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आर्थोपोडा arthropoda in hindi , संघ – एस्केलमिन्थीज , संघ – ऐनेलिडा (annelida ) , लक्षण
सामान्य लक्षण
1. इस संघ की स्थापना तोपन ने की थी।
2. इस संघ की 12000 जातियाँ पायी जाती है।
3. इन्हें सामान्यत: गोलकृमि कहते है।
4. ये जलीय , स्थलीय स्वतंत्र या परजीवी होते है।
5. ये द्विपाशर्व सममित , त्रिकोरिक , कुटगुहिया तथा अंग तंत्र स्तर का शारीरिक संगठन रखते है।
6. शरीर पर क्यूटिकल का आवरण पाया जाता है।
7. आहारनाल पूर्ण तथा उत्सर्जन , उत्सर्जन नालों द्वारा होता है।
8. ये एकलिंगी होते है तथा इनमें आन्तरिक निषेचन होता है।
9. इनमे नर छोटा तथा मादा बड़ी होती है।
10. परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
उदाहरण – एस्केरिस , पुचेरिया , एनसाइकलो स्टोमेटा लौआ – लौआ आदि।
संघ – ऐनेलिडा (annelida )
संघ – आर्थोपोडा (arthropoda)
आर्थोपोडा
* ‘आर्थोपोडा’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वान सीबोल्ड ने 1845 ई. में किया था। यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है।
* ये जन्तु जल, थल एवं वायु तीनों स्थानों पर पाये जाते हैं।
* जंतुओं का शरीर सिर व धड़ में विभक्त होता है।
* ये खण्डयुक्त, त्रिस्तरीय होते हैं। देहगुहा एक रूधिर गुहा होती है जो रक्तवाहिनियों के मिलने से बनती है।
* इनमें खुला रूधिर तंत्र होता है।
* तंत्रिका तंत्र पूर्ण विकसित होता है।
* इनमें निषेचन बाह्य एवं आंतरिक दोनों प्रकार का होता है। उदाहरण्ः तिलचट्टा, मधुमक्खी, रेशम का कीड़ा, कनखजूरा, ट्राइआर्थस, बिच्छू, मकड़ी, किलनी, झींगा, केकड़ा, मच्छर, मक्खी आदि।
* इस संघ का सबसे बड़ा वर्ग कीटवर्ग है।
मोलस्का
* मोलस्का अकशेरूकी जगत का दूसरा सबसे बड़ा संघ है।
* कई प्राणी उभयचारी होते हैं। शरीर कवच से ढाका होता है।
* इनका शरीर एक पतली झिल्ली मैंटल से ढंका रहता है। मैंटल के चारों तरफ एक कठोर कवच होता है।
* इनमें रक्त परिसंचरण तंत्र विकसित होता है। रक्त नीला, हरा, लाल या रंगहीन होता है। इनमें रंग हीमोसियानिन नाम के वर्णक की उपस्थित के कारण होता है।
* इनमें उत्सर्जन वृक्कों द्वारा होता है।
उदाहरण: ऑक्टोपस, सीपिया, मोती शुक्ति, सीप, लाइमैक्स , हेलिक्स, पाइला नियोपाइलिना आदि ।
* पाइला को घोंघा या एप्पल स्नेल कहते हैं।
* सीपिया का साधारण नाम कटल फिश है।
* ऑक्टोपस को डेविल फिश भी कहते हैं।
* काइटन को समुद्री चूहिया, ऐप्लीसिया को समुद्री खरगोश, ऑक्टोपस को शृंगमीन के नाम से जाना जाता है।
प्रोटिस्टा जगत
प्रोटोजोआः प्रोटोजोआ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गोल्डफस ने 1820 में किया था।
* ये सबसे आदिकालीन और सबसे साधारण जंतु हैं।
* एककोशिकीय व सूक्ष्मदर्शी प्राणी।
* ये जलीय, स्वतंत्रजीवी, सहजीवी या परजीवी होते हैं
* इन जंतुओं के शरीर में कोई ऊतक या अंग नहीं होते हैं। इनमें केवल अंगक होते हैं।
* इनका शरीर नग्न या पोलिकल द्वारा ढका रहता है। कुछ जन्तु कठोर खोल में होते हैं।
उदाहरणः अमीबा, एण्ट अमीबा, हिस्टोलिका, यूग्लीना, पैरामीशियम कॉडेटम, प्लैजमोडियम आदि ।
* अमीबा का वैज्ञानिक नाम- अमीबा प्रोटियस
* एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका परजीवी के कारण मनुष्य को पेचिस हो जाती है।
* एण्ट अमीबा जिनजिवैलिस परजीवी से पायरिया रोग होता है।
* ट्रिपैनोसोमा गैम्बियेन्स मनुष्य के रूधिर में होता है जिससे सुषप्ति रोग होता है । इसके अलावा इससे गैब्बियन ज्वर भी हो जाता है।
* लीश मैनिया डोनोवानी के कारण मनुष्य में कालाजार रोग हो जाता है।
* मलेरिया बुखार प्लैजमोडियम के माध्यम से मनुष्य में उत्पन्न होता है।
* चप्पल के आकार का होने के कारण पैरामीशियम कॉडेटम को चप्पल जन्तु भी कहते हैं।
* यूग्लीना को हरा प्रोटोजोआ कहा जाता है।
एकाइनोडमेर्टा
* इनकी त्वचा कांटेदार होती है।
उदाहरणः तारा मछली, ब्रिस्टल स्टार, समुद्री खीरा, समुद्री लिली, थायोनय एण्टीडॉन आदि ।
* एस्टेरियस को तारामीन कहते हैं।
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