amravati art style in hindi मुख्य विशेषताएं अमरावती कला शैली क्या है ?
अमरावती (16.5° उत्तर, 80.51° पूर्व)
अमरावती, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले, कृष्णा नदी के दक्षिणी तट पर, स्थित है, जो आंध्र प्रदेश राज्य के आधुनिक विजयवाड़ा के समीप है।
अमरावती बौद्ध धर्म की महायान शाखा का एक महान केंद्र था। यह नगर बौद्ध स्तूपों एवं संगमरमर के समान लाइमस्टोन स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। ये स्तूप एवं स्थापत्य कृष्णा घाटी के बौद्ध अवशेषों से संबंधित हैं तथा इनकी प्राचीनता 200 ई.पू. से 300 ईस्वी तक मानी जाती है। अमरावती में भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसे ‘अमरेश्वर‘ के नाम से जाना जाता है। इनका प्राचीन नाम धान्यकटक था, जिसका अर्थ है-अन्न का शहर। इस प्रकार हिन्दुओं के लिए इसका विशेष महत्व है। गाथाओं के अनुसार, असुरों से पराजित होने के उपरांत देवता यहां निवास करने आए थे तथा इसके पश्चात धान्यकटक को अमरावती नाम से पुकारा जाने लगा। इसका अर्थ है-अमर या अमर देवता।
अमरावती कला की अमरावती शैली के लिए भी प्रसिद्ध है। इसकी मुख्य विशेषताएं हैं :-
ऽ सफेद संगमरमर जैसे लाइमस्टोन या पत्थर का प्रयोग।
ऽ प्रकृति का अंकन, जिसका मुख्य विषय मानव है।
ऽ स्थापत्य कला में राजा, रानी एवं युवराजों को विशेष महत्व।
वास्तव में सातवाहन एवं इक्ष्वाकु शासकों के संरक्षण में अमरावती कला की अत्यधिक उन्नति हुई तथा यह अपने विकास के शीर्ष पर पहुंच गई।
वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के पश्चात् हैदराबाद को नवनिर्मित राज्य तेलंगाना की राजधानी बनाया गया। अमरावती को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया जिसकी आधारशिला अक्टूबर 2015 में उनदरायुनिपलम गांव में रखी गई। प्रस्तावित राजधानी को सिंगापुर की मदद से एक स्मार्ट व ग्रीन सिटी में विकसित किया जा रहा है।
इलाहाबाद/कोसाम (25.45° उत्तर, 81.85‘ पूर्व)
इलाहाबाद को पहले प्रयाग के नाम से जाना जाता था। यह नगर गंगा, यमुना एवं सरस्वती (जिसे भूमिगत माना गया था) के त्रिवेणी संगम पर स्थित है।
यह नगर हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध एवं धार्मिक स्थल है, जहां कुंभ, महाकुंभ एवं माघ मेले आयोजित होते हैं। यहां के पवित्र संगम में स्नान करने प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवताओं ने अमृत के एक कलश को यहां छुपा दिया था, जिससे राक्षस इसे प्राप्त नहीं कर सकें किंतु कहते हैं कि इस कलश से अमृत की कुछ बूंदें यहां गिर गई थीं।
इस नगर के दक्षिण-पश्चिम में कोसाम नामक स्थान से अशोक का एक प्रस्तर स्तंभ लेख पाया गया है, कोसाम को ही कौशाम्बी के नाम से जाना जाता है। कौशाम्बी बुद्ध के समय महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रही तथा सोलह महाजनपदों में से एक थी। इस नगर में बुद्ध ने कई बार धर्माेपदेश दिये थे। महाजनपद काल में भी यह प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध धर्म का केंद्र होने के साथ-साथ कौशाम्बी एक प्रसिद्ध व्यापारिक नगर भी था। जहां अनेक धनी व्यापारी निवास करते थे। यहां से प्राप्त अशोक के शिलालेख से समुद्र गुप्त एवं जहांगीर भी संबंधित हैं। गुप्त शासक समुद्रगुप्त ने इसी शिलालेख पर अपनी विजयों एवं उपलब्धियों को अंकित करवाया। इसे प्रयाग प्रशस्ति के नाम से जाना जाता है। इसकी रचना समुद्रगुप्त के सांधिविग्रहिक सचिव हरिषेण ने की थी। जहांगीर के संबंध में ऐसा अनुमान है कि उसने ही इसे इसके मूल स्थान से हटाकर इलाहाबाद के किले में रखवाया था। यह बात एक अभिलेख में उल्लिखित है।
अकबर ने इलाहाबाद में एक भव्य एवं सुंदर किले का निर्माण करवाया। इसे ‘इलाहाबाद का किला के नाम से जाना जाता है। अकबर ने ही इसका नाम प्रयाग से बदलकर इलाहाबाद रखा था। 1722 में सआदत खां बुरहानुल मुल्क द्वारा अवध में स्वतंत्र राज्य की स्थापना के समय यह अवध का भाग बन गया। अंग्रेजी शासनकाल में 12 अगस्त, 1765 को इलाहाबाद की संधि से ही मुगल शासक शाहआलम ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी दी थी।
लार्ड डलहौजी द्वारा 1856 में जब अवध का अधिग्रहण किया गया, तो इलाहाबाद ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया। इलाहाबाद में ही प्रसिद्ध अल्फ्रेड पार्क है, जहां भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण करने की अपेक्षा स्वयं को गोली मार ली थी।
ब्रिटिश शासन काल में यह नगर शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा। 15 अगस्त, 1947 को जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, उसके पश्चात इलाहाबाद एक प्रसिद्ध व्यापारिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के रूप में उभरा।
अमरकंटक (22.67° उत्तर, 81.75° पूर्व)
तीन पर्वतश्रेणियों-विंध्या, सतपुड़ा तथा मैकाल से घिरा अमरकंटक मध्य प्रदेश में स्थित एक काफी व्यस्त तीर्थस्थल है। यह ‘तीर्थराज‘ या ‘तीर्थस्थलों के राजा‘ के नाम से लोकप्रिय है। यह स्थान भारत की दो प्रमुख नदियों-नर्मदा व सोन, का उद्गम स्थल भी है। डॉ. बेगलर जिन्होंने 1873-74 में इस शहर की यात्रा की थी, ने अमरकंटक को कालिदास के मेघदूत में उल्लिखित अमरकूट के रूप में पहचाना है। पुराणों में भी इसका उल्लेख एक पर्वत के रूप में हुआ है जहां त्रिपुरा, पौराणिक रूप से महलों का शहर, के कुछ हिस्से गिरे जब भगवान शिव ने इसे जला दिया। पद्म पुराण के आदिखंड में कहा गया है कि जो भी अमरकंटक पर्वत की यात्रा करता है वह सैंतीस हजार करोड़ वर्षों तक चैदह विश्वों का आनंद लेगा। उसके पश्चात् वह पृथ्वी पर एक राजा के रूप में जन्म लेगा एवं सम्राट की भांति शासन करेगा। अमरकंटक की एक बार की यात्रा का एक अश्वमेघ से दस गुना अधिक महत्व है।
एक अन्य धारणा यह भी है कि अमरकंटक का अर्थ है वह जिसकी ईश्वर की वाणी हो। यह भी कहा गया है कि इस शहर को दसवीं से ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी के बीच चेदी नरेश ने कलचुरी नरेश को दहेज में दिया। कामदेव (1042-72 ई.) ने सूरजकुंड में मंदिरों का निर्माण कराया। 1808 ई. में अमरकंटक नागपुर के शासक के अधीन था परन्तु उसके बाद यहां अंग्रेजों का अधिपत्य हो गया।
अमरकोट (33.37° उत्तर, 73.17° पूर्व)
अमरकोट वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। यह मध्यकाल में प्रसिद्ध राजपूत राज्य था। जब हुमायूं, शेरशाह से पराजित होकर भागता फिर रहा था, उस समय अमरकोट के तत्कालीन शासक राणा वीरसाल ने ही उसे प्रश्रय दिया था। 1542 में यहीं अकबर का जन्म हुआ।
अमरकोट का किला मध्यकालीन स्थापत्य का एक सुंदर नमूना है। 1843 में चाल्र्स नेपियर के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने यहां आक्रमण किया तथा इस पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
1947 में विभाजन के समय अमरकोट पाकिस्तान के हिस्से में चला गया।
आम्बेर/आमेर
(26.98° उत्तर, 75.85° पूर्व)
आम्बर (आमेर भी) राजस्थान में जयपुर के समीप स्थित है। इसका यह नाम संभवतः भगवान शिव के एक उपनाम अंबिकेश्वर से लिया गया जान पड़ता है। यह भी कहा जाता है कि इसका यह नाम अयोध्या के प्रसिद्ध शासक अम्बरीश के नाम पर पड़ा।
12वीं शताब्दी के मध्य कछवाहा शासकों ने इसे सुसावत मीणाओं से हस्तगत कर लिया। इसके पश्चात यह लगभग छः शताब्दियों तक उनकी राजधानी बना रहा। इसके उपरांत सवाई जयसिंह द्वितीय ने राजधानी आमेर से बदलकर जयपुर कर दी।
आमेर के शासक भारमल ने मुगलों की मित्रता के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 1562 में अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अपनी पुत्री का विवाह अकबर से कर दिया। आमेर के आगे के शासकों यथा-भगवान दास एवं मान सिंह को अकबर ने शाही सेवा में ले लिया तथा ऊंचे मनसबदारी ओहदे प्रदान किए।
आमेर में मध्यकालीन राजपूत स्थापत्य कला के कई सुंदर नमूने हैं। यहां मानसिंह एवं जयसिंह ने कई भव्य एवं सुंदर किलों का निर्माण कराया। यहां आमेर के किले में एक विशाल तोप रखी गई है, जिसे आज भी यहां देखा जा सकता है। इन किलों के अतिरिक्त आमेर में कई अन्य सुंदर इमारतें भी हैं। जो बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।
आमेर के किले में भव्य प्रवेश द्वार, प्रांगण तथा मंडप, एवं जड़ित दर्पणों के चमकदार कक्ष हैं। आमेर और जयपुर शहर संयुक्त रूप से हमें राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास के बारे में गहरी अंतदृष्टि प्रदान करते हैं।
आमरी (25°54‘ उत्तर, 67°55‘ पूर्व)
आमरी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। यहां से विकसित हड़प्पा सभ्यता के अतिरिक्त हड़प्पा-पूर्व एवं उत्तर-हड़प्पा दो प्रकार की सभ्यताओं के अवशेष भी पाए गए हैं।
हड़प्पाई स्थलों के उत्खनन के क्रम में आमरी की खोज एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। 1929 में जब पुरातत्ववेत्ता मजुमदार के नेतृत्व में इस स्थल की खोज की गई तो यहां हड़प्पा चरण के ठीक नीचे हड़प्पा-पूर्व अवस्था के प्रमाण पाए गए हैं। बाद में जे. एम. कैसल ने यहां पूर्व-हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों की बिल्कुल स्पष्ट एवं पुष्ट तस्वीर प्रस्तुत की। आमरी एक विशिष्ट बस्ती के रूप में विकसित हुआ तथा विकासमूलक चरणों की श्रृंखला ने इसे उस प्रकार का बनाया जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
आमरी के उत्खनन से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यहां के निवासी मिट्टी एवं पत्थरों के बने घरों में निवास करते थे। यहां धान्य कोठरों की उपस्थिति के प्रमाण भी पाए गए हैं। इनके मृदभाण्ड चित्रित होते थे तथा वे पहिएयुक्त भाण्डों का भी प्रयोग करते थे।
भारतीय दरियाई घोड़े का एकमात्र प्रमाण यहीं से पाया गया है, जो एक मुद्रा पर उत्कीर्ण है। आमरी से झूकर एवं झांगर संस्कृति के प्रमाण भी मिले हैं।
अमृतसर (31.64° उत्तर, 74.86° पूर्व)
भारत के पंजाब राज्य में स्थित अमृतसर, सिखों का सबसे पवित्र स्थल एवं पंजाब के बड़े नगरों में से एक है। अमृतसर का अर्थ है-‘अमृत का सरोवर‘ (चववस व िदमबजंत) अमृतसर का यह नाम, प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर में अमृत सरोवर की स्थापना के बाद पड़ा। इसी सरोवर के बगल की भूमि पर स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया गया है। इसे श्री हरमंदिर साहिब या श्री दरबार साहिब कहा गया। इसके तांबे से बने गुम्बद को स्वर्णपत्रों से मढ़ने के पश्चात ही मंदिर को ‘स्वर्ण मंदिर‘ के नाम से जाना जाने लगा है।
जिस स्थान पर स्वर्ण मंदिर निर्मित है, वह भूमि मुगल शासक अकबर ने सिखों के गुरु रामदास को दान में दी थी। इसके उपरांत रामदास ने 1577 में मंदिर की नींव रखी। 1604 में सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘आदिग्रंथ साहिब‘ को यहां रख दिया गया।
प्राचीन काल में अमृतसर फारस, यारकन्द एवं खोतान के व्यापारिक मार्ग का एक महत्वपूर्ण स्थल था तथा प्रसिद्ध रेशम मार्ग से जुड़ा होने के कारण ही यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा।
आगे के समय में भी यह नगर महत्वपूर्ण गतिविधियों का केंद्र बना रहा। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान 13 अप्रैल, 1919 को यहां जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना हुई।
वर्तमान समय में यह नगर न केवल धार्मिक गतिविधियों एवं पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र है, बल्कि लकड़ी के फर्नीचर एवं दस्तकारी के सामान के लिए भी ख्यातिलब्ध स्थल है।
अनेगोंडी (15.35° उत्तर, 76.49° पूर्व)
अनेगोंडी का अर्थ है-हाथियों का गड्ढा। यह वह स्थान था, जहां विजयनगर साम्राज्य के हाथियों को रखा जाता था। यह तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित एक दुर्गीकृत स्थान है। यह स्थान कर्नाटक के विजयनगर (वर्तमान में हम्पी) के समीप ही स्थित है, इसका निर्माण हरिहर तथा बुक्का ने कराया था।
मध्यकाल में अनेगोंडी कांपिल्य साम्राज्य का भाग था, जो कि 14वीं सदी में उभरते हुए तुगलक साम्राज्य के समय एक स्वतंत्र राज्य के रूप में जाना जाता था। कांपिल के शासक कांपिलदेव ने दिल्ली सल्तनत की सेनाओं से मुकाबला करते समय अनेगोंडी में ही प्रश्रय लिया था तथा यहीं से अपना अंतिम युद्ध लड़ा था। 1329 में तुगलक सेनाओं ने अनेगोंडी पर अधिकार कर लिया।
कालांतर में विजयनगर के शासकों ने इसे अपने साम्राज्य का भाग बना लिया। अनेगोंडी में 1565 तक विजयनगर का अधिकार बना रहा, जब तक कि वह तालीकोटा के युद्ध में बहमनी साम्राज्य के शासकों द्वारा परास्त नहीं हो गया।
इसके बाद अनेगोंडी बीजापुर साम्राज्य का हिस्सा बन गया तथा बाद में यह मराठों के अधीन आ गया। कालान्तर में इस स्थान की ऐतिहासिक महत्ता समाप्त हो गई।
अंग (लगभग 25° उत्तर, 86° पूर्व)
वर्तमान के बिहार के मुंगेर तथा भागलपुर जिले को मिलाकर बने प्रदेश को अंग कहा जाता है। इसका विस्तार उत्तर में कोसी नदी तक था तथा इसमें पूर्निया जिले के कुछ भाग भी सम्मिलित थे। अंग का उल्लेख महाभारत में भी है। कर्ण को दुर्याेधन ने यहां के एक शासक के रूप में नियुक्त किया था।
छठी से चैथी शताब्दी ई.पू. में जिन 16 महाजनपदों का अविर्भाव हुआ उनमें से एक ‘अंग‘ जनपद मगध के पूर्व तथा राजमहल पहाड़ियों के पश्चिम में स्थित था। अंग की राजधानी चंपा थी जिसकी गणना छठी शताब्दी ई.पू. के छः महान नगरों में होती थी। यह अपने व्यापार तथा वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध था तथा व्यापारी यहां से गंगा नदी में नाव द्वारा आगे पूर्व की ओर जाते थे। अंग के कुछ शासकों जैसे बहमभट्ट ने अपने समकालीन मगध शासकों को पराजित किया था, हालांकि, बाद में, मगध नरेश बिंबिसार ने अंग को जीत लिया था।
भागलपुर के निकट चंपा की खुदाई में उत्तरी काले चमकदार मृदभांड काफी संख्या में प्राप्त हुए हैं। यहीं पर धर्मपाल, जिसने 770-810 ई. के दौरान शासन किया था, द्वारा विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।