अनोक्सिया या अनॉक्सिता (anoxia in hindi) ,  हेनरी नियम के उपयोग , uses of henry’s law in hindi

हेनरी नियम के उपयोग , uses of henry’s law in hindi , या या अनॉक्सिता (anoxia in hindi) :-=

गैस की द्रव में विलेयता : गैस द्रव में कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य विलेय होती है।

गैसों की द्रव में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक :-

  1. गैस तथा द्रव की प्रकृति: जो गैस द्रव से क्रिया कर लेती है वे यहाँ आयनित हो जाती है वे गैस द्रव में अधिक विलेय होती है।

जैसे –

NH3 + H2O → NH4OH

CO2 + H2O → H2CO3

SO2 + H2O → H2SO3

HCl → H+ + Cl

N2 तथा He , Ne , Ar आदि गैसे जल में बहुत कम विलेय होती है क्योंकि यह जल से क्रिया नहीं करती।

  1. ताप: जब भी कोई गैस द्रव में घुलती है तो ऊष्मा अवश्य बाहर निकलती है अर्थात गैस का द्रव में घुलना ऊष्माक्षेपी क्रिया है।

ताप बढाने से गैस की द्रव में विलेयता कम हो जाती है।

गैस + द्रव ⇌ विलयन + ऊष्मा

लाशातैलिए के नियम से ताप बढाने पर उपरोक्त साम्य उस दिशा में विस्थापित होता है जिधर ताप में कमी हो जाए अर्थात साम्य पश्च दिशा में स्थापित हो जाता है।  दूसरे शब्दों में ताप बढाने से गैस की द्रव में विलेयता कम हो जाती है।

  1. दाब: दाब बढ़ाने से गैस के अणु द्रव की सतह पर प्रहार करते है जिससे गैस के अणु द्रव में प्रवेश कर जाते है अर्थात ताप बढाने से गैस की विलेयता बढ़ जाती है।

गैस की द्रव में विलेयता को हेनरी नियम द्वारा निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है –

हेनरी नियम : निश्चित ताप पर किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (P) द्रव विलयन में घुली गैस के मोल अंश (x) के समानुपाती होता है।

P ∝  X

P  = KX

यहाँ  KH हेनरी नियतांक है जिसका मान ताप तथा गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है।

नोट : अक्रिय गैसों के लिए हेनरी नियतांक का मान अधिक होता है ,  KH का मान अधिक होने पर घुली गैस के मोल अंश कम हो जाते है जैसा कि निम्न सूत्र से स्पष्ट है।

X = P/ KH

नोट : ताप बढाने से हेनरी नियतांक बढ़ता है।  KH का मान बढ़ने से घुली हुई गैस के मोल अंश कम हो जाते है अर्थात गैस की द्रव में विलेयता कम हो जाती है अत: घुली हुई गैस के मोल अंश कम हो जाते है अत: गर्म जल की तुलना में ठण्डे जल में निवास करने वाले जन्तु अधिक सुविधाजनक स्थिति में रहते है क्योंकि ठन्डे जल में ऑक्सीजन अधिक विलेय होती है।

 हेनरी नियम के उपयोग

  • शीतल पेय पदार्थो में उच्च दाब पर कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस प्रवाहित करने से कार्बन डाइ ऑक्साइड की विलेयता को बढाया जा सकता है।
  • ऊँचे स्थानों पर वायुदाब कम होने के कारण रक्त में ऑक्सीजन गैस कम विलेय होती है जिससे आरोहक कमजोर होता जाता है , स्पष्ट सोचने की क्षमता में कमी आ जाती है , इस रोग को अनोक्सिया कहते है।
  • जब समुद्री गोताखोर गहरे समुद्र में जाते है तो दाब अधिक होने के कारण रक्त में ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन गैस अधिक विलेय हो जाती है।  जब गोताखोर समुद्र की सतह की ओर आते है तो दाब कम होने के कारण घुली हुई नाइट्रोजन गैस रक्त में बुलबुलों के रूप में एकत्रित हो जाती है जिससे रक्त प्रवाह में बाधा आती है।  यह स्थिति जानलेवा हो सकती है इसे बैंड्स कहते है अत: इस स्थिति से बचने के लिए सिलेंडर में कुछ हीलियम गैस मिलाई जाती है क्योंकि हीलियम की रक्त में विलेयता कम होती है।

वाष्प दाब : निश्चित ताप पर द्रव तथा वाष्प की साम्यावस्था में वाष्प द्वारा द्रव की सतह पर डाले गए दाब को वाष्पदाब कहते है।

नोट : ताप बढाने पर वाष्प दाब बढ़ता है।

दो द्रवों में से जिसका क्वथनांक कम होता है उसका वाष्पदाब अधिक होता है।