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जीवाणु कोशिका संरचना क्या है समझाइये , bacteria cell structure in hindi
bacteria cell structure in hindi जीवाणु कोशिका संरचना क्या है समझाइये ?
जीवाणु कोशिकीय संरचना (Bacterium cell structure)
विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं की कोशिकाओं में संरचनात्मक भिन्नताएँ पायी जाती हैं, किन्तु लगभग सभी में कोशिका भित्ति, कोशिका कला, कोशिकाद्रव्य एवं केन्द्रकीय पदार्थ आवश्यक रूप से पाया जाता है। कुछ जीवाणु कोशिकाएँ कोशिकीय प्रवर्ध कशाभ (flagella) पाइली या फिम्ब्रिए (pili or fimbriae) युक्त भी पायी जाती है। चित्र 2.2 में ऐसे जीवाणु का चित्र प्रदर्शित किया गया है जिसमें संयुक्त संरचनाएँ दर्शायी गयी हैं; अर्थात् अनेक संरचनाएँ कुछ ही जीवाणुओं में पायी जाती है।
- संश्लेष्मिक स्तर अथवा सम्पुट ( Slime layer or capsule –
अनेक जीवाणुओं की कोशिका अपनी बाह्य सतह पर एक श्लेष्मिक पदार्थ के बने स्तर द्वारा घिरी रहती है यह स्तर श्लेष्मिक स्तर (slime layer) कहलाता है। यह एक प्रकार का ग्लाइकोकेलिक्स (Glycocalyx) ही होता है। कुछ जीवाणुओं में यह स्तर जैली समान गाढ़े पदार्थ से निर्मित होता है जिसे सम्पुट (capsule) कहते हैं। श्लेष्मिक स्तर एवं सम्पुट एक ही प्रकार की रचनाएँ हैं जिनके भौतिक संगठन में कुछ अन्तर होता है। ये रचनाएँ कोशिका झिल्ली द्वारा स्त्रावित की जाती है एवं अक्रिस्टलीय कार्बनिक पदार्थों से बनी होती है। श्लेष्मिक स्तर कोशिका भित्ति से ढीले रूप से जुड़ी संरचना को एवं सम्पुट पर्त के दृढ़ रूप से जुड़े रहने की स्थिति में कहते हैं।
श्लेष्मिक स्तर तथा सम्पुट उपयुक्त सूक्ष्मदर्शी की सहायता से विशेष प्रकार के अभिरंजन देने के पश्चात् देखे जा सकते हैं। न्यूमोकोकॅस (Pneumococus) तथा फ्रायडलैन्डरस बेसिलिस (Friedlander’s bacillis) इस प्रकार के जीवाणु हैं जिनमें सम्पुट आसानी से दिखाई देता है। ये जीवाणु सम्पुटयुक्त (capsulated) जीवाणु कहलाते हैं। जीवाणुओं में यह आवश्यक नहीं हैं कि यह सम्पुट उन पर सदैव ही बना रहता हो, यह क्रिया जीवाणुओं के वृद्धि समय में वातावरणीय क्रियाओं के फलस्वरूप सम्पन्न होती है। सम्पुट बनने की क्रिया जीवाणुओं द्वारा जन्तु के उत्तकों में होती है। जहाँ वे रहते हैं या सम्पुट उन जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते हैं जो पोषक से पृथक् कर संवर्धन माध्यम (culture media) जैसे रक्त, सीरम, जन्तु प्रोटीन एवं रसायनिक द्रव में रखे गये होते हैं। सम्पुट बनाने ,की क्रिया बार-बार संवर्धन कराने के उपारान्त धीमी होती है जाती है और अन्त में समाप्त हो जाती है
सम्पुट जीवाणुओं की कोशिका – झिल्ली द्वारा स्त्रावित रचना होती है, सामान्यतः यह पॉलीसेकेराइड एवं डायसेकेराइड प्रकार की शर्करा द्वारा निर्मित होती है, किन्तु कभी-कभी सम्पुट पॉलीपेप्टाइड्स द्वारा भी बने होते हैं। एसिटोबैक्टर ज़ाइलिनम (Acetobacter xylinum) में पॉलीसेकेराइड (सेल्यूलोज) होमोपॉलीसेकेराइड प्रकार का होता है। यह B1-4 बन्धक युक्त ग्लूकोज इकाईयों से बना होता है। अधिकतर जीवाणुवीय पॉलीसैकेराइड एक से अधिक प्रकार की शर्करा द्वारा निर्मित होते हैं, इन्हें हेटरोपॉलीसैकेराइड्स कहते हैं। स्यूडोमोनाज एरुजिनोसा (Pseudomonas aeruginosa) जीवाणु का सम्पुट हेटरोपॉलीसैकेराइड D-ग्लुकोज, D-मेन्नोज, D-ग्लूकॉर्निक अम्ल और L – रेम्रोज द्वारा बना होता है। न्यूमोकोकॉई (Pneumococci) में सम्पुट हेक्सोज, यूरोनिक अम्ल तथ अमीनो शर्करा से निर्मित होता है। स्ट्रेप्टोकोकाई (Streptococci) में प्रोटीन युक्त सम्पुट L-अमीनो अम्लों से तथा बेसिलस एन्थ्रेसिस (Bacillus anthracis) में उपस्थित पॉलीपेप्टाइड D-ग्लूटामिक अम्ल की शृंखला से बना होता है। जीवाणुओं में सम्पुट जाति की विशिष्टिता के अनुरूप पाये जाते हैं। अतः ये एक समान जातियों में अन्तर स्पष्ट कर पहचानने के काम आते हैं। इनका उपयोग प्रयोगशाला में जैली के रूप में छनन क्रिया में भी किया जाता है। (चित्र 8.3)
सम्पुट शिथिल एकत्रित स्त्रावित पदार्थ से बना हो सकता है जो जीवाणु की देह का भाग नहीं होता अथवा यह समान मोटाई के आवरण के रूप में पाया जा सकता है। सम्पुट जीवाणु के जीवित बने रहने हेतु आवश्यक नहीं होता है। यह जीवाणु को प्रतिकूल परिस्थितियों में सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। सम्पुट युक्त जीवाणु में रोग उत्पन्न करने की क्षमता पायी जाती है जबकि सम्पुट रहित प्रयोगशाला में तैयार संवर्धित जीवाणु मनुष्य की देह में प्रवेश करने के उपरान्त श्वेत रक्त कणिकाओं द्वारा भक्षण क्रिया (phagocytosis) द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं। यह प्रयोग न्यूमोकॉक (निमोनिया फैलाने वाला जीवाणु) पर किया गया है। अतः ये रोग उत्पन्न करने में असक्षम हो हैं। इस प्रकार के प्रयोगों द्वारा यह प्रमाण जुटाये गये हैं कि सम्पुट के होने पर किसी जाति विशेष के जीवाणु में उग्रता (virulence) के लक्षण प्रकट हो जाते हैं।
सम्पुट युक्त जीवाणु चिकनी सतह युक्त निवह बनाते हैं जबकि सम्पुट रहित जीवाणु खुरदरी सतह युक्त निवह बनाते हैं। किन्तु कुछ ग्रैम अग्राही जीवाणु जिनमे सम्पुट अनुपस्थित होता है चिकनी सतह वाली निवह बनाते हैं ऐसा उनकी बाह्य कला की उपस्थिति के कारण होता है।
सम्पुट दो प्रकार के हो सकते हैं (i) सूक्ष्मं सम्पुट (micro capsule) (ii) दीर्घ सम्पुट (macro capsule)। दीर्घ सम्पुट लगभग 0.2 um मोटे होते हैं जो प्रकाश सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं जबकि लघु या सूक्ष्म सम्पुट प्रकाश – सूक्ष्मदर्शी से नहीं देखे जा सकते हैं, इन्हें केवल प्रतिरक्षी क्रियाओं द्वारा ही परखा जाता है।
सम्पुट कुछ वायुवीय जीवाणुओं में मिलकर बेड़ा या चाटी (raft) बना होता है जिसमें कुछ वृद्धि योग्य अर्थात् सक्रिया कोशिकाएँ पायी जाती हैं। इस क्रिया के द्वारा जीवाणु सतह पर तैरने लगते हैं एवं अधिक ऑक्सीजन वाले क्षेत्र मे रहकर अधिक सक्षम तरीके से श्वसन करते हैं। एसिटोबैक्टर ज़ाइलिनम (Acetobacter xylinum) जो मदिरा सिरका तैयार करने में काम आता है और ईथाइल एल्कोहॉल को एसीटिक अम्ल में परिवर्तित करता है द्वारा शिथिल सम्पुट स्त्रावित किया जाता है यह सेल्यूलोज द्वारा निर्मित रहता है तथा किण्वन करने वाले पात्रों में जीवाणु को सतह पर लाकर तैरने में मदद करता है। सम्पुट संग्रहित भोज्य पदार्थों के संरक्षण में भी मदद करता है।
सम्पुट श्लेष्मी होने पर क्षारीय अभिरंजकों के प्रति आकर्षण रखता है, किन्तु ग्रैम के अभिरंजकों द्वारा अभिरंजन करने की क्रिया पर अभिरंजन ग्रहण नहीं करता है । सम्पुट के अभिरंजन हेतु विशिष्ट अभिरंजन प्रणाली विकसित ही गयी है। जिसमें ताँम्बे के लवण उपयोग में लाये जाते हैं।
सम्पुट पदार्थ प्रतिजनी (antigenic) प्रकार के होते हैं जो सीरमीय परीक्षणों (serological test) द्वारा प्रदर्शित किये जा सकते हैं।
सम्पुट जीवाणुओं को लयनकारी एन्जाइम्स से भी बचाता है जो प्रकृति में पाये जाते हैं।
कार्य (Functions)
- यह जीवाणु कोशिका को सूखने से रोकता है।
- सम्भवतः यह जीवाणु को पोषक के दैहिक तरल से बचाता है। रोगजनक जीवाणुओं का सम्पुट मोटा होने पर यह अधिक हानिकारक होते हैं।
- इस स्तर में आयनों के भीतर व बाहर की ओर स्थानान्तरण की क्षमता पायी जाती है।
- इस स्तर में खाद्य पदार्थों का संग्रह भी किया जाता है।
- जीवाणुओं से सम्पुट जाति विशिष्ट होते हैं। यह इनकी निकट सम्बन्धी जातियों में अन्तर दर्शाते हैं। यह अन्तर प्रतिरक्षात्मक तकनीकों द्वारा ज्ञात किये जाते हैं।
सम्पुट का जैव-संश्लेषण (Biosynthesis of capsule)—
न्यूमोकोकॉई (Pneumococci) तथा अन्य कुछ बैक्टीरिया में सम्पुट के पॉलीसेकेराइड्स के जैव-संश्लेषण के कुछ प्रमाण मिले हैं। यह संश्लेषण शर्करा न्यूक्लिओटाइड्स के पूर्ववर्ती (precursor) पदार्थों का परोक्ष रूप में शर्करा पदार्थों से होता है। UDP-ग्लूकोज, UDP- गेल्क्टोज, GDP-फ्रक्टोज, GDP-मैन्नोज आदि अधिकतर शर्करा न्यूक्लिओटाइड्स के पूर्ववर्ती पदार्थों से ही संश्लेषित होते हैं। न्यूमोकोकॉई (Pneumococci) में सम्पुट पॉलीसेकेराइड्स संश्लेषण निम्न रूप से संक्षिप्त में दर्शाया जा सकता है।
Glucose → PO4 + UTP-UDPG + PPi→ UDPGA
[-3-B-Glucurionic acid (1-4) – B Glucose-1]
UTP = यूरीडिन ट्राइ फॉस्फेट (Uridine triphospate
UDPG=यूरीडिन डाई फॉस्फोग्लूकोज (Uridine Di Phosphoglucose)
UDPG = यूरीडिन डाईफॉस्फो ग्लूकूरोनिक अम्ल
(Uridine Di Phosphoglucuronic acid)
PPi = अकार्बनिक पायरोफॉस्फेट (Inorganic pyrophosphate)
- कोशिका प्रक्षेप (Cell projections)
जीवाणु कोशिकाओं की सतह से दो प्रकार के प्रक्षेप निकले दिखाई देते हैं: (a) फिम्ब्रिए या पिलि (Fimbriae or Pili ) –
अनेक ग्रैम अग्राही जीवाणुओं की देह सतह पर रोम (hair) के समान उपांग उपस्थित होते हैं जिन्हें फिम्बिए या पिलि [fimbriae or pili (sing-pilus ) ] कहते हैं। ग्रैम ग्राही जीवाणुओं जैसे- कॉरनेबैक्टीरियम रीनेल (Conynebacterium renale) में भी ये संरचनाएँ पायी जाती हैं। इनकी संख्या कशाभ की अपेक्षा अधिक होती है। ब्रिन्टन ( Brinton, 1959) ने पिलि तथा डन्गुइड एवं इनके साथियों (Dunguid et al, 1955) ने फिम्बिए नाम इन रचनाओं हेतु प्रयोग किये। ये लगभग 02-20 Jum 1 लम्बी तथा 30-140A एंग्स्ट्रॉम चौड़ी होती है। कुल पाइलस का व्यास 250Å तक होता है। एग्रोबैक्टीरियम (Agrobacterium) में परिरोमीय फ्रिम्ब्रिए (peritrichous fimbriae ) 1-3u लम्बी और 400-600 एंग्स्ट्रॉम चौड़ी पायी जाती हैं। कशाभ (flagellia) की अपेक्षा ये संरचनाएँ अि क एवं सीधी होती हैं, किन्तु ये कम दृढ़ तथा छोटी होती हैं।
रचना (Structure)- ये संरचनाएँ कशाभ की ही भाँति फिम्ब्रिए आधार काय (basal bodies) से उत्पन्न होती हैं जो कोशिका भित्ति से बाहर जीवाणु की देह सतह पर निकली रहती हैं। ये कोशिका भित्ति की पेप्टीडोग्लाइकन स्तर को भेद कर कोशिका झिल्ली से संलग्न रहती है। इनका गति के करने या न करने से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। ये चल तथा अचल प्रकृति के जीवाणु कोशिकाओं की देह सतह पर पायी जाती हैं। नये संवर्धित माध्यम जो अधिकतर द्रव अवस्था में होते हैं के संवर्धन में तैयार किये जीवाणुओं के फिम्ब्रिए अधिक स्पष्ट रूप से विकसित होती हैं । फिम्ब्रिए ठोस संवर्धन माध्यम में रखे गये जीवाणु में सदृश्य भी हो जाती है। इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है।
जीवाणुओं में फिम्ब्रि पूर्णतया प्रोटीन द्वारा निर्मित होती हैं। ये प्रोटीन फिम्ब्रिलीन अथवा पिलिन (filmbriuin or pilin) कहलाते हैं। फिम्ब्रिलीन का अणुभार 16000 होता है जबकि कशाभ में पाये जाने वाले प्रोटीन फ्लैजिलिन (flagellin) का अणुभार 40000 होता है। इसमें 163 प्रकार के अमीनों अम्ल पाये जाते हैं। ई. कोली ( E. coli) जीवाणुओं में फिम्ब्रिए शालाखा के समान दृढ़ तथा कुण्डलाकार (helical) होती है। ई कोली (E. coli) में उपस्थित लैंगिक पिलि (sex pili) दोनों प्रकार के ही जिन्हें F तथा I पिलि कहते हैं कुण्डलाकार नलिकाओं की आकृति की होती हैं जो भीतर से खोखली रहती हैं। जीवाणुओं की देह सतह पर फिम्ब्रिए उपस्थित होने पर इन्हें फिम्ब्रिए युक्त जीवाणु (fimbriate bacteria) का नाम दिया जाता है । फिम्बिए के उपस्थित होने की स्थिति में जीवाणु कोशिकाएँ एक से अधिक प्रकार के वर्गीकृत की जाती हैं ।
(i) समजीनी व समलक्षणी फिम्ब्रिए युक्त कोशिकाएँ
(ii) समजीनी रूप से फिम्ब्रिएट प्रकार की किन्तु समलक्षणी प्रकार से अफिम्ब्रिएट प्रकार की जीवाणु कोशिकाएँ.
(ii) उत्परिवर्ती विभेद (mutant strain) प्रकार की कोशिकाएँ जो किसी भी अवस्था में अफिम्ब्रिएट ही बनी रहती हैं।
फिम्ब्रिएट कोशिका के अफिम्ब्रिएट कोशिका से संयुग्मन करने पर अफिम्ब्रिएट कोशिका भी फिम्ब्रिएट प्रकार की कोशिका में बदल जाती है।
फिम्ब्रिए आंसजन अंगकों (adhesive organelles) के रूप में, लैंगिक पिलि ( sex pili) के में गति बढ़ाने वाले अंगक के रूप में, संयुग्मन में मदद करने वाले अंगक के रूप में एवं प्रतिजनी संरचनाओं के रूप में जीवाणुओं में सक्रिय रहती है।
फिम्ब्रिएट नाइसेरिया गोनोरी ( Neisseria gonorrhoeae) में फिम्ब्रिए आसंजन अंगक के रूप में शीघ्र ही मूत्र नाल में श्लेष्मिक कला से आसंजन कर रोग उत्पन्न करते हैं, किन्तु अफिम्ब्रिएट को रोग स्थापन में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। लैंगिक पिलि ( sex pili) को जननाक्षाम पिलि (fertility pili) भी कहते हैं। ये कुछ नर जीवाणुओं में अधिक लम्बी होती है और संयुग्मन करने वाली कोशिकाओं में सेतु का कार्य करती हैं। संभवत: लैंगिक कारक ही संश्लेषण तथा प्रतिरोधी गुणों का निर्धारण करते हैं।
लैंगिक पिलि अपेक्षाकृत अधिक लम्बी (20pm) व अधिक व्यास ( 65-135A) की होती है। इनकी संख्या भी कम (1-10) ही होती हैं। इन पिलि के दूरस्थ सिरे पर अन्त्य घुण्डियाँ (terminal knobs) होती हैं जो 150-800A व्यास की होती हैं। लैंगिक पिलि भी एक से अधिक प्रकार की होती हैं।
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