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ऐस्टेरिआस : सागर तारा (asterias : a sea star in hindi) , ऐस्टेरियस क्या है ,सागर तारा किसे कहते , चित्र

(asterias : a sea star in hindi) ऐस्टेरिआस : सागर तारा ऐस्टेरियस क्या है ,सागर तारा किसे कहते , चित्र सहित वर्णन ?

ऐस्टेरिआस : सागर तारा (asterias : a sea star) :

वर्गीकरण
संघ – इकाइनोडर्माटा
वर्ग – ऐस्टेराइडिया
उपवर्ग – यूऐस्टेराइडिया
गण – फोर्सीपुलेटा
वंश – ऐस्टेरिआस
जाति – रुबेन्स
स्वभाव और आवास : ऐस्टेरिआस स्वतंत्रजीवी समुद्रवासी जन्तु होते है तो रेतीली या मिट्टीदार तली में या चट्टानों अथवा कवचों के ऊपर भ्रमण करते पाए जाते है | इनका शरीर पंचभागी और अरीय सममित होता है | इसके शरीर में एक अस्पष्ट केन्द्रीय बिम्ब होती है जिसमे से पांच लम्बी और शुण्डाकार भुजाये निकलती है | इसका शरीर चपटा होता है जिसमे मुख सतह तथा अपमुख सतह स्पष्ट रूप से पहचानी जा सकती है | शरीर की चपटी निचली सतह जो आधार तल की ओर रहती है , मुख सतह या अधर सतह कहलाती है | इस सतह पर केन्द्रीय बिम्ब के मध्य में एक छिद्र होता है जिसे अरमुख अथवा मुख कहते है | यह पंचभुजीय छिद्र होता है जिसके पाँचो कोण पांचो भुजाओं की ओर होते है | मुख के प्रत्येक कोण में एक अरीय संकरी वीथि खाँच आरम्भ होती है जो अपने सामने की भुजा की निचली सतह की मध्यरेखा में भुजा के सिरे तक फैली रहती है | इसके केन्द्रीय बिम्ब में स्थित एक पूर्ण पाचन पथ होता है |
यह जन्तु माँसाहारी होता है | यह स्थानबद्ध समुद्रवासी जन्तुओ का शिकार करना पसंद करता है | कभी कभी एक छोटी छोटी मछलियों एवं क्षतिग्रस्त और मृत जन्तुओं का भक्षण भी करता है | इन जन्तुओ में एक अद्वितीय जल संवहनी अथवा वीथितंत्र पाया जाता है जो इन जन्तुओं की कार्यिकी में महत्वपूर्ण भाग अदा करता है | यह तन्त्र सामान्यतया प्रचलन में सहायता प्रदान करता है | इन जन्तुओ में श्वसन क्रिया मुख्यतः अपमुख सतह पर स्थित असंख्य चर्मीय क्लोमों अथवा पैप्यूली द्वारा होती है |
इन जन्तुओ में विशिष्ट उत्सर्जी अंगो का अभाव होता है |
अमोनिया , यूरिया और क्रीएटिन मुख्य उत्सर्जी पदार्थ होते है | तंत्रिका तंत्र सरल और आदिकालीन प्रकार का होता है | यद्यपि यह जन्तु एकलिंगी होता है लेकिन इनमे लैंगिक द्विरूपता नहीं होती है | निषेचन प्राय: जल में होता है |
इसके जीवन चक्र में प्राय: तीन लार्वा प्रावस्थायें – डाइप्लूरूला , बाइपिन्नेरिआ और ब्रैकियोलेरिया पाई जाती है |
इन जन्तुओं का एक विशिष्ट लक्षण इनकी पुनरुद्भवन और स्वांगोच्छेदन होता है |
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