहा जा सकता है। यह पादप वर्गीकरण पद्धति वस्तुतः डि केंडौले की पद्धति का विस्तृत और संशोधित प्रारूप कही जा सकती है। 

बेन्थम और हुकर पद्धति को प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति माना जाता है। जिस पुस्तक “जेनेरा प्लांटेरम” में यह वर्गीकरण पद्धति प्रस्तावित की गयी थी , उसके प्रथम खण्ड और सर चार्ल्स डार्विन की प्रसिद्ध पुस्तक “ओरिजिन ऑफ़ स्पीसीज”  का प्रकाशन संयोगवश लगभग एक साथ अथवा थोडा आगे पीछे ही हुआ था , अत: यह अत्यंत स्वाभाविक है कि इस पद्धति का गठन करते समय , इसके प्रस्तुतिकर्ता पौधों की विकासीय प्रवृतियों पर पर्याप्त ध्यान देने में असमर्थ रहे।

जेनेरा प्लान्टेरम के प्रकाशन के समय पुष्पीय पौधों के ज्ञात कुलों , पादप वंशों और प्रजातियों का विवरण निम्नलिखित सारणी में दिया गया है –

 

 ऑर्डर्स (कुल)

 वंश (जेनेरा)

 प्रजाति (स्पिसिज)

 पोलीपेटेली 

 82

 2610

 31874

 गेमोपेटेली

 45

 2619

 34556

 मोनोक्लेमाइडी 

 36

 801

 11784

 जिम्नोस्पर्मी

 3

 44

 415

 मोनोकोटीलिडन्स 

 34

 1495

 18576

 योग 

 200

 7569

 97205

बेन्थैम और हुकर पादप वर्गीकरण पद्धति की संक्षिप्त रुपरेखा और विभिन्न वर्गकों के प्रमुख पहचान के लक्षण निम्नलिखित प्रकार है –

 

उपप्रभाग – डाइकोटीलिडनी (subdivision – dicotyledonae) : बीजपत्र दो , संवहन बंडल खुले और वलय में व्यवस्थित , पत्तियों में जालिकावत शिरा विन्यास , पुष्प चतुष्कतयी अथवा पंचतयी।

  1. वर्ग पोलीपेटेली (polypetalae): पुष्पदल दो चक्रों में , आंतरिक चक्र दलाभ , पुष्प पृथकदली

(i) श्रृंखला थेलेमीफ्लोरी (thalamiflorae) : पुष्प अधोजायांगी , अण्डाशय उच्चवर्ती पुष्पासन चक्रिका अनुपस्थित।

इसमें कुल 6 गण सम्मिलित है –

(a) गण रेनेल्स : पुंकेसर प्राय: असंख्य , अंडप एक से बहुसंख्य , पृथकांडपी (कुल संख्या 1 से 8)

  1. रेननकुलेसी  2. डिलीनियेसी  3. केलीकेन्थेसी  4. मेग्नोलियेसी  5. एनोनेसी  6. मेनीस्पर्मेसी  7. बरबेरीडेसी  8. निम्फीयेसी।

(b) गण पेराइटेल्स : पुंकेसर संख्या निश्चित अथवा असंख्य , जायांग दो से बहुअंडपी , युक्तांडपी , बीजाण्डविन्यास भित्तिय।

कुल संख्या 9 से 17

  1. सारसेनियेसी  10. पेपेवरेसी  11. क्रुसीफेरी  12.  केपेरिडेसी  13. रेसेडेसी  14. सिस्टीनी 15. वायोलेसी 16. केनेलियेसी  17. बिक्सिनी।

(c) गण पोलीगेलिनी : बाह्यदल सामान्यतया पाँच पुंकेसर संख्या दलपत्रों के समान अथवा द्विगुणित , अंडाशय द्विअंडपी (कुल संख्या 18 से 22)

  1. पिटोस्पोरी  19. ट्रेमेंड्रि  20. पोलीगेलेसी  21. वोचीसिएसी।

(d) गण केरियोफिल्लिनी : पुष्प नियमित , बाह्यदल 2 से 5  , यदाकदा 6 , दलपत्र 2 से 5 , पुंकेसर संख्या दलपत्रों से दुगुनी , अंडाशय एककोष्ठीय , बीजाण्डविन्यास मुक्त स्तम्भीय (कुल संख्या 22 से 25)

  1. फ्रेंकेनियेसी  23. केरियोफिल्लेसी  24. पोरचूलेकेसी  25. टेमेंरिसिनी  (टेमेरिकेसी)

(e) गण गट्टीफेरेल्स : पुष्प नियमित , बाह्यदल और दल संख्या 4 से 5 , विन्यास कोरछादी , पुंकेसर असंख्य (कुल संख्या 26 से 31)

  1. इलेटिनेसी  27. हाइपेरीसिनी  28. गट्टीफेरी  29. टेरेनास्ट्रोमेसी  30. डिप्टेरोकारपेसी  31. क्लेनेसी

(f) गण माल्वेल्स : पुष्प नियमित , बाह्यदल और दल संख्या प्राय: 5 , यदा कदा 2 से 4 , पुंकेसर असंख्य बीजाण्डविन्यास अक्षीय (कुल संख्या 32 से 34)

  1. माल्वेसी  33. स्टेरक्यूलियेसी  34. टोलीयेसी

(ii) श्रृंखला डिस्कीफ्लोरी (disciflorae)

पुष्प अधोजायांगी अंडाशय उच्चवर्ती , सुस्पष्ट चक्रिक उपस्थित।

इसमें 4 गण सम्मिलित है –

(g) गण जिरेनियेल्स : पुष्प अनियमित या नियमित , डिस्क वलयाकार पुंकेसरों से संलग्न , जायांग बहुअंडपी , युक्तांडपी (कुल संख्या 35 से 45)

  1. लाइनेसी  36. ह्यूमेरीयेसी  37. मेलपीघीयेसी  38. जाइगोफिल्लेसी  39. जिरेनियेसी  40. रूटेसी  41. साइमारूबेसी  42. ओक्नेसी  43. बरसरेसी  44. मेलियेसी  45. केलेटियेसी अथवा चैलीटियेसी

(h) गण ओलेकेल्स : पुष्प नियमित द्विलिंगी या एकलिंगी , बाह्यदल छोटे डिस्क , स्वतंत्र , प्यालाकार अथवा वलयाकार (कुल संख्या 46 से 48)

  1. ओलिसिनी  47. इलिसिनी  48. साइरिली

(i) गण सीलेस्ट्रेल्स : पुष्प नियमित , द्विलिंगी , अधोजायांगी अथवा परिजायांगी , डिस्क फूली हुई , जायांग 2-5 अंडपी (कुल संख्या 49 से 52)

  1. सीलेस्ट्रिनी 50. स्टेकाहाउसी  51. रेहम्नेसी  52. एम्पिलिडी

(j) गण सेपिन्डेल्स : पुष्प सामान्यतया अनियमित और एकलिंगी , अधोजायांगी अथवा लगभग परिजायांगी डिस्क फूली हुई , जायांग 2 से 5 अंडपी (कुल संख्या 53 से 55)

  1. सेपिन्डेसी  54. सेबियेसी  55. ऐनाकारडियेसी  56. कोरियेसी  57. मोरिन्गेसी असंगत कुल

(iii) श्रृंखला केलिसीफ्लोरी : बाह्यदल संयुक्त , यदा कदा स्वतंत्र , प्राय: अंडाशय से संलग्न , पुष्प परिजायांगी अथवा उपरिजायांगी , अंडाशय अर्ध अधोवर्ती अथवा अधोवर्ती , पुष्पासन प्यालाकार।

इसमें कुल 5 गण सम्मिलित है –

(k) गण रोजेल्स : पुष्प सामान्यतया द्विलिंगी , नियमित या अनियमित अंडप एक से असंख्य , पुष्पासन प्याले के समान (कुल संख्या 58 से 66)

  1. कोनेरेसी  59. लेग्यूमिनोसी 60. रोजेसी  61. सेक्सीफ्रेगेसी  62. क्रेसूलेसी  63. ड्रोसेरेसी 64. हेमेलिडेसी  65. ब्रूनियेसी 66. हेलोगियेसी

(l) गण मिर्टेल्स : पुष्प प्राय: द्विलिंगी , नियमित अथवा लगभग अनियमित अंडाशय तीन से पांच अंडपी , युक्ता अंडपी , प्राय: अधोवर्ती वर्तिका संयुक्त (कुल संख्या 67 से 72)

  1. राइजोफोरेसी  68. कोम्ब्रीटेसी  69. मिरटेसी  70. मेलोस्टेमेसी  71. लायथेरिएसी  72. ओनागेएसी .

(m) गण पेसीफ्लोरेल्स : पुष्प प्राय: नियमित द्विलिंगी , कभी कभी एकलिंगी , अंडाशय युक्तांडपी प्राय: अधोवर्ती , एककोष्ठीय , भित्तिय बीजाण्डविन्यास (कुल संख्या 73 से 79)

  1. सेमाइडेसी  74. लोएसी 75. पेसीफ्लोरेसी  76. टरनेरेसी 77. कुकुरबिटेसी  78. बिगोनियेसी  79. डेटीसेसी

(n) गण फीइकोईडेल्स : पुष्प नियमित या अर्द्ध अनियमित , द्विलिंगी कभी कभी एकलिंगी , अंडाशय युक्तांडपी अधोवर्ती से उच्चवर्ती (कुल संख्या 80 से 81)

  1. केक्टेसी  81. फीइकोइडी

(o) गण अम्बेलेल्स : पुष्प नियमित , प्राय: द्विलिंगी अंडाशय अधोवर्ती (कुल संख्या 81 से 84)

  1. अम्बेलीफेरी  83. ऐरेलियेसी  84. कोरनेसी

B. वर्ग गेमोपेटेली (gamopetalae)

पुष्पदल 2 चक्रो में , आंतरिक चक्र दलाभ , दल संयुक्तदली

(i) श्रृंखला इनेफेरी : अंडाशय अधोवर्ती पुंकेसर संख्या दल पालियों के समान।

इसमें कुल 3 गण सम्मिलित है –

(a) गण रुबियोल्स : पुष्प नियमित अथवा अनियमित , पुंकेसर दललग्न , अंडाशय बहुकोष्ठीय (कुल संख्या 85 और 86)

  1. केप्रीफोलियेसी  86. रूबियेसी

(b) गण एस्टेरेल्स : पुष्प नियमित अथवा अनियमित , पुंकेसर दललग्न अंडाशय एककोष्ठीय बीजाण्ड – 1 (कुल संख्या 87 से 90)

  1. बेलेरियेनी  88. डिप्सेसी  89. केलीसिरी  90. कम्पोजिटी

 (c) गण केम्पेनेल्स : पुष्प प्राय: अनियमित कभी कभी नियमित उपरिजायांगी , अंडाशय 2-6 कोष्ठीय , प्रत्येक प्रकोष्ठ में असंख्य बीजाण्ड (कुल संख्या 91 से 93)

  1. स्टाइलिडी  92. गुडेनोविई 93. केम्पेनुलेसी

(ii) श्रृंखला हेटेरोमेरी : अंडाशय प्राय उच्चवर्ती , जायांग द्विअंडपी अथवा बहुअंडपी , पुंकेसर दल की संख्या के बराबर अथवा दुगुने।

इसमें कुल 3 गण सम्मिलित है –

(d) गण एरियोकेल्स : पुष्प प्राय: नियमित और अधोजायांगी , पुंकेसर संख्या दलपत्रों से दुगुनी , अंडाशय एक से बहुकोष्ठीय , प्रत्येक प्रकोष्ठ में बीजाण्ड एक अथवा अधिक (कुल संख्या 94 से 99)

  1. इरीकेसी  95. वेक्सीनियेसी  96. मोनोट्रोपिएसी 97. इपीक्रेसी 98. डायेपेन्सियेसी  99. लेनोएसी

(e) गण प्राइमुलेल्स : पुष्प सामान्यतया नियमित , अधोजायांगी पुंकेसर संख्या दल पालियों के समान , दलाभिमुख अंडाशय एक कोष्ठीय , बीजाण्डविन्यास आधारीय अथवा मुक्तस्तम्भीय , (कुल संख्या 100 से 102)

  1. प्लम्बिजेनेसी 101. प्राइमुलेसी  102. मायरसिनेसी

(f) गण इबेनेल्स : पुष्प प्राय: अधोजायांगी , पुंकेसर संख्या , दल पालियो से अधिक , अंडाशय दो से बहुकोष्ठीय (कुल संख्या 103 से 105)

  1. सेपोटेसी  104. इबेनेसी  105. स्टाइरेसी

(iii) श्रृंखला बाइकारपेलेटी : बाह्यदल संयुक्त और अंडाशय से संलग्न , द्विअंडपी , अंडाशयी अद्योवर्ती।

इसमें कुल चार गण सम्मिलित है –

(g) गण जेन्शीयेनेल्स : पुष्प नियमित , अधोजायांगी , पुंकेसर दललग्न , पर्ण प्राय: सम्मुख (कुल संख्या 106 से 111)

  1. ओलियेसी  107. सेल्वोडोरेसी  108. एपोसाइनेसी 109. एस्क्लेपियेडेसी 110. लोगेनियेसी 111. जेन्शीयेनेसी।

(h) गण पोलीमोनियेल्स : पुष्प नियमित , अधोजायांगी , पुंकेसर संख्या दल पालियों के समान , दललग्न पुंकेसर , अंडाशय एक से पंचकोष्ठीय , पर्ण एकान्तरित (कुल संख्या 112 से 116)

  1. पोलीमोनियेसी 113. हाइड्रोफिल्लेसी 114. बोरेजिनेसी 115. कोनेवोल्वुलेसी 116. सोलेनेसी।

(i) गण परसोनेल्स : पुष्प प्राय: एक व्यास सममित , दलपुंज प्राय: द्विओष्ठी , पुंकेसर संख्या दल पालियों से कम , यदि 4 तो द्विदीर्घी अन्यथा 2 (कुल संख्या 117 से 124)

  1. स्क्रोफुलेरियेसी 118. ओरोबेन्केसी 119. लेंटीबुलेरेसी 120. कोल्यूमेलियेसी 121. गेस्नेरियेसी 122. बिगनोनियेसी 123. पिडेलिएसी 124. एकेंथेसी।

(j) गण लेमियेल्स : पुष्प अनियमित यदा कदा नियमित , दलपुंज द्विओष्ठी , पुंकेसर संख्या 4 संख्या या 2 , यदि 4 तो द्विदीर्घी , अंडाशय दो से चार कोष्ठीय (कुल संख्या 125 से 128)

  1. मायोपोरिनी 126. सिलेजिनी 127. वरबिनेसी 128. लेबियेटी और 129. प्लेंटेजिनेसी (असंगत कुल)

C. वर्ग मोनोक्लेमाइडी (monochlamydeae)

परिदलपुंज केवल एक चक्र में , दलपुंज अनुपस्थित।

(i) श्रृंखला कर्वेएम्ब्री : स्थलीय पादप , पुष्पद्विलिंगी , पुंकेसर संख्या प्राय: परिदल खण्डों के बराबर बीजाण्ड एक भ्रूण मुड़ा हुआ (कुल संख्या 130 से 136)

  1. निक्टेजिनेसी 131. इलीसिब्रेसी 132. अमेरेन्टैसी 133. चीनीपोडियेसी 134. फाइटोलेकेसी 135. बेटिडी 136. पोलोगोनेसी।

(ii) श्रृंखला मल्टीओव्यूलेटी एक्वेटीसी : जलीय पादप , जायांग युक्तांडपी , बीजाण्ड असंख्य , कुल संख्या 137

  1. पोड़ोस्टीमेसी।

(iii) श्रृंखला मल्टीओव्यूलेटी टेरीस्ट्रिस : स्थलीय पादप , जायांग युक्तांडपी , बीजांड असंख्य , कुल संख्या 138 से 140

  1. नेपेन्थेसी  139. साइटिनेसी 140. एरिस्टोलोकियेसी

(iv) श्रृंखला माइक्रोएम्ब्रीइ : अंडाशय युक्तांडपी अथवा पृथकांडपी , बीजाण्ड प्राय: एक , कुल संख्या 141 से 144

  1. पाइपेरीसी 142. क्लोरेंथेसी 143. मायरिस्टेसी 144. मोनीमियेसी

(v) श्रृंखला डेफनेल्स : जायांग प्राय: एकांडपी बीजांड एक अथवा एकाधिक , परिदलपुंज पूर्ण , बाह्यदलाभ असंख्य , कुल संख्या 145 से 149

  1. लारिनी 146. प्रोटियेसी 147. थाइमेलियेसी 148. पीनीयेसी 149. इलेग्नेसी

(vi) श्रृंखला एक्लेमाइडोस्पोरी : अंडाशय एककोष्ठीय , बीजाण्ड 1 से 3 (कुल संख्या 150 से 152)

  1. लोरेन्थेसी  151. सेन्टेलेसी 152. बेलेनोफोरेसी

(vii) श्रृंखला यूनीसेक्सुएल्स : पुष्प एकलिंगी अंडाशय युक्तांडपी अथवा एकांडपी , परिदलपुंज बाह्यदलाभ अथवा अपहासित अथवा अनुपस्थित (कुल संख्या 153 से 161)

  1. यूफोर्बियेसी 154. बेलोनोफोरेसी 155. अरटिकेसी 156. प्लेंटेनेसी 157. ;लिंटरेनेसी 158. जगलेंडेसी 159. मायरिकेसी 160. केस्यूराइनेसी 161. क्यूप्लूलीफेरी

(viii) श्रृंखला एनोमेलस फेमिलीज : कुल संख्या 162 सेलीकेसी 163. लेसिस्टेनेसी 164. एम्पीट्रेसी 165. सिरेटोफिल्लेसी

III. उपप्रभाग मोनोकोटीलिडेनी (monocotyledonae)

बीजपत्र एक , संवहन बंडल बिखरे हुए , पत्तियों में समानांतर शिरा विन्यास , पुष्पत्रितयी

(i) श्रृंखला माइक्रोस्पर्मी : आंतरिक परिदलपुंज चक्र , दलाभ , अंडाशय अधोवर्ती , बीजाण्डविन्यास भित्तिय , बहुत कम स्तम्भीय (कुल संख्या 169 से 171)

  1. हाइड्रोकेरिडी 170. बरमेनीयेसी 171. आर्किडी

(ii) श्रृंखला एपीगाइनी : परिदलपुंज आंशिक दलाभ , अंडाशय प्राय: अधोवर्ती (कुल संख्या 172 से 178 )

  1. सिटेमिनी 173. ब्रोमेलियेसी 174. हीमोडोरेसी 175. इरिडी 176. एमेरीलिडी 177. टेक्सेसी 178. डायोस्कोरियेसी

(iii) श्रृंखला कोरोनेरीई : आंतरिक परिदल पुंज दलाभ , अंडाशय त्रिकोष्ठीय उच्चवर्ती (कुल संख्या 179 से 186)

  1. रोक्सबरघियेसी 180. लिलियेसी 181. पोंटेडेरियेसी 182. फिलीड्रेसी 183. जाइरिडी  184. मेयेकेसी 185. कोमेलाइनेसी 186. रेपिटीयेसी

(iv) श्रृंखला केलीसिनी : परिदल पुंज बाह्य दलाभ , शाकीय अथवा शल्की या झिल्लीदार अंडाशय त्रिकोष्ठीय उच्चवर्ती (कुल संख्या 187 से 189)

  1. फ्लेजिलेरियेसी 188. जेन्केसी 189. पामी

(v) श्रृंखला न्यूडीफ्लोरी : परिदलपुंज अनुपस्थित या रोम अथवा शल्कों द्वारा निरुपित अंडाशय उच्चवर्ती और त्रिकोष्ठीय (कुल संख्या 190 से 194)

  1. पेंडेनेसी 191. साइक्लेन्थेसी 192. टाइफेसी 193. ऐरोइडी 194. लेम्नेसी

(vi) श्रृंखला एपोकारपी : परिदलपुंज 1 अथवा 2 चक्रों में अथवा अनुपस्थित , अंडाशय उच्चवर्ती , पृथकाण्डपी (कुल संख्या 195 से 197)

  1. ट्राइयूरिडी 196. एलीस्मेसी 197. नायाडेसी

(vii) श्रृंखला ग्लूमेसी : पुष्प एकल अवृन्त सहपत्रों के अक्ष में उपस्थित शुकिका अथवा मुण्डक में व्यवस्थित अंडाशय सामान्यतया एककोष्ठीय (कुल संख्या 198 से 202)

  1. इरियोकोली 199. सेन्ट्रोलेपिडी 200. रेस्टीयेसी 201. साइपेरेसी 202. ग्रेमिनी

बैन्थम एवं हुकर पद्धति के गुण (merits of bentham and hooker’s system)

बैंथम और हुकर की वर्गीकरण पद्धति को एक सुविधाजनक और आदर्श प्रणाली माना जाता है और अनेक पादप संग्रहालयों में पादप व्यवस्था क्रम हेतु इस पद्धति का उपयोग किया जाता है।

इसकी प्रमुख अच्छाइयाँ निम्नलिखित प्रकार से है –

  1. इस वर्गीकरण पद्धति की प्रणेताओं के द्वारा इसके गठन में पौधों के जातिवृतीय सम्बन्धो का ध्यान नहीं रखा गया था , क्योंकि डार्विन का विकासवाद का सिद्धान्त लगभग उसी समय लेकिन स्वतंत्र रूप से प्रकाशित हुआ था। अत: पौधों के जातिवृतीय सम्बन्धों के परिप्रेक्ष्य में इस पद्धति की अलोचना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होती।
  2. इस पद्धति के अन्तर्गत प्रत्येक पादप वंश और प्रजाति का अध्ययन वास्तविक प्रारूपों को देखकर किया गया था और इनका वर्णन विस्तृत अध्ययन पर आधारित है।
  3. प्रायोगिक दृष्टि से यह अत्यन्त व्यावहारिक और सुविधाजनक पद्धति है , भारत और इंग्लैंड के अधिकांश पादप संग्रहालय इस पद्धति के अनुसार व्यवस्थित है।
  4. हालाँकि यह पद्धति जातिवृतीय सम्बन्धों को ध्यान में रखकर गठित नहीं की गयी है , फिर भी इस पद्धति में द्विबीजपत्री पौधों का प्रारंभ गण रेनेल्स से किया गया है , जो कि सभी पादप वर्गीकरण शास्त्रियों के अनुसार एक आदिम अथवा पुरातन पादप समूह है।
  5. एकबीजपत्री पौधों को द्विबीजपत्रियों के बाद रखा गया है , जो पौधों की जातिवृत्त और विकासीय प्रवृत्तियों के अनुसार सर्वथा उचित है।
  6. अध्ययन की सुविधा हेती वंशों को उपवंशों में विभाजित किया गया है।

बैन्थम एवं हुकर पद्धति के दोष (demerits of bentham and hooker’s system)

विभिन्न पौधों के जातिवृतीय सम्बन्धों के अध्ययन के परिप्रेक्ष्य में , बैंथम और हुकर की वर्गीकरण पद्धति में अग्र विसंगतियाँ है –

  1. केवल एक प्रमुख लक्षण या कुछ लक्षणों के आधार पर अधिकांश पौधों को कृत्रिम रूप से कुछ बड़े पादप समूहों में विभाजित कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप अनेक निकट सम्बन्धी पादप कुल एक दूसरे से काफी दूर व्यवस्थित हो गए थे।
  2. पादप समूह के रूप में मोनोक्लेमाइडी का गठन पूर्णतया कृत्रिम प्रक्रिया है। इस समूह के अनेक कुल महत्वपूर्ण लक्षणों के आधार पर वर्ग पोलीपेटेली के सदस्य कुलों या गणों के निकट सम्बन्धी होते है। प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से है –

(i) श्रृंखला कर्वेएम्ब्री के सभी कुल , पोलीपेटेली के केरियोफिल्लेसी पादप कुल से निकट सम्बन्ध दर्शाते है।

(ii) पोडोस्टीमेसी , गण रोजेल्स के नजदीक है।

(iii) नेपेन्थेसी , गण पेराइटेल्स के निकट है।

(iv) लोरेसी , कुल मेग्नोलियेसी का निकट सम्बन्धी है।

  1. द्विबीजपत्रा और एकबीजपत्री समूहों के मध्य जिम्नोस्पर्म्स को रखना पूर्णतया असंगत है।
  2. एकबीजपत्री पादप कुलों का व्यवस्थाक्रम पूर्णतया अप्राकृतिक है। इस पादप समूह में कुल आर्किडेसी और सिटेमिनी को पुरातन माना गया है जो कि पूर्णतया निराधार और अजातिवृतीय है। वस्तुतः उपर्युक्त दोनों पादप कुल तो एकबीजपत्रियों में सर्वाधिक प्रगत कुल है।
  3. कुल लिलिएसी को केवल अंडाशय लक्षण के आधार पर ही इसके निकट सम्बन्धियों क्रमशः इरिडेसी और एमेरिलिडेसी से अलग कर दिया गया है जो विसंगतिपूर्ण कृत्य है।
Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

1 month ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

1 month ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now