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applications of recombinant dna technology in hindi , पुनर्योगज डीएनए तकनीक के उपयोग बताइए

जानिये applications of recombinant dna technology in hindi , पुनर्योगज डीएनए तकनीक के उपयोग बताइए ?

पुनर्योगज तकनीक के उपयोग (Applications of recombinant D.N.A. technology)

आधुनिक काल में पुनर्योगज तकनीक एवं आनुवंशिक अभियांत्रिकी के उपयोग एवं लाभ अर्जित किये जाने के अनेकों द्वार खुले हुए हैं। समाज एवं विज्ञान की प्रगति हेतु अनेक सम्भावनाएं व्यक्त की गयी हैं एवं अनेक क्षेत्रों में कार्य आरम्भ किया जाता है। इसका उपयोग रोगों के उपचार रोगों से मुक्ति पाने, फसल की उत्पादकता में वृद्धि एवं अनेक औद्योगिक उत्पादों की मात्रा में वृद्धि • एवं उत्कृष्टता लाने के प्रयास किये गये हैं।

  1. कृषि में उपयोग (Application in agriculture) : पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक द्वारा उत्कृष्ट किस्म के बीजों के जीनोटाइप बनाये गये हैं। इनसे विकसित पादप उच्च लक्षणों युक्त होते हैं ये गर्मी, सर्दी, नमी एवं विभिन्न रोगाणुओं के प्रति प्रतिरोधकता रखते हैं।

इस तकनीक द्वारा ही नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने योग्य पादपों को विकसित किया गया है । लेग्यूमिनेसी कुल के पादपों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण वाले जीवाणु पाये जाते हैं। इनके डी.एन.ए. में यह गुण पाया जात है। इसे Nif (nitrogen fixation) जीन कहते हैं। इस जीन का सामान्य पादपों में निवेशन कर इस लक्षण वाले पादप विकसित किये गये हैं। अतः बिना उर्वरकों के अधिक फसल प्राप्त की जा सकती है।

इसी प्रकार अत्यधिक सूखे (drought ) से लड़ने की क्षमता रखने वाले पौधे विकसित किये गये हैं। पादपों की कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी विकसित की गयी है जिन्हें चौपाये नहीं खाते। अतः ये अधिक समय तक स्वस्थ बने रहते हैं एवं फलकारी बने रहते हैं। प्रकाश संश्लेषण द्वारा इनकी उत्पादकता में वृद्धि किये जाने हेतु आनुवांशिक प्रोग्राम विकसित किया जा चुका है। इन कार्यों हेतु विशिष्ट एन्जाइम्स जैसे आक्सीनेज, कार्बोक्सीलेज, रिब्यूलोज बिस फॉस्फेट आदि का प्रयोग किया जाता है।

  1. औषधि में उपयोग (Application in medicine) : पुनर्योगज तकनीक द्वारा प्रतिजैविक औषधियों (antibiotic medicines) तैयार की गयी है। इसी प्रकार टीकें (vaccine) विकसित किये गये हैं जिन्हें लगाने से अनेक रोगों से मुक्ति मिल जाती है। कुछ समय पहले तक गायों व सुअर से प्राप्त इन्सुलिन का उपयोग मधुमेह के रोगियों के उपचार हेतु किया जाता था। अब पुनर्योगज तकनीक द्वारा ई. कोलाई जीवाणु से इन्सुलिन का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन किया जाने लगा है। इसी प्रकार इन्टरफेरॉन (interferon) जो एक प्रतिविषाणु कारक (antiviral agent) है जो मानव देह में विषाणु के आक्रमण पर सुरक्षा हेतु स्त्रावित किया जाता है का निर्माण ई. कोलाई से किया जाने लगा है। इसके लिये इन्टरफेरॉन बनाने वाली जीन की ई. कोलाई के भीतर समावेशित कराकर उत्कृष्ट विभेद तैयार कर लिया गया है। इस प्रकार प्राप्त औषधियाँ पुनर्योगज औषधियाँ कहलाती है।

संश्लेषित जीन्स की सहायता से आनुवंशिक रहस्यों का पता लगाया जा सकता है कि कौनसी औषधि या रसायन मनुष्य में क्या प्रभाव (एलर्जी आदि) उत्पन्न कर सकता है।

अनेक रोगों के उपचार हेतु हार्मोन्स इन्सुलिन, वृद्धि हार्मोन्स एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टिरॉन आदि का उपयोग अनेक रोगों में किया जाता है। पुनर्योगज तकनीक द्वारा इस क्रिया हेतु आवश्यक जीन को जीवाणुओं में रोपित कर ये उत्पाद प्राप्त किये जाते हैं। इसी प्रकार मानव विशिष्ट प्रोटीन एवं कारकों जैसे रक्त के थक्का बनाये जाने हेतु उपयोगी कारकों संश्लेषित एवं मध्यस्थ पदार्थों का निर्माण भी इसी विधि से किया जाता है।

आरम्भ में जो टीके विकसित किये जाते थे वे अक्रिय रोगाणु से बनाये जाते थे जिनका कभी-कभी विपरीत प्रभाव भी पढ़ता था। अब पुनर्योगेज विधि से हानिरहित टीके विकसित किये गये हैं। इस विधि में विषाणु या रोगाणु के केवल प्रोटीन भाग को ही प्रतिरक्षियाँ बनाने हेतु अन्त:क्षेपि किया जाता है। इस प्रकार हिपेटाइटिस रोग से बचाव हेतु टीका विकसित किया गया है जिसे स्विट्जरलैण्ड की बायोजन कम्पनी ने विकसित किया है।

  1. अंग प्रत्यारोपण (Organ transplantation) : इसका उपयोग देह के किसी अंग (वृक्क, रेटीना, अस्थि, कन्डरा, यकृत, हृदय आदि) के अनुपयोगी हो जाने पर किया जाता है। हमारी देह किसी भी बाह्य वस्तु या रसायन को स्वीकार नहीं करती व प्रतिरक्षियाँ बनाना आरम्भ कर देता है। अतः रोगी को अनेक परीक्षणों के लम्बे दौर से गुजरना पड़ता है। प्रत्यारोपण हेतु ट्रान्सजेनिक मूसों व सूअरों, या खरहों का उपयोग किया जाता है। DAF डिके एक्सीलरेटिंग फेक्टर (decay accelerating factor) कारक से असुरक्षित ऊत्तक लयन (Lysis) या नष्ट होने लगता है। DAF प्रोटीन है इसे बनाने वाले जीन की खोज कर ली गयी है। यदि DAF युक्त कोशिकाओं का उपयोग किया जाये तो प्रतिरक्षियाँ नहीं बनेगी। सुअर के अंगों में DAF युक्त अंग निर्माण कर इन्हें मानव में रोपित किये जाने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है।
  2. एन्जाइम एवं खाद्य पदार्थों के उत्पादन में उपयोग (Application in production of enzymes and food substances): पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक द्वारा किण्वनित योग्य पदार्थों के उत्पादन में महत्वपूर्ण सफलता मिली है। अनेक किण्वन क्रियाओं हेतु अनेक नये प्रभेद खोजे जा रहे हैं जिनसे जीवाणुओं को इस क्रिया के दौरान अधिक समय तक क्रियाशील रखा जा सके।
  3. औद्योगिक क्षेत्र में उपयोग (Industrial application) : पुनर्योगज तकनीक द्वारा जीवों के औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोग किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस प्रकार इनका उपयोग ऊर्जा उत्पादन हेतु, एल्कोहल व अन्य पदार्थों के उत्पादन हेतु किया जाने लगा है। इस प्रकार इथाइलीन ऑक्साइड, इथाइलीन ग्लाइकॉल व एसिटिक अम्ल आदि के उत्पादन में, शर्करा पदार्थों के तथा एक कोशीय प्रोटीन (SCP) के उत्पादन में इसकी काफी संभावनाएं हैं।
  4. प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में उपयोग (Application in pollution control) : अनुपयोगी अपशिष्ट पदार्थों, अपशिष्ट जल, कुडे, कचरे, मल आदि पदार्थों का उचित निस्तारण किस प्रकार किया जाये कि प्रदूषण न हो इस क्षेत्र में इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। अपशिष्ट पदार्थों एवं समुद्री जल पर पैट्रोलियम पदार्थों के निष्क्रिय किये जाने हेतु उत्कृष्ट जैविक विभेद विकसित किये जा रहे हैं।
  5. संश्लेषित जीन्स एवं डी एन ए चिप (Synthetic genes and DNA chip) : शोध कार्य हेतु एक बहुत विस्तृत क्षेत्र खुला है। हमारी देह में बनने वाले सभी पदार्थ जीन्स के प्रभाव से बनते हैं। यह जानने के लिये कि कौनसा पदार्थ किस जीन द्वारा बनाया गया है इसके लिए संश्लेषित जीन्स बना कर प्रयोग किये जा रहे हैं। इस प्रकार अनेक रोगों के होने से पूर्व इनकी संभावना व्यक्त की जा सकेगी। इसके लिये बायो चिप (bio-chip) का निर्माण किया गया है। ये चिप एक ठोस आधार पर डी.एन.ए. की विशिष्ट लड़ियों को व्यवस्थित कर तैयार की जाती है। यदि किसी व्यक्ति का डी.एन.ए. बायो चिप पर लगे डी. एन. ए. सूत्र से मेल खाता है तो यह संभावना होती है कि अमुक व्यक्ति को अमुक रोग ही सकता है। अतः इसी के अनुरूप औषधि विकसित कर उस व्यक्ति को रोग होने पर दी जा सकती है। अमेरिका की जैन सैट कम्पनी ने ऐसी बायोचिप विकसित कर ली है जिस पर मानव जीनों की सभी श्रृंखलाएं हैं। ऐसी बायो चिप भी विकसित की जा रही है जो रोग पैदा करने वाले जीनों का अध्ययन करने में सहायक होगी।
  6. पुनर्योगज तकनीक का उपयोग विभिन्न क्रियाओं जैसे कोशिका विभेदन कायान्तरण, वरण आदि आण्विक घटनाओं अध्ययन हेतु किया जाता है।
  7. इस तकनीक का उपयोग जीन मानचित्र बनाने हेतु भी किया जाता है।
  8. किसी भी प्राणि की परिवहन अवस्थाओं को रोककर अथवा दर को बढ़ाकर जीन में हेराफेरी करके अनुसंधान किये जाते हैं। वरण जीन्स में उत्परिवर्तन कर गोलकृतियों की जीवन अवधि को चार गुणा बढ़ाने के प्रयोग किये गये हैं।
  9. प्रत्यर्थ आचार (Antisense therapy) : किसी विशेष भाग में जीन्स की अधिक सक्रियता को विशिष्ट जीन श्रृंखला से जोड़कर घटाया या बढ़या जा सकता है। इस प्रकार रोगों का प्रत्यर्थ उपचार संभव है।
  10. भोजन एवं बाह्य जैव रसायनों का संश्लेषण : एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमिफेसिएन्स (Agrobacterium tumifaciens) विषाणुओं एवं जीन्स का सहायता से पादपों में भोजन संश्लेषण का जैव रसायनों का उत्पादन किया जाता है।
  11. नाइट्रोजन स्थिरिकरण (Nitrogen fixation) : सभी पादपों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण हेतु आवश्यक जीन्स बनाकर इनके जीनोम में प्रवेश कराकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
  12. हानिकारक जीन्स का भ्रूणीय अवस्था में पता लगाने हेतु इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।
  13. इच्छित पादपों के उत्पादन एवं मानव की आवश्यकताओं हेतु विभिन्न गुणों वाले पादप या प्राणियों को उत्पन्न किया जा सकता है।
  14. रोगों की पहचान हेतु DNA श्रृंखलाओं को काट कर फ्लूओरिसेन्ट या रेडियोधर्मी गुण द्वारा मार्कर (marker) के उपयोग द्वारा HIV पेशीय विकृति जैसे रोगों की आरम्भ में पहचान सम्भव है।
  15. आनुवंशिक अपसामान्यताओं हेतु जनकों का परीक्षण कर स्वस्थ शिशु को प्राप्त किया जा सकता है।

पीसीआर के उपयोग द्वारा वांछित जीन का प्रवर्धन (Amplification of Desired Gene Using PCR)

पॉलीमरेज चेन रिएक्शन को पीसीआर कहा जाता है। इस अभिक्रिया (Reaction) में वांछित जीन अथवा डीएनए की अनगिनत कॉपी इन विट्रो (In – Vitro) संश्लेषित की जाती हैं। संश्लेषण हेतु प्राइमर के सेट्स जैसे छोटे संश्लेषित ऑलिगोन्यूक्लिओटाइड जो डीएनए अनुक्रमों के पूरक (Complementary) होते हैं उनकी आवश्यकता होती है इसके साथ ही एन्जाइम डीएनए पॉलीमरेज भी जरूरी होता है। यह एन्जाइम प्राइमर को बढ़ाता है। इस कार्य को करने के लिये इसे जीनोमिक डीएनए को टेम्पलेट के रूप में इस्तेमाल करना होता है व साथ ही अभिक्रिया में प्राप्त न्यूक्लिओटाइड भी उपयोग में लाये जाते हैं। अगर प्रतिकृति (Replication) की प्रक्रिया कई बार अपनाई जाए तो डीएनए को एक अरब (Billion) गुणा प्रवर्धित किया जा सकता है अर्थात इसकी कॉपी प्राप्त की जा सकती है। इस निरंतर प्रवर्धन (Amplification) हेतु तापस्थाई (Thermostable) डीएनए पॉलीमरेज का उपयोग करते हैं जो एक जीवाणु थर्मस एक्वाटिक्स (Thermus aquaticus) से प्राप्त किया जाता है। इस डीएनए पॉलीमरेज की यह खासियत है कि उच्च ताप पर जहाँ द्विरज्जुक डीएनए का विकृतिकरण (Denaturation) हो सकता था यह उसे रोक देता है व डीएनए पॉलीमरेज सक्रिय रहता है। डीएनए का यह प्रवर्धित खंड अगर जरूरत हो तो आगे क्लोनिंग करने के लिये संवाहक के साथ भी जोड़ा जा सकता है।

पुनर्योगज डीएनए का परपोषी कोशिका में निवेशन (Insertion of Recombinant DNA into Hot Cell)

बंधित विजातीय डीएनए को आदाता (Recepient) कोशिका या परपोषी (Host) में स्थानांतरित करने के कई तरीके हैं। इस प्रक्रिया में आदाता कोशिकाओं को इस प्रकार से सक्षम बनाया जाता है कि वह डीएनए जो उनके आस-पास उपस्थित है उसे ग्रहण कर सके। अगर पुनर्योगज डीएनए का उदाहरण लें जिसके पास एम्पीसिलिन के लिये प्रतिरोधी जीन उपस्थित हैं व इस पुनर्योगज, डीएनए को ई. कोलाई जीवाणु में प्रविष्ट कर दिया जाए तब परपोषी (Host ) कोशिकायें भी एम्पीसिलिन के प्रति प्रतिरोधी क्षमता प्रदर्शित करने लगती हैं। अगर इन ई. कोलाई जीवाणु कोशिकाओं को ऐसे संवर्धन माध्यम पर वृद्धि करने के लिये रखा जाए जिसमें एम्पीसीलिन है तब रूपांतरज (Transformants) वृद्धि करेंगे व अरूपांतरज (Non- Transformed ) आदाता (Recipient) कोशिकाएं मृत हो जायेगी। इस प्रकार एम्पीसिलिन की उपस्थिति में उस रूपांतरज कोशिका को जिसमें एम्पीसिलिन के लिये प्रतिरोधी जीन ग्रहण कर लिया है उसका चयन करना आसान हो जाऐगा। इस प्रक्रिया में एम्पीसिलिन प्रतिरोधी जीन वरण योग्य चिंहक (Selectable Marker) कहलाता है।

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