ऐरीकेसी (पामी) कुल (arecaceae or palmae family of plant in hindi) पौधों का नाम लिस्ट पादप

(arecaceae or palmae family of plant in hindi name) ऐरीकेसी (पामी) कुल क्या है एरेकेसी पौधों का नाम लिस्ट पादप ?

ऐरीकेसी (पामी) कुल (arecaceae or palmae family of plant) :

(ताड़ कुल : Palm family : name from word areek = old specimen)
वर्गीकृत स्थिति – बेन्थैम और हुकर के अनुसार –
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उप प्रभाग – मोनोकोटीलिडनी
श्रेणी – कैलीसिनी
कुल – ऐरीकेसी / पामी

कुल ऐरीकेसी के विशिष्ट लक्षण (salient features of arecaceae)

  1. पादप काष्ठीय स्वभाव सहित , अपाती पर्णोंधारों के कवच से आच्छादित।
  2. स्तम्भ सामान्यत: वृहद पर्णों के अन्तस्थ किरीट सहित और अशाखित।
  3. पर्ण एकान्तरित , सुस्पष्ट वृहद पक्षवत अथवा हस्तवत विभाजित।
  4. पुष्पक्रम सरल अथवा संयुक्त स्पेडिक्स अथवा शाखित पुष्प गुच्छ।
  5. पुष्प एकलिंगी , त्रितयी , जायांगधर।
  6. परिदल सामान्यतया बाध्यदलाभ , तीन तीन के दो चक्रों में।
  7. पुंकेसर 6 , 3+3 के दो चक्रों में , द्विकोष्ठी , अंतर्मुखी।
  8. जायांग त्रिअंडपी , युक्तांडपी अथवा पृथक अंडपी , त्रिकोष्ठीय , स्तम्भीय बीजाण्डासन।
  9. फल सरस बेरी अथवा डूप या नट।

प्राप्ति स्थान और वितरण (occurrence and distribution )

इस कुल में लगभग 216 वंश और 4000 से अधिक जातियाँ सम्मिलित है। इस कुल के सदस्य विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण क्षेत्रों में वितरित है। भारत में इस कुल के सदस्य मुख्यतः पश्चिमी हिमालय , दक्षिण भारत और आसाम में सामान्य रूप से पाए जाते है। इस कुल के लगभग 28 वंश और 95 जातियाँ भारत में पायी जाती है जिनमें प्रमुख है – फिनिक्स डैक्टिलीफेरा , कोकोस न्यूसीफेरा , ऐरेका केटेचू , बोरासस फ्लैबेलीफर और कैलेमस रोटन्डस आदि।

कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)

प्रकृति और आवास : कुल के अधिकांश पादप वृक्ष या काष्ठीय क्षुप है। कैलेमस की जातियाँ सामान्यतया लता होती है। इस कुल के पादपों के स्तम्भ का व्यास कुछ सेंटीमीटर से 1 मीटर तक होता है। फिनिक्स के लघु स्तम्भ का व्यास 6 से 10 सेंटीमीटर तक होता है। फाइटेलिफस अस्तम्भी होता है।
मूल : प्राथमिक जड़ें अल्पकालिक होती है जो शीघ्र ही स्तम्भ के आधारी भाग से विकसित अपस्थानिक जड़ों द्वारा विस्थापित हो जाती है।
स्तम्भ : कोकोस , फिनिक्स और बोरासस आदि में लम्बा और काष्ठीय स्तम्भ होता है जो आपाती पर्णाधारों द्वारा ढका रहता है। इनमें स्तम्भ सामान्यत: अशाखित होता है यद्यपि कुछ स्थितियों में अन्तस्थ कलिका के क्षतिग्रस्त होने से शाखित हो जाता है। कैलेमस का स्तम्भ लम्बा और सुस्पष्ट पर्वो युक्त होता है और निपा में स्तम्भ छोटा और जमीन के अन्दर शाखित होता है। रेहफिस फ्लेबेलीफोर्मिस में पाशर्व चूषक बनते है जो भूमि से बाहर निकलकर सीधे खड़े हो जाते है तथा पादप को झाडी आकार प्रदान करते है।
पर्ण : पत्तियाँ संख्या में कम और वृहद होती है। ये एकान्तरित लेकिन अधिकांशत: शीर्षस्थ किरीट में गुच्छित होती है। पत्तियाँ दो प्रकार की होती है – हस्तवत अथवा पक्षवत विभाजित जिन्हें क्रमशः पंखा पाम और पक्ष पाम कहा जाता है।
पर्णवृन्त का पर्णाधार मजबूत , चौड़ा और आच्छाद प्रकार का होता है। पर्णवृत के उपांत सामान्यत: शूलमय होते है। कैलेमस में आच्छादित पर्णाधार परिवेष्ठक आक्रिया बनाता है। कोर्थाल्सिया स्कैफीजेरा में परिवेष्ठक अथवा ओक्रिया खोखला चिकना भित्ति वाला प्रकोष्ठ बनाता है जिसमें चीटियाँ घर बनाती है।

पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characters)

पुष्पक्रम : कुल के कुछ सदस्य सकृत्फली (मोनोकार्पिक) होते है अर्थात वृक्षों की वृद्धि और काष्ठीय स्तम्भ के निर्माण के पश्चात एक वृहदकाय पुष्पक्रम धारण करते है। यह पादप को इतना अधिक रेचित करता है कि फलन के पश्चात् पादप मृत हो जाता है। (उदाहरण : कोराइफा)
पुष्पक्रम सरल अथवा संयुक्त स्पेडिक्स अथवा शाखित पुष्प गुच्छ होता है। यह एक स्पेथ जैसे कोकोस अथवा अनेकों स्पेथ जैसे – बोरासस से आच्छादित रहता है। अनेकों पुष्प सामान्यतया पुष्पावली वृंत में धंसे हुए सर्पिल अथवा द्विपंक्तिक प्रकार से व्यवस्थित रहते है।
पुष्प : पुष्प सामान्यतया एकलिंगी , जिसमें नर और मादा पुष्प समूह विभिन्न भागों में स्थित होते है। सामान्यतया मादा पुष्प शाखाओं के आधार पर जबकि नर पुष्प उपरि भाग में स्थित होते है। रोफिया में स्पाइक की शाखाओं के निचले आधे भाग में मादा पुष्प और ऊपरी आधे भाग में नर पुष्प होते है। जियोनोमा में पुष्प मिश्रित होते है। कदाचित पुष्प उभयलिंगी और सामान्य एकबीजपत्री सूत्र पर आधारित होते है।
पुष्प सामान्यत: छोटे , सहपत्रिकायुक्त , त्रिज्या सममित , त्रिभागी और जायांगधर।
परिदल पुंज : परिदल-6 , जो तीन तीन के दो चक्रों में विन्यासित होते है। परिदल स्वतंत्र (जैसे – एकोरस) या संयुक्त (जैसे – स्पेथीफिलम ) होते है। बाह्य चक्र का विषम परिदल अग्र होता है। परिदल लघु , कठोर , चर्मिल , हरित अथवा सफ़ेद और अपाती होते है। बाह्य चक्र के परिदल सामान्यतया कोरछादी अथवा कभी कभी कोरस्पर्शी होते है। भीतरी चक्र के परिदल मादा पुष्प में कोरछादी और नर पुष्प में कोरस्पर्शी विन्यास दर्शाते है।
पुमंग : यह सामान्यतया छ: पुंकेसर से निर्मित होता है। पुंकेसर तीन तीन के दो परिदल सम्मुख चक्रों में विभाजित रहते है। कभी कभी जैसे – निपा में तीन पुंकेसरों का एक ही चक्र होता है। इसके अतिरिक्त कैरियोटा में अनेक पुंकेसर उपस्थित होते है। पुतन्तु सामान्यत: छोटे और स्वतंत्र होते है। परागकोष द्विकोष्ठी , अन्तर्मुखी और लम्बवत रेखा छिद्रों द्वारा स्फुटित होते है।
जायांग : द्विअंडपी और संयुक्ताण्डपी होता है लेकिन कभी कभी अंडप आंशिक रूप से जैसे – निपा या पूर्णरूप से जैसे – फीनिक्स स्वतंत्र होते है। अंडाशय प्राय: त्रिकोष्ठी और सदैव उधर्ववर्ती होता है और प्रत्येक कोष्ठक में एक बीजाण्ड होता है। बीजाण्डान्यास सामान्यतया अक्षीय कभी कभी भित्तिय (उदाहरण – ओंकोस्पर्मा ) या आधारीय (उदाहरण – एरेका)
कोकोस और फीनिक्स जैसे कुछ वंशों में अंडाशय के परिपक्व होने पर तीन में से दो अंडप निष्फल रुद्धवृद्ध हो जाते है।
नर पुष्पों में जायांग के स्थान पर बन्ध्य स्त्रीकेसर और मादा पुष्पों में पुंकेसरों के स्थान पर बन्ध्य पुंकेसर पाए जाते है।
पुष्प सूत्र :
नर पुष्प :
मादा पुष्प :
फल और बीज : फल मांसल और रेशेदार आवरण सहित बेरी (जैसे – फिनिक्स) या डुप अर्थात अन्ठित फल (जैसे – कोकोस) पाया जाता है। फलों के आकार में अत्यधिक विविधता पायी जाती है। यूटरपी में मटर के दाने के आकार के बेरी फल जबकि डबल कोकोनट में विशाल डुप जो पादप जगत के सबसे बड़े फल है।
बीजों के आकार और स्वरूप में भी विविधता पाई जाती है। बीज भ्रूणपोषी होते है। भ्रूण पोष बड़ा कोमल (उदाहरण – कोकोस) , कभी कभी कठोर (उदाहरण – फोनिक्स) या चर्बिताभ प्रकार का ( उदाहरण Arcea ) होता है।

आर्थिक महत्व (economic importance)

आर्थिक रूप से कुल अत्यधिक महत्व का है और उपयोगिता में ग्रेमिनी के पश्चात् इसका दूसरा स्थान है।
I. खाद्योपयोगी पादप :
  1. कोकोस न्यूसीफेरा – नारियल के परिपक्व और अपरिपक्व फल।
  2. फीनिक्स डैक्टिलीफेरा – खजूर फल।
  3. फिनिक्स सिल्वेस्ट्रिस – खजूर प्रकार फल खाद्य होते है।
  4. एरेका कैटेचू – सुपारी नट (अपरिपक्व भ्रूणपोष)
  5. मेट्रोजाइलान रम्फीआई – तने से साबूदाना।
  6. मेट्रोजाइलान लेवी – तने से साबुदाना।
II. शोभाकारी पादप :
पाम्स की 100 से अधिक जातियाँ शोभाकारी महत्व की है। कुछ प्रमुख पॉम निम्नलिखित है –
  1. चेमीरोप्स हयूमिलस – यूरोपियन पंखा पॉम।
  2. लिविस्टोनिया साइनेन्सिस – फुव्वारा पॉम।
  3. सबल माइनर – बुश पॉम।
  4. कैरियोटा यूरेन्स – वाइन पॉम।
  5. रोयस्टोनिया रीजिया – क्यूबन रायल पॉम।
  6. रॉयस्टोनिया ओबरेशिया – कैबिज पॉम।
  7. रोयस्टोनिया ईलाटा – फ्लोरीडियन पॉम।
  8. एडोनीडीया मेरिलाई – मनीला पॉम।
III. तेल पादप :
यह अनेक वंशों के भ्रूणपोष से प्राप्त होता है , प्रमुख है –
  1. कोकोस न्यूसीफेरा – नारियल का तेल।
  2. इलेइस ग्यूनीनसीस – पाम तेल।
IV. ताड़ी अथवा अर्क :
पुष्पक्रम अथवा पुष्पावली वृंत के बेधन से शर्करा युक्त विलयन प्राप्त होता है जिसके किण्वन से ताड़ी नामक नशीला पेय प्राप्त होता है। प्रमुख जातियाँ है –
  1. बोरासस फ्लैबेलीफर।
  2. फिनिक्स सिल्वेस्ट्रिस
  3. कैरियोटा युरेन्स
  4. कोरीफा सेरीफेरा
  5. मेट्रोजाइलॉन विनीफेरा
  6. ऐरेंगा सैकेरीफेरा
V. जूट , रेशे और काष्ठ :
  1. कोकोस न्यूसीफेरा – फलभित्ति रेशे और काष्ठ
  2. बोरासस फ्लेबेलीफेरा – फलभित्ति रेशे
  3. रेफिया रूफिया – बाह्यत्वचा रेशे
  4. फिनिक्स सिल्वेस्ट्रिस – काष्ठ और पर्ण रेशे
  5. कैरियोटा यूरेन्स – खोखला स्तम्भ जलमार्ग हेतु।
  6. ट्रेकीकार्पस ऐक्सेल्सा – पर्ण आच्छद रेशे।
VI. बैंत :
फर्नीचर , छडिया , पोलो स्टिक आदि निर्माण में प्रयुक्त होते है –
  1. कैलेमस रोटन्डस
  2. कैलेमस टेंयुइस
  3. कैलेमस लेटीफोलियस
  4. कोर्थेलसिया होरिडा
VII. रेजीन :
डीमोनोरोप्स रूबर के फलों से रेजिन प्राप्त होता है जो डेन्टीफ्राइसेस और वर्निश में प्रयुक्त होता है।
VIII. औषधीय पादप :
1. एरेका कैटेचू – सुपारी में टेनिक पदार्थ , रंजक और एरिकोलिन नामक एल्केलायड होता है। इसके अपरिपक्व नट वातहर और सारक होते है।
2. बोरासस फ्लेबेलीफर – पुष्पक्रम का रस शीतल , मीठा , पौष्टिक और मूत्र वर्धक होता है। इसकी पुल्टिस अल्सर के उपचार में लाभदायक होती है।
3. कोकोस न्यूसीफेरा – फल और दुग्ध , मूत्र वर्धक , प्रति अम्ल और प्रशीतक और उदार रोग में लाभप्रद होता है। इसका तेल अनेक औषधियों में प्रयुक्त होता है।
4. फिनिक्स डेक्टाइलीफेरा –  इसके फल शामक , कफोत्सारक और सारक होते है। चूर्णित बीजों से बनाया पेस्ट पुतली की अपारदर्शिता कम करने के लिए लगाया जाता है।

एरेकेसी कुल के प्रारूपिक पादप का वानस्पतिक विवरण (botanical description of representative plant of arecaceae)

फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (phoenix sylvestris in hindi ) :
स्थानीय नाम – देशी खजूर।
प्रकृति और आवास – बहुवर्षी , लम्बा , अशाखित वृक्ष। स्तम्भ पर अपाती पर्णाधार का कवच और शीर्ष पर पर्ण मुकुट उपस्थित।
जड़ : अपस्थानिक मूल उपस्थित।
स्तम्भ : लम्बा , काष्ठीय , अशाखित स्तम्भ जो आपाती पर्णाधारों द्वारा ढका रहता है।
पर्ण : पर्ण स्तम्भिक , शीर्ष पर मुकुट बनाती है। सवृंत , पिच्छाकार संयुक्त , लम्बी , पर्णाधार चौड़ा और आच्छद प्रकार का होता है।
पर्णक भालाकार और निशिताग्र।
पुष्पक्रम : शाखित स्पेडिक्स , स्पेथ द्वारा परिबद्ध , पुष्पक्रम एकलिंगी पुष्प युक्त जो पृथक वृक्षों पर उत्पन्न होते है।
1. नर पुष्प (male flower) : सहपत्री , अवृंत , एकलिंगी , अपूर्ण , त्रिज्यासममित , त्रितयी।
परिदलपुंज : परिदल 6 , 3-3 के दो चक्रों में , सफ़ेद , बाध्य चक्र के परिदल सहजात अथवा संयुक्त परिदली और कोरस्पर्शी , भीतरी चक्र के परिदल पृथकपरिदली और व्यावर्तित।
पुमंग : पुंकेसर 6 , 3-3 के दो चक्रों में , पृथकपुंकेसरी , पुन्तन्तु छोटे , परागकोष द्विकोष्ठी , अंतर्मुखी।
जायांग : अनुपस्थित।
पुष्पसूत्र :
2. मादा पुष्प (female flower) : सहपत्री , अवृंत , अपूर्ण , एकलिंगी , त्रिज्यासममित , नियमित , त्रितयी , जायांगधर।
परिदलपुंज : 6 परिदल , 3-3 के दो चक्रों में ,बाह्य चक्र के परिदल सहजात , उत्तरवर्धी , भीतरी चक्र के परिदल मुक्तपरिदली , कोरछादी।
पुमंग : अनुपस्थित।
जायांग : त्रिअंडपी , वियुक्तांडपी , त्रिकोष्ठीय , प्रत्येक कोष्ठक में एक बीजाण्ड , अंडाशय उधर्ववर्ती , आधारी बीजाण्डान्यास।
फल : एकबीजी बेरी।
पुष्प सूत्र :

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : एरीकेसी कुल का पर्यायवाची है –
(अ) लिलिएसी
(ब) पामी
(स) लेमियेसी
(द) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर : (ब) पामी
प्रश्न 2 : काष्ठीय और अपाती पर्णाधारों युक्त तना किस कुल में पाया जाता है ?
(अ) लिलीएसी
(ब) ग्रेमिनी
(स) माल्वेसी
(द) ऐरीकेसी
उत्तर : (द) ऐरीकेसी
प्रश्न 3 : स्पेडिक्स पुष्पक्रम पाया जाता है –
(अ) ग्रेमिनी
(ब) पोऐसी
(स) ऐरीकेसी
(द) चिनोपोडीएसी
उत्तर : (स) ऐरीकेसी
प्रश्न 4 : सुपारी का वानस्पतिक है –
(अ) केरियोटा
(ब) अकेशिया कैटेयू
(स) एरेका कैटेचू
(द) कैलेमस रोटन्डस
उत्तर : (स) एरेका कैटेचू
प्रश्न 5 : नारियल का तेल पौधे के किस भाग से प्राप्त होता है –
(अ) तने से
(ब) पत्तियों से
(स) बीज से
(द) उपरोक्त सभी से
उत्तर : (स) बीज से