प्रत्यावर्ती धारा जनित्र क्या है ? डायनेमो का चित्र कार्यप्रणाली alternating current generator or dynamo in hindi

alternating current generator or dynamo in hindi , प्रत्यावर्ती धारा जनित्र क्या है ? डायनेमो का चित्र कार्यप्रणाली :-

स्वप्रेरण गुणांक या स्वप्रेरकत्व (L) :

(i) यदि कुण्डली में फेरो की संख्या N तथा कुण्डली में प्रवाहित धारा I है।

किसी कुंडली से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स (NΘ) उस कुंडली में प्रवाहित धारा I के समानुपाती होता है।

NΘ ∝ I

NΘ = LI     समीकरण-1

अत:  L =  NΘ/I

L का मात्रक = वोल्ट/एम्पियर

L का मात्रक = हेनरी

किसी कुण्डली का स्वप्रेरण गुणांक उस कुण्डली से गुजरने वाले फ्लक्स तथा उस कुण्डली में प्रवाहित धारा के अनुपात के बराबर होते है।

यदि I = 1 एम्पियर हो तो

L =  NΘ

(ii) किसी कुंडली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर उस कुंडली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स को कुंडली का स्वप्रेरण गुणांक कहते है।

फैराडे के नियमानुसार –

प्रेरित विद्युत वाहक बल e = d(NΘ)/dt

NΘ का मान समीकरण-1 में रखने पर –

e = dLI/dt

e = LdI/dt    समीकरण-4

L = e/(dI/dt)   समीकरण-5

L का मात्रक = वोल्ट.सेकंड/एम्पियर

L का मात्रक = हेनरी

यदि dI/dt = 1A/sec

L = e

किसी कुण्डली का स्वप्रेरण गुणांक उस कुण्डली के सिरों पर उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल के बराबर होता है जबकि कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर एकांक हो।

(iii) शक्ति P = dw/dt

dw = Pdt

w = ∫Pdt   समीकरण-7

चूँकि P = eI

w = ∫eIdt   समीकरण-8

e का मान समीकरण-4 में रखने पर –

w = ∫(LdI/dt)(Idl)

w = L∫IdI

w = LI2/2  समीकरण-9

LI2  = 2w

L = 2W/Iसमीकरण-10

L का मात्रक = जूल/(एम्पियर2)

L का मात्रक = हेनरी

I = 1 एम्पियर

L = 2w

किसी कुंडली का स्वप्रेरण गुणांक उस कुंडली में एकांक धारा स्थापित करने में किये गए कार्य के दोगुने के बराबर होता है।

किसी परिनालिका का स्वप्रेरण गुणांक (L) : माना किसी परिनालिका में फेरों की संख्या (N) तथा एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या n है , इस परिनालिका की लम्बाई l तथा प्रवाहित धारा i है।

NΘ = LI

L = NΘ/I  समीकरण-1

चूँकि Θ = BA

चूँकि L = NBA/I  समीकरण-2

चूँकि B = u0nI

B का मान रखने पर –

L = N(u0nI)A/I

L = Nu0nA  समीकरण-3

चूँकि N = nl

N का मान रखने पर –

L = u0(nl)nA

L = u0n2lA   समीकरण-4

यदि परिनालिका के भीतर कोई माध्यम जैसे नर्म लोहा जिसकी आपेक्षिक चुम्बकशीलता ur भर दे तो –

L = u0urn2lA   समीकरण-5

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र : प्रत्यावर्ती धारा जनित्र एक ऐसा साधन है जिसकी सहायता से यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।

इसमें ताम्बे के मोटे तारों की बनी कई फेरों वाली एक कुण्डली होती है जिसे आर्मेचर कहते है। यह कुंडली दो शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों N और S के मध्य इस प्रकार रखी होती है कि इसकी अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत रहे। इस कुंडली के साथ पीतल के बने दो सर्पिल वलय जुड़े रहते है जो कुण्डली के घुमने के साथ स्वयं भी घूमते है तथा कार्बन ब्रुशो पर फिसलते है। इन कार्बन ब्रुशो का सम्बद्ध लोड प्रतिरोध से कर दिया जाता है।

कार्यप्रणाली : जब कुण्डली को घूर्णन कराया जाता है तो कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में निरंतर परिवर्तन होता है। (शून्य से अधिकतम तथा अधिकतम से शून्य) फ्लक्स में परिवर्तन के कारण कुण्डली में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है तथा प्रेरित धारा बहने लगती है। यदि कुण्डली में फेरो की संख्या M एवं कुंडली का क्षेत्रफल A है। यह चुम्बकीय क्षेत्र B में नियत कोणीय वेग w से घूर्णन कर रही है।

कुण्डली से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स

Θ = BAcosθ   समीकरण-1

चूँकि θ = wt

θ का मान रखने पर –

Θ = BAcoswt  समीकरण-2

फैराडे व लेन्ज के नियम से प्रेरित विद्युत वाहक बल –

e = -NdΘ/dt

Θ का मान रखने पर –

e = -Nd(BAcoswt)/dt

e = -NBAdcoswt/dt
e = -NBA[-wsinwt]
e = NBAw sinwt  समीकरण-3
NBAw = eप्रेरित विद्युत वाहक बल का अधिकतम मान –
e = e0 sinwt  समीकरण-4
इस प्रेरित विद्युत वाहक बल को प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल कहते है।
यदि कुण्डली का प्रतिरोध R हो तो –
प्रेरित धारा I = e/R
e का मान रखने पर –
I = (e0/R)sinwt  समीकरण-5
e0/R = I0  प्रेरित धारा का अधिकतम मान
I = I0 sinwt  समीकरण-6
भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृति 50 हर्ट्ज़ तथा अमेरिका में प्रत्यावर्ती धारा की आवृति 60 हर्ट्ज़ है।