बैंक किसे कहते है | बैंक की परिभाषा अवधारणा क्या है अर्थ मतलब यूनिवर्सल bank in hindi meaning

bank in hindi meaning definition बैंक किसे कहते है | बैंक की परिभाषा अवधारणा क्या है अर्थ मतलब यूनिवर्सल ?

बैंक
बैंक सर्वाधिक दृश्यमान और आम जनता द्वारा सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली वित्तीय संस्था हैं। बैंक का मुख्य उद्देश्य जनता से निधियाँ एकत्र करना है और उन निधियों का पुनः लाभप्रद तरीके से निवेश करना है।

भारत में बैंकों के मोटे तौर पर दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है: अनुसूचित बैंक और गैर-अनुसूचित बैंक । अनुसूचित बैंक वे बैंक हैं जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। इन अनुसूचित बैंकों में वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, शहरी सहकारी बैंक और राज्य सहकारी बैंक सम्मिलित हैं। भारत में 31 मार्च, 2001 की स्थिति के अनुसार 100 वाणिज्यिक बैंक, 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, 51 शहरी सहकारी बैंक और 16 राज्य सहकारी बैंक कार्यरत थे। नीचे दिए गए चित्र 27.2 में भारत में बैंकिंग क्षेत्र की विस्तृत, संरचना प्रस्तुत है।

/ भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में यथा सम्मिलित।
’ सकुरा बैंक लिमिटेड का 1 अप्रैल 2001 को सुमितोमो बैंक लिमिटेड में विलय हो गया ।
नोट: कोष्ठक में दी गई संख्या प्रत्येक समूह में बैंक की संख्या इंगित करता है।
स्रोत: भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति संबंधी भारतीय रिजर्व बैंक प्रतिवेदन ।

 वाणिज्यिक बैंक
भारत में 31 मार्च 2001 की स्थिति के अनुसार 296 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (ओ सी बी) हैं इसमें भारतीय स्टेट बैंक तथा उसके अनुषंगी बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और विदेशी बैंक सम्मिलित हैं। पूरे भारत में इन बैंकों की 65,340 शाखाएँ हैं जो बैंकिंग प्रचालनों में सम्मिलित है। ये बैंक लघु, मध्यम और बृहत् क्षेत्र के उद्योगों को ऋण उपलब्ध कराते हैं। इन उद्योगों में सभी प्रकार के उद्योग जैसे वस्त्र, रसायन, इजीनियरिंग इत्यादि सम्मिलित हैं और ये भारत के सभी राज्यों में फैले हुए हैं।

निम्नलिखित तालिका और गैर एस-एल-आर प्रतिभूतियों में निवेश का स्वरूप दर्शाता है। इन अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा किए गए निवेश में से अधिकांश बॉण्डध्डिबेंचरोंध्अधिमान शेयरों इत्यादि जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की नियत आय प्रतिभूतियों में थे। इस प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से तालिका 27.4 में देखा जा सकता है।

’ पी एस यू और निजी कारपोरेट क्षेत्र द्वारा जारी।
नोट्स: 1) घटक आँकड़ों को पूर्णांकन के कारण योग में नहीं जोड़ा जाए।
2) एस सी बी से प्राप्त विशेष पाक्षिक विवरणों पर आधारित आँकड़ा।
स्रोत: भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2001 संबंधी भारतीय रिजर्व बैंक प्रतिवेदन। इसके अलावा लघ, मध्यम और बृहत् उद्योगों में भारी धनराशि निवेश की गई हैं। प्राथमिकता क्षेत्र ऋण प्रदान करने की अपेक्षाओं अंतर्गत बैंकों द्वारा लघु उद्योगों में निवेश किया जाना अपेक्षित है। इसके अतिरिक्त बैंक आवासन और पर्यटन क्षेत्र में भी निवेश कर रही है।

यूनिवर्सल बैंक
यूनिवर्सल बैंकिंग एक नई अवधारणा है, जो भारत में 90 के दशक में वित्तीय क्षेत्र में सुधारों के फलस्वरूप विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं द्वारा सामना की गई समस्याओं के परिणामस्वरूप आई। ये बैंक विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं और वाणिज्यिक बैंकों दोनों के रूप में कार्य निष्पादन कर रहीं है। इन बैंकों द्वारा चलाए जा रहे कार्यकलाप इस प्रकार हैंः निवेश बैंकिंग, बीमा, बंधक वित्तपोषण, प्रतिभूतिकरण, इत्यादि। इसके अलावा ये सामान्य वाणिज्यिक बैंक कृत्यों का भी निर्वहन करते हैं।

भारत में यूनिवर्सल बैंकिंग की अवधारणा नरसिम्हन समिति प्रतिवेदन (1998) के सुझाव के साथ शुरू हुई कि विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए स्वयं को बैंक अथवा गैर-बैंक वित्तीय कंपनियों में, परिणत करना पड़ेगा। इसकी पुनः खान कृतिक दल (1998) द्वारा पुष्टि की गई। अंततः भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल 2001 में एक परिपत्र जारी किया है, जिसके द्वारा विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं के यूनिवर्सल बैंकों में परिवर्तन की प्रचालनात्मक और विनियामक पहलू का निर्धारण किया। इसने भारत में यूनिवर्सल बैंकिंग का मार्ग प्रशस्त किया। आई सी आई सी आई जो विकासात्मक वित्तीय संस्था है ने आई सी आई सी आई बैंक में विलय के द्वारा यूनिवर्सल बैंक बनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मुम्बई उच्च न्यायालय ने आई सी आई सी आई लिमिटेड की आई सी आई सी आई बैंक लिमिटेड के साथ विलय को स्वीकृति दे दी है। आई डी बी आई जैसी कुछ और विकासात्मक वित्तीय संस्थाएँ भी देर-सवेर आई सी आई सी आई के अनुरूप अपने को परिणत करने वाली हैं। आई सी आई सी आई के आई सी आई सी आई बैंक के साथ स्वयं के विलय द्वारा यूनिवर्सल बैंक में परिणत होने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं:
क) कम लागत वाली खुदरा जमा आधार तक पहुँचने की आवश्यकता।
ख) अपने अशोध्य ऋणों को बट्टा खाता में डालने के लिए पूँजी जुटाना।
ग) कारपोरेशनों और बृहत् परियोजनाओं से दीर्घकालिक ऋण माँग में आनेवाली कमी की क्षतिपूर्ति करना।
घ) कम लाभप्रदता वाली परिसम्पत्तियों के स्तर को कम करना।
ङ) फीस आधारित सेवाओं के लिए संभावनाओं का दोहन करके लाभ को बढ़ाना।
27.4 अन्य वित्तीय संस्थाएँ
एल आई सी, यू टी आई, जी आई सी इत्यादि जैसी कुछ वित्तीय संस्थाएँ भी है जो विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं के साथ बड़े पैमाने पर औद्योगिक वित्त उपलब्ध कराती है। यद्यपि कि उनका मुख्य उद्देश्य औद्योगिक वित्तपोषण नहीं है, वे जनता से उगाही गई निधियों का निवेश सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों की परियोजनाओं में करते हैं। इस इकाई के इस भाग में, हम इस तरह की तीन संस्थाओं एल आई सी, यू टी आई और जी आई सी का अध्ययन करेंगे।